सरसुतिया दे संते दा,
सुंदर रूप बसंते दा।
फुलणू फुल्ले धारा जी,
धूणा बुज्झा म्हंते दा।
छैल़ जुआन्नी आई ऐ,
घोड़ा हिणकै बंते दा।
देवगणां जो पूज्जी लै,
मुन्नू बोल्लै पंते दा।
रौल़ा - रप्पा पौआ दा,
ठंडू दे हुण अंते दा।
भारत देस 'नवीने' दा,
सिक्का छैल़ चलंते दा।
✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य-कुंज जसूर (कांगड़ा)
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