Tuesday 31 March 2020

जीना होगा बेबसी से


कैसे राब्ता रहेगा ता-उम्र ज़िंदगी से।
हवा ये कितनी तंग है हर आदमी से।

कैसे सिमट गया सब एक कमरे में।
जो कुछ बिखरा था ये इक सदी से।

ये नहीं है खेल कोई बच्चों का यहां।
उभरने में वक्त लगा है हर त्रासदी से।

है ज़ंज़ीर ए ज़ीस्त उसी के हाथों में।
कौन मरता है यहां अपनी खुशी से।

मुंह के बल गिरा है ये इतिहास देखो।
जब भी उलझा है आदमी प्रकृति से।

कलाम, अटल, रविन्द्र या और कोई।
सीख लो कभी किसी की जीवनी से।

बनाना होगा एक मुख्तलिफ नक्शा।
या फिर यूं ही जीना होगा बेबसी से।

          ✍️ सतीश कुमार

Monday 30 March 2020

The Cracks of my fate

The Cracks of my fate

A given fraction of time,
erased my rhyme .
A given space more than to my soul,
Just broke like a mirror 
and had a big roll .
All the improbable dreams ,
just flowed in an eyeful stream .
A kind , unknown heart 
got stabbed with broken promises nailed on dart. 

You look me from outside ,
you'll see rainbow thyside ,
But when looked deep inside ,
 a hidden black colour will be visible thyside.

There's a deep disappointment but never shed a tear,
because elongating my issues was my biggest fear.
Apart from remorseful heart ,
burdened chest , heavy throat , 
all I gathered was yearn ,
And accepted the cracks of my fate 
With no back turn.

When words froze and eyes melt 
I weave the imagination 
And shade the world ,
rather than inking the world .
Because I was played by everyone ,
And henceforth disappointed with everyone .

✍️ PRIYA (Student )
Paonta Sahib

Friday 27 March 2020

आदमी का साया

कोयलें अब कहां कूकती है इस दश्त में।
है वक्त की किस शाख पर ये ठहरा दिन?

ऐसे भी होते हैं एक सिक्के के दो पहलू।
आदमी का रात साया है और चेहरा दिन।

✍️ सतीश कुमार

बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है

बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है |
मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है |

सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल |
यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||

ज़िन्दगी एक नियामत, इसे सम्हाल के रख |
क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ||

दिल बहलने के लिए घर मे वजह हैँ काफ़ी |
यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है ||

Wednesday 25 March 2020

माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप : श्री शैलपुत्री

नवदुर्गा (नवरात्रि) में माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप : श्री शैलपुत्री


वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृत शेखराम।
वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम॥

श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण भगवती का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का है, जिनकी आराधना से प्राणी सभी मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है।
मां दुर्गा शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा सेनवमी तक सनातन काल से मनाया जाता रहा है. आदि-शक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में पूजा की जाती है. अत: इसे नवरात्र के नाम भी जाना जाता है. सभीदेवता, राक्षस, मनुष्य इनकी कृपा-दृष्टि के लिए लालायित रहते हैं। यह हिन्दू समाज का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक, नैतिक व सांसारिक इन चारों ही दृष्टिकोण से काफी महत्व है। दुर्गा पूजा का त्यौहार वर्ष में दो बार आता है, एक चैत्र मास में और दूसरा आश्विन मास में चैत्र माह में देवी दुर्गा की पूजा बड़े ही धूम धाम से की जाती है लेकिन आश्विन मास का विशेष महत्व है। दुर्गा सप्तशती में भी आश्विन माह के शारदीयनवरात्रों की महिमा का विशेष बखान किया गया है। दोनों मासों में दुर्गा पूजा का विधान एक जैसा ही है, दोनों ही प्रतिपदा से दशमी तिथि तक मनायी जाती है।
नवरात्र पूजन के प्रथम दिन मां शैलपुत्री जी का पूजन होता है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया है, माँ शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प लिए अपने वाहन वृषभ पर विराजमान होतीं हैं। नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में साधक अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं, शैलपुत्री का पूजन करने से ‘मूलाधार चक्र’ जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं।


शैलपुत्री की ध्यान 

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रर्धकृत शेखराम्।
वृशारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्॥
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

शैलपुत्री की स्तोत्र पाठ:

प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्यदायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहिमहामोह: विनाशिन।
मुक्तिभुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥

शैलपुत्री की कवच :

ओमकार: मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकारपातुवदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥

✍️ डॉ. सुरेन्द्र शर्मा

कर्फ्यू


कर्फ्यू लगया चहुं चफेरे
सारे माणु अंदर घेरे
जिंदगिया च एहड़ा खेल नी था देख्या
देखे थे असें खेल बतेरे
सारा देश हुई गया बंद
घरा ते नी कोई निकली सकदा बाहर
कोई बचारा फसी गया पुणे,मुम्बई
कोई फसी गईरा लखनऊ हरद्वार
कुछ तां कष्ट सहने पौना
जे अपणी कने अपणेयां री जिंदगी बचानी
ईसा रा लाज पता नी कुसी जो बी चलया
कुत्ता ते आई गई ये बीमारी खसमा खाणी
दूर दूर असां रहणा
एक दूजे रे नेड़े नी औणा
कुछ दिनां तक किसिरे बी घरें
नी जाना असां बनी कने परोहणा
बच्चे कने बुजुर्ग
हुंदे इक समान
झट बाहरा जो दौड़ी जाएं
जे रखो नी इन्हांरा ध्यान
घरा ते बाहर नी निकलो कोई
कर्फ्यू जो सफल बनाना
सैजे छोरू इयांई दौड़ी रे बाहर
तिन्हांजो बी समझाना
जे नी मनगे इयाँ 
तां पुलसा आलेयां पूछना तिन्हारा हाल
छितर परेड बी होनी
कने पछवाड़ा बी करना लाल
जे चेन एक बार टूटी गई
तां सबी खातर हा खरा
मिली जुली नी कुछ बी करना
कले कले हुई कने लड़ा
इकियाँ दिनां रा नियाँ कुछ
है नी ये बड़ी गल
जे रहंगे घरा रे अंदर
तां निकली जाणा कोई न कोई हल

✍️ रविंदर कुमार शर्मा

नवरात्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य

नवरात्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य

नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है।
भारत के प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता...... तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। लेकिन नवरात्र के दिन, नवदिन नहीं कहे जाते।
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक। और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक। परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है।इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं। कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर भक्तों का समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए एकत्रित होता है। जो उपासक इन शक्ति पीठों पर नहीं पहुंच पाते, वे अपने निवास स्थल पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं।
आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं, पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं। सामान्य भक्त ही नहीं, पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागना नहीं चाहते। न कोई आलस्य को त्यागना चाहता है। बहुत कम उपासक आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं।मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है। हमारे ऋषि - मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।
दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता - जागता उदाहरण है। कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है।

वैज्ञानिक सिद्धांत

वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं, उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है। इसीलिए ऋषि - मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर - दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है। जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है।

नवरात्र या नवरात्रि

संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है।

नवरात्र क्या है ?

पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।

नौ देवियाँ / नव देवी

नौ दिन यानि हिन्दी माह चैत्र और आश्विन के शुक्ल पक्ष की पड़वा यानि पहली तिथि से नौवी तिथि तक प्रत्येक दिन की एक देवी मतलब नौ द्वार वाले दुर्ग के भीतर रहने वाली जीवनी शक्ति रूपी दुर्गा के नौ रूप हैं :-

1. शैलपुत्री 
2. ब्रह्मचारिणी
3. चंद्रघंटा
4. कूष्माण्डा
5. स्कन्दमाता
6. कात्यायनी
7. कालरात्रि
8. महागौरी 
9. सिध्दीदात्री


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्माचारिणी।
तृतीय चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम्।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रि महागौरीति चाऽष्टम्।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः।

इनका नौ जड़ी बूटी या ख़ास व्रत की चीजों से भी सम्बंध है, जिन्हे नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है :-

1. कुट्टू (शैलान्न) 
2. दूध-दही (ब्रह्मचारिणी) 
3. चौलाई (चंद्रघंटा) 
4. पेठा (कूष्माण्डा) 
5. श्यामक चावल (स्कन्दमाता) 
6. हरी तरकारी (कात्यायनी) 
7. काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि) 
8. साबूदाना (महागौरी) 
9. आंवला(सिध्दीदात्री)

नवरात्र क्यों मनाया जाता है .?

नवरात्र एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
.
नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है :-

चैत्र ( April/May )
आषाढ ( June/July )
अश्विन ( Sept/Oct )
पौष ( Jan/ Feb )
जो कि प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है।

नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों की पुजा होती है:-

"महालक्ष्मी "
" महासरस्वती "
" महादुर्गा "

ये नौ देवियाँ है :-

महालक्ष्मी

1. ( शैलपुत्री ) - इसका अर्थ है - पहाड़ों की पुत्री 
2. ( ब्रह्मचारिणी ) - इसका अर्थ है- जो सदा ब्रह्मचारी का पालन करती हो
3. ( चंद्रघंटा ) - इसका अर्थ है- चाँद की तरह चमकने वाली

महासरस्वती

4. ( कूष्माण्डा ) - इसका अर्थ है- पूरा जगत उनके पैर में है
5. ( स्कंदमाता ) - इसका अर्थ है- कार्तिक स्वामी की माता
6. ( कात्यायनी ) - इसका अर्थ है- कात्यायन आश्रम में जन्मि

महादुर्गा

7. ( कालरात्रि ) - इसका अर्थ है- काल का नाश करने वाली
8. ( महागौरी ) - इसका अर्थ है- जो गौ माता के समान गोरी हो
9. ( सिद्धिदात्री ) - इसका अर्थ है- सर्व सिद्धि देने वाली।

✍️ -डॉ. सुरेन्द्र शर्मा

माँ शक्ति के विविध रूपों को चरितार्थ करता महापर्व नवरात्रि

माँ शक्ति के विविध रूपों को चरितार्थ करता महापर्व नवरात्रि :-


प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्टम् कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महगौरीति चाष्टमम्।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिताः ।।

लोक कल्याण एवं मंगल भाव से परिपूर्ण माँ शक्ति माँ जगदम्बा के महा उत्सव नवरात्रि के सुवसर पर माँ दुर्गा के चरणों में कोटि-कोटि नमन

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी l
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते ll


परम स्नेही आत्मीय जन,

ज्ञान, भक्ति एवं शक्ति की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाले इस महापर्व नवरात्रि, मातृशक्ति पूजन अर्चन के कल्याणकारी दिवस पर माँ भगवती, माँ दुर्गा आपके जीवन को ओजस्विता, तेजस्विता एवं वर्चस्वता से ओतप्रोत करते हुए अपना वरदहस्त सदैव आपके सिर पर सुशोभित रखें।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नवसंवत्सर 2077 एवं चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपका दिवस शुभ एवं मंगलमय हो।

""परोपकार के भाव आपमें जाग्रत हों जिससे ईश कृपा आप पर बनी रहे।""


          ❀꧁ω❍❍ω꧂❀
            ll *शुभम्  भूयात* ll
          ❀꧁ω❍❍ω꧂❀


प्रस्तुति : ✍️ डाॅ सुरेंद्र शर्मा 

मत्था टेक्को


औआ ऊत गलांदे सारे,
घर-घर लग्गण पुट्ठे नारे।

हर कोई ऐ सुधरा करदा,
अप्पू अपणा रूप सुआरे।

बच्चे बोल्लण छल्लकबड्डी,
बांदर बोल्लण बारे - न्यारे।

माणुसता ऐ तड़फा करदी,
सुच्चमसुच्ची  सोच  वचारे।

माता अज्ज बचाए स्हांजो,
कोरोना   नैं   माह्णू   मारे।

अज्ज "नवीन" नरात्ते आए,
मत्था  टेक्को  मुड़ियै  प्यारे।

           ✍️ नवीन हलदूणवी

Tuesday 24 March 2020

किंह्यां माह्णू ब्हाद्दर जी


मारीत्ते   चमगाद्दड़   जी,
किंह्यां माह्णू ब्हाद्दर जी?

ऊल़ू - भिरल़ां चीक्का दे,
गीत  भुली  गे  दाद्दर  जी।

गिद्दड़ - फौ़ई फैह्की जा,
कुण दिंदा ऐ  आद्दर जी?

कुत्ते अणमुक भौंक्का दे,
दिक्खी  चिट्टी  चाद्दर  जी।

रौल़ा - रप्पा   पा   करदे,
इत्थू  लोक्को  नाद्दर  जी।

छुट्ट   'नवीन'   भलाई   दे,
तोप्पै  दुनियां   साद्दर  जी।

         ✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।

आशा की किरण


कबूतरों का शोर आने पर मैं छत पर गई। मैंने पाया कबूतर आपस में पूछ रहे थे क्या किसी को पता है मानव कहाँ चले गए हैं? एक कबूतर बोला,भाई इक्का-दुक्का ही दिख रहे हैं।लगता है घोर बिपत्ति आ गई है।
मैं चुपचाप सुनती रही।

कबूतरों की सभा में चिडि़याँ, मैना और तोते भी आ गए।
सबको यही चिन्ता सता रही थी। आखिर मानव नज़र क्यूं नहीं आ रहा। मैंने रसोईघर से चावल लिए और उन्हें डालकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई।
पक्षी पँख फैलाकर झूमने लगे मानो मनुष्य को देख मन से खुश हुए। गौरेया धीमे स्वर में बोली ईश्वर इन्सानों की रक्षा करना। इन्हें सदैव खुश रखना क्योंकि ये आपकी सर्वश्रेष्ठ रचना है।

मुझे एहसास हुआ प्रकृति भी मानव से प्रेम करती है फिर मानव क्यूं निर्दयता दिखाता है?

अँधेरा होनें लगा, मैं अपने घर में परिवार के साथ व्यस्त हो गई। आधी रात को बाहर भयंकर शोर सुनाई पडा़।मैंने चुपके से देखा तो उल्लू चिल्ला रहे थे ,चमगादड़ खुश हो रहे थे। गौरेया,कबूतरों और अन्य पक्षियों को जो मानव के साथ दिन में सहानुभूति दिखा रहे थे उन्हें ये बुरी तरह डाँट रहे थे।

एक चमगादड़ बोला हे ईश्वर! तूनें तो रचना कुछ और ही की थी परन्तु तेरी कृति दम्भी निकली  और  विकृत हो गई। परीक्षण करता-करता मानव भी उसका शिकार हो गया। अब आया  ऊँट पहाड़ के नीचे। आपातकाल घोषित कर रखा है। जब जंगलों को गंजा करता था।हम मासूमों को अपने घर बनाने के लिए भी जगह नहीं देता था।हमें कच्चा तो कभी पकाकर खाने में ही उसे तृप्ति होती थी। मानव जाति नें भयंकर उत्पात मचाया था आज इनके प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाएगा।इन मानवों को अपने किए की सजा़ मिलनी ही चाहिए।

अति कहीं भी अच्छी नहीं होती।
सारे चमगादड़ जो़र से हँसने लगे।
उल्लू बोला  मानव  तो अपने स्वार्थ के लिए दूसरे मानवों को भी मार डालना चाहते हैं। जादू -टोने करते हैं तो कभी सामने से वार। हम मासूमों को अपने गलत कार्यों में शामिल करते हैं। इतने स्वार्थी मनुष्य कैसे हो गए ईश्वर भी पछताता होगा।पर अब अक्ल ठिकाने आएगी मनुष्यों की।

पृथ्वी माँ पर भारी हैं ये मनुष्य।
सभी चाहते हैं पाला हमें ही पहले छू ले। हमारी सन्तानें हीं खाएं दूसरों को देख जब कोई सन्तुष्ट नहीं तो ऐसे लोगों से पृथ्वी को भारमुक्त करना ही विधाता का सही निर्णय है।
सभी चमगादड़ पँख जो़र से फड़फडा़ने लगे और अपनी सहमति जताई।
उल्लुओं की चीख से सारा बातावरण आतंकित हो गया।
मैंने कान बन्द कर लिए।

हे ईश्वर! त्राहिमाम्........
यदि धरा पर बुराई है तो प्रभु तेरे प्यारे भी हैं जो जीवों पर दया दिखाते हैं। अपने उन बच्चों की तो रक्षा करना तेरा ही कर्त्तव्य है क्योंकि हम सब तेरी संतानें हैं।
मेरा रुदन सुन चारों ओर शाँति हो गई। जो पक्षी दिन में मनुष्यों का सुख माँग रहे थे चुपचाप सब सुन रहे थे  वे भी उल्लुओं और चमगादडो़ं से कहने लगे सभी बुरे नहीं होते। हर एक को एक तराजू में नहीं तौला जा सकता।सुथरी सोच वाले मानवों के लिए आओ हम सब ईश्वर से प्रार्थना करें।

हे रात्रि में जागने वाले पक्षिराज भारत भू पर देवतुल्य मानव भी हैं जो प्रकृति को अपनी माँ समझते हैं। हम पक्षियों को भोजन देते हैं। यदि कोई भूल हो भी गई हो तो ये ज़रूर सुधरेंगे। इन्हें एक मौका अवश्य मिलना चाहिए।
आओ ईश्वर से सब प्रार्थना करें।
उल्लुओं का परिवार और चमगादड़ परिवार अन्य पक्षियों की बात से सहमत हो गया।
मुझे उनकी बातें सुन आशा की किरण जगती प्रतीत हुई।

✍️ प्रतिभा शर्मा
प्रवक्ता हिन्दी, रा.व.मा.पाठशाला
कल्चर, बिलासपुर, हि.प्र. 

Monday 23 March 2020

कोरोना से लाॅकडाउन शिमला, अनियमितता बरतने पर कठोर कार्यवाही

उपायुक्त शिमला अमित कश्यप ने कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए सभी से सकारात्मक सहयोग की अपील की। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जारी लाॅकडाउन की घोषणा के तहत जिला में सभी परिवहन सेवाओं को रोक दिया है, जिसके तहत हिमाचल पथ परिवहन निगम, निजी गाड़ियां, टैक्सियां व अन्य वाहन शामिल हैं। 
उन्होंने कहा कि निजी गाड़ियों का इस्तेमाल मरीजों को लाने व ले जाने के लिए किया जाएगा, जिसकी जांच पुलिस द्वारा की जाएगी। अस्पताल से आने पर मरीज को पर्ची दिखानी आवश्यक होगी। उन्होंने लाॅकडाउन के महत्व तथा कोरोना संक्रमण से बचाव की गंभीरता को अपनाते हुए सभी से घरों में रहने की अपील की तथा संक्रमण से बचाव के लिए सभी प्रकार के एहतियात बरतने के निर्देश दिए। 


उन्होंने कहा कि अस्पताल, दवाई, राशन, सब्जी अथवा अन्य आवश्यक वस्तुओं को अति आवश्यकता होने पर ही खरीदने के लिए बाहर आएं, जितना हो सके अपने को घरों की अंदर ही रखें। उन्होंने कहा कि शिमला नगर व जिला के विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुओं के तहत किराना, सब्जियों, दवाईयों व दूध, ब्रैड, मक्खन, पनीर आदि की दुकानें खुली रहेगी। शेष सभी दुकानें बंद रहेगी। उन्होंने कहा कि सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों के अतिरिक्त निजी डाॅक्टर के क्लीनिक तथा अस्पताल भी खुले रहेंगे। 

उन्होंने शिमला नगर व उप-नगर में सब्जियों आदि के दामों को नियंत्रण में रखने के लिए आवश्यक आदेश पारित किए हैं। उन्होंने कहा कि सब्जी मण्डी में सब्जी की बोली पर लाभांश तय किया जाएगा। उन्होंने कहा कि विक्रेताओं द्वारा उप-नगरों पर सब्जी ले जाने के लिए एक रुपया प्रति किलो सब्जी ढुलाई खर्चा जोड़ कर बेचनासुनिश्चित करे। 

उन्होंने कहा कि जिले के अन्य क्षेत्रों में उपमण्डलाधिकारियों को इस संबंध में आवश्यक निर्देश जारी किए गए हैं, जिसके तहत वे अपने उपमण्डल के नागरिक आपूर्ति विभाग के निरीक्षकों तथा संबंधित क्षेत्रों के व्यापार मण्डलों व संघों के साथ बैठक कर किराना, सब्जियों व दैनिक आवश्यकता की वस्तुओं के संबंध में उपायुक्त कार्यालय को सूचित करें ताकि आवश्यकता अनुरूप व्यवस्था कर सब्जी, किराना व अन्य रोजमर्रा की उपयोग की वस्तुओं को बिना किसी रोक के गाड़ियों में भेज कर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। 

उन्होंने कहा कि विभिन्न खाद्य व रोजमर्रा की चीजें तथा सब्जियों के दाम नियंत्रण में रखने के लिए मूल्य नियंत्रण अधिनियम के तहत शिमला व जिला के विभिन्न क्षेत्रों में जांच, निरीक्षण व निगरानी की जाएगी। अनियमितता बरतने वाले के प्रति कठोर कार्यवाही अमल में लाई जाएगी। 

उन्होंने बताया कि जिला शिमला से संबंध रखने वाले विदेशों से आए 19 लोगों की जानकारी प्राप्त हुई है, जिन्हें एकांतवास की प्रक्रिया के तहत रखा गया है। 
उन्होंने कहा कि किसी प्रकार की सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए 104 नम्बर तथा किसी भी आपतकालीन स्थिति में कोई सहायता प्राप्त करने अथवा जानकारी प्राप्त करने के लिए जिले के केन्द्रीय नियंत्रण कक्ष 1077 पर काॅल कर सकते हैं। यह नियंत्रण कक्ष हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे कार्य करता रहेगा। 

Saturday 21 March 2020

शुद्ध हवा का दाम कहां है

घट -घट बसता राम कहां है,
सुखमय जीवन धाम कहां है?

मानवता  के  सुंदर  वन  में,
पल-छिन का आराम कहां है?

सुबह  सवेरे  भजता  रहता,
इससे अच्छा काम कहां है?

तप करना तो भूल गया है,
ढूंढ रहा अब नाम कहां है?

भारत  माता  पूछ  रही  है,
प्रेम-सुधा का आम कहां है?

खूब "नवीन"टटोलें मन को,
शुद्ध हवा का दाम कहां है?

        ✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

Friday 20 March 2020

चूहा - बिल्ली

सौग्गी-साथैं  मिल्ली  जी,
न्हस्सै  भूरी  बिल्ली  जी ।

चुह्ये   लफ़्जां   कुतरा   दे ,
 पतरे - पोत्थू छिल्ली जी ।

लोक  भलाई  भुल्ली  गे,
रोज़ डुआंदे खिल्ली जी ।

बधिया चौल़ बणाणे जी ,
भौएं    छेई   गिल्ली  जी ।

स्हाड़ी  भास्सा  उच्ची   ऐ ,
हुण नीं ढिल्लमढिल्ली जी।

रोक   'नवीन'   लुआई   दे ,
पुज्जी  जाणा  दिल्ली  जी ।

               ✍️ नवीन हलदूणवी

Thursday 19 March 2020

मुझ में भी

मुझ में भी औकात नहीं है,
कविता की सौगात नहीं है।

नाच रहे हैं चोर - उचक्के ,
भावों  की  बारात  नहीं  है।

धूमिल है पगडंडी जग में ,
शब्दों की बरसात नहीं है ।

बन्द पड़ीं चन्द्रौली - भगतें,
सुंदर दिन औ' रात नहीं है ।

कड़वाहट का जोर बहुत है ,
अब तो मीठी  बात  नहीं  है।

विंव 'नवीन' लगे हैं झड़ने ,
फूल बसंती पात  नहीं  है ।।

          ✍️ नवीन हलदूणवी
दूरभाष - 8219484701
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

बिछड़े दोस्त दोबारा नी मिलणे

बिछड़े दोस्त दोबारा नी मिलने
तियाँ जे झड़िरे फूल दोबारा नी खिलणे
बचपना री दोस्ती 
कने जवानियाँ रा प्यार
कोई बी नी पुली सकदा
पावें जोर लावा सौ बार
बेशक अजकला री दोस्ती
बहुत कट लोग निभान्दे
दिला रियाँ गलां
हर किसी जो नी सुनान्दे
पर स्कुला री दोस्ती
हुन्दी थी खास
दोस्त भयागा ते संजा तक 
हुंदे थे आस पास
कुछ भी नी थे अपु च छुपांदे
अपनी सीक्रट गलां बी 
इकि दूजे ने थे बंडांदे
अम्ब ,काकड़िया,अमरूद
चोरदे थे बड़े पाहरी
सब नठदे थे
तन्जे औंदी थी
डंडेयाँ री बारी
खेलने भी कट्ठे थे जांदे
झूठ बी बहुत थे ग्लान्दे
रोज घड़ी रखाँ थे 
कोई न कोई छिंगड़ 
तिसजो बड़ा छेडदे थे
सैजे हुँदा था कोई बचारा जिंगड़
मास्टरां जो बी नी छडदे थे 
लग लग सबी रे नावँ थे रखदे
चाकां लायौनंदे थे चोरी कने
हर कुछ थे रस्ते च लिखदे
मास्टरां गे तन्जे हुन्दी थी शिकायत
तां किसी रा नावँ हनी थे दसदे
पुराणयां दोस्तां जो दीख़ाँ कदी पुलदे
अजकल ऐहड़े दोस्त अनि मिलदे
दोस्त हुंदे जिंदगियां च धागे साई
तिसते बिना जे कपड़े हनी सिलदे
सगे हनी हुंदे
पर सगेयाँ ते ज़्यादा फ़र्ज़  निभान्दे
मुश्कला रे बेले
एहि दोस्त कम औंदे
दोस्तां री रखो पूरी संभाल
सच्चे दोस्त हुंदे लाजवाव
एहड़ा मौका कदि नी देयो
भई कोई दोस्त हुई जाए नाराज
जे कोई रूसी जाए
तां माफी मंगी कने लवा मनाई
माफिया ते कोई छोटा नी हुँदा
यह तां देंदी दिलां च प्यार जगाई
एक बार सैजे दोस्त बिछड़ी गया
सै दोबारा नी औणा
पूरी ज़िंदगी टैम फेरी
बिना दोस्तां ते ही कटने पौणा

✍️ रविंदर कुमार शर्मा
घुमावदार, 9418093882

Wednesday 18 March 2020

डॉ. मुकेश कुमार का व्यक्तित्व

डॉ0 मुकेश कुमार का  व्यक्तित्व और उनकी रचनाधर्मिता

किसी भी रचनाकार के साहित्य अनुशीलन से पहले उसके व्यक्तिगत जीवन, स्वभाव, युग विशेष, वातावरण परिवेश आदि पर  डालना आवश्यक है। क्योंकि इन्हीं से उसका व्यक्तित्व विकसित होता है। लेखक की कुछ व्यक्तिगत विशेषताएँ भी उसके साहित्य को समझने में सहयोगी होती है। अपने साहित्य के लिए वह इसी युग और समाज से सामग्री ग्रहण करता है, किन्तु अपनी कृतियों में अपने व्यक्तित्व की थोड़ी बहुत छाप जरूर छोड़ जाता है, और जो उसे अमर बना देती है। पश्चिम के विद्वान और विचारक भारत को दार्शनिकों का देश कहते हैं। प्राचीन काल से ही इसी देश में अनेक ऋषिमुनि सन्त, भक्त, साधक, विद्वान, कवि और साहित्यकार उत्पन्न हुए है। जिनके चरित्र व साहित्य का अध्ययन करके अपने जीवन में धारण किया जाता है। उनके साहित्य, चरित्र का प्रभाव डॉ0 मुकेश कुमार जी के व्यक्तित्व पर झलकता दिखाई देता है। डॉ0 मुकेश कुमार का जन्म कृषक परिवार में हुआ। आपका विशेष लगाव संत समाज से है, अतः इसी कारण से आपके जीवन, व्यक्तित्व, कृतित्व पर सत्संगति और साधु समाज का सर्वाधिक प्रभाव दिखाई देता है।


जन्म एवं परिवार

 डॉ0 मुकेश कुमार जी का जन्म हरियाणा प्रदेश के जिला करनाल के प्योंत गाँव में 26 सितम्बर सन् 1988 ई0 उनके ननिहाल में माता मुरती देवी के गर्भ से हुआ। प्रमाण पत्र में इनकी जन्म तिथि 05 मई सन् 1988 है। उनका पैतृक गाँव हथलाना है। जो कि करनाल जिले में पड़ता है। आपके पिता स्व0 चौधरी कर्ण सिंह जी एक किसान थे। जो अपना जीवन सादगी में व्यतीत करते थे। आपकी वंशावली रोड़ (क्षत्रिय) है इस प्रकार से है- 

 शिक्षा

   डॉ0 मुकेश कुमार की प्रारम्भिक शिक्षा ननिहाल में गाँव प्योंत के राजकीय माध्यमिक विद्यालय में हुई। यह बालक बाल्यावस्था से अब तक पढ़ने-लिखने में रूचि रखता है और अपनी माता व शिक्षकों का आज्ञाकारी है। उच्च शिक्षा (पीएच0डी0) कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र से प्राप्त की।

विवाह एवं संतान

 डॉ0 मुकेश कुमार जी बड़े सद्गृहस्थी हैं इनका विवाह श्रीमती शीतल रानी कमोदा जिला- कुरुक्षेत्र निवासी स्व0 चौधरी बलबीर सिंह की सुपुत्री के साथ 7 नवम्बर सन् 2012 ई0 में हुआ। इनका गृहस्थ जीवन बहुत ही सुखमय और सफल है। धर्मपत्नी श्रीमती शीतल रानी जी का स्वभाव सरल, सहज एवं सादगी सा है। वह बहुत सादगी में अपना जीवनयापन करती है। पहली सन्तान कन्या हुई थी जो एक सप्ताह के बाद परलोक चल बसी। दूसरी सन्तान पुत्र रूप में प्राप्त हुई जिसका जन्म 4 मई, सन् 2016 ई0 में हुआ। उसका नाम अविश चौधरी है। जो कि नटखट व होनहार है।

व्यक्तित्व

किसी भी व्यक्ति के दो रूप होते हैं- बाहरी व्यक्तित्व और आन्तरिक व्यक्तित्व। इसी आधार पर डॉ0 मुकेश कुमार जी के व्यक्तित्व के दोनों रूप प्रस्तुत है-
सरल स्वभाव और विनम्रता- डॉ0 मुकेश कुमार जी सरलता और विनम्रता के आकार स्वरूप हैं। उनमें कुटीलता और बनावटीपन थोड़ा सा भी नहीं है। आधुनिक युग में देखा जाता है कि व्यक्ति की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अन्तर होता है। उनके व्यक्तित्व में इस प्रकार का दोहरापन बिल्कुल नहीं है। चाहे विद्यार्थी हो या उनका साथी एवं सहकर्मी हो। वे सब के साथ निश्छल व्यवहार करते हैं। वह कभी झूठे आश्वासनों में विश्वास नहीं करते, जो कार्य संभव है, व्यावहारिक है, उसको स्वीकृति प्रदान कर देते हैं। जो कार्य वश से बाहर है और अव्यवहारिक है उसको स्वीकृति प्रदान नहीं करते हैं। वे अहंकार को व्यक्ति की सबसे बड़ी कमी मानते हैं। घर और बाहर उनका व्यवहार एक समान रहता है।
मिलनसार एवं व्यवहार कुशल- आप कोरे एकांतवासी नहीं है। सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के बीच में रहना आपको अच्छा लगता है। बिना किसी भेदभाव और पक्षपात रहित होकर छोटे-बड़े, निर्धन-धनी, सुशिक्षित व अशिक्षित, विद्यार्थी व अध्यापक, किसान और मजदूर सबके साथ मिलते हैं। वह व्यक्तियों को परस्पर जोड़ते हैं। मन के वैरभाव को दूर करवाते हैं। वे ‘जियो और जीने दो’ की नीति में विश्वास करते हैं जो उनके मिलनसार स्वभाव के अनुकूल है। डॉ0 मुकेश कुमार जी किताबों को अपनी सच्ची मित्र मानते हैं। वे कहते हैं कि जिनके पास किताबे हैं वे सबसे अमीर है। विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के साथ बड़े सरल व सहज भाव से वार्तालाप करते हैं। उनके भाव व विचार बहुत ईमानदारी का प्रतीक है।
विद्या व्यसनी एवं सुयोग्य शिक्षा- लोक व्यवहार में ऐसा कहा जाता है कि रचनाकार और शिक्षक विद्या व्यसनी होते हैं। यह उक्ति आपके व्यक्तित्व पर खरी उतरती है। विद्यारूपी व्यसन के कारण ही आपको विश्वविद्यालयों की उच्चतम उपलब्धियाँ प्राप्त हुई है। उनका मानना है कि ‘‘ज्ञान का कोई भी अन्त नहीं है, मानव जीवन पर्यन्त सीखना रहता है। एक आदर्श शिक्षक हमेशा विद्यार्थी बनकर ही रहता है।’’ आप निरन्तर नई-नई पुस्तकें खरीदते हैं और उनको पढ़ते भी हैं। आप निरन्तर अध्ययनशील रहते हैं। साहित्य की अनेक विधाओं पर अध्ययन करके लेखन कार्य भी करते रहते हैं। हर वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला प्रगति मैदान दिल्ली में आयोजित होता है वहाँ का भ्रमण करते हैं और काफी पुस्तकें हिन्दी-साहित्य की खरीदते हैं। उस समय आपका मन बड़ा प्रसन्नतादायक होता है। आप एक अच्छे शिक्षण के साथ एक अच्छे वक्ता भी हैं। आप विद्यालय एवं महाविद्यालय, यूनिवर्सिटी के शिक्षण कार्य से जुड़े हुए हैं। एक विद्यार्थी एवं शोधार्थी के शोध कार्य में काफी मार्गदर्शन भी देते हैं। विद्या निरन्तर अभ्यास से प्राप्त होती है और एक अच्छा शिक्षक लगातार विद्या प्राप्त करने का अभ्यास करता है। यही गुण आप में विद्यमान है।
बड़ों के आज्ञाकारी- आपका व्यक्तित्व सरल स्वभाव के कारण छोटों से प्रेम व बड़ों का सदैव आदर करता है। आप हमेशा सदैव अपने आप को अनुशासन में ही रखते हैं। आज्ञा का पालन आपके स्वभाव में विद्यमान है।
भारतीय संस्कृति के उपासक- आप हमेशा भारतीय संस्कृति में जीवन यापन करते हैं और विश्वास भी करते हैं। भारतीय संस्कृति की विशेषता ‘वसुध्ौव कुटुम्बकम्’ उसका आदर्श है। आप वेद, उपनिषद्, पुराण, रामायण, गीता, अन्य धार्मिक ग्रंथों के अनुयायी है। आप संस्कृत-हिन्दी साहित्य के पुजारी हैं।
ओजस्वी वक्ता- आपका जन्म ग्रामीण परिवेश व प्रकृति की गोद में हुआ। संत परम्परा के वचनों व उनकी वाणी का अध्ययन करके आपकी भाषा मधुर एवं पवित्र है। जब आप व्याख्यान देते हैं तो बड़ी ओजस्वी वाणी में अपने विचार प्रस्तुत करते हैं।
यात्रा-प्रेमी एवं उदारमना- आप यात्रा के बहुत प्रेमी है, साहित्यिक यात्रा आपको आनंद प्रदान करती है। प्रकृति की जहाँ सुंदर छटा विद्यमान हो वहाँ आप अधिक यात्रा करना पसंद करते हैं। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सम्मेलनों और संगोष्ठियों में आप हमेशा भाग लेते हैं। धार्मिक स्थान पर बहुत खुश होकर यात्रा करते हुए भी आप उस ‘सरस्वती माँ’ का धन्यवाद कहना नहीं भुलते।
राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रेमी- डॉ0 मुकेश कुमार जी हिन्दी भाषा के प्रेमी हैं। आप हिन्दी भाषा के प्रचार व प्रसार में लगे रहते हैं। आपका मानना है कि हिन्दी विश्व बाजार की भाषा बनने के कारण संसार के अन्य देशों में भी विकसित हो रही है। एक राष्ट्र भाषा हिन्दी हो, एक हृदय हो भारत जननी।प्रकृति व अन्य प्राणियों से प्रेम- आप प्रकृति के साथ-साथ अन्य प्राणियों से भी गहरा प्रेम करते हैं। उनको भी आप एक परिवार का हिस्सा मानते हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी- आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। आप एक शिक्षक, साहित्यकार एवं शोध निर्देश भी हैं। आपकी रूचि साहित्य की अनेक विधाओं में है- जैसे कविता, कहानी, नाटक, एकांकी उपन्यास, आलोचना, पत्र-पत्रिकाएँ आदि। आप विभिन्न साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सहर्ष से भाग लेते हैं।

कृतित्व

डॉ0 मुकेश कुमार जी का व्यक्तित्व बहुमुखी है इसलिए कृतित्व भी बहुआयामी है। आपने साहित्य की अनेक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है। जैसे - आलोचनात्मक साहित्य, सम्पादित साहित्य, सृजनात्मक, साहित्य आदि।

डॉ0 मुकेश कुमार की रचनाधर्मिता

1. हिन्दी कविता राष्ट्रीय चेतना एवं संस्कृति :-  इस पुस्तक या प्रकाशन वर्ष सन् 2018 ई0 है। यह पुस्तक साहित्य संचय प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक के दो वर्ष बाद अब 2020 में दूसरा संस्करण भी प्रकाशित हो गया है। इसमें आप की सृजन प्रक्रिया सम्पूर्ण हिन्दी कविता : राष्ट्रीय चेतना एवं संस्कृति विद्यमान है। आदिकालीन हिन्दी साहित्य के कवि चन्दबरदायी से लेकर अब तक के रचनाकारों पर विभिन्न शोध आलेखों का विवरण इस पुस्तक में मिलता है। डॉ0 मुकेश कुमार भूमिका में लिखते हैं- ‘‘प्रत्येक राष्ट्र की निजी संस्कृति होती है जो उसको एक सूत्र में पिरोये रखती है- रीति-रिवाज, साहित्य, शिक्षा, कला, रहन-सहन, जीवन-दर्शन एवं मान्यताओं सभी का समाहार संस्कृति के अन्तर्गत हो जाता है। संस्कृति मानव के जीवन वृक्ष का सुगन्धित पुष्प है।"1 इस पुस्तक में राष्ट्रीयता एवं भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। हिन्दी साहित्य में जिन कवियों ने अपनी रचनाधर्मिता में राष्ट्रीय एवं संस्कृति पर लेखनी चलाई हैं उन काव्य कृतियों को पढ़कर वास्तव में राष्ट्र के प्रति प्रेम जागृत होता है। भारत भूमि का यशोगान होता है, ‘‘भारत भूमि पवित्र भूमि है। भारत देश मेरा तीर्थ है, भारत मेरा सर्वस्व है, भारत की पुण्यभूमि का अतीत गौरवमय है, यही वह भारतवर्ष है, जहाँ मानव प्रकृति एवं उसके अन्तर्गत के रहस्यों की जिज्ञासाओं के अंकुर पनपे थे।’’2 इस पुस्तक में डॉ0 मुकेश कुमार जी ने संपादकीय में भारत के विभिन्न सौंदर्य, पर्यटक, तीर्थ, नदियाँ, सात पवित्र पर्वत आदि का सुंदर ढंग से वर्णन किया है जो इस पंक्ति में विद्यमान है- सब तीर्थों का एक तीर्थ यह, हृदय पवित्र बना ले हम, आओ यहाँ अज्ञात शत्रु बन, सबको मित्र बना ले हम।’’3 

2. अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता :- इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2019 ई0 है। यह विनय प्रकाशन, कानपुर से प्रकाशित है। इस आलोचनात्मक कृति में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की काव्य-सर्जना में हुए विभिन्न प्रयोगों का मूल्यांकन किया है। अज्ञेय जी प्रयोगवाद के आधार स्तम्भ माने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य में नये-नये प्रयोगों को आयाम दिये। अर्थात् पुरानी मान्यताएँ तोड़कर नयी मान्यताएँ गढ़ना सामान्य रूप से प्रयोग शब्द का तात्पर्य है- नई वस्तु के अन्वेषण की प्रक्रिया। नयी कविता को जन्म देना। ‘‘तो प्रयोग अपने आप में इष्ट नहीं, वह साधन है, और दोहरा साधन है, क्योंकि एक तो वह उसे सत्य को जानने का साधन है, जिसमें कवि प्रेषित करता है दूसरे उस प्रेषण की क्रिया को उसके साधनों को जानने का भी साधन है अर्थात् प्रयोग द्वारा कवि अपने सत्य को अधिक अच्छी तरह से जान सकता है और अधिक अच्छी तरह अभिव्यक्त कर सकता है। वस्तु और शिल्प दोनों क्षेत्रों में प्रयोग फलप्रद होता है।’’4 इसी प्रकार से इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में ‘अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य सृजन का आधार’ पर विचार किया गया। लेखक ने बहुत ही सुंदर ढंग से इस अध्याय को लिखा है। दूसरे अध्याय ‘अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य सृजन की विकास यात्रा’ है। जिसमें लेखक ने उनकी काव्य सृजन की प्रथम कृति ‘भग्नदूत’ (1933) से लेकर ‘महावृक्ष के बीच’ तक पर विस्तृत प्रकाश डाला है। जिसमें प्रकृति चित्रण, उषा के अनुराग, मेघों की गर्जना, वैयक्तिक प्रेम और पीड़ा को अभिव्यक्त किया है। अज्ञेय की लेखनी प्रकृति से चलती-चलती लघु मानव का संचार करती है। ‘असाध्य’ वीणा इन एक लम्बी कविता है। इसमें न तो परमसत्ता की प्राप्ति की आकांक्षा है, न किसी अनद्ध नाद के श्रवण का आयोजन है।अज्ञेय ऐसे विस्तृत कवि है जो तारसप्तक की नींव रखकर उसमें 28 कवियों को स्थान देते हैं।तीसरे अध्याय में अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता पर विचार किया है। जिसमें अज्ञेय का काव्य दर्शन, संवेदना की तराश, भाषिक रूपान्तरण आदि। अज्ञेय जी लिखते हैं- अर्थ हमारा, जितना है, सागर में नहीं, हमारी मछली में है।’’अध्याय चार में 'अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य की सृजन प्रक्रिया' पर विचार किया गया जिसमें अज्ञेय और प्रयोगवाद, अज्ञेय और नयी कविता, नयी कविता का सृजनात्मक परिप्रेक्ष्य, नयी कविता में ईश्वर और प्रेम, नयी कविता में आस्थावाद, नयी कविता में भोगवाद, क्षणवाद, प्रयोग और सप्तक काव्य आदि का विश्लेषण बहुत ही सुंदर ढंग से किया है। जिससे हिन्दी कविता में नया मोड़ आ गया।अध्याय पाँच में अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य में विचार-तत्त्व पर प्रकाश डाला गया जिसमें अज्ञेय की काव्य प्रवृत्तियाँ है- प्रणयानुभूति, मानवतावादी दृष्टिकोण, व्यक्तिबोध और अस्तित्व बोध आदि बिन्दुओं पर टिप्पणी की है। अज्ञेय भी यह सुंदर पंक्ति कितनी प्रेरणादायक है- 
 ‘‘यह दीप अकेला स्नेह भरा,
 है गर्व भर मदमाता पर, 
 इसको भी पंक्ति को दे दो।’’5
अध्याय छः में 'अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य में प्रेम और सौंदर्य' को दर्शाया है- जिसमें अज्ञेय के काव्य में वात्सल्य, जनमानस के प्रति प्रेम, प्रकृति प्रेम, दार्शनिकता, बाह्य सौंदर्य का विकास, नाद व्यंजना, कलात्मक सौंदर्य आदि बिन्दुओं पर प्रकाश डाला है। अध्याय सात में 'अज्ञेय के काव्य में भाषा और शिल्प के नये प्रयोग' का वर्णन किया है जिसमें शब्द का सृजनात्मक प्रयोग, सार्थक प्रतीकों की तलाश, परम्परागत प्रतीकों की नवीन दृष्टि, निजी प्रतीक, आधुनिक प्रतीक, बिम्ब और मिथक का सार्थक प्रयोग, अप्रस्तुत योजना आदि बिन्दुओं पर विस्तृत नया दृष्टिकोण डाला है।इसी प्रकार से ‘अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता’ नामक पुस्तक को डॉ0 मुकेश कुमार ने सात अध्यायों में विभक्त किया है जो समाज में नयी पीढ़ी के लिए हिन्दी साहित्य में ‘अज्ञेय’ को समझने के लिए एक गहन चिन्तन पैदा करेगी।

3.'चमत्कार' एकांकी संग्रह संवेदना शिल्प : - इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2019 ई0 है। यह पुस्तक विद्या प्रकाशन, कानपुर से प्रकाशित है। ‘चमत्कार’ एक एकांकी-संग्रह है। इस एकांकी-संग्रह के लेखक बाबूराम जी है। यह डॉ0 मुकेश कुमार की आलोचनात्मक पुस्तक है। इस पुस्तक को पाँच अध्यायों में विभक्त किया है। लेखक ने इस पुस्तक में भारतीय संस्कृति, संवेदना आदि पर लेखनी चलाई है। इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में ‘एकांकी’ विधा का उद्भव और विकास पर प्रकाश डाला गया। अध्याय दो में बाबूराम का जीवनवृत्त लिखा है। अध्याय तीन में ‘चमत्कार’ एकांकी-संग्रह की एकांकियों का सामान्य परिचय दिया है। जिसमें ‘चमत्कार’, उजड़ती दुनिया, नारी व्यथा, अंगुलिमाल, गुरु की पहचान, विश्वामित्र का यज्ञ, रूक्मिणी-परिणय, भ्रष्टाचार का दानव आदि का विश्लेषण किया है। लेखक ने बहुत ही सुंदर ढंग से इस पुस्तक में वर्णन किया है- ''ब्रह्म में लीन होकर जिनको परम आनन्द की प्राप्ति होती थी व जो इन्द्रियों व इच्छाओं के स्वामी थे। सरस्वती जिनके कण्ठ में विराजमान थी। यथा नाम से भी कोटि स्थान ऊपर उनके कार्य है। आज के नैतिक विहीन समाज में उन्होंने अपने ज्ञानोपदेश, शिक्षा व संस्कारों से समाज को परिमार्जित किया है वह है सन्त ब्रह्मानन्द सरस्वती।’’6अध्याय चार में ‘चमत्कार एकांकी-संग्रह की संवेदनात्मक विशेषताओं’ का चित्रण किया है। जिसमें सामाजिक परोपकार की भावना, गोवंश संवर्धन की भावना, देश प्रेम की भावना, विश्व कल्याण की भावना, धार्मिक भावना, भ्रष्टाचार का चित्रण, चरित्र निर्माण पर बल, प्रकृति-चित्रण, पर्यावरण संरक्षण, जल की उपयोगिता का चित्रण, गुरु-शिष्य परम्परा का चित्रण, पशु-पक्षियों के प्रति संवेदना, वृक्षों की महत्ता का चित्रण आदि बिन्दुओं का चित्रण किया है।  अध्याय पाँच में शिल्प विधान पर प्रकाश डाला है।यह पुस्तक सर्वाधिक श्रेष्ठ एवं अनुपम कृति है। 

4. लोकभाषाओं में रामकाव्य :- इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2019 ई0 में साहित्य संचय प्रकाशन, दिल्ली से हुआ है। यह डॉ0 मुकेश कुमार की संपादित पुस्तक है। इसमें विभिन्न विद्वानों के शोध आलेख समाहित है। इसमें लिखा भी हैं। वैदिक युग से लेकर आज तक सांस्कृतिक, पौराणिक, बिम्बों, मिथकों एवं विचार-खंडों की जो धारा प्रवाहित होती रही है, उसके वैविध्य के मूल्य में एक अखण्ड चेतना सदैव विद्यमान रही है। ''रामकथा विभिन्न भाषाओं एवं लोकभाषाओं में उपजी है, जिसमें भोजपुरी, हरियाणवी, पंजाबी, कन्नड़, मलयालयम, पहाड़ी, अवधी आदि। रामकाव्य भारतीय जनमानस की कंठहार रही है। इसका प्रमाण वैदिक, बौद्ध एवं जैन परम्परा में मिलता है इसी तरह से रामकाव्य भारतीय चिन्तन का वह मेरूदंड है जिसमें कला, साहित्य, दर्शन और मनोविज्ञान की अवधारणाएँ मिलती है ओर प्रेरणा देती है।’’7

5. खड़ी बोली हिन्दी के उन्नायक महाकवि हरिऔध :- इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2020 है। यह पुस्तक सानिया पब्लिकेशन, दिल्ली से प्रकाशित है। यह पुस्तक हरिऔध के अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ के समग्र साहित्य पर आधारित आलोचनात्मक है। इसमें डॉ0 मुकेश कुमार ने हरिऔध का जीवनवृत्त और उनका रचना संसार का विश्लेषण किया है। हरिऔध के राम, कृष्ण, यशोदा, सीता आदि पात्रों का बहुत ही सुंदर ढंग से वर्णन किया है। ‘‘महाकवि हरिऔध जी देशभक्त कवि थे। उन्होंने अपने साहित्य सृजन में ऐसे चरित्रों का निर्माण किया जो लोक सेवक, राष्ट्रभक्त, लोक कल्याण, जाति प्रेम, भाषा प्रेमी, जन्मभूमि प्रेमी, देश प्रेमी आदि समाज में राष्ट्रीयता की शंखध्वनि का स्वर गूंज उठे। यही उनकी राष्ट्रीयता का आधारभूत सत्य है। वे कहते हैं- 
 ‘‘प्यारा है जितना स्वदेश उतना है प्राण प्यारा नहीं।
 प्यारी है उतनी न कीर्ति, जितनी उद्धार की कामना।।’’8 
यह पुस्तक हिन्दी साहित्य में मील के पत्थर का काम करेगी। सारांश रूप में कहा जाता है कि डॉ0 मुकेश कुमार का व्यक्तित्व बहुआयामी है। इनकी साहित्य साधना हिन्दी कविता राष्ट्रीय चेतना एवं संस्कृति से प्रारम्भ होती है। वह राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम की भावना जागृत करती है। अज्ञेय, हरिऔध, रामकथा, चमत्कार एकांकी आदि पर आपकी लेखनी चली। जिसमें राष्ट्रीयता, मानव प्रेम, विश्व बन्धुत्व, मानव मूल्य भाषा, बिम्ब विधान, साहित्य में नये-नये प्रयोग आदि को समाज के सामने प्रस्तुत करके हिन्दी साहित्य में पुण्य का कार्य किया है।

संदर्भ सूची 
1. डॉ0 मुकेश कुमार, हिन्दी कविता : राष्ट्रीय चेतना एवं संस्कृति, भूमिका, पृ0 42.
 वही, पृ0 43.
 वही, पृ0 34.
 डॉ0 मुकेश कुमार, अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता, पृ0 185. 
वही, पृ0 516.
 डॉ0 मुकेश कुमार, ‘चमत्कार एकांकी संग्रह : संवेदना और शिल्प, पृ0 447. 
डॉ0 मुकेश कुमार, लोकभाषाओं में रामकाव्य, संपादकीय, पृ0 58. 
डॉ0 मुकेश कुमार, खड़ी बोली हिन्दी के उन्नायक महाकवि हरिऔध, पृ0 11

✍️  रीत चौधरी
1507, न्यू हाईड पार्क ड्राईव,न्यू हाईड पार्क, न्यूयॉर्क-11040 (यू.एस.ए.)मो0 +1 6265030354

राम नाम गुण गाए


गुरुआं दे डेरे आए जी,गुरुआं दे डेरे।
राम-नाम गुण गाए जी,गुरुआं दे डेरे।

भगत बड़े-ई आए जी,गुरुआं दे डेरे।
मन दी मैल मटाए जी,गुरुआं दे डेरे।।

सब्बो इक्क बरोबर जी,गुरुआं दे डेरे।
माणुसता दे जाए जी,गुरुआं दे डेरे।

मन दे भेद मटाए जी,गुरुआं दे डेरे।
भव-सागर तर जाए जी,गुरुआं दे डेरे।

जीणा सुफल़ बणाए जी,गुरुआं दे डेरे।
धरती सुरग बणाए जी,गुरुआं दे डेरे।

ऐवां ते छुड़काए जी,गुरुआं दे डेरे।
प्यारे नैं समझाए जी,गुरुआं दे डेरे।

बत्त "नवीन" सुझाए जी,गुरुआं दे डेरे।
भगती-रस बरसाए जी,गुरुआं दे डेरे।

          ✍️ नवीन हलदूणवी

म्हाचली कहानी हिंदी अनुवाद सहित

 दुहाजुए दा बिआह् - दूसरा विवाह
              

पछणोके युगे दी गल्ल ऐ।

पिछले युग की बात है।

पंजले दे हलके च पांजलू नां दा बाह्मण रैंहदा हा।

पंजल इलाका में पांजलू नाम का ब्राह्मण रहता था।

 जदूं तिद्दा बिआह् होया तदूं-ई तिद्दी लाड़ी मरी गेई कनैं सैह् तिसा दे मरने दे गमें च सुक्कदा - सुक्कदा सनैड्डू होई गेआ।

जब उसका विवाह हुआ तभी से उसकी पत्नी मृत्यु को प्राप्त हो गई और वह उसकी मृत्यु के शोक में सूखता हुआ तिनके जैसा पतला हो गया।

लोक्कां दे मींह्णेयां कनैं घरे ब्हाल़ेयां तिसजो दूआ बिआह् करने तांईं मजबूर करी दित्ता।

लोगों के उलाहनों और घर वालों ने उसे दूसरा विवाह करने को मजबूर कर दिया।

अपर सुआल तां एह् हा भई!दुहाजुए जो कुड़ी कुण दै?

पर प्रश्न तो यही था भाई! दूसरे विवाह वाले को लड़की कौन दे?

सैह् जमान्नां-ईं तदेआ हा।

वह समय ही वैसा था।

कुड़िया ब्हाल़े तां अकड़देई हे।

लड़की वाले तो अकड़ते ही थे।

             खैर नेड़े-तेड़े ब्हाल़ेयां दौड़-धुप्प कित्ती कनैं इक्कसी लम्बरदारे ब्हाल गे।

अच्छे नजदीकी लोगों ने कोशिश की और एक नम्बरदार के पास गये।

पैह्लां तां लम्बरदार बी लड़ नीं फड़ाये अपर जाल्हू तिसजो पंज सौ रुपेइया गुज्झा दा मिली गेआ तां तिन्नी बोल्लेया भई तुहाड़ा कम्म जरूर करी दिंगा।

पहले तो नम्बरदार भी लड़ न फड़ाये पर जब उसे पांच सौ रुपए काम के बदले में अग्रिम मिल गया तब वह बोला भाई ! आपका काम जरूर कर दूंगा।

लम्बरदारैं अपणे हलके च घुम्मियैं इक्क साम्मी लब्भी लेई।

नम्बरदार ने अपने इलाके में घूमकर एक जरूरत वाला ढूंढ लिया।

तिन्नी कुड़िया दे बब्बे जो दुहाजुए नैं अपणी कुड़िया बिआह्णे तांईं दो ज्हार रुपैइए दुआइयै राजी करी लेआ कनैं कुड़माई कराई दित्ती।

उसने लड़की के बाप को दूसरे विवाह वाले लड़के के साथ अपनी लड़की के विवाह हेतु दो हज़ार रुपए देकर राजी कर लिया और कुड़माई करवा दी।

अपर कुड़िया दे बब्बैं पैह्लैं-ईं दस्सीत्ता---भई ! कुसी जो बी दो ज्हार रुपैइए देणे तांईं दस्सणा मत,जे दस्सगे तां मेरी तुहाड़ी गल्ल कच्ची ?

पर लड़की के बाप ने पहले ही बता दिया --- भाई! किसी को भी दो हज़ार रुपए देने की बात बताना मत, यदि बताओगे तो मेरी तुम्हारी बात कच्ची?

        पांजलू तां मजबूर हा, अपर तिसजो एह् गल्ल अन्दरो-ई अन्दर खांदी रैंह्दी।

              पांजलू तो मजबूर था, परंतु उसे यही बात भीतर ही भीतर खाती रहती थी।

तिसदे सब्बो पैसे कुड़माईया च मुकी गे।

उसके सभी पैसे कुड़माई में ही समाप्त हो गये।

हुण तिसजो बिआह् दी सोच पेई गेई।
अब उसे विवाह की सोच पड़ गई।

तिन्नी घरे दे सब्बो थाल़ू-लोड़कू बिआह् कराणे तांईं ग्रांएं दे सहुकारे ब्हाल गैह्णे रखी दित्ते कनैं पैसे दुहार लेई ले।

उसने घरके सभी थाल-लोटे (बर्तन) विवाह हेतु गांव के साहुकार के पास गहने रख दिये और पैसे उधार ले लिए।

बिआह्-ए दा लीड़ा-लत्ता खरीदणे परंत जाल्हू तिन्नी पैसे मुकदे दिक्खे तां तिसजो जनेत्ता जो नदिया पार पुजाणे दी समस्या घेरी लेआ।

विवाह हेतु कपड़ा खरीदने के पश्चात जब उसे पैसे समाप्त होते दिखाई दिये तो उसे जनेत को नदी के पार पहुंचानें की समस्या नें घेर लिया।

तिन्नी इसा कमियां जो दूर करने तांईं कनैं किस्तीया दे मलाहे जो पार उतराई देणे तांईं अपणा इक्क झोट्टा कनैं होर डंग्गर बी बेची
 दित्ते।

उसने इस कमी को दूर करने हेतु और नाव के नाविक को पार उतराई देने के लिए अपना एक भैंसा तथा बाकी पशु भी बेच दिये।

 हुण सैह् लाड़ा बणियैं जनेत्ता सौग्गी सौह्रेयां दे ग्रांएं च पुजी गेआ।

            अब वह दुल्हा बनकर जनेत के साथ ससुराल के गांव में पहुंच गया।

तिसदा दूआ बिआह् होण लगी पेआ।

उसका दूसरा विवाह होने लग पड़ा।

लग्न-वेद होई गे।

लग्न-वेद हो गये।

सिरगुंदी बी होणा लग्गी।

सिर को सजाने का काम भी होने लगा।

उस ग्रांएं दीयां जणास्सां पांजलुए नैं छेड़-छाड़ करना लग्गियां।

उस गांव की औरतें पांजलू के साथ ‌शरारतें करने लगीं।

तिन्हां तिसजो गलाया-----जीजा!जीजा!छन्द सुणा।

पैह्लां तां पांजलू मुकरी गेआ।

पहले तो पांजलू इनकार कर गया।

अपर सैह् होर बी तंग करना लगी पेइयां।

परंतु वह अत्यधिक तंग करने लग पड़ीं।

पांजलुए जो बी मौक्का हत्थ आई गेआ कनैं तिन्नी अप्पू नैं बीत्तियां गल्लां जो ई छन्द बणाइयै झटपट सुणाणा सुरु करी दित्ता।

पांजलू को भी मौका हाथ लग गया और उसने अपने साथ घटी हुई बातों को ही छन्द बनाकर झटपट सुनाना शुरू कर दिया।

तिन्नी बोल्लेया -----
      "छंद  सुणो  जी  नेड़ैं  आई,
       छन्नी अग्गैं बूट्टा काइया दा।
        पंज सौ दित्ता गुज्झैं-गप्फैं,
        दो  ज्हार  कुड़माइया  दा।
       थाल़ू-गड़बू  गैह्णे  रक्खेया ,
       ते झोट्टा दित्ता लंघाइया दा।
  कुड़िया-बब्ब खिड़-खिड़ हस्सै,
    ते  रोऐ  बब्ब  जुआइए  दा।।"

उसने बोला-----
   "छंद  सुनो  जी  समीप  आई,
    घर  के  आगे  पौधा  काई  का।
    पांच   सौ   दिया   रिश्वत   में,
    दो    हज़ार    कुड़माई    का।
    लोटा-थाली  गहने  रख  दिये,
   भैंसा   दिया  है   उतराई  का।
    कुड़ी का बापू खुलकर हंसता,
   रोता     बाप    जबाई    का।।"

         छन्द सुणियैं केई जणास्सां हस्सणा लगी पेइयां कनैं केई डूह्गे सोच वचारां च पेई गेइयां।

          छंद सुन कर कई औरतें हंसने लग पड़ी और कई गहरी सोच-विचार में पड़ गईं ।

भेत खुल्ही गेआ कनैं ग्रांएं च घर-घर इसा गल्ला दा मैंझर पौंणा लगी पेआ।

भेद खुल गया और गांव में घर-घर इस बात की चर्चा होने लग पड़ी।

कुड़िया दा बब्ब लोक्कां दीया नज़रा ते गिरी गेआ।

लड़की का बाप लोगों की नज़रों से गिर गया।

अपर हुण तिक्कर पांजलू दूआ बिआह् कराइयै जनेत्ता सौग्गी लाड़िया लेई अपणे ग्रांएं जो चली गेआ हा।

परंतु अब तक पांजलू दूसरा विवाह करवा कर जनेत के साथ दुल्हन लेकर अपने गांव को चला गया था।

         ✍️ नवीन हलदूणवी

शब्द


मदहोश हो जाता है आदमी
जब शब्दों का नशा हो जाता है

देख लिए जाम पी कर
                 मयखाने में बहुत
 शब्दों से नशा हो जाता है

उठ जाते हैं उठाए जाते हैं
      फलक तक आदमी यहाँ
अज़ब खेल ये शब्दों का हो जाता है

मुख से जो निकलते ही
          पहचान करा देता है
किसी का बन जाए तो
         किसी  का बजूद खो देता है

पहचाने जाते हैं सभासद
इन शब्दों से
कोई पा जाता है
सिंहासन कोई मिट्टी में मिल कर
रो देता है

शब्दों के बिना चलता नहीं
 चक्र जीवन का
शब्द ब्रह्म है ब्रह्माण्ड है

एक नशा है शब्द
चेहरे के रंग बदल देता है
लाल पीला कर देता है शब्द
आंखें बंद और आंखें
खोल देता है शब्द
शब्दों में नहीं सिमट सकता है शब्द

     राजेश सारस्वत
शिमला, हिमाचल प्रदेश

Monday 16 March 2020

सुन लो आज

प्रेम रस में डुबे रहो  नहीं कोई बड़ी बात। 
शहीदों की शहादत भुलाना है बड़ी बात।।

भगत सिंह राजगुरु सुखदेव की करो बात।
फिरंगियों की   हुकुमत ने मसले जज्बात ।।

ऐलाने फांसी बना मुल्ख के लिए आजादी की सौगात।
नाच नाच के मनाना उनके बलिदान दिवस की ये सौगात।। 

पुलवामा में मां के लालो ने दी शहादत दिलो जान । 
पडोसी की हर कोशिश की नाकाम दे अपनी जान।। 

प्रेम रस में डुबने बालों सुन लो शहादत रुहों का ऐलान। 
हमारी शहादत को मदमस्ती में मत भुला के रखना।। 

हमने धरोहर जो सिंची बदने लाल रंगे गुलाल। 
सुन लो आज संभाल के रखो भर के प्रेमे गुलाल।। 

✍️ हीरा सिंह कौशल 
गांव व डाकघर देव 
सुंदरनगर 9418144751 

कोरोना री दहशत


कोरोना रे हुण हिंदुस्ताना पर  बी
बदल घिरे नेहरे
फैली गी ईसरी दहशत
हुण चउँ चफेरे
अपणी अपणी सलाह देया करदे
बनी गए सारे डॉक्टर
सोशल मीडिया पर बी चली पया
हुण अफवाहां रा बबंडर
स्कूल कालेज मेले बी हुण
हुई गए बन्द सारे
चीना साही मुलखा जो बी
इने दसी ते तारे
अमरीका बी हुई गया तंग
इटली कने ईरान बी परेशान
सारेयाँ देशां च पूजी गया ये
लई ली इने कइयाँ री जान
डब्ल्यू एच ओ ने बी
करी त्या एलान ये तां अई महामारी
म्हारे मुलखे बी करी लई
इसने लड़ने री त्यारी
विदेशां च तां हुण
हत्थ मलाणा बी हुई गया बन्द
हिन्दुस्ताना रिया नमस्ते जो
करया करदे लोग पसंद
कइऐं लोकें कोरोना रे नावां पर
मचाई दिति हुण लूट
सेनेटाइजर कने मासकां री कीमतां बढ़ाई ती
हुई गई चालू लूट खसूट
डरने री नी कोई गल्ल
मना च रखो विश्वास
जे कुछ साबधानियाँ बरतगे
तां कोरोना नी औणा आस पास
हत्थां जो रखो बिल्कुल साफ
थोडीया दूरिया ते गलाओ
छिक खंग जे हुई जाए तां मुहाँ पर रखो रुमाल
कने नेड़े बिल्कुल नी जाओ
होर नमस्ते ने ही कम्म चलाओ
सबी जो मिली कन्ने हुण पूरा जोर लगाणा
हिन्दुस्ताना जो इस कोरोना रे खतरे ते बचाणा

✍️ रविंदर कुमार शर्मा

मन-मरजी की ज्योति


कविता से भी प्यास भली है,
लगता  जैसे  धूप  पली  है ।

अपने  घर  के  अन्दर  जैसे,
वृंदावन  की  कुंज  गली  है ।

भावों   नें   उत्पात   मचाया ,
उल्टे पथ पर आज चली है ।

शब्द-कोश के तीर अनोखे,
टाटगजूली  रोज  मली  है ।

मानवता  का  रोना  रोकर ,
भूखी जनता खूब छली है ।

भारत - भू  है सबसे न्यारी ,
 नारंगी  नव - रंग  डली  है ।

छन्द   "नवीन"  पुरानी  बातें ,
मन-मरजी की ज्योति जली है।

           ✍️ नवीन हलदूणवी

कोरोना के संक्रमण से बचाव के लिए आदेश जारी


कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संक्रमण से बचाव के दृष्टिगत उपायुक्त शिमला अमित कश्यप द्वारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों के तहत आदेश जारी कर 31 मार्च, 2020 तक जिलाभर की सीमा क्षेत्र के तहत लंगर व भंडारों पर रोक लगा दी गई है। 

ढाबों, बार, खाने की जगहों, रेस्टोरेंट, होटल इत्यादि में समुचित सफाई रखने तथा आने वाले आगंतुकों व उपभोक्ताओं को पर्याप्त सेनेटाईजिंग सुविधा उपलब्ध करवाने के निर्देश हैं। इन जगहों पर खाना पकाने व खाना परोसने वाले व्यक्ति मास्क व समुचित स्वास्थ्य व स्वच्छता मानकों को अपनाना सुनिश्चित करें। 

शिमला जिला के किसी भी क्षेत्र में 31 मार्च, 2020 तक भीड़ से संबंधित कोई भी कार्यक्रम जिसके तहत सम्मेलन, रैली, धरने प्रदर्शन, जुलूस इत्यादि नहीं किए जा सकेंगे। उन्होंने कहा कि सुरक्षा की दृष्टिगत आप स्वयं को भीड़ भरे आयोजनों से दूर रखें, यदि आप जुखाम, बुखार इत्यादि से पीड़ित है तो ऐसे आयोजकों में शामिल न हो। 31 मार्च, 2020 तक जिला में स्पा सेंटर, स्वीमिंग पुल, सोना तथा जिमनेजियम केन्द्रों के संचालन पर भी रोक रहेगी। उपायुक्त ने संबंधित विभागों को प्राईवेट बसों व टैक्सियों की समुचित साफ-सफाई निरंतर अंतराल के बाद सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि संबंधित विभाग जिला के सभी बस अड्डों की सफाई व सेनीटेशन करना भी सुनिश्चित करें तथा चालकों, परिचालकों व सफाई कर्मचारियों को इस संबंध में पर्याप्त जागरूकता व जानकारी प्रदान करें। इसके अतिरिक्त बसों में कोरोना संक्रमण से बचाव के संबंध में जारी, आवश्यक सलाह सभी बस अड्डों, बसों व टैक्सियों में चस्पा करना सुनिश्चित करें।

उपायुक्त ने कहा है कि निदेशक शहरी विकास व आयुक्त नगर निगम शिमला जिला के सभी बस अथवा टैक्सी स्टैंड, सब्जी मंडी क्षेत्रों में निर्धारित किटाणुनाशक दवाईयों का निरंतर अंतराल के बाद छिड़काव कर साफ-सफाई करना सुनिश्चित करें तथा अपने कर्मचारियों व सफाई कर्मियों को समय-समय पर इस संबंध में जानकारी व जागरूकता प्रदान करें। सफाई कर्मचारियों को पर्याप्त मात्रा में दस्ताने, टोपी, मास्क, बूट तथा सुरक्षा उपकरण उपलब्ध करवाएं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक घर से कूड़ा प्रतिदिन के आधार पर उठाकर उसका निपटारा उचित ढंग से किया जाना आवश्यक है।   

सभी गैर अधिकृत रूप से बैठे फल, सब्जी तथा रेड्डी वाले को आयुक्त नगर निगम शिमला द्वारा भीड़ के जमावड़े को कम करने की दृष्टि से हटाया जाना आवश्यक है।

निदेशक पर्यटन जिला के विभिन्न होटलो, होम स्टे इकाईयों तथा अन्य पर्यटक इकाईयों में पर्याप्त सफाई तथा समुचित स्वच्छता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। होटल व्यवसायी विदेशों से आने वाले पर्यटकों की सभी जानकारी व सूचनाएं निर्धारित स्व घोषणा प्रारूप पर प्राप्त करना सुनिश्चित करें, आवश्यकता पड़ने पर जिसकी जानकारी संबंधित चिकित्सा अधिकारियों को तुरन्त प्रदान की जाए। 

सभी शिक्षण संस्थानों के प्रभारी जिसमें हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय तथा अन्य निजी विश्वविद्यालय शामिल है अपने यहां विदेशी छात्रों की जानकारी तथा भारतीय छात्र जो अभी एक महीना पूर्व विदेश से घूम कर लौटे की जानकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी तथा जिला निगरानी अधिकारी को उपलब्ध करवाएं। 

चिकित्सा अधिकारियों, स्वास्थ्य कर्मचारियों व निगरानी कर्मियों के प्रशिक्षण के लिए सभी आवश्यक कदम, सुविधाएं व उपकरण तथा दवाईयां निदेशक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाना सुनिश्चित करें ताकि समय रहते संक्रमण से बचाव के लिए प्रयास किए जा सके। 

हवाई मार्ग से आने वाले यात्रियों की जांच व सुरक्षा के लिए हवाई अड्डों पर तैनात स्वास्थ्य जांच दल को आवश्यक सहयोग व समन्वय निदेशक शिमला एयरपोर्ट द्वारा प्रदान किया जाए ताकि यात्रियों की जांच प्रभावी रूप से की जा सके। इसके अतिरिक्त सभी हवाई अड्डे परिसरों की निर्धारित किटाणुनाशक दवाई का उपयोग कर विभिन्न अंतराल में सफाई करना भी सुनिश्चित करें। 

इसके अतिरिक्त हवाई अड्डे पर तैनात स्टाफ को इस संबंध में आवश्यक जानकारी भी दें। जिला में स्थित सभी बैंकों द्वारा अपनी शाखाओं में कोरोना संक्रमण से बचाव के संबंध में सभी प्रकार के एहतियात बरतें व समुचित सफाई व्यवस्था भी सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि बैंकों की सभी शाखाओं को पर्याप्त सेनेटाईज करने की व्यवस्था की जाए। विशेष रूप से अधिक लोगों द्वारा एटीएम मशीनों के उपयोग के कारण इन्हें दिन में प्रत्येक अंतराल के बाद साफ करवाने की व्यवस्था बैंकों द्वारा प्राथमिकता के तौर पर हो। उन्होंने कहा कि ग्राहकों के हाथों की स्वच्छता एवं सफाई के लिए पर्याप्त मात्रा में जल, साबुन व सेनेटाईजर की उपलब्धता सभी बैंक अपनी शाखाओं में करवाना सुनिश्चित करें। 

कोरोना संक्रमण से बचाव के संबंध में पर्याप्त जागरूकता प्रचार सामग्री बैंकों की शाखाओं में चस्पा करें तथा अधिक से अधिक लोगों को इसकी जानकारी प्रदान करें। उन्होंने कहा कि सुमनके सुरक्षा प्रक्रिया को अपनाकर हाथ धोने के संदेश को अधिक से अधिक प्रचारित करें जिसके तहत (एस) सीधा (यू) उल्टा (एम) मुट्ठी (ए) अंगूठा (एन) नाखून तथा (के) कलाई को अच्छी तरह धोने से हम इस वायरस के संभावित खतरे से अपने आप को बचा सकते हैं। 

उन्होंने कहा कि पुलिस अधीक्षक शिमला सुनिश्चित करें कि जिला में कहीं भी भीड़ न इक्ट्ठी हो, केवल बस अड्डे, रेलवे स्टेशन व हवाई अड्डे को इससे बाहर रखा गया है जहां मुसाफिरों के आने-जाने की प्रक्रिया बनी रहती है। सभी दुकानदार थोक विक्रेता, रेस्टोरेंट मालिक, फल-सब्जी विक्रेता अपने आस-पास दुकानों व परिसरों में सफाई मानकों का विशेष ध्यान रखेंगे। दुकानों के अंदर भीड़ जमा न होने दें। उन्होंने कहा कि जिला के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार मण्डल इस संबंध में व्यापारियों को जागरूक करें तथा स्वच्छता संबंधी आवश्यक दिशा-निर्देश भी व्यापार मंडल के माध्यम से सम्प्रेषित किया जाए। 

कोरोना वायरस से बचने के लिए व्यक्तिगत सतर्कता व सावधानी ही श्रेष्ठ उपाय है। इस संबंध में सरकार द्वारा जारी सलाह और स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी मानकों का कृप्या अनुसरण करें, इन आदेशों की अवहेलना के लिए आवश्यक कार्यवाही अमल में लाई जा सकती है।   

स्टांप ड्यूटी, रजिस्ट्री व सर्कल रेट निर्धारित


राजस्व विभाग ने स्टांप ड्यूटी व रजिस्ट्री के सर्कल रेट व बिल्ट अप एरिया रेट निर्धारित कर लिए हैं और जिला शिमला के तहसीलदारों व नायब तहसीलदारों को आदेश दिए कि वे  इन निर्धारित शुल्क को पटवार एवं कानूनगो सर्कल में नोटिस बोर्ड पर प्रसारित करें ताकि इन पर आक्षेप एवं सुझाव 25 मार्च, 2020 तक विभाग के समक्ष प्रस्तुत किए जा सके।

अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी प्रोटोकाॅल संदीप नेगी ने बताया कि सर्वसाधारण से सुझाव एवं आक्षेप विभाग द्वारा 25 मार्च, 2020 तक आमंत्रित किए गए हैं, ताकि 31 मार्च, 2020 तक इन्हें पूर्ण रूप से लागू किया जा सके।

Saturday 14 March 2020

गीत


म्हाचले च मित्तरो मनुक्ख वस्सदे,
हरे-भरे खेत्तरां च रुक्ख हस्सदे ।

हेराफेरी कित्तणे-क दिन चलणीं ,
पाप्पिये पखंडिये दमुक्ख फस्सदे।

मेलजोल  रक्खी  लै  प्यार  पाइयै,
वेथोए  धरतू  दे  दुक्ख  न्हस्सदे ।

सिओआ बजुरगां दी औआ करिये,
लत्त-पैर-सिर कन्नैं मुक्ख झस्सदे।

तरक्किया दी मज़ल 'नवीन' कित्तणीं,
औक्के-मौक्के घरे च सुक्ख दस्सदे।।
                 
✍️ नवीन हलदूणवी

कोरोना की दहशत


कोरोना का अब भारत में भी
बढ़ने लगा है ज़ोर
फ़ैल गयी है अब तो देखो
दहशत चारों ओर
अपनी अपनी राय दे रहे
बन बैठे सब डॉक्टर
सोशल मीडिया पर भी चल पड़ा
अफवाहों का शोर
स्कूल कॉलेज मेले भी
बन्द कर दिए सारे
चाइना जैसे देश को भी
इसने दिखला दिए तारे
अमेरिका भी तंग है
इटली ईरान भी  है परेशान
सारे देशों में पहुंच गया अब
ले चुका कई लोगों की जान
डब्लू एच ओ ने तो
घोषित कर दिया इसको महामारी
भारत ने भी कर ली है
इससे लड़ने की तैयारी
विदेशों में तो अब
हाथ मिलाना हो गया बन्द
भारत की नमस्कार को
कर रहे लोग पसंद
कुछ लोगों ने कोरोना के 
नाम पर मचा रखी है लूट
सेनेटाइजर और मास्क की कीमतों में
हो गई चालू लूट खसूट
डरने को कोई बात नहीं है
मन में रखो आस
कुछ साबधानियाँ बरतोगे तो
कोरोना नहीं आएगा पास
हाथों को रखो बिल्कुल साफ
थोड़ा दूरी से बात करो
मत जाओ बिल्कुल पास
छींक और खांसी में 
मुंह पर रखो रुमाल
नमस्ते से अब काम चलाओ
मिलाना नहीं किसी से हाथ
सब लोगों को मिल कर अब
पूरा जोर लगाना है
कोरोना के खतरे से
भारत को बचाना है

✍️ रविंदर कुमार शर्मा

Friday 13 March 2020

कुमारसैन का राजनैतिक सफर

कुमारसैन पूर्व में हिमाचल प्रदेश विधान सभा का एक निर्वाचन क्षेत्र था। वर्ष 2008 में कुमारसैन का ठियोग निर्वाचन क्षेत्र में विलय कर दिया गया। कुमारसैन निर्वाचन क्षेत्र के हिमाचल प्रदेश विधान सभा में वर्ष 1977 से आजतक के राजनैतिक सफर पर एक नजर :-

✍1977 में श्री भास्करानंद (आजाद उम्मीदवार) कुमारसैन के विधायक चुने गए, वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी काँग्रेस पार्टी के श्री जय बिहारी लाल खाची को हराकर विजयी रहे।

✍1982 और 1985 में श्री जय बिहारी लाल खाची (काँग्रेस) लगातार दो बार कुमारसैन के विधायक चुने गए, वह वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के श्री भगत राम चौहान को हराकर विजयी रहे।

✍1990 में श्री भगत राम चौहान (भाजपा) कुमारसैन के विधायक चुने गए, वह वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी काँग्रेस पार्टी के श्री जय बिहारी लाल खाची को हराकर विजयी रहे।

✍1993 में श्री जय बिहारी लाल खाची (काँग्रेस) फिर से कुमारसैन के विधायक चुने गए, वह भाजपा के श्री भगत राम चौहान को हराकर विजयी रहे।

✍1998 में श्री जय बिहारी लाल खाची (काँग्रेस) कुमारसैन के विधायक चुने गए, इस बार वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आजाद उम्मीदवार श्री घनश्याम दास को हराकर विजयी रहे।

✍2003 में श्रीमती विद्या स्टोक्स  (काँग्रेस) कुमारसैन की विधायक चुनी गई, वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आजाद उम्मीदवार श्री प्रमोद शर्मा को हराकर विजयी रही।

✍2007 में श्रीमती विद्या स्टोक्स (काँग्रेस) कुमारसैन की दौबारा विधायक चुनीे गई, इस बार भी वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आजाद उम्मीदवार श्री प्रमोद शर्मा को हराकर विजयी रही।

------------------------ पुनर्सीमांकन --------------------------
------------------ ( ठियोग निर्वाचन क्षेत्र )--------------------

✍2012 में श्रीमती विद्या स्टोक्स (काँग्रेस) ठियोग से भी विधायक चुनी गई, इस बार भी वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के श्री राकेश वर्मा को हराकर विजयी रही।

✍2017 में श्री राकेश सिंघा (CPIM) ठियोग से विधायक चुने गए, वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के श्री राकेश वर्मा को हराकर विजयी रहे।

एक रोचक पहलू यह भी है कि पुनर्सीमांकन के बाद ठियोग निर्वाचन क्षेत्र में सिर्फ कोटगढ़ क्षेत्र से सम्बंधित नेताओ का ही प्रतिनिधित्व रहा है।

✍ हितेन्द्र शर्मा 

तरसा करदा जीरे जो

बेह्ले  कन्न  खजू़रे  जो,
धप्फ़े  पौन  मजू़रे  जो।

सौद्दा-पत्तरा मुक्की जा,
लग्गी  दौड़  जसूरे  जो।

खेत्तैं डील्ला जम्मा दा,
हक्कां पान व़ज़ीरे जो।

वेवसुआस्सी  लुट्टा  दी,
धूफ़  धुखाई  पीरे  जो।

घर-घर रौल़ा पौआ दा,
कुण पुच्छा दा हीरे जो?

माड़ा हाल 'नवीने' दा,
तरसा करदा जीरे जो।
        
✍️ नवीन हलदूणवी

पत्थरव़ाज

पत्थरव़ाज मचलते हैं,
दुश्मन घर में पलते हैं।

जनता अपनी भोली है,
दुर्जन हमको छलते है।

मानवता  के  प्रेमी  ही,
अपने पथ पर चलते हैं।

देख तरक्की भारत की,
जलने  वाले  जलते  हैं।

सत्य अहिंसा के प्रहरी,
भारतवासी  खलते  हैं।

कर्म - दया  के  परवाने,
हाथ "नवीन" न मलते हैं।
           
✍️ नवीन हलदूणवी

अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता - समीक्षात्मक विश्लेषण


यह सुंदर है,यह शिव है
यह मेरा हो,पर बंधा नहीं है मुझमें
निजी धर्म से मर्त्य है,
जीवन निस्संग समर्पण है
जीवन का एक यही तो सत्य है।
                        -अज्ञेय

              साहित्य मानव जीवन की प्रतिकृति है, प्रतिछाया है जिसमें जीवन की प्रवाहमान धारा का चित्र विद्यमान होता है। जीवन के शाश्वत मूल्यों-सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् की सामंजस्यपूर्ण प्रतिष्ठा ही साहित्य सृजन की सफलता की पराकाष्ठा है।  सत्य साहित्य की आधार भूमि है,शिव उसका लक्ष्य और सुन्दर साधन जो उसे लक्ष्य तक पहुँचाता है। 

आधुनिक युग के महाकवि, प्रयोगवाद के प्रणेता, नयी राहों के अन्वेषी, नूतन उपमानों के पुरस्कर्ता, सुनहरे शैवाल सदृश आकर्षक व्यक्तित्व वाले सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' के काव्य व उनकी प्रयोगधर्मिता पर डॉ. मुकेश कुमार किया गया तथ्यपरक विवेचन और विनय प्रकाशन कानपुर द्वारा  पुस्तक का मूर्त्त रूप देकर उसे हिन्दी साहित्य के साधकों,पाठकों एवं समालोचकों के मध्य अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता शीर्षक से समर्पित किया है। इस सृजनात्मक उपलब्धि के लिए सर्वप्रथम डॉ. मुकेश कुमार  को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...!!! 


   डॉ. मुकेश कुमार हिन्दी साहित्य के साधक, गहन पाठक, चिंतक, लेखक, कवि, समीक्षक आदि बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्त्वि हैं। अज्ञेय के काव्य व प्रयोगधर्मिता पर किया गवेषणात्मक विवेचन व विश्लेषण उनके अज्ञेय साहित्य विषयक अध्ययन, चिंतन व साधना का ही प्रतिफल है जो अज्ञेय के काव्य व प्रयोगधर्मिता पर इस तरह की सारगर्भित समीक्षात्मक पुस्तक हिंदी साहित्य के पाठकों के समक्ष आ सकी। डॉ. मुकेश कुमार का यह गवेषणात्मक प्रयास न केवल सराहनीय है बल्कि अज्ञेय के पाठकों का एक बड़ा वर्ग भी इस प्रयास से कृत-कृत्य होगा और अज्ञेय के साहित्य पर शोध कर रहे शोधार्थियों के लिए भी यह पुस्तक साहाय्य सिद्ध होगी। 
    
     आधुनिक हिन्दी साहित्य में अज्ञेय का नाम  प्रतिष्ठित एवं शीर्षस्थ साहित्यविदों में बड़े आदर से लिया जाता है। अज्ञेय ऐसे क्रांतिधर्मी, संघर्षशील,समाजपेक्ष चिंतक, कलात्मक नैपुण्य एवं बहुआयामी व्यक्त्वि रहे हैं जिनकी सृजन-मनीषा सृजन की विभिन्न दिशाओं में लीक तोड़ती है,नई राहों का अन्वेषण करती है,नया रचती है। अज्ञेय को एक ओर प्रयोगवाद के प्रवर्तक और नई कविता के पुरोधा कवि माना जाता है तो दूसरी ओर कथा -साहित्य का वैतालिक । साहित्य की प्रत्येक विधाओं में कालजयी कृतियों का प्रणयन कर अज्ञेय ने हिन्दी साहित्य जगत् को नई दृष्टि और नए शिल्प से आफुरित किया है।

    डॉ. मुकेश कुमार द्वारा लिखित समीक्षात्मक पुस्तक अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता सात अध्यायों एवं उपसंहार में प्रसृत है। प्रथम अध्याय *अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य सृजन का आधार" में हिन्दी साहित्य के  विविध कवियों, साहित्यविदों, आलोचकों  के प्रयोगवादी विषयक चिंतन व विचारों का तथ्य के साथ विवेचन व विश्लेषण किया गया है। दूसरे अध्याय में "अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य सृजन की विकास यात्रा" है जिसमें लेखक ने अज्ञेय की प्रथम काव्य कृति 'भग्नदूत' से लेकर 'महावृक्ष के बीच' तक विस्तृत प्रकाश डाला है जिसमें प्रकृति चित्रण,उषा के अनुराग, मेघों की गर्जना, वैयक्तिक प्रेम और पीड़ा को प्रमुखतया अभिव्यक्त किया है। तीसरे अध्याय में "अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता" पर प्रकाश डाला गया है जिसमें अज्ञेय का काव्य दर्शन,संवेदना की तराश, भाषिक रूपांतरण आदि का  विवेचन सरलता से किया गया है। अध्याय चार में "अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य की सृजन प्रक्रिया" का निरूपण किया गया है जिसमें अज्ञेय और प्रयोगवाद, अज्ञेय और नई कविता, नई कविता का सृजनात्मक परिप्रेक्ष्य,नई कविता में ईश्वर और प्रेम,नई कविता में आस्थावाद,नई कविता में भोगवाद , क्षणवाद,प्रयोग और सप्तक काव्य आदि विवेचन व विश्लेषण किया गया है जो हिन्दी कविता को एक नया मोड़ देने में साहाय्य बना। अध्याय पांच में "अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य में विचार-तत्त्व" पर प्रकाश डाला गया है अज्ञेय के काव्य में प्रणयानुभूति, व्यक्तिबोध,अस्तित्वबोध, मानवतावादी दृष्टिकोण आदि तत्वों का उदघाटन किया गया है। अध्याय छः में "अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य में प्रेम और सौंदर्य" का चित्रण किया गया है जिसमें अज्ञेय के काव्य में वात्सल्य, प्रकृति प्रेम,दार्शनिकता,आंतरिक एवं बाह्य सौंदर्य एवं विकास, नाद व्यंजना एवं कलात्मक सौंदर्य पर सूक्ष्मता से प्रकाश डाला गया है। अध्याय सात में "अज्ञेय के काव्य में भाषा और शिल्प के नए प्रयोग" का वर्णन किया गया है जिसमें शब्दों का सृजनात्मक प्रयोग, सार्थक प्रतीकों की तलाश, परम्परागत प्रतीकों की नवीन दृष्टि, निजी प्रतीक, आधुनिक प्रतीक, बिम्ब और मिथकों का सार्थक प्रयोग आदि बिंदुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। अंत में उपसंहार के रूप में अज्ञेय के काव्य में प्रयोग के नए आयाम व धर्मिता का निष्कर्ष रूप में प्रतिपादन किया गया है।

         अज्ञेय हिन्दी साहित्य में उन रचनाकारों में अग्रणी हैं जिन्होंने बीसवीं शताब्दी में भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्परा, भारतीय आधुनिकता के साथ साहित्य-कला-संस्कृति, भाषा की बुनियादी समस्याओं, चिन्ताओं, प्रश्नाकुलताओं से प्रबुद्ध पाठकों का साक्षात्कार कराया है। व्यक्तित्व की खोज, अस्मिता की तलाश, प्रयोग-प्रगति, परम्परा-आधुनिकता, बौद्धिकता, आत्म-सजगता, कवि-कर्म में जटिल संवेदना की चुनौती, रागात्मक सम्बन्धों में बदलाव की चेतना, रूढि़ और मौलिकता, आधुनिक संवेदन और सम्प्रेषण की समस्या, रचनाकार का दायित्व, नयी राहों की खोज, पश्चिम से खुला संवाद, औपनिवेशिक आधुनिकता के स्थान पर देशी आधुनिकता का आग्रह, नवीन कथ्य और भाषा-शिल्प की गहन चेतना, संस्कृति और सर्जनात्मकता आदि तमाम सरोकारों को अज्ञेय किसी न किसी स्तर पर अपने रचना-कर्म के केन्द्र में लाते रहे हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी,महान प्रयोगवादी कवि सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय'  की हिन्दी काव्य की नई दिशा में अपनी अदभुत प्रयोगात्मक शक्ति से प्रज्वलित दीप स्तम्भ बनकर प्रतिष्ठित है। उन्होंने हिन्दी कविता को आधुनिकता के पद पर अधिष्ठित कराया है और रस,छंद, उपमान,प्रतीक,एवं भाषा की दृष्टि से उसे सजाया,सँवारा तथा नवीन रूप प्रदान किया है। वर्तमान हिंदी साहित्य जगत् उनकी प्रतिभा से आलोकित है।

   अंत में अज्ञेय की जीवन मूल्यों को उजागर करती कविता "फूल को प्यार करो" की पंक्तियां द्रष्टव्य है :-

फूल को प्यार करो
पर झरे तो झर जाने दो,
जीवन का रस लो
देह-मन-आत्मा की रसना से
पर जो मरे
उसे मर जाने दो।

जरा है भुजा तितीर्षा की
मत बनो बाधा-
जिजीविषु को
तर जाने दो।

आसक्ति नहीं,
आनन्द है
सम्पूर्ण व्यक्ति की
अभिव्यक्ति,
मरूँ मैं, किन्तु मुझे
घोषित यह कर जाने दो।

✍️ डॉ. सुरेन्द्र शर्मा