पत्थरव़ाज
पत्थरव़ाज मचलते हैं,
दुश्मन घर में पलते हैं।
जनता अपनी भोली है,
दुर्जन हमको छलते है।
मानवता के प्रेमी ही,
अपने पथ पर चलते हैं।
देख तरक्की भारत की,
जलने वाले जलते हैं।
सत्य अहिंसा के प्रहरी,
भारतवासी खलते हैं।
कर्म - दया के परवाने,
हाथ "नवीन" न मलते हैं।
✍️ नवीन हलदूणवी
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