Saturday, 18 January 2020

जब तलक मां ज़िंदा थी

नहीं था घर में धुआं जब तलक मां ज़िंदा थी।
रौशन था मेरा मकां जब तलक मां ज़िंदा थी।

कुछ घरों से रौशनी तो अब बाहर आती नहीं।
रहते थे तब हर निशां जब तलक मां ज़िंदा थी।

मेरी बुलंदियों में उस की हर दुआ थी शामिल।
नाप लिया था आसमां जब तलक मां ज़िंदा थी।

मां के कहने पर ही तो चांद उतरता था छत पर।
मेरे ही थे वे दोनों जहां जब तलक मां ज़िंदा थी।

खील बतासे, गुड़ धानी भी बिन मांगे ही दे देना।
घर पर थी तब हर दुकां जब तलक मां ज़िंदा थी।

सुनसान राहों पर मां की सब दुआएं थी रहबर।
तब साथ मेरे था कारवां जब तलक मां ज़िंदा थी।

ख़ामोश खड़े हैं अब वे सब,जो मुझ पर चिल्लाते थे।
तब मुंह में थी सब के ज़बां जब तलक मां ज़िंदा थी।

✍️ सतीश कुमार

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