Monday 27 April 2020

कनका री बडाही

कनका री बड़ाही पई गी
बडने जो हुई जावा त्यार
दराटियाँ अपनियाँ चंडाई लो
तेज करवाई लओ धार
चन्डने वाले बी नी रहे हुण
निहालियाँ बी करी ती बन्द
जलोथरे पथरा पर पलई लो
कने चलाई लो अपना कम्म
अमाँ बापू पहन पाई
सब पूजे खेता परवाथ दिति  लगाई
दिन लगे चार
पर कनक दिति मुकाई
कनक कठि किती
लाई दिति गडयार
गाहने खातर लगी गे करने
ट्रेक्ट्रा रा इनतिज़ार
इतनिया देरा च आया तूफान
कने पया चख नेहरा
सीजी गई सारी कनक
छैब्बर पया बतेरा
खवाड़े रा ज़माना चली गया
तंन्जे बलदां ने गाहन्दे थे गाहण
प्यागा ते संजा तक बलदां जो कुमाई कने
खुश्क हुई जांदे थे प्राण
कड़याठिया ने देंदे थे छेड़ा
कने सूपा ने करदे थे पुनाई
तुपा ने सिरा री हुई जांदी थी पटाक
सुपलिया ने बी करी लैंदे थे छंड फ़ड़ाक
सूपा चकी ने खड़े रहन्दे थे
बागरिया री करदे थे निहाल
घंटे बाद आउँदा था किते ईक लवाटा
निहाली ने हुई जांदा था बुरा हाल
दानेयाँ भरने जो हुँदा था छकू
भुआ टोने जो खारा
बेरड़ा बांदे थे  खेतें
मंडल बी हुँदा था बहुत सारा
खेता रे कंडे कंडे ब्युली थे बांदे
तितरा जे सेल कने पंगयाठु थे बनान्दे
ब्युलिया रे बनाईंदे थे माला जो रस्से
मंडला री बनाइन्दी थी रोटी
स्वाद बड़ा लाजबाब पावें हुन्दी थी मोटी
अजकल ट्रेक्ट्रा ने ही कनका जो गाहन्दे 
कम्म पवे हुई जांदा जल्दी
पर सतवाँ पीपा देंदी हाण
अग्ग सीने च बल्दी
बेशक अजकल सबी चीजां रियाँ
नविंया मशीना आई गियाँ
पर बरोजगारी बदी गई 
पुशतैनी पेशे ख़त्म कराई  गियाँ

✍️ रविंदर कुमार शर्मा

अपनी मुसकान दीजिए

दो दिन की  जिंदगी है, विश्राम मत लीजिए।
मानवता का हो भला,सदकाम सदा कीजिए।

सुख सुविधा छोड़ दे तू जन परमार्थ के लिए,
तन मन धन अपना निष्काम अर्पण कीजिए।

हो भला स्वदेश का प्राणों का फिर भय क्यों,
सुकरात बन के हंस कर बिष प्याला पीजिए।

बैर भाव मन में ना हो  अपना पराया एक हो,
श्रृद्धा सुमन नित प्रेम के  हर दिल में बीजिए।

रोगीवियोगीभोगी ना आधिव्याधि जग में रहे,
परोपकारी  कर्म से  विपद  सब हर  लीजिए।

चुगली निंदा कभी भी हम किसी की ना करें,
हरहाल देखें हर्ष से अपनी मुसकान  दीजिए।

मूरख रोज परेल़ां पाए

माह्णू  करदा  हाए-हाए,
मूरख  रोज  परेल़ां  पाए।

छंदे - छूह्नीं-तरले - मिनतां,
गल्ला परती सगुण मनाए।

दो   नंबर   दे   धंधे   अंदर,
कुद्दी गलती कुण समझाए?

फरज़ी फंडे फरज़ी झगड़े,
टौरी  जो  बींडू  कुण  लाए?

भारत मां दा छैल़ लखारी,
सुच्चे छंदां अज्ज सुणाए।

तांईं होंग "नवीन" तरक्की,
दुनियां  जै-जैकार  गलाए।

      ✍️ नवीन हलदूणवी
मोबाइल - 8219484701
काव्य - कुंज जसूर_176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

पिंजरे में बंद मानव

क्यों अच्छा लग रहा है न?
अब पंछियों की तरह
कैद होकर
तुम ही तो कहते थे न,
सब कुछ तो दे रहे हैं हम
दाना-पानी
इतना अच्छा पिंजरा
तो अब क्यों ?
खुद ही तड़प रहे हो
उसी पिंजरे में बैठकर।
क्यों बंधे हुए हाथ-पांव
अच्छे नहीं लग रहें तुम्हें?
मगर तुमने भी तो कभी
उड़ते हुए पक्षियों के
पंख बांधकर
सोने के पिंजरे में
उनको रखा था।

✍️ राजीव डोगरा 'विमल'


अनजान

उनकी आँखों का इंतजार हैं हम,             
 फिर भी वो अनजान है।।                  
 उनके चेहरे की हँसी है हम,         
  फिर भी वो अनजान है।।                           
उनके अधरो की 
मुस्कुराहट है हम,    
   फिर भी वो अनजान है।।              
    उनके सपनो के ख्वाब है हम,           
    फिर भी वो अनजान है।।               
   उनके गुस्से की तकरार है हम,            
   फिर भी वो अनजान है।।               
    उनके अहसासो मे बसते है हम,           
   फिर भी वो अनजान है।।                   
   उनके दिल की धड़कन है हम,          
    फिर भी वो अनजान है।।             

      ✍️ अमित डोगरा  

पिता

पिता सचमुच थे तुम सारी दुनिया में अनोखे निराले।
सामने होते थे लगता था तुम हो सारी खुशियां देनेवाले।।

अंगुली पकड़ चलाना दिल के कोने में है मिठ्ठा अहसास। 
दौड़ते गिरना स्वयं न उठाना स्वतः उठे थी दिले तलाश।। 

जग पथरीले को जीतने के लिए पिता का दिल था कठोर होना। 
याद आता है खराब वरताव पंरतु अब लगता है  सुहाना।।

जनक का हृदय कितना दयालु व होता है कितना धनवान। 
अच्छाई याद आती है उनकी जब हो जाता है उनका बिछुड़ना।। 

बच्चों के निर्माण के लिए दिन रात कितना तपता  पापा ।
निर्माण  मजबूत बनें ऐसा अहसान करता जाये पापा।।

✍️ हीरा सिंह कौशल 






बड़ी मुश्किलां रा टाइम आई गया

कुछ तां बैठिरे करा रे अंदर
कुछ करा ते दूर
कोई बच्चेयाँ कने खेल्या करदा
कोई मिलने ते मजबूर
सारा दिन बस दो ही कम्म हे
खाना कने सौणा
मजे लगिरे अजकल मित्रो
आउँदा नी कोई बी प्रौणा
होर तां बस हुण कम्म नी कोई
न खेत देखना न बीड़
सेइ सेई कने पीठ दुखी गई
बखिया बी हुई गी पीड़ 
करा अंदर घूमी कने ही
हुन लगी गरा आउणे चक्कर
बैठे बठाये इस कारोने
देइ तरा सबी जो लक्कड़
शादियां बी लटकी गइयाँ
धार्मिक कम्म बी हुई गए बन्द
ज्यादा मुश्कल तां नेत्याओं जो हुई गई
तिन्हांरा जे उद्घाटन हुई गए बन्द
किसी रा बापू मरी गया
किसी री मरी गई अम्मा
किसी रा मरी गया पुत्र
जवान गबरू था लम्मा
अंतिम संस्कारा जो बी 
लोग नी हुए सके कठे
कई जगह तां टब्बरा रे आदमी बी 
मरीरे मानुये जो चकने रे डरा ते नठे
कारोने रे डरा रा कइयाँ रा
मुश्किलां ने होया अंतिम संस्कार
कइयाँ रे अस्तु डाला ने लटकीरे
पूजी नी सके हरिद्वार
कितनी मुश्किलां रा टाइम आया
माणु जिसदो था प्यार करदा
जे कोई कोरोना ने मरी गया
तां तिसरे नेड़े बी जाने ते डरदा

✍️ रविंदर कुमार शर्मा

Friday 24 April 2020

डॉ. मामराज पुंडीर की कलम से... ✍️

मीडियाकर्मी भी कोरोना फाइटर्स जैसा सम्मान और सुरक्षा पाने के हकदार

विश्व  का सबसे बढ़ा  लोकतंत्र  हिंदुस्तान एक मजबूत कड़ी के रूप मे खड़ा है और ऐसे मे विश्व की सारी एजेंसी की नजर भारत द्वारा किये गये कार्यों की तरफ हमेशा से बनी रहती है । हिंदुस्तान का मिडिया भी देश आपातकाल की यादो को अगर भूल जाये तो स्वतंत्र रूप से काम कर रहे है। वेसे भी मिडिया को लोकत्रंत्र का चोथा स्तम्भ मन जाता है और  मजबूत सतम्भ होने के नाते मिडिया समाज की कुरूतियों के साथ साथ कमियों को सरकार के पास उठाने  का काम बखूबी करती आ रही  है।

कोरोना संक्रमन से आज पूरा विश्व  ग्रसित है इस महामारी से विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत भी अछुता नही रहा । ऐसे मे किस देश में कोरोना के कितने मरीज ग्रसित है या किस राज्य मे कितने मरीज है और कोरोना पर मिनट डॉ मिनट के खबरों को हम तक पहुचने का काम करते है।  देश में कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लाक डाउन लागू करने की घोषणा की तो अधिकांश आबादी की ज़िन्दगी घर की चार दीवारी के भीतर सिमट कर रह गई और जब देश के विभिन्न राज्यों में इस वायरस के संक्रमण का दायरा बढने लगा तो यह जानने के लिए लोगों की अधीरता भी बढने लगी कि देश के किस राज्य में कोरोना वायरस के संक्रमण की क्या स्थिति है।

लोगों की यह अधीरता अभी भी बरकरार है बल्कि अगर यह कहें कि कोरोना को लेकर देश दुनिया के हालात जानने की यह उत्सुकता पहले से भी अधिक बढ़ गई है तो गलत नहीं होगा। हमारी इस उत्सुकता को शांत करने मे इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रिन्ट मीडिया, दोनों ही अहम भूमिका निभा रहे हैं। सुबह, शाम अगर हमें  दैनिक समाचार पत्रों की अधीरता से प्रतीक्षा करते हैं तो दिन में अधिकांश समय या तो हम दूरदर्शन के सामने बैठे रहते हैं अथवा मोबाइल के माध्यम से कोरोना संक्रमण के बारे में नवीनतम जानकारी हासिल करके अपनी उत्सुकता को शांत करने का प्रयास करते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया से जुड़े लोग कोरोना वायरस के प्रकोप के बारे में नवीनतम जानकारी हम तक पहुंचाने के लिए जिस समर्पण भावना के साथ रात दिन अपने काम में जुटे हुए है उसके लिए वे निसंदेह समाज से सराहना पाने के हकदार हैं। ये लोग भी कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे से पूरे साहस के साथ जूझते हुए अपने काम में कुछ इस तरह जुटे रहते हैं कि उस समय बाकी सुख सुविधाएं उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं। चूंकि हम मीडिया के लोगों के सीधे संपर्क में नहीं रहते इसलिए हम उनकी कठिनाईयों से अवगत नहीं हो पाते।

मीडिया कोरोना वायरस के संक्रमण के बारे में लोगों को सचेत एवं जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। लाक डाउन के कारण अगर कहीं गरीब तबके के लोगों को कठिनाई हो रही है तो कई बार मीडिया के माध्यम से ही सरकारों को उसकी जानकारी मिली है और सरकार ने उन कठिनाईयों को दूर किया है।
विगत दिनों ऐसा ही एक उदाहरण दिल्ली में देखने को मिला था। लाकडाउन के कारण दिल्ली में बहुत से गरीब मजदूर यमुना नदी पर पुल के नीचे दयनीय हालत में दिन गुजार रहे थे।उन्हें पेट भरने के लिए ठीक से भोजन भी नसीब नहीं हो रहा था। एक समाचार चैनल द्वारा इस खबर को प्रसारित किए जाने के बाद कुछ ही घंटों के अन्दर सरकार की बसें वहाँ पहुंच गई और उनके द्वारा मजदूरों की सुरक्षित स्थानों पर न केवल रहने की व्यवस्था कर दी गई बल्कि उन्हें नियमित भरपेट भोजन भी मिलने लगा इसलिए यह सोचना गलत है कि मीडिया केवल आलोचना करता है। देश के विभिन्न हिस्सों में विस्थापित गरीब मजदूरों की कठिनाईयों को दूर करने में मीडिया महत्व पूर्ण भूमिका रहा है। शिमला में मिडिया द्वारा घोड़े चलाने के मामले को सरकार के पास लाते ही उनकी समस्याओं का हल हो गया । हिमाचल प्रदेश में चाहे वह राजनेता का योगदान हो या किसी समाज सेवक का योगदान, उसे मिडिया द्वारा ही चर्चा का विषय बना कर जनता को जागृत किया गया । एक सच्चे सिपाही की तरह सुबह घर से निकल कर समाज की हितो की आवाज बनने वाले मिडिया से सम्बन्धित पत्रकार क्या कोरोना वोर्रिएर्स के सम्मान के हक दर नही।

कोरोनावायरस के संक्रमण के खतरों के प्रति लोगों को सचेत करने में मीडिया सरकार के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा है। कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण अनेक राज्यों के कई शहरों ,जिलों यहां तक कि राज्यों की सीमाओं को भी सील कर दिया गया है ऐसे स्थानों पर मीडिया कर्मियों को जाने की अनुमति है ताकि वे मौके पर मौजूद रहकर वहां की वास्तविक स्थिति की जानकारी एकत्र करके उसे समाचार पत्रों अथवा दूरदर्शन के माध्यम से हम तक पहुंचा सकें।

रेड जोन औरआरेंज जोन में आने वाले ऐसे संवेदनशील इलाकों में भी जाने से मीडिया कर्मी परहेज नहीं करते जहां पुलिस, चिकित्सक, पेरामेडिकल स्टाफ के सदस्य भी इस आशंका के साथ जाते हैं कि उन पर वहां हमला भी हो सकता है। चिकित्सकों, पेरामेडिकल स्टाफ के सदस्यों और पुलिस बल की भांति मीडिया कर्मी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन एक मिशन के रूप में कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उनको अपनी जिम्मेदारियों के निष्ठापूर्वक निर्वहन के मार्ग में किन्हीं कठिनाईयों का सामना नहीं करना पड रहा है परंतु अपने कर्तव्य पालन के प्रति समर्पण की भावना उन्हें बड़े से बड़े जोखिम उठाने का साहस और आत्मविश्वास भी प्रदान करती है।
मीडिया जब यह तय कर लेता है कि वह सच रहेगा और सच के सिवा कुछ नहीं करेगी तो उसके जोखिमों में इजाफा हो जाता है|समाचार पत्र में पूरा सच छापना और दूरदर्शन पर पूरा सच दिखाने के रास्ते में अनेक जोखिम आड़े आते हैं और कोरोना वायरस के संक्रमण से संबंधित सच को उजागर करने में भी कम जोखिम नहीं हैं परंतु मीडिया को कोई भी जोखिम अभी तक विचलित नहीं कर सका है।गौर तलब है कि हाल में ही मीडिया कर्मियों को उन लोगों अथवा संगठनों की ओर से धमकियां मिल चुकी हैं जिन्हें अपने बारे में सच दिखाया जाना सहन नहीं हुआ। कहीं कहीं मीडिया कर्मियों पर हमले भी हुए हैं परंतु किसी भी धमकी अथवा हमले से मीडिया का मिशन कमजोर नहीं पड़ा।

लाक डाउन लागू होने के बाद विगत एक माह के दौरान देश के अनेक भागों से चिकित्सको , पैरामेडिकल स्टाफ के सदस्यों एवं पुलिस अधिकारियों कर्मचारियों के समान ही अनेक मीडिया कर्मियों के भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाने के समाचार मिल रहे हैं।हाल में ही मुंबई में पत्रकारों के एक संगठन ने मीडिया कर्मियों के लिए एक कोरोना जांच शिविर काआयोजन किया था उसमें 167 पत्रकारों का परीक्षण क्या गया जिनमें से 53 पत्रकारों को कोरोना पाजिटिव पाया गया। उनमे से 114 पत्रकारों की रिपोर्ट नेगेटिव आई।कोरोना पाजिटिव पत्रकारों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है और अब यह पता लगाया जा रह़ा है कि जिन पत्रकारों की रिपोर्ट पाजिटिव आई है वे विगत एक माह के दौरान किन किन लोगों के संपर्क में आए थे ।मुंबई में इतनी अधिक संख्या में पत्रकारों के कोरोना संक्रमित हो जाने के बाद अब अन्य प्रदेशों की सरकारों ने भी मीडिया कर्मियों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए शिविर लगाने का फैसला किया है और सबसे पहले इस काम के लिए पंजाब और दिल्ली की सरकारें आगे आई हैं। इसी प्रकार का मामला हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में एक पत्रकार के साथ देखने में आया है। 

इस सम्बन्ध में सभी केंद्र सरकार का दायित्व बनता है कि इस संबंध में एक गाइड लाइन जारी करे और संपूर्ण देश में फील्ड में काम करने वाले मीडिया कर्मियों को पी पी ई किट प्रदान करने के लिए सभी राज्य सरकारों को निर्देशित करे।पाजिटिव पाए जाने के पूर्व मध्य प्रदेश में एक पत्रकार को कोरोना पाया गया था राज्य सरकारों को निर्देशित कर दे। गौर तलब है कि मुंबई में 53 पत्रकारों के कोरोनापाजिटिव पाए जाने के पूर्व मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी एक पत्रकार को कोरोना पाजिटिव पाया गया था।यह तब की बात है जबकि राज्य में कोरोनावायरस का संक्रमण बहुत अधिक नहीं फैला था।

देश के कई अन्य हिस्सों में मीडिया कर्मियों के कोरोना संक्रमित होने की बढती खबरों ने केन्द्र सरकार का भी ध्यान आकर्षित किया है और अबउसकीओर से प्रिन्ट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए एक एडवायजरीजारी की गई है जिसमें रिपोर्टर केमरामेन और फोटोग्राफर आदि मीडिया कर्मियों को हाट स्पाट, कोरोना संक्रमित क्षेत्रों,हाट स्पाट और कोविड19 से प्रभावित अन्य इलाकों में जाते समय स्वास्थ्य संबंध सभी आवश्यक सावधानियां बरतने की सलाह दी गई है।
इस एडवायजरी में मीडिया घरानों के प्रबंधन से भी फील्ड एवं कार्यालय में काम करने वाले अपने कर्मचारियों की देख रेख करने का अनुरोध किया गया है। दरअसल आवश्यकता तो इस बात की है कि जिस तरह मीडियाकर्मियों के कोरोना संक्रमित होने की खबरें सामने आ रही हैं एवं निष्पक्ष समाचारों के प्रसारण के कारण उन्हें जो धमकियां मिल रही हैं उसे देखते हुए उनका भी बीमा कराया जाना चाहिए।मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी राज्य की शिवराजसरकार से मीडिया कर्मियों को पी पी ई किट प्रदान करने एवं उनका बीमा कराने की मांग की है।

मीडिया कर्मियों को न तो कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा कर्तव्य पालन के मार्ग से विचलित कर पा रहा है और न ही वे किसी भी तरह की धमकियों से भयभीत हैं वे पूर्ण समर्पण की भावना के साथ निर्भय होकर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह कर रहे हैं। चिकित्सकों, पैरामेडिकल स्टाफ के सदस्यों और पुलिस बल के समान मीडियाकर्मी भी जिस तरह निष्ठापूर्वक अपना कर्तव्य पालन कर रहे हैं वह निसंदेह सराहनीय है परंतु दूसरी ओर ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि कुछ मीडिया घरानों का प्रबंधन लाक डाउन के कारण आर्थिक संकट की दुहाई देकर अपने कुछ कर्मचारियों को नौकरी से हटाने में भी संकोच नहीं कर रहा है।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विगत दिनों राष्ट्र के नाम संदेश में समाज के सभी वर्गों से जिस सप्तपदी को जीवन में उतारने की अपील की थी उसमें एक सूत्र यह भी था कि इस कठिन समय में किसी भी संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों को उसका प्रबंधन नौकरी से न निकाले परंतु कई मीडिया घरानों के प्रबंधकों ने अपने संस्थान में कार्यरत कुछ कर्मचारियों को या तो नौकरी से हटा दिया है अथवा उन्हें खुद ही नौकरी छोड़ने पर विवश कर दिया है। कुछ संस्थानों ने अपने कुछ कर्मचारियों को जबरन अवकाश पर भेज दिया है।

कुछ संस्थानों में मीडियाकर्मियों के वेतन में कटौती करने अथवा उनका वेतन रोक लिए जाने की खबरें मिली हैं।अब जबकि लाकडाउन का एक माह से ज्यादा बीत चुका है। मीडियाकर्मियों की कठिनाईयों की ओर ध्यान भी दिए जाने की आवश्यकता है। मीडिया कर्मी भी कोरोना फाइटर्स जैसा सम्मान पाने के अधिकारी हैं ।कोरोना संक्रमण की परवाह किए बिना वे जिस तरह समर्पित भाव से अपने काम में जुटे हुए हैं उसका सही मूल्यांकन किया जाना चाहिए। जो मीडियाकर्मी फील्ड में काम कर रहे हैं उन्हें पी पी ई किट की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ ही उनका कम से कम 50 लाख का बीमा भी कऱाया जाना चाहिए। सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी मीडिया संस्थान में कर्मचारियों को प्रबंधन की मनमानी का शिकार न बनना पड़े।

आज राष्ट्रिय आपदा में देश के प्रधानमन्त्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी अपने संदेशो में मिडिया कर्मियों की कर्मठता की तारीफ कर चुके है । ऐसे में मिडिया कर्मियों को कोरोना वोर्रिएर्स का सम्मान मिलना लाजमी है और जिस प्रकार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री आदरणीय जय राम ठाकुर ने एक कप्तान की तरह कोरोना से लड़ने का बीड़ा अपने कंधो पर उठा कर अपनी टीम के साथ लड़ाई लड़ी है , उनसे इस विषय पर विचार करने और लागु करने की उमीद बढ़ जाती है । 

✍️ डॉ. मामराज पुंडीर 
विशेष कार्य अधिकारी
शिक्षा मंत्री, हिमाचल सरकार 
mamraj.pundir@rediffmail.com
9418890000, 9418014586

कोरोना


शिष्टाचार का मार्ग हमें है दिखाया कोरोना ने।
बुरे वक्त में जीना हमें है  सिखाया कोरोना ने।
मास्क पहन कर बात करो हाथ नही मिलाना,
दूर  से अभिनंदन करना है बताया कोरोना ने।
कई बार  पड़ोसी अपनें से होती  तकरार रही,
है,पड़ोसी रह रह  कर याद कराया कोरोना ने।
हाथ मुंह धोनें  की  किस को  फुर्सत होती थी,
बार बार सावुन मल  हाथ धुलाया कोरोना ने।
किसनें खाया कब खाया पता नहीं चलता था,
सभी को मिल बैठ खाना खिलाया कोरोना ने।
अकेली नारी क्या करे है रसोई  पीछा न छोड़े,
अब सभीसे देखो तड़का लगवाया कोरोना ने।
अपनीऔकात में रह बंदे कोई छोटा बड़ा नहीं,
एक इंसानी  जात तेरी है  बतलाया कोरोना ने।
इंसान को अपनी हैसियत का है पता चल गया,
कैसे सभी को है ऊँगली पर नचाया कोरोना ने।
उस के  घर देर नहीं कब  कहाँ क्या हो जाएगा,
देख हाहाकार है  बंदे  कैसा मचाया कोरोना ने।

✍️ शिव सन्याल
राम निवास मकड़ाहन
तह.ज्वाली कांगड़ा हि.प्र. 

तैत्तौं होई भुल्ल कुथू ऐ

सच्चे दा हुण मुल्ल कुथू ऐ,
बोल्लण बत्ती गुल्ल कुथू ऐ?

भलमणसाई धप्फे खा$ दी,
चबल़ चरकटा टुल्ल कुथू ऐ?

पाईत्ते    हन   लोक   कुबत्ता,
रोक्कण ब्हाल़ा ठुल्ल कुथू ऐ?

ब्यूंतड़  झोट्टी  छैल़  सुनक्खी,
दुद्ध  भरोया  उल्ल  कुथू  ऐ?

भास्सा स्हाड़ी मुक्का करदी,
खुशबू ब्हाल़ा फुल्ल कुथू ऐ?

ठंड्डैं   तांऐं  सोच  "नवीना",
तैत्तौं  होई  भुल्ल  कुथू  ऐ?

    ✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

Thursday 23 April 2020

मां सुखदायिनी

हे जननी तू बड़ी सुखदायिनी जीवनदायिनी।
जीवन के सफर गाऊं तेरे उपकार की रागिनी।।

जादू की छड़ी है बिन बोले तूने मेरी हरेक बात जानी। 
बीमारी ठीक होने के लिए तूने परमेश्वर से लडाई की ठानी।।

खोली संस्कारी पाठशाला तुझ सा नहीं कोई सानी। 
खुद मुसीबत थी तूने अपने लला की मुसीबत जानी।। 

कुकृत्य से रोकती तूने हर रग रग लला की पहचानी। 
ऋणी हूं ऋणी रहूंगा उऋण हूंगा तब तक बात ठानी।।

सुकृत्य करुं तेरी परवरिश झलके कर्मों हो यही निशानी।
परमेश्वर का रूप ही तेरा बात में मैंने मन ली यही ठानी।।

✍️ हीरा सिंह कौशल 


महामारी या संदेश

कोविड-19 एक ऐसा नाम जिसने पूरे विश्व में डर का माहौल बना दिया है। ऐसी महामारी जो थमने का नाम ही नहीं ले रही, लाखों की संख्या में लोग इसकी चपेट में आ चुके है और ना जाने आगे यह संख्या कितनी बढ़ेगी? हैरानी तो तब होती है जब अमेरिका, फ्रांस,  ब्रिटेन, इटली जैसे विकसित राष्ट्रों के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। अपने आप को शक्तिशाली कहने वाले यह राष्ट्र भी “कोविड-19” को बस में नहीं कर पा रहे उद्योग धंधे,  पाठशालाएं, लोगों की आवाजाही सब कुछ बंद हो गया  है। पूरा विश्व ठहर सा गया है। 

लेकिन अगर दूसरे पहलू पर बात करें तो लगता है कि यह और कुछ नहीं प्रकृति का एक संदेश है मनुष्य के नाम मानो  प्रकृति  कह रही हो  कि “ए मानव संभल जा मुझे भी तो सांस लेने का मौका दे दे, वरना ! मेरा कहर ऐसा  बरसेगा  किं मुझे सोचने समझने का मौका भी नहीं मिलेगा।" धरती पर जन्म लेने वाला हर प्राणी धरती माता की संतान है,  चाहे वह मनुष्य हो या कोई जीव जंतु | सभी का धरती के  संसाधनों पर बराबर का अधिकार है ,  फिर मनुष्य इस अधिकार को किसी और से कैसे छीन सकता है?

वर्तमान स्थिति में मनुष्य को छोड़कर सभी जीव जंतु खुले में घूमने का आनंद ले रहे हैं | कभी गजराज को “हरकी पौड़ी” में नहाते देखा गया तो कभी बाघ को सड़कों पर घूमते हवा साफ हो गई है, उत्तर से लेकर दक्षिण तक की नदियों का जल स्वच्छ होकर पीने योग्य हो गया, शहर में जहां प्रदूषण के बादल छाए रहते थे वहां शीशे जैसे साफ बादल हो गए हैं,  लोग रात में आसमान में तारों को देख पा रहे हैं। प्रकृति आनंद विभोर होकर नाच रही है क्योंकि प्रकृति का दोहन करने वाला मानव आज अपनी ही कैद में बंद हो गया है। मनुष्य यह भूल चुका है कि प्रकृति का सौंदर्य भी एक अद्भुत उपहार है, इस को संजो कर रखना भी मनुष्य का ही कर्तव्य है। प्रकृति की शक्ति को पहचानना आवश्यक है वरना प्रलय हो सकता है। 

क्या आपको नहीं लगता यह महामारी के रूप में एक संदेश है जो हमारे जीने के तरीकों को बदलने के लिए कह रहा है? हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य कायम करने को कह रहा है। आज इंसान केवल दिखावे और पैसे के लिए भाग रहा है और अपने लालच और भूख को मिटाने के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है। हमें अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए हर पहलू पर पुनर्विचार करना होगा जैसे वस्तुओं का दोबारा उपयोग यानी रीसाइक्लिंग, शादियों और अन्य आयोजनों में सादगी लाना,  स्वदेशी उत्पादन पर जोर, सामूहिक दूरी बनाए रखना, शिक्षा देने के नए तरीके तलाशना जिससे कक्षा में भीड़ कम हो और समाजवाद को बढ़ावा देना इत्यादि। आज पूरे विश्व में  महात्मा गांधी के विचारों को प्रासंगिक करने का समय आ गया है। उनके आदर्श प्रकृति के साथ सामंजस्य को लेकर बहुत प्रबल थे। उस भारतीय चेतना को जगाने का समय आ गया है जो विश्व के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकती है।  इस महामारी को संदेश के रूप में लेकर कि आगे के जीवन को सफल करना ही मनुष्य का लक्ष्य होना चाहिए। 

✍️ कल्पना शर्मा

लोक घुल़ाई ते

लगा जिस दा ज़ोर,सिक्का चमकाई गे।
तु सुत्ती रेई निंदरा , कन्रे चोर दा लाईगे।
पक्काई कन्ने रोटियाँ अन्दर जे गेई सैह्,
पिण्डे  दे  कुत्ते आई, रोटियाँ    खाईगे।
जिन्हाँ पर कित्ता तू विसवास मेरे मित्रा,
पैरां हत्थ लाई करी, गल्ल़े तक आईगे।
जिन्हां ताँई खाणें कि पत्तल़ाँ बिछांईयाँ,
बदोबदी पैंठी बैई, पक्खले ही खाई गे।
हत्थां जोड़ी मिसणा, था घर घर मंगदा,
सुंडू दी जे गठ्ठ मिली, अपणें भुलाई ते।
अग्ग  भड़काई  दित्ती, दंगे  करवाई ने,
नफरता दे खूब तीखे , तीर  चलाई  ते।
शिव भाईचारा किञ्याँ  करी  टिकणा,
थाँई थाँई धर्मा च, लोक  जे  घुल़ाई ते।
               
             ✍️  शिव सन्याल
           राम निवास मकड़ाहन
         तह.ज्वाली, कांग्रेस, हि.प्र

नवीन हलदूणवी की कलम से

दो  नंबर  जो  असर  कुथू

दो  नंबर  जो  असर  कुथू,
निकल़ा करदी कसर कुथू?

सैल्ले    रुक्ख    बढाईत्ते,
नौंईं   कुंबल़   टसर  कुथू?

सच्चे - सुच्चे  भगतां  दा,
कलयुग अंदर वसर कुथू?

शैताने   जो   भोग   मिलै,
सिद्धे  जो हुण  मसर कुथू?

कवियां  गीत  कवित्त  घड़े,
छैल़  छबीली  नसर  कुथू?

छंद  दिली  छड्ड  "नवीना",
असर कुथी हो पसर कुथू?

                ***

सुक्के बंजर अब्बल जी

बद्दल़ करदा खज्जल़ जी,
सुक्के  बंजर  अब्बल जी।

पौंदी   मार   कसान्ने   जो,
टुट्टा   करदी  झब्बल़  जी।

भो$  बी  काल़ा  पेई  जा,
पल्लै किछ नीं डब्बल़ जी।

धूड़  सिरैं  बी  पौआ  दी,
मौज़ां  लैंदे  चब्बल़  जी।

डंग्गर  तड़फन  भुक्खा  नैं,
मुल्लैं  थ्होंदा  खब्बल़  जी।

धुप्पा  पौन  "नवीने"  जो,
पिट्ठी फालक-सब्बल़ जी।

             ***

लग्गी मौज़ भरूरां जो
       
फाक्के तां मज़दूरां जो,
सब्बो तोप्पण हूरां जो।

लकड़ी खूब कटोआ दी,
रोक  कुथू  ऐ  सूरां  जो?

घर-घर  खौद्दल़  पेई  ऐ,
गाल़ - मुआल़ी नूरां जो।

नित्त  नसेड़ी  नच्चा  दे,
कस्सण  पुट्ठे  टूरां  जो।

भलमणसाई सोच्चा दी,
रोआ  करदी  झूरां  जो।

इत्थू  झंड्ड  "नवीने"  दी,
लग्गी  मौज़  भरूरां  जो।

            ***

   ✍️ नवीन हलदूणवी
मोबाइल - 8219484701
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

Wednesday 22 April 2020

ख्वाब़


मरमरी सी उदास मन वाली हुई थी बेजान जिंदगी। 
चांद से मुखड़े मृगनयनी आंखों ने भरी रवानगी।

हृदय पटल कोने में छुपी मनमोहक तस्वीर ने दी जिंदगी। 
साधना कट बालों का घायल होती मासूम भोली जिंदगी।। 

शरमा के जमीं का वो कुरेदना बदलता फलसफा जिंदगी।
ख्वाब़ बुनते ताना बाना घर बसाने की चाह में जिंदगी।। 

नन्हें नन्हें फरिश्तों के आगमन  मन में उल्लास है जिंदगी।
यूं ही ख्वाबों के सफर में सुकुन से गुजरते जाये जिंदगी।। 

ख्वाबों का आइना ना टूटे यही बना रहे हकीकते जिंदगी।
ताउम्र साथ बना रहे ख्वाबों में भी ना रुठे सुनहरी जिंदगी।।

✍️ हीरा सिंह कौशल 

राष्ट्र भक्ति से प्रेरित स्वयंसेवक हराएंगे कोरोना को, संघ के स्वयं सेवको का संकल्प

एक ऐसा वायरस , जिसने वायरस बनाने वाले देश के साथ साथ विश्व की महाशक्ति को भी घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसा दानव जिसके आगे अमेरिका, इटली, चीन, फ़्रांस, ब्रिटेन सहित सभी यूरोपियन देश को बर्बादी के कगार पर खड़ा कर दिया । काश  गाँधी जी ने स्वयं सेवको की मन की इच्छा को बटवारे के वक्त सुन लिया होता, तो आज हम कोरोना से निपट गये होते ।  कुछ लोगो की अनपढ़ता के कारन आज भारत कोरोना से ग्रसित हुआ है। फिर भी उम्मीद है हम जीतेंगे और कोरोना सहित वह सभी हारेंगे जो भारत में रहते हुए भारत को हराना चाहते है। 

कोरोना ऐसा संकट  है, जिसने विशव के साथ साथ हिन्दुस्तान की भोली भाली जनता को जिन्होंने अपने प्रधानमंत्री जी के एक आह्वान पर अपने सरे उत्सव, त्यौहार यहाँ तक की नवरात्रों की पूजा को भी छोड़ दिया ।ताकि  भारत से  संकट को टाला जा सके । इस महासंकट के निजात पाने में दुनिया की बड़ी-बड़ी शक्तियां धराशायी हो गई या स्वयं को निरुपाय महसूस कर रही है। ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं उसके स्वयंसेवक अपनी सुनियोजित तैयारियों, संकल्प एवं सेवा-प्रकल्पों के जरिये कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जरूरतमंदों की सहायता के लिये मैदान में हैं। ‘नर सेवा नारायण सेवा’ के मंत्र पर चलते हुए देश के 529 जिलों में 39 लाख से अधिक स्वयंसेवक हर स्तर पर राहत पहुंचाने में जुटे हैं। राष्ट्रीय भावना से प्रेरित यह स्वयंसेवक देश के अलग-अलग हिस्सों में वे गरीब और जरूरतमंदों को भोजन खिला रहे हैं। देश के हालातों से भली भांति वकिफ यह स्वयंसेवक शाखाओं और मिलन के कार्यकर्मों से गाँव गाँव, गल्ली गल्ली जाते है , इसे मे अपने क्षेत्र की हर समस्या से लेकर जरुरत मंद लोगो को जानते और पहचानते है । इसलिए गाँव गाँव , गल्ली गल्ली,बस्तियों में जाकर मास्क, सेनेटाइजर, दवाइयां एवं अन्य जरूरी सामग्री बांटकर कर लोगों को राहत पहुंचा रहे है । या यूँ कहिये जिन रास्तो पर सरकार और सरकार से फण्ड लेने वाली एनजीओ नही जाती वहांएक राष्ट्रवादी स्वयंसेवक जाता है और जनता को  जागरूक कर रहे हैं। वे इस आपदा-विपदा में किसी देवदूत की भांति सेवा कार्यों में लगे हुए हैं। उनके लिए खुद से बड़ा समाज है। उनकी संवेदनशीलता एवं सेवा-भावना की विरोधी भी प्रशंसा करने से स्वयं को रोक नहीं पा रहे हैं। यह ऐसी उम्मीद की किरण है जिससे आती रोशनी इस महासंकट से लड़ लेने एवं उसे जीत लेने का होसला दिखा कर इस लड़ाई में जितने की सभी संभावनाओं को उजागर कर रही है।

कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में भी संभावना भरा नजारा दिखाई दे रहा है। जब सारा देश अपने घरों में कैद होने को मजबूर है, वायरस जानलेवा है। ऐसे मे जहां शहर के शहर लॉकडाउन हो गए हैं। चारों तरफ आवागमन बंद हुआ पड़ा है। ऐसी स्थिति में भी संघ के स्वयंसेवक बिना अपनी जान की परवाह किए देश के अलग-अलग हिस्सों में जरूरतमंद लोगों तक राहत पहुंचाने में जुटे हुए हैं। जब संकट बड़ा हो तो संघर्ष भी बड़ा अपेक्षित होता है। इस संघर्ष में संघ कार्यकर्ताओं की मुट्ठियां तन जाने का अर्थ है कि किसी लक्ष्य को हासिल करने का पूरा विश्वास जागृत हो जाना। अंधेरों के बीच जीवन को नयी दिशा देने एवं संकट से मुक्ति के लिये कांटों की ही नहीं, फूलों की गणना जरूरी होती है। अगर हम कांटे-ही-कांटे देखते रहें तो फूल भी कांटे बन जाते हैं। । हकीकत तो यह है कि हंसी और आंसू दोनों अपने ही भीतर हैं। अगर सोच को सकारात्मक बना लें तो जीवन हंसीमय बन जाएगी और संकट को हारना ही होगा।

कोरोना वायरस के चलते सब कुछ बंद हैं, दुकान, प्रतिष्ठान, फैक्ट्री, व्यापार पर ताला जड़ा हुआ है। ऐसे में रोजमर्रा काम करने वालों के लिए निश्चित ही समस्या खड़ी हुई हैं। इस स्थिति में जो लोग रोज कमाकर खाते हैं उनको जीवन-निर्वाह में कोई परेशानी न होने पाए इसके लिए संघ विशेष जागरूक हैं। मध्यप्रदेश के जबलपुर में गोकुलदास धर्मशाला में स्वयंसेवकों ने गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए मुफ्त में भोजन की व्यवस्था की। तो इसी तरह भीलवाड़ा में भी ऐसा ही कुछ नजारा दिखाई दिया जब राहत कार्यों के साथ गरीबों के लिए भोजन की व्यवस्था करते स्वयंसेवक नजर आए। गांव में स्वच्छता बरकरार रहे इसके लिए कुछ स्वयंसेवकों ने मिलकर गांवों को बाकायदा सेनेटाइज तक किया है। झाडू लेकर सफाई करते दिखाई दिये हैं। केरल में सेवा भारती के स्वयंसेवकों ने पुलिस और अग्निशमन दल के साथ मिलकर अस्पतालों के परिसर की सफाई की और उन्हें कीटाणुरहित बनाने में सहयोग किया। कोथमंगलम, कोडुंगल्लूर और राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में स्वयंसेवक साफ-सफाई और स्वच्छता में लगे हुए हैं।हिमाचल प्रदेश में स्वयंसेवकों ने प्रशासन के साथ साथ मिल कर काम किया और हिमाचल प्रदेश के दूर दराज क्षेत्रो में सरकार के साथ मिल कर दवाई सहित जरूरत का सामान पहुचने में अग्रणी भूमिका अदा कर रहें है । हिमाचल प्रदेश के दूर दराज जिला सिरमौर मे स्वयंसेवको ने पंचायतो के साथ मिल कर जरूरत मंद लोगो को सहयोग कर एक उदाहरण पेश करने का काम किया और लोगो को इस महामारी से मिलकर सामना करने का आह्वान किया । जिसका फायदा यह हुआ किजिल्ले की साथ लगती पंचायतो ने इस मुहीम का स्वागत कर जनमानस को सहयोग करने और योगदान देने का पर्ण लिया।

सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने स्वयंसेवकों से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में स्थानीय प्रशासन के साथ जुटने का आहृवान किया था और एक लाख से अधिक सेवा प्रकल्प प्रारंभ किये। उन्होंने कहा था कि स्वयंसेवक छोटी-छोटी टीमें बनाकर समाज में सहायता, स्वच्छता, स्वास्थ्य. जागरूकता लाने के लिए कार्य करें। इस आहृवान के बाद से देश के अलग-अलग हिस्सों में संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्य में जुट गए हैं। कोरोना वायरस के कारण भारतीय जनजीवन में अनेक छेद हो रहे हैं। जिसके कारण अनेक विसंगतियों को जीवन में घुसपैठ करने का मौका मिल रहा है। जोशी ने संकल्प व्यक्त किया कि हमें मात्र उन छेदों को रोकना है, बंद करना है बल्कि जिम्मेदार नागरिक की भांति जागरूक रहना होगा। यदि ऐसा होता है तो एक ऐसी जीवन-संभावना, नाउम्मीदी में उम्मीदी बढ़ सकती है। जो न केवल सुरक्षित जीवन का आश्वासन दे सकेगी। बल्कि कोरोना महासंकट से मुक्ति का रास्ता भी दे सकेगी। प्रयत्न अवश्य परिणाम देता है। जरूरत कदम उठाकर चलने की होती है। विश्वास की शक्ति को जागृत करने की होती है। विश्वास उन शक्तियों में से एक है जो मनुष्य को जीवित रखती है। संकट से पार पाने का आश्वासन बनती है।

एक तरफ कोरोना के डर से लोग घरों में कैद हैं। तो कुछ लोग इस वायरस को गंभीरता से न लेकर लॉकडाउन के बावजूद भी सड़कों पर दिखाई रहे हैं। वहीं दूसरी ओर डॉक्टरों, पुलिस प्रशासन के साथ देश के लाखों जिम्मेदार लोग कोरोना को मात देने के लिए घरों से बाहर निकले हुए हैं। संघ के स्वयंसेवक और दायित्ववान कार्यकर्ता अपने घरों से बाहर निकलकर गली-मोहल्लों में घूमकर लोगों को कोरोना के खिलाफ कैसे लड़े। इसके लिए जागरूक कर रहे हैं। कोरोना वायरस महासंकट की अभूतपूर्व त्रासदी से निपटने के लिए संघ ने जिला स्तर पर पावर सेंटर और हेल्पलाइन प्रारंभ की है। इस पूरे महाअभियान की मॉनिटरिंग सरकार्यवाह भैयाजी जोशी खुद कर रहे हैं। उन्होंने सेवा प्रकल्पों का नेटवर्क देश के प्रत्येक जिले और तहसील में मजबूत करने के लिए 30 वर्ष से अधिक समय कठोर परिश्रम और समर्पण के साथ दिया है। वे संघ के गैर राजनीतिक किस्म के ऐसे प्रचारक माने जाते हैं जिनकी दिलचस्पी सामाजिक सेवा-कार्यों में अधिक है। संघ के एक लाख से अधिक सेवा प्रकल्पों को खड़ा करने का श्रेय भैयाजी को जाता है।
संघ भारत की सेवा-संस्कृति एवं संस्कारों जीवंत करने का एक गैर-राजनीतिक आन्दोलन है। सेवा-भावना। उदारता। मानवीयता एवं एकात्मकता संघ की जीवनशैली एवं जीवनमूल्य हैं। संघ के अनुषांगिक संगठन सेवा भारती और सेवा विभाग की कार्य योजना दिनों-दिन गंभीर होती स्थिति के बीच राहत की उम्मीद बनी है। इस कार्य-योजना में कोरोना वायरस से निपटने के लिए जनता की मदद की जा रही हैं। इनमें स्वेच्छा से लॉक डाउन का पालन करवाना। जिला और स्थानीय प्रशासन की मदद करना। तथा अपने मोहल्ले और बस्ती में जिस भी प्रकार की मदद की आवश्यकता हो वह पूरी तत्परता से करना। शामिल है। सनद रहे 22 मार्च से पूर्व संघ की देश भर में 67 हजार से अधिक शाखाएं नित्य प्रतिदिन लगती थी। एक शाखा के प्रभाव में 20 से 25 हजार की आबादी आती है। प्रत्येक शाखा के प्रभाव में कम से कम 100 से 150 तक प्रशिक्षित स्वयंसेवक होते हैं। इन स्वयंसेवकों को संकट के समय मदद करने का भी प्रशिक्षण होता है। संघ के अलावा अन्य 36 अनुषांगिक संगठन भी अपने-अपने स्तर पर तय योजना के अनुसार सेवा कार्यों में लगे हैं। कई बस्तियों में 15 दिन के लिए परिवार को कार्यकर्ताओं ने ही गोद ले लिया है । संघ के आह्वान पर कुटुंब शाखा में 50 लाख से ज्यादा स्वयं सेवको ने संघ की प्राथर्ना कर भारत माता को याद किया । जो विद्यार्थी हॉस्टल अथवा गेस्ट हाउस में फंसे हैं। उनकी व्यवस्था भी स्वयंसेवक कर रहे हैं। किसी परिवार में दवाई की आवश्यकता हो या अस्वस्थता हो तो भी उस समय पूर्ण रूप से उनको हर चिकित्सीय सुविधा प्रदान कराई जा रही है। इस महासंकट एवं आशंकाओं के रेगिस्तान में तड़पते हुए आदमी के परेशानी एवं तकलीफों के घावों पर शीतल बूंदे डालकर उसकी तड़प-शंकाओं को मिटाने का अभिनव उपक्रम संघ कर रहा है। गर्व की बात है कि संघ के कई कार्यकर्ताओं ने  खुद ही अपने आप ही कई बस्तियों को गौद लिया है । संघ के स्वयं सेवको ने सरकार के आह्वान से पहले ही सरकार को आर्थिक सहयोग देने और सरकार के साथ खड़े होने का पर्ण लिया है । हिमाचल प्रदेश में एक आह्वान पर संघ के अनुषांगिक  हिमाचल प्रदेश महाविद्यालय शेक्षिक संघ और हिमाचल प्रदेश शिक्षक महासंघ ने मुख्य मंत्री राहत कोष में लाखो का दान दे दिया था । संघ के आह्वान पर शाखाओं में जाने वाले सभी स्वयं सेवको ने कोविद 19 फण्ड में दान देने का पर्ण लिया । जिन निश्चित ही संघ के प्रयत्नों से भारत में कोरोना का परास्त होना ही होगा।

✍️ डॉ मामराज पुंडीर
विशेष कार्य अधिकारी
शिक्षामंत्री हिमाचल सरकार
mamraj.pundir@rediffmail.com
9418890000, 9418014586

लघुकथा संकलन


साझा लघुकथा संकलन

Hills Talks द्वारा प्रकाशित होने वाले "साझा लघुकथा संकलन" हेतु लघुकथाएं सादर आमंत्रित हैं।

लघुकथाएं भेजने के लिए संपर्क करें :-
WhatsApp : 94180-97815 
Email : hillstalks@gmail.com
www.hillstalks.blogspot.com

Tuesday 21 April 2020

ग़ज़ल

उत्साह उमंग से आज गम भुला चलें।
खुशीयों को ढूँढ के गले से लगा चलें।
इठला के बढ़े चले जिंदगी का नाम है,
रूकें नहीं कदम आगे आगे बढ़ा चलें।
चलती सरिता तोड़ बंधनों के पाट को,
उड़ेल कर प्रेमरस सागर में समा चलें।
निष्फल नहीं कर्म तेरा यह कर्मभूमि है
मिलता फल गीता का सार बता चलें।
पाप भरी  गठड़ी है  सिर पर  फोड़ता,
विचलित न हो सत्य मार्ग अपना चलें।
झूठ के जो बल चला गिरता मैदान में,
हो न कर्म बुरा यह जिंदगी रूला चलें।
अहिंसा के पथ पर परोपकारी ही बनें,
दुख रोग संताप हर जन का उठा चलें।
निंदक निंदा ही करें है स्वभाव उस का,
निदंक पास रखिये हर मंजिल पा चलें।

✍️ शिव सन्याल
राम निवास मकड़ाहन
ज्वाली, कांगड़ा, हि. प्र. 

भूख

सुबह उठकर लग जाते है
सब करने कुछ काम
पेट लगा हुआ है सब को
कर नहीं सकते यूं आराम
इस जहां में भूख ने
न जाने क्या क्या करवाया
किसी को पुलिस 
तो किसी को चोर बनाया
इस भूख ने देखो यारो
क्या क्या रंग दिखाए
कई तो काम कर रहे देश में
कई विदेश पहुंचाए
यही भूख है जो करवा रही 
सबसे भागम भाग
कोई तो कंगाल रह गया
कोई हो गया मालामाल
इस भूख के कारण ही जग में
हो रहे सारे काम
पेट न होता लगा हुआ 
तो सब करते आराम
खाने की ही भूख नहीं है
कई किस्म की होती भूख
किसी को तो राम नाम की 
किसी को दौलत की है भूख
किसी को भूख है शोहरत की
किसी को बेईमानी की
किसी को है सत्ता की तो
किसी को है बलिदानी की
जिसने जितना गुड़ डाला
उतना ही उसने पाया है
किस्मत में जिसकी जो लिखा है
वही उसके सामने आया है
भूख नहीं होती जग में तो
कोई पाप नहीं होता
किसी को भी कुछ करने पर
यूं पश्चाताप नहीं होता
सब रहते मिल जुल कर
कोई झगड़ा अत्याचार नही होता
प्रेम पनपता सबके दिल में
दीनहीन दुखियारा और कोई लाचार नही होता
भूख का भी तो प्रभु ने
खोल रखा एक खाता है
उसमें एंट्री उसी की होती है
जिसका प्रभु से नाता है

✍️ रविंदर कुमार शर्मा

कुदरत का एक रंग

लाख रंगों में बंटी 
दुनिया में, 
बिखर जाता है 
कुदरत का जब, एक रंग 
तो 
झूम उठता है 
होरी किसान! 
नाच उठते हैं बच्चे, 
झूमने लग जाते हैं 
आभासी दुनिया के लोग। 

पेड़ जो जानते हैं झुकना 
आलिंगन करते हैं 
अपनी जन्मदायिनी से 
और जो नहीं चाहते, 
झुकाना पीठ अपनी 
धराशायी हो जाते हैं, 
जड़ों समेत। 

"संजीवनी" नाम मिला है 
बर्फ को,पहाड़ों में 
ऐसी बूटी 
जो कुछ रोग 
ऐसे ही खत्म कर देती है 
होरी के! 
और बढ़ जाती है छ:महीने 
उम्र उसकी 
किसानों की चांदी ही चांदी 
की खबरों से। 

सिक्के को पलट कर देखूं 
तो अमृत छुपाए रखता है 
ज़हर भी खुद में 
ठीक ऐसे ही जैसे 
ये फाहे, जब 
गिरते होंगे सरहद पर 
गिरते होंगे, जब
सड़क के किनारे खड़े 
हांके गए पशुओं पर 
और 
गिरते होंगे जब उस इलाके में 
जहाँ इस ठंडी आग 
को पिघलाकर बनता होगा 
फिर से पानी। 

✍️ दीपक भारद्वाज
कुमारसैन, शिमला, हि. प्र. 

नहीं तो जग श्मशान

काल के ललाट से उड़ता चला जाये विषाणु।
त्राहिमाम त्राहिमाम लगी फैल रहा रोगाणु।।

तांडव हो रहा कैसा तूने महाप्रलय फैलाया। 
अस्तित्व भूला प्राणी तूने ये कहर बरपाया।। 

देख लाशों का ढेर जाग पड़ी मरी संवेदना। 
विभु व्यापक रक्षा हो कर जोड़ी हो प्रार्थना।। 

शांत करो तांडव नाथ नृत्य लस्य करें निर्माण। 
महाबिनाश से त्राहिमाम नहीं तो जग श्मशान।।

✍️ हीरा सिंह कौशल 

Sunday 19 April 2020

अब मेघ मत बरसाओ

किसान की नींद अब हो गई हराम
ऊपर वाले ने मचा रखा है कोहराम
फसल पक गई है सारी
कटने की हो गई तैयारी
इंद्र देव ने भी खोल दी
अपनी बारिश की पिटारी
बारिश और तूफान ने
इतना कहर बरपाया
आमों का बौर झड़ गया सारा
कटी फसल को बिखराया
पहले ही क्या मार थी कम
जो अब यह बिपदा दे मारी
हे प्रभु कुछ दिन रहम करो
फसल कटने दो सारी
यही तो मेरी पूंजी है
मेरे घरवालों की रोटी है
इसी से चूल्हा जलता है
सब जरूरतें पूरी होती हैं
बस कुछ दिन और अब सब्र करो
अब मेघ मत बरसाओ
फसल मेरी अंदर हो जाये
फिर जो तुम चाहो कर जाओ

✍️ रविंदर कुमार शर्मा
घुमारवीं, बिलासपुर, हि प्र

कविता का सफर

कविता का सफर

जब भी कभी, 
काग़ज़ के शिकार पर निकलता हूँ 
तो कलम में स्याही भरते - भरते 
सोचता हूँ 
क्या मेरे धमाके की आवाज 
सुनेगा कोई? 
या 
इधर-उधर से उभर आएंगी ये पहाड़ियां, 
उस ध्वनि के 
आंदोलित होने से पहले!!! 

कुछ भी हो 
अपने शिकार पर पहुंचकर 
करता हूँ जब चीर-फाड़ शुरु 
तो देखकर सन्न रह जाता हूँ 
और, तभी 
कागज के गर्भ से निकलती है 
'कविता'। 

नहीं होता कविता का 
कोई एक अमुक जन्मदाता 
और न वो पैदा होती है 
नौ माह बाद, 
न ही वो निकलती है किसी बीज 
के अंकुरित होने से 
बल्कि, ये एक ऐसी गोली है 
जिसका बारुद होता है 
कवि के सीने में 
और जब ये छूट जाती है 
रोशनाई के गर्भाशय से 
काग़ज़ की गोद में 
तो इसका पोषण करता है 
पाठक। 

ऐसे में वो परिष्कृत कर देता है 
इसका भविष्य 
इतना सा ही सफर नहीं है 
एक कविता का 
कविता तो जिंदा रहती है 
एक खत्म ना होने वाले समुद्री रस्ते की तरह 
पेड़, काग़ज़ कलम, बारुद, कवि और एक पाठक पर 
पर्दा गिर जाने के बाद भी। 

✍️ दीपक भारद्वाज
कुमारसैन, शिमला, हि. प्र. 

नवीन हलदूणवी की कविताएँ

सुथरा पाणी

सुथरा  पाणी  खात्ती  दा,
डर-डुक्कर नीं रात्ती दा।

खिंद - खदोलू जुड़दे हे,
गभरू  चौड़ी  छात्ती दा।

मिस्सी  रोट्टी  थ्होंदी  ही,
शुकर बड़ा हा दात्ती दा।

गल्ल बड़ी ही प्यारे दी,
रौल़ा  भौंऐं  जात्ती  दा।

खड़ - खपरे दे  टप्परु हे,
मरज  कुथू हा बात्ती दा?

खूब  "नवीन"  खलारीत्ता,
नाल़ू   बी   बरसात्ती   दा।

               ***


करना लाज मरीज़े दा
          
करना लाज मरीज़े दा,
बोझ घटी जा गीज़े दा।

तत्ती   रोट्टी   खाई   लै,
ठंडा  छड्ड  फरीजे़  दा।

अप्पू  फसला  कट्टी  लै,
जो किछ बी ऐ बीजे दा।

भुक्खमरी नीं फैल्लै जी,
ख्याल रखी लै तीजे दा।

चैन-अमन नैं सौआ जी,
शोर  कुथू  ऐ  डीजे  दा?

सुधरै  देस 'नवीने'  दा,
मन्नो आक्खा जीज़े दा।

             ***


स्हाड़ी बी मजबूरी ऐ

स्हाड़ी बी मजबूरी ऐ,
दूरी  ब्हौत  जरूरी  ऐ।

छड्डी रिस्ते नात्ते जी,
पौंणी नीं हुण पूरी ऐ।

बधदा रोग करोने दा,
लंगर  गैर  जरूरी  ऐ।

भीड़ भड़क्का करने ते,
म्हेस्सा जिन्द अधूरी ऐ।

अपणा फरज़ नभाई लै,
खाणी  जे  घी-चूरी  ऐ।

भारत देस "नवीने" दा,
जै-जी करन हज़ूरी ऐ।

            ***


राम रसायन दा ऐ पास्सा

राम रसायन हमरे पास्सा,
पूरी होणीं स्हाड़ी आस्सा।

भारत  दी  धरती  दे  उप्पर,
हुण नीं वरतै कोप नरास्सा।

छैल़  तरक्की  होई  जाणी,
घोल़ी पीणा रोज पतास्सा।

जै - जैकार करेगी दुनियां,
झंडा चढ़ना उच्चे गास्सा।

सच्ची गल्ल गलाणे ब्हाली़,
फिक्की नीं ऐं स्हाड़ी भास्सा।

सुरत  "नवीने"  दी  बदलोणी,
भुल्ली जाणीं चोप्पड़ झास्सा।

                 ***


कुथू ऐ

सुच्चा  मीटर-गज्ज  कुथू ऐ,
ग़ज़लां अन्दर जज्ज कुथू ऐ?

रोज  फराट्टी  पाणे  ब्हाल़ा ,
कविया मित्तर अज्ज कुथू ऐ?

देस - भलाई  सुथरा  सौद्दा ,
पुन्न  कमाओ  पज्ज  कुथू ऐ ?

मुंह्मेंटड्डी   दाज्जे   मंग्गण,
कुड़म-कमीन्ने रज्ज कुथू ऐ  ?

किंह्यां   दस्सो  होंग   सफाई,
बोल्लण पल्लैं छज्ज कुथू ऐ ?

स्हाकी लोक 'नवीन' गलांदे,
खिल्ले खेत्तर चज्ज कुथू ऐ ?

                ***


तांईं  देस  पलूणा  जी

खाणा खूब सलूणा जी,
तांईं  देस  पलूणा  जी।

रोट्टी - पाणी तत्ता जी,
काम्मैं अंबर छूणा जी।

छैल़  घड़ोलू  भरना  ऐं,
म्हेस्सा छल़कै ऊणा जी।

धूंणीं  पाई  मिरचां  दी,
करना पौणा टूणा जी।

भारत मां दी भगती दा,
जोश भरी जा दूणा जी।

अल़ख "नवीन" मुकाईत्ता,
हुण  नीं  बुज्झै  धूणा  जी।

              ***


     ✍️ नवीन हलदूणवी
मोबाइल - 8219484701
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

सुहाना सफर

सुहाना सफर

जिंदगी के गुजरे जो हरपल वो है सुहाना। 
लखनपुर का वो टिक्की बडे़ भी है सुहाना।। 

गुजरे बटोत से डोडा़ प्रेमनगर का सफर सुहाना। 
किस्तबाड़ में भोर का मंदिर मस्जिद का गान सुहाना।। 

गुलाबगढ़ से पहले हर जगह चैक पोस्ट सुहाना.
सोहल से पैदल मार्च वो तयारी का खाना सुहाना।। 

रात्रि विश्राम में उन जनों का खाना खिलाना सुहाना। 
तयारी संसारीनाला के रास्ते वो पगडंडी का सफर सुहाना।। 
जिंदगी के फलसफे के लिए पांगी पहुँचना था सुहाना। 
हर तरफ से चलते आदिम जगह पंहुचना था सुहाना।। 

✍️ हीरा सिंह कौशल

उड़ चला

उड़ चला,
आज मैं उड़ चला
दूर चला बहुत दूर चला।
आजाद हो गया मैं
पिंजरे की कैद से,
आजाद हो गया
रोज की घुटन से,
अपनी मंजिल को
पाने के लिए आज
मैं चल पड़ा।
एक नए पथ पर
निकल पड़ा,
एक नई दुनिया में
चल पड़ा,
जहां सब कुछ नया होगा,
पुराने रास्तों को छोड़ चला,
अपने अस्तित्व को पहचाने 
अब चला पड़ा
अपने आपको को पाने
आज निकल पड़ा,
अपनी कर्तव्यनिष्ठा को
निभाने चला पड़ा।
✍️ अमित डोगरा

भूख

भूख   

महज फकत एक रोटी लगती मिटाने पेट की भूख। 
हजार कोशिश करने पर नहीं मिटती मृगतृष्णा की भूख।। 
घर रहने की ताकीद में बन रह रही बाहर घूमने की भूख।
संग रहने की सौगात में क्यों नहीं बढ़ती परिवार
संग की भूख।।
मजदूर सर्वहारा वर्ग था प्यारा आज क्यों सताती उसे भूख।
सहारा न मिलता देख बढ गयी है उनको अपने घर जाने की भूख।। 
जमाखोरी काला बाजारी मुसीबत में दुगने दाम बसूलने की भूख। 
क्यों न बढाते धर्म कर्म समाज सेवा से दूसरों को खुश करने की भूख।। 

✍️ हीरा सिंह कौशल

बेजुबान इश्क

बेजुबान इश्क

खूबसूरती सिर्फ
जिस्म में ही नहीं,
दिल में भी होती है।
जरा ओढ़ कर देखना
मेरी हस्ती की मिटी हुई,
राख को
अपने सीने पर।
दिख जाएगी तुम्हें
वो मोहब्बत
जो  दिखी नहीं
कभी तुम्हें
मेरे सीने में धड़कते दिल में।
तुम्हें लगता है अगर
चाहने वाले बहुत हैं तुम्हारे
तो आने दो जरा
झुर्रियों को
अपने चेहरे पर
तब दिख जाएगा
तुम्हें भी
कितने दिल लगाते हैं तुमसे
और कितने गले लगाते हैं
तुमकों अपने सीने से।

✍️ राजीव डोगरा 'विमल'


Wednesday 15 April 2020

सुथरा पाणी

सुथरा  पाणी  खात्ती  दा,
डर-डुक्कर नीं रात्ती दा।

खिंद - खदोलू जुड़दे हे,
गभरू  चौड़ी  छात्ती दा।

मिस्सी  रोट्टी  थ्होंदी  ही,
शुकर बड़ा हा दात्ती दा।

गल्ल बड़ी ही प्यारे दी,
रौल़ा  भौंऐं  जात्ती  दा।

खड़ - खपरे दे  टप्परु हे,
मरज  कुथू हा बात्ती दा?

खूब  "नवीन"  खलारीत्ता,
नाल़ू   बी   बरसात्ती   दा।

   ✍️  नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201
जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।

शहर में पसरा सन्नाटा

थम गये पहिये थम गयी जन की आवाजाही। 
भंयकर बिमारी से लड़ने के आदेश है राजशाही।। 

सड़क में चहलपहल होती थी अंनजाने डर से खाली। 
सभी जन मायूसी से अरदास करे कर कृपा जग माली।। 

मजदूर जिसने घर बनाये वे बेघर हो ठहरे है पेट खाली। 
आवारा कुत्ते मौज से घूमें पालतू चिढ़े न घुमाया माली।। 

अखबार वाला सब्जी बाला सबके मन में पसरा है  खतरा। 
मिलेगें या सदा के लिए खो जायेंगें वक्त का मिला है इशारा।। 

✍️ हीरा सिंह कौशल 
     महादेव, सुंदरनगर 
     मंडी, हिमाचल प्रदेश। 

Tuesday 14 April 2020

नोक्खी कलम 'नवीने' दी

रोग-बमारी सच्चा दी,
तरथल्ली ऐ मच्चा दी।

लम्मी  खौद्दल़  पेई  ऐ,
झूठे खंब्बल़खच्चा दी।

माड़े  रीत-रुआजां  दी,
ढोलक नीं ऐं जच्चा दी।

बेह्लड़  सौई - बैट्ठी  जी,
रोट्टी  नीं  ऐं  पच्चा  दी।

अल़ख  धुड़ैन्ने  पुट्टा  दा,
वेसबरी   ऐ   नच्चा   दी।

नोक्खी कलम 'नवीने' दी,
नौंईं   कवता   रच्चा   दी।

    ✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

Monday 13 April 2020

यादें

अब सपना लगता है बचपने का वो भोलापन.
नहीं था दोगलापन हर तरफ सिर्फ अपनापन.. 
पलम खीरे चुरा के खाना वो था सपना सुहाना.
छुट्टियों में ग्वाले का दोपहर का वोअच्छा खाना.
बरसाती खड्ड में अच्छा लगता उसे पार कराना.
पार कराते उसका मुस्कराना लगता अब सपना
गुल्ली डंडा चोट तंगे का खेल है बड़ा मस्ताना.
मौज के इस खेल का अपना ही अंदाज सुहाना
सब स्वच्छंद था ना पड़ता था जिम्मेदारी निभाना.

✍️ हीरा सिंह कौशल 
     महादेव, सुंदरनगर 
     मंडी, हिमाचल प्रदेश। 

Sunday 12 April 2020

भोले रा द्वारा

महादेवा रे भोले रा द्वारा बड़ा बांका बड़ा प्यारा।
सांझा भ्यागा लोक करांहे भोले री जय जयकारा।। 

भोले री पींडियां पर ऐथी पौउंदी  दूधा रीया धारा ।
ग्वाले साऊगी लोक भी देखदे रहेंदे थे नौखा नजारा।। 

एकी राती मंझ पांडवे मंदिर बनायी ता था ऐ सारा। 
खूहा खणदे खणदे पांडवा सूझी जो गया था पाताल सारा।। 

बरखा नीं हुंदी बरखा रे कठे गड्डुआ ढाल्लां राजा सुकेता रा।
पाणी खूहा मंझ मिलदे ही बरखा छम-छम कराहां अम्बर सारा।।

भोला हे भंडारी ऐसरा सारे संसार मंझ सकल पसारा। 
आओ ऐसरे चरणा ते सीस झुकाओ पाओ सुख सारा।।

✍️ हीरा सिंह कौशल 
     महादेव, सुंदरनगर 
     मंडी, हिमाचल प्रदेश। 

Saturday 11 April 2020

ज़िन्दगी कितनी सस्ती

हर गली है सूनी सूनी
सूनी ही हर बस्ती है
इस ज़माने में देखो यारो
ज़िन्दगी कितनी सस्ती है
बन्द है मंदिर के किवाड़
वो भीड़ भी अब नज़र नहीं आती
कोरोना के डर से देखो
अब वो घंटियां भी बज नहीं पाती
सूना हर चौराहा है
सूनी गांव की गलियां सारी
सब घर के अंदर दुबके है
चाहे नर हो या हो नारी
हर तरफ पसरा सन्नाटा है
घर में दाल चावल न आटा है
पैसे भी अब खत्म हो गये
जेब भी हो गई खाली
हाय इस जालिम कारोना ने
यह कैसी हालात कर डाली
समय ने करवट बदली
और कैसा खेला खेल
जो कल तक थे बने सिकंदर
आज हो गए फेल
अमरीका,इटली,फ्रांस और इंग्लैंड
समय रहते नही थे जागे
आज देखो कैसे नतमस्तक हैं
कोरोना के आगे
दिहाड़ी मज़दूरी करने वालों के
बन्द हो गए सारे काम
पैसा नहीं है जेब में
बढ़ गए सब चीजों के दाम
कैसे परिवार का पेट भरें
यही सोच सोच कर हैं परेशान
जहां भी देखो कोरोना है
अब चल नहीं रहा किसी का जोर 
चीन देख रहा खड़ा तमाशा
जिसने फैलाया यह चारों ओर
हर कोई बेबस है हर कोई मजबूर
हर तरफ देखो कारोना का अत्याचार
पैसे वालों को नहीं कोई फर्क पड़ता
गरीब तो हर तरफ से लाचार है
बड़े बड़ों की निकल गई हेकड़ी
छोटा भी कम नहीं है परेशान
यह अदृश्य  वायरस अब तक
ले चुका कईयों की जान
कोरोना से बचने का
अब केवल है एक उपाय
घर के अंदर बैठें सारे
बाहर कोई न जाये

✍️ रविंदर कुमार शर्मा
     घुमारवीं, हि. प्र. 

चार लोग क्या कहेंगे



       कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना, यह गीत मन ही मन गुनगुनाते हुए भी हम चिंतित रहते है कि समाज में चार लोग क्या कहेंगे, आस-पड़ोस के लोग क्या सोचेंगे। सर्वव्यापी चार लोगों के चक्कर में सारी दुनिया जद्दोजहद कर रही हैं। असफलता में हमारी खामियां ढूंढने और सफलता में हमारे गुणों का व्यख्यान करने वाले यह तथाकथित भविष्यवक्ता ही इन चारों लोगों में एक है। यह हर छोटी-बड़ी घटना के बाद सिर्फ इतना कहते हैं कि हमें तो पहले से ही मालूम था। वास्तव में हम आत्म प्रेरणा से कभी कार्य नहीं करते क्योंकि हम लकीर के फकीर है। सोच-विचार, तर्क-वितर्क, नीति और शास्त्र सब पीछे छूट जाते हैं, क्योकि चारों लोगों की चौकड़ी में एक हम भी तो हैं। समाजिक नशे का भूत अक्सर एक ही प्रश्न पूछता हैं कि लोग क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे?

       आपके परिवारजनों, रिश्तेदारों, दोस्तों, सहकर्मियों ने आजीवन एक बात जरूर कहीं होगी कि "सुनो सबकी करो अपने मन की" लेकिन ठीक इसके उलट सभी ने अपना आचरण दिखाया होगा। क्योंकि यह महानुभाव भी चार में से एक है। असमंजस में रहना मनुष्य का स्वभाव बन चुका है, हमारी सोच और विचार पल-पल बदलते रहते हैं। चाय में अगर मक्खी गिर जाए तो चाय फेंक देते हैं यदि घी में मक्खी गिर जाए तो मक्खी फेंक देते हैं। इसी प्रकार लोगों की नसीहतें भी क्षण-क्षण बदलती रहती है। आत्मविश्वास की कमी और कार्य के प्रति सत्यनिष्ठा न होने के कारण हम मरते दम तक असमंजस में रहते हैं। अत्यधिक महत्वकांक्षा, अज्ञान और मोह-माया के दुष्चक्र में हम भूल चुके हैं कि मनुष्य इस संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है।

✍ हितेन्द्र शर्मा 
कुमारसैन, शिमला। 

अमनों शहर

जल रहा है दिन रात अब ये अमनों शहर।
बुझाते चले लोगों के दिलों का खौफे कहर।। 

अजीब सी उलझन जनों के मनों में समायी। 
अब के मिलें है फिर मिले ना मिले हम भाई।।

रहें घर में हम सब इस जारी ताकीद को मानों। 
जग भलाई संग अपनी भलाई इस को जानों।।

चल पड़े जो मानवता की नयी डगर पे कदम।
यूंही चलते रहे ना रुके मानव का कोई कदम।।

✍️ हीरा सिंह कौशल 
सुंदरनगर, मंडी। 


इंतजार

इंतजार क्या है?
इंतजार से पूछो इंतजार क्या है?
इंतजार क्या है 
मुझसे पूछो ? 
उसके आने से पहले भी 
उसका इंतजार था,                                     
 उसके आने पर भी
उसका ही इंतजार है,      
उसके पास बैठने पर भी
उसका ही इंतजार था ,   
उसके साथ चलने पर भी 
उसका ही इंतजार है,
उसके जाने के बाद भी
उसका ही इंतजार है ,
आज भी उसका इंतजार है, 
जीवन के अंतिम क्षणों तक 
उसका ही इंतजार रहेगा ।।   

✍️ अमित डोगरा

मृत्यु का अट्टहास

वक़्त संहार का हैं 
पापियों का विनाश हैं,
क्यों दुआ करु की
सब रुक जाए,
किये हैं जो दुष्कर्म
मानव भी तो उनका
फल पाए।
जी रहे थे जो
अब तक
अपने वक़्त पर
घमंड कर।
उनको भी तो
मृत्यु का अहसास आए।
ईश्वर के नाम पर
किये जो बुरे कर्म
मरते-मरते उनका भी तो
हिसाब दिए जाए।
अभी तो और
अट्टहास करेगी मृत्यु
वक़्त है अभी भी
मानव तू सुधार जा
नही तो महाविनाश
अभी भी जारी है।
✍️ राजीव डोगरा 'विमल'


सुच्चा कम्म कमाईत्ता


सिद्धा ढोल बजाईत्ता,
सुच्चा कम्म कमाईत्ता।

सरसुतिया दे पुत्तर नैं,
मूरख   रस्तैं   पाईत्ता।

भारत देस तरक्की दा,
नोक्खा तगमा लाईत्ता।

मिट्ठे  प्यारे  बोल्लां  नैं,
वैर - वरोध डुआईत्ता।

मैल - कुचैली धरती जो,
मुड़ियै  सुरग  बणाईत्ता।

कुदरत बी हुण हस्सा दी,
गीत  'नवीन'  सुणाईत्ता।

   ✍️ नवीन हलदूणवी

Friday 10 April 2020

दो नंबर दे धंधे

कम्मैं  औंदी  खट्टी  जी,
चलदी फिरदी हट्टी जी।

दो  नंबर  दे  धंधे  दी ,
हुंदी   अट्टी-सट्टी   जी।

भ्रष्टाचारी  लोक्कां  नैं ,
लाई   सट्टवसट्टी   जी।

पूरी  पौंग  पढ़ाई  नीं ,
 पुट्ठे  प्हाड़े  रट्टी  जी।

सच्चाई दा मुल्ल कुथू ,
मेस्सीत्ती  ऐ  पट्टी  जी 

कुण पुच्छा दा देस्से जो,
खाई थुक्की - चट्टी जी ?

मित्त 'नवीन' गुआच्ची गे,
भोल़े - भाल़े  भट्टी  जी ।

  ✍️  नवीन हलदूणवी

Monday 6 April 2020

तृतीय विश्व युद्ध

विकास के पहिए 
शहरों की ढेर सारी आबादी को 
वापिस छोड़ आए हैं गांव
ये कहकर, 
कि यही है सबसे सुरक्षित ठिकाना 
अनिश्चितकाल के लिए गांव की प्रतिष्ठा में 
लग गए हैं चार चांद! 
जब, एक वायरस 
लील रहा है कई जिंदगियों को 
ऐसे दौर में नहीं हैं हम अकेले 
आज हमें, 
धन्यवादी होना चाहिए जुकरबर्ग का, 
खाकी और सभी सफेद वर्दी धारकों का। 

कोरोना अकेला होता तो शायद 
लड़ाई आर-पार की होती 
मगर, इस वक्त 
धर्म और संप्रदाय जैसे वायरस भी 
कर चुके हैं 
कोरोना के साथ संधि 
और ऐसे में तैयार हो रही है 
मानव बमों की एक बड़ी खेप। 

इस वक्त सख्त जरूरत है 
दहलीज़ के अंदर रहने की 
ताकि बचाया जा सके 
आदम जात का अस्तित्व!! 
इतिहास में ये समय लिखा जाना चाहिए 
तृतीय विश्व युद्ध के रुप में 
किंतु, ऐसा युद्ध 
जिसमें प्रकृति को मिली है 
ढेर सारी करुणा, प्रेम और 
एक नूतन आरंभ का बिंदु। 


मानव के इस पुर्नजागरण के बाद
कविता भी लेगी 
नई सोच के साथ नई सांसे
परंतु, भविष्य में 
मानव के साथ-साथ 
गांवों को भी है 
शहर में बदल जाने का खतरा। 

✍️ दीपक भारद्वाज