Monday, 27 April 2020

पिता

पिता सचमुच थे तुम सारी दुनिया में अनोखे निराले।
सामने होते थे लगता था तुम हो सारी खुशियां देनेवाले।।

अंगुली पकड़ चलाना दिल के कोने में है मिठ्ठा अहसास। 
दौड़ते गिरना स्वयं न उठाना स्वतः उठे थी दिले तलाश।। 

जग पथरीले को जीतने के लिए पिता का दिल था कठोर होना। 
याद आता है खराब वरताव पंरतु अब लगता है  सुहाना।।

जनक का हृदय कितना दयालु व होता है कितना धनवान। 
अच्छाई याद आती है उनकी जब हो जाता है उनका बिछुड़ना।। 

बच्चों के निर्माण के लिए दिन रात कितना तपता  पापा ।
निर्माण  मजबूत बनें ऐसा अहसान करता जाये पापा।।

✍️ हीरा सिंह कौशल 






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