नटनी अब भी आती है
संधि काल के इस मौसम में
जब सभी नदियाँ
शरद पूर्णिमा की रात
अपना सारा क्रोध समेट कर
पर्वत पिता से मिलने
नंगे पाँव भाग रही हैं
अकेली शापित गिरि नदी
सिरमौर रियासत के पहाड़ों में
भीतर ही भीतर रिस रही है और
अपने क्रोध से लील रही है
पर्यावरण की नर्म-नर्म सांसें
नटनी अब भी आती है बार-बार
सिरमौरियों के जागते सपनों में
अब भी लेती है वह अंगड़ाई
पोका की धार और सिरमौरी ताल में
कभी-कभी गिरि नदी के किनारे बैठकर
सूखाती है वह अपने गीले बाल
फिर पलटती है अपनी स्मृति में
इतिहास के कुछ काले पन्ने
पहुँचती है उन पृष्ठों की कालिख तक
जिसमें दर्ज थीं उस अबला की मौत
वह आने-जाने वाले राहगीरों से पूछती है अक्सर
अपने बच्चों के बारे में
उनके आशियाने और ठिकानों के बारे में
फिर एकाएक वह सिसक सिसककर रोती है
बहुत देर तक नदी के किनारे
नदी की तलहटी से सुनी जा सकती है
उस अबला की सम्पूर्ण व्यथा
नदी उसकी सुख-दुःख की साथी ही नहीं
उसकी कालजयी सहेली भी है
जब राजा के फरमान पर वज़ीर ने
काट डाली थी उसके जीवन की रस्सी
उफनते हुए नदी में डूबने से पहले
उसने आह भरे स्वर में कहा था-
‘आर टोका पार पोका…..
डूब मरो सिरमौरो रे लोका ’1*
राजा की नियति के खोट की
नटनी के पाप मृत्यु की
नदी चश्मदीद गवाह थी
सिरमौरियों के जागते सपनों में
नटनी अक्सर दुहराती है अपनी वेदना
नदी के किनारे रस्सी के बिखरे हुए रेशों को
जोड़ते हुये करती है लम्बा बयान कि
जिस राज्य में कला का जीवन नहीं है
उस राज्य के जीवन में कोई कला नहीं है
और जहां राजा की नीति में नियति नहीं है
वहां राज्य में समरसता और समृद्धि नहीं है
शापित स्वर में बिखरे हुए बालों को संवारते हुए
फटे पुराने चिथड़ों में अपने बदन को छुपाते हुए
लाल सुर्ख आँखों से आग बिखेरते हुए
कंपित स्वर में वह बोली -----
पेट की आग के ख़ातिर मुझे
रस्सी के पार जाना पड़ा और
राजा ने छल से यही आग मुझ से छीन ली
आज भी राजा की नीति नहीं बदली है
मैं अपनी नियति कैसे बदल दूँ ।
1. इधर टोका की पहाड़ी से लेकर उधर पोका की धार के बीच जो सिरमौर का राज्य है वह डूब मरे।
✍️ डॉ० जय चन्द ‘उराड़ुवा’
सहायक प्रोफ़ेसर हिन्दी
राजकीय महाविद्यालय कफोटा
सुन्दर रचना डाॅ. साहब ! यूँ ही कलम की धार बढ़ती रहे ! बेहतरीन !!
ReplyDeleteमार्मिक रचना डॉ शर्मा
ReplyDeleteअति सुंदर रचना डॉक्टर साहब
ReplyDeleteAti sunder jai bhai.....
ReplyDeleteमैं सिरमौर ताल का अस्थायी निवासी हूँ। सिरमौर में हमारा बास है। पर आज तक नटनी वाली घटना का वर्णन किसी ने इतने सुंदर ढंग से नहीं कर था सर्। आपको साधुवाद
ReplyDeleteडॉक्टर साहब सिरमौर के इतिहास का सजीव चित्रण आपके काव्य में संगृहीत है l
ReplyDeleteNice poetry sir G
ReplyDeleteReality
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