Friday, 31 January 2020

कुकरमुतों की तरह खुल रहे स्कूलों द्वारा हो रहा दिशानिर्देशों का उलंघन

हिमाचल प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में प्राइवेट स्कूल कुकरमुतों की तरह खुल रहे हैं ! बजाए सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के अधिकतर लोग प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना पसंद करते हैं ! ऐसा कहा जाता है की प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई बहुत अच्छी होती है लेकिन इसमें कोई सच्चाई नहीं है ! 

आज भी इनफ्रास्ट्रक्चर की कमी होने के बावजूद भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अपने लोहा मनवा रहे हैं ! इसके पीछे सरकारी स्कूलों में प्रशिक्षित स्टाफ का होना है ! सरकारी स्कूलों का प्राइवेट स्कूलों के साथ मुक़ाबला करना तर्कसंगत नहीं है क्यूंकी सारे प्राइवेट स्कूलों में अच्छे नंबर वालों को ही दाखिला मिलता है ! प्राइवेट स्कूल अच्छे बच्चों को लपकने की फिराक में रहते हैं ताकि उनकी मेरिट आने से स्कूल का नाम बना रहे ,जबकि सरकारी स्कूलों में सभी गरीब तबके के बच्चों को सामाजिक दायित्व के अंतर्गत दाखिला दिया जाता है ! 

हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ समय से प्राइवेट स्कूलों में काफी बृद्धि दर्ज़ की गई है ! हिमाचल प्रदेश में भी इन स्कूलों को खोलने के लिए सरकार से अनुमति व हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड या अन्य बोर्डों से मान्यता लेनी पड़ती है ! अगर सही में देखा जाए तो बहुत से प्राइवेट स्कूल ऐसे हैं जो सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरा नहीं उतरते हैं वावजूद इसके वह स्कूल चल रहे हैं ! काफी स्कूलों में बच्चों के बैठने की भी उचित व्यवस्था नहीं है,बच्चों के खेलने के लिए ग्राउंड भी नहीं हैं लेकिन फिर भी इन स्कूलों को मान्यता मिल जाती है ! प्रदेश में चल रहे स्कूलों को यदि देखा जाए तो अधिकतर स्कूलों के पास बच्चों के खेलने के लिए ग्राउंड के लिए उतनी जगह नहीं है जितनी आवश्यक है ! 

बोर्ड के दिशानिर्देशों के अनुसार हर स्कूल में 250 बच्चों पर कम से कम 400 स्कवेयर मीटर का ग्राउंड स्कूल से उचित दूरी पर होना चाहिए ! अधिकतर स्कूलों में यह सुबिधा भी उपलब्ध नहीं है ! स्कूलों के कमरे भी उस साइज़ के नहीं हैं जो हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्धारित किए गए हैं ! शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार प्रत्येक स्कूल के हाज़िरी रजिस्टर पर बच्चों की संख्या के अनुसार प्रत्येक बच्चे के लिए कम से कम आधा स्कवेयर मीटर स्थान होना चाहिए जोकि किसी भी स्कूल में उपलब्ध नहीं होगा ! 

अधिकतर प्राइवेट स्कूल किराए के भवनों में चल रहे हैं यदि अपने भवन हैं भी तो छोटे हैं ! क्लास रूम ज़्यादा बना दिये गए हैं ताकि दिखाया जा सके कि हर क्लास के लिए अलग कमरे की व्यवस्था है  ! जो भवन इन स्कूलों द्वारा किराए पर लिए गए हैं वह स्कूल के हिसाब से नहीं बने हैं ! अत: बोर्ड के मापदंडों का उलंघन हो रहा है ! सबसे बड़ी बात यह है कि जब विभाग का कोई अधिकारी इन स्कूलों के निरीक्षण पर आता है तो क्या वह इन सब बातों पर ध्यान देता है कि स्कूल के पास अपना क्या क्या इनफ्रास्ट्रक्चर है या फिर खानापूर्ति करके कागजों का पेट भर दिया जाता है ! 

इन प्राइवेट स्कूलों में से लगभग सभी स्कूलों में सहशिक्षा है लेकिन सबसे बड़ी समस्या लड़कों व लड़कियों के टॉइलेट की है ! लगभग सभी स्कूलों में टॉइलेट छात्रों की संख्या के हिसाब से कम हैं ! विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 25 लड़कियों के लिए व 30 लड़कों के लिए एक टॉइलेट होना चाहिए ! प्राईवेट स्कूलों की तो बात ही क्या यहाँ सरकारी स्कूलों में भी टॉइलेट की संख्या बच्चों के हिसाब से कम है ! सभी स्कूलों में फायर सेफटि के लिए भी कोई कारगर कदम नहीं उठाए हैं जिससे यदि कोई आग की घटना हो जाती है तो बच्चों को कैसे बचाया जाए ! 

यह स्कूल प्रतिवर्ष अपनी फीस बढ़ा कर बच्चों के अविभावकों पर बोझ डाल देते है लेकिन सरकार इस मामले मे कुछ भी नहीं करती है ! दिल्ली सरकार द्वारा इन प्राइवेट स्कूलों द्वारा बढाई जा रही फीस पर अंकुश लगाया है तथा बढ़ी हुई फीस अविभावकों को वापिस भी करवाई गई है ! हिमाचल सरकार को भी दिल्ली सरकार का इस मामले में अनुसरण करना चाहिए ! सरकार को इन स्कूलों का ऑडिट करवाना चाहिए तथा देखना चाहिए कि इतनी अधिक फीस होने के बावजूद इन स्कूलों में इनफ्रास्ट्रक्चर की कमी क्यूँ है ? इनमे कार्यरत सभी अध्यापकों का अकेडेमिक रेकॉर्ड, अध्यापकों को कितना वेतन दिया जा रहा है , बिल्डिंग फ़ंड के नाम पर कितना पैसा बटोरा जा रहा है,यह सब जांच का विषय है। 

बच्चों के अविभावक तो एक मोहरा बन गए हैं क्यूंकी उन्हें तो अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर पढाना है और इन स्कूलों की मनमानी के आगे वे वेवस नज़र आते हैं ! सरकार को चाहिए की प्राइवेट स्कूलों की फीस पर भी एक पॉलिसी बनाई जाए जिसमें सभी स्कूलों के लिए सुविधाओं के हिसाब से एक जैसा फीस का ढांचा बनाया जाए ,स्कूल बसों के लिए भी नियम बनाए जाएँ जिनमे यह साफ हो कि बच्चों से प्रति किलोमीटर कितना पैसा लिया जाना चाहिए ! इन स्कूलों में अविभावकों द्वारा बच्चों को लाने ले जाने के लिए जो छोटी गाडियाँ लगाई गई हैं उनमे बच्चों को ठूंस ठूंस कर भरा जाता है जो इन बच्चों के साथ ज्यादती है ! इस पर भी अंकुश लगाने की आवश्यकता है तथा पुलिस को अपनी जिम्मेवारी निभाते हुये जहां पर नियमों का उलंघन करके क्षमता से अधिक बच्चों को गाड़ियों में ठुँसा जा रहा हो,तुरंत आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए ! 

स्कूल के कमरों व ग्राउंड के लिए बनाए गए नियमों का कड़ाई से पालन होना चाहिए तथा नियमों की अनुपलना ना करने वाले स्कूलों की मान्यता रद्द कर दी जानी चाहिए ! जिस तरह से सरकारी स्कूलों में गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा का प्राब्धान किया गया है उसी तरह इन स्कूलों को भी मान्यता देते समय कुल दाखिले का कुछ प्रतिशत गरीब बच्चों के आरक्षित रखने पर ही मान्यता देनी चाहिए ! सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राइवेट स्कूलों में केवल अमीर या अच्छे नंबरों में पास हुये बच्चों को ही दाखिला ना मिले बल्कि सभी बच्चों को दाखिला मिल सके ! लोगों का मानना है कि यदि सरकार बजाए नए स्कूल खोलने के ,वर्तमान सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता व अच्छे इनफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे तो सरकारी स्कूल निजी स्कूलों से कहीं बेहतर कार्य कर सकते हैं। 

✍️ रविंदर कुमार शर्मा
पूर्व निदेशक (यूको आर्सेटी बिलासपुर)
नजदीक डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल 
गाँव व डाकघर घुमारवीं,
जिला बिलासपुर (हि.प्र) 174021
मोबाइल 9418093882, 7018853800



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