Friday 13 March 2020

अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता - समीक्षात्मक विश्लेषण


यह सुंदर है,यह शिव है
यह मेरा हो,पर बंधा नहीं है मुझमें
निजी धर्म से मर्त्य है,
जीवन निस्संग समर्पण है
जीवन का एक यही तो सत्य है।
                        -अज्ञेय

              साहित्य मानव जीवन की प्रतिकृति है, प्रतिछाया है जिसमें जीवन की प्रवाहमान धारा का चित्र विद्यमान होता है। जीवन के शाश्वत मूल्यों-सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् की सामंजस्यपूर्ण प्रतिष्ठा ही साहित्य सृजन की सफलता की पराकाष्ठा है।  सत्य साहित्य की आधार भूमि है,शिव उसका लक्ष्य और सुन्दर साधन जो उसे लक्ष्य तक पहुँचाता है। 

आधुनिक युग के महाकवि, प्रयोगवाद के प्रणेता, नयी राहों के अन्वेषी, नूतन उपमानों के पुरस्कर्ता, सुनहरे शैवाल सदृश आकर्षक व्यक्तित्व वाले सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' के काव्य व उनकी प्रयोगधर्मिता पर डॉ. मुकेश कुमार किया गया तथ्यपरक विवेचन और विनय प्रकाशन कानपुर द्वारा  पुस्तक का मूर्त्त रूप देकर उसे हिन्दी साहित्य के साधकों,पाठकों एवं समालोचकों के मध्य अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता शीर्षक से समर्पित किया है। इस सृजनात्मक उपलब्धि के लिए सर्वप्रथम डॉ. मुकेश कुमार  को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...!!! 


   डॉ. मुकेश कुमार हिन्दी साहित्य के साधक, गहन पाठक, चिंतक, लेखक, कवि, समीक्षक आदि बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्त्वि हैं। अज्ञेय के काव्य व प्रयोगधर्मिता पर किया गवेषणात्मक विवेचन व विश्लेषण उनके अज्ञेय साहित्य विषयक अध्ययन, चिंतन व साधना का ही प्रतिफल है जो अज्ञेय के काव्य व प्रयोगधर्मिता पर इस तरह की सारगर्भित समीक्षात्मक पुस्तक हिंदी साहित्य के पाठकों के समक्ष आ सकी। डॉ. मुकेश कुमार का यह गवेषणात्मक प्रयास न केवल सराहनीय है बल्कि अज्ञेय के पाठकों का एक बड़ा वर्ग भी इस प्रयास से कृत-कृत्य होगा और अज्ञेय के साहित्य पर शोध कर रहे शोधार्थियों के लिए भी यह पुस्तक साहाय्य सिद्ध होगी। 
    
     आधुनिक हिन्दी साहित्य में अज्ञेय का नाम  प्रतिष्ठित एवं शीर्षस्थ साहित्यविदों में बड़े आदर से लिया जाता है। अज्ञेय ऐसे क्रांतिधर्मी, संघर्षशील,समाजपेक्ष चिंतक, कलात्मक नैपुण्य एवं बहुआयामी व्यक्त्वि रहे हैं जिनकी सृजन-मनीषा सृजन की विभिन्न दिशाओं में लीक तोड़ती है,नई राहों का अन्वेषण करती है,नया रचती है। अज्ञेय को एक ओर प्रयोगवाद के प्रवर्तक और नई कविता के पुरोधा कवि माना जाता है तो दूसरी ओर कथा -साहित्य का वैतालिक । साहित्य की प्रत्येक विधाओं में कालजयी कृतियों का प्रणयन कर अज्ञेय ने हिन्दी साहित्य जगत् को नई दृष्टि और नए शिल्प से आफुरित किया है।

    डॉ. मुकेश कुमार द्वारा लिखित समीक्षात्मक पुस्तक अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता सात अध्यायों एवं उपसंहार में प्रसृत है। प्रथम अध्याय *अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य सृजन का आधार" में हिन्दी साहित्य के  विविध कवियों, साहित्यविदों, आलोचकों  के प्रयोगवादी विषयक चिंतन व विचारों का तथ्य के साथ विवेचन व विश्लेषण किया गया है। दूसरे अध्याय में "अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य सृजन की विकास यात्रा" है जिसमें लेखक ने अज्ञेय की प्रथम काव्य कृति 'भग्नदूत' से लेकर 'महावृक्ष के बीच' तक विस्तृत प्रकाश डाला है जिसमें प्रकृति चित्रण,उषा के अनुराग, मेघों की गर्जना, वैयक्तिक प्रेम और पीड़ा को प्रमुखतया अभिव्यक्त किया है। तीसरे अध्याय में "अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता" पर प्रकाश डाला गया है जिसमें अज्ञेय का काव्य दर्शन,संवेदना की तराश, भाषिक रूपांतरण आदि का  विवेचन सरलता से किया गया है। अध्याय चार में "अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य की सृजन प्रक्रिया" का निरूपण किया गया है जिसमें अज्ञेय और प्रयोगवाद, अज्ञेय और नई कविता, नई कविता का सृजनात्मक परिप्रेक्ष्य,नई कविता में ईश्वर और प्रेम,नई कविता में आस्थावाद,नई कविता में भोगवाद , क्षणवाद,प्रयोग और सप्तक काव्य आदि विवेचन व विश्लेषण किया गया है जो हिन्दी कविता को एक नया मोड़ देने में साहाय्य बना। अध्याय पांच में "अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य में विचार-तत्त्व" पर प्रकाश डाला गया है अज्ञेय के काव्य में प्रणयानुभूति, व्यक्तिबोध,अस्तित्वबोध, मानवतावादी दृष्टिकोण आदि तत्वों का उदघाटन किया गया है। अध्याय छः में "अज्ञेय के प्रयोगधर्मी काव्य में प्रेम और सौंदर्य" का चित्रण किया गया है जिसमें अज्ञेय के काव्य में वात्सल्य, प्रकृति प्रेम,दार्शनिकता,आंतरिक एवं बाह्य सौंदर्य एवं विकास, नाद व्यंजना एवं कलात्मक सौंदर्य पर सूक्ष्मता से प्रकाश डाला गया है। अध्याय सात में "अज्ञेय के काव्य में भाषा और शिल्प के नए प्रयोग" का वर्णन किया गया है जिसमें शब्दों का सृजनात्मक प्रयोग, सार्थक प्रतीकों की तलाश, परम्परागत प्रतीकों की नवीन दृष्टि, निजी प्रतीक, आधुनिक प्रतीक, बिम्ब और मिथकों का सार्थक प्रयोग आदि बिंदुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। अंत में उपसंहार के रूप में अज्ञेय के काव्य में प्रयोग के नए आयाम व धर्मिता का निष्कर्ष रूप में प्रतिपादन किया गया है।

         अज्ञेय हिन्दी साहित्य में उन रचनाकारों में अग्रणी हैं जिन्होंने बीसवीं शताब्दी में भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्परा, भारतीय आधुनिकता के साथ साहित्य-कला-संस्कृति, भाषा की बुनियादी समस्याओं, चिन्ताओं, प्रश्नाकुलताओं से प्रबुद्ध पाठकों का साक्षात्कार कराया है। व्यक्तित्व की खोज, अस्मिता की तलाश, प्रयोग-प्रगति, परम्परा-आधुनिकता, बौद्धिकता, आत्म-सजगता, कवि-कर्म में जटिल संवेदना की चुनौती, रागात्मक सम्बन्धों में बदलाव की चेतना, रूढि़ और मौलिकता, आधुनिक संवेदन और सम्प्रेषण की समस्या, रचनाकार का दायित्व, नयी राहों की खोज, पश्चिम से खुला संवाद, औपनिवेशिक आधुनिकता के स्थान पर देशी आधुनिकता का आग्रह, नवीन कथ्य और भाषा-शिल्प की गहन चेतना, संस्कृति और सर्जनात्मकता आदि तमाम सरोकारों को अज्ञेय किसी न किसी स्तर पर अपने रचना-कर्म के केन्द्र में लाते रहे हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी,महान प्रयोगवादी कवि सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय'  की हिन्दी काव्य की नई दिशा में अपनी अदभुत प्रयोगात्मक शक्ति से प्रज्वलित दीप स्तम्भ बनकर प्रतिष्ठित है। उन्होंने हिन्दी कविता को आधुनिकता के पद पर अधिष्ठित कराया है और रस,छंद, उपमान,प्रतीक,एवं भाषा की दृष्टि से उसे सजाया,सँवारा तथा नवीन रूप प्रदान किया है। वर्तमान हिंदी साहित्य जगत् उनकी प्रतिभा से आलोकित है।

   अंत में अज्ञेय की जीवन मूल्यों को उजागर करती कविता "फूल को प्यार करो" की पंक्तियां द्रष्टव्य है :-

फूल को प्यार करो
पर झरे तो झर जाने दो,
जीवन का रस लो
देह-मन-आत्मा की रसना से
पर जो मरे
उसे मर जाने दो।

जरा है भुजा तितीर्षा की
मत बनो बाधा-
जिजीविषु को
तर जाने दो।

आसक्ति नहीं,
आनन्द है
सम्पूर्ण व्यक्ति की
अभिव्यक्ति,
मरूँ मैं, किन्तु मुझे
घोषित यह कर जाने दो।

✍️ डॉ. सुरेन्द्र शर्मा

No comments:

Post a Comment