Friday 31 January 2020

कुकरमुतों की तरह खुल रहे स्कूलों द्वारा हो रहा दिशानिर्देशों का उलंघन

हिमाचल प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में प्राइवेट स्कूल कुकरमुतों की तरह खुल रहे हैं ! बजाए सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के अधिकतर लोग प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना पसंद करते हैं ! ऐसा कहा जाता है की प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई बहुत अच्छी होती है लेकिन इसमें कोई सच्चाई नहीं है ! 

आज भी इनफ्रास्ट्रक्चर की कमी होने के बावजूद भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अपने लोहा मनवा रहे हैं ! इसके पीछे सरकारी स्कूलों में प्रशिक्षित स्टाफ का होना है ! सरकारी स्कूलों का प्राइवेट स्कूलों के साथ मुक़ाबला करना तर्कसंगत नहीं है क्यूंकी सारे प्राइवेट स्कूलों में अच्छे नंबर वालों को ही दाखिला मिलता है ! प्राइवेट स्कूल अच्छे बच्चों को लपकने की फिराक में रहते हैं ताकि उनकी मेरिट आने से स्कूल का नाम बना रहे ,जबकि सरकारी स्कूलों में सभी गरीब तबके के बच्चों को सामाजिक दायित्व के अंतर्गत दाखिला दिया जाता है ! 

हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ समय से प्राइवेट स्कूलों में काफी बृद्धि दर्ज़ की गई है ! हिमाचल प्रदेश में भी इन स्कूलों को खोलने के लिए सरकार से अनुमति व हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड या अन्य बोर्डों से मान्यता लेनी पड़ती है ! अगर सही में देखा जाए तो बहुत से प्राइवेट स्कूल ऐसे हैं जो सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरा नहीं उतरते हैं वावजूद इसके वह स्कूल चल रहे हैं ! काफी स्कूलों में बच्चों के बैठने की भी उचित व्यवस्था नहीं है,बच्चों के खेलने के लिए ग्राउंड भी नहीं हैं लेकिन फिर भी इन स्कूलों को मान्यता मिल जाती है ! प्रदेश में चल रहे स्कूलों को यदि देखा जाए तो अधिकतर स्कूलों के पास बच्चों के खेलने के लिए ग्राउंड के लिए उतनी जगह नहीं है जितनी आवश्यक है ! 

बोर्ड के दिशानिर्देशों के अनुसार हर स्कूल में 250 बच्चों पर कम से कम 400 स्कवेयर मीटर का ग्राउंड स्कूल से उचित दूरी पर होना चाहिए ! अधिकतर स्कूलों में यह सुबिधा भी उपलब्ध नहीं है ! स्कूलों के कमरे भी उस साइज़ के नहीं हैं जो हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्धारित किए गए हैं ! शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार प्रत्येक स्कूल के हाज़िरी रजिस्टर पर बच्चों की संख्या के अनुसार प्रत्येक बच्चे के लिए कम से कम आधा स्कवेयर मीटर स्थान होना चाहिए जोकि किसी भी स्कूल में उपलब्ध नहीं होगा ! 

अधिकतर प्राइवेट स्कूल किराए के भवनों में चल रहे हैं यदि अपने भवन हैं भी तो छोटे हैं ! क्लास रूम ज़्यादा बना दिये गए हैं ताकि दिखाया जा सके कि हर क्लास के लिए अलग कमरे की व्यवस्था है  ! जो भवन इन स्कूलों द्वारा किराए पर लिए गए हैं वह स्कूल के हिसाब से नहीं बने हैं ! अत: बोर्ड के मापदंडों का उलंघन हो रहा है ! सबसे बड़ी बात यह है कि जब विभाग का कोई अधिकारी इन स्कूलों के निरीक्षण पर आता है तो क्या वह इन सब बातों पर ध्यान देता है कि स्कूल के पास अपना क्या क्या इनफ्रास्ट्रक्चर है या फिर खानापूर्ति करके कागजों का पेट भर दिया जाता है ! 

इन प्राइवेट स्कूलों में से लगभग सभी स्कूलों में सहशिक्षा है लेकिन सबसे बड़ी समस्या लड़कों व लड़कियों के टॉइलेट की है ! लगभग सभी स्कूलों में टॉइलेट छात्रों की संख्या के हिसाब से कम हैं ! विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 25 लड़कियों के लिए व 30 लड़कों के लिए एक टॉइलेट होना चाहिए ! प्राईवेट स्कूलों की तो बात ही क्या यहाँ सरकारी स्कूलों में भी टॉइलेट की संख्या बच्चों के हिसाब से कम है ! सभी स्कूलों में फायर सेफटि के लिए भी कोई कारगर कदम नहीं उठाए हैं जिससे यदि कोई आग की घटना हो जाती है तो बच्चों को कैसे बचाया जाए ! 

यह स्कूल प्रतिवर्ष अपनी फीस बढ़ा कर बच्चों के अविभावकों पर बोझ डाल देते है लेकिन सरकार इस मामले मे कुछ भी नहीं करती है ! दिल्ली सरकार द्वारा इन प्राइवेट स्कूलों द्वारा बढाई जा रही फीस पर अंकुश लगाया है तथा बढ़ी हुई फीस अविभावकों को वापिस भी करवाई गई है ! हिमाचल सरकार को भी दिल्ली सरकार का इस मामले में अनुसरण करना चाहिए ! सरकार को इन स्कूलों का ऑडिट करवाना चाहिए तथा देखना चाहिए कि इतनी अधिक फीस होने के बावजूद इन स्कूलों में इनफ्रास्ट्रक्चर की कमी क्यूँ है ? इनमे कार्यरत सभी अध्यापकों का अकेडेमिक रेकॉर्ड, अध्यापकों को कितना वेतन दिया जा रहा है , बिल्डिंग फ़ंड के नाम पर कितना पैसा बटोरा जा रहा है,यह सब जांच का विषय है। 

बच्चों के अविभावक तो एक मोहरा बन गए हैं क्यूंकी उन्हें तो अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर पढाना है और इन स्कूलों की मनमानी के आगे वे वेवस नज़र आते हैं ! सरकार को चाहिए की प्राइवेट स्कूलों की फीस पर भी एक पॉलिसी बनाई जाए जिसमें सभी स्कूलों के लिए सुविधाओं के हिसाब से एक जैसा फीस का ढांचा बनाया जाए ,स्कूल बसों के लिए भी नियम बनाए जाएँ जिनमे यह साफ हो कि बच्चों से प्रति किलोमीटर कितना पैसा लिया जाना चाहिए ! इन स्कूलों में अविभावकों द्वारा बच्चों को लाने ले जाने के लिए जो छोटी गाडियाँ लगाई गई हैं उनमे बच्चों को ठूंस ठूंस कर भरा जाता है जो इन बच्चों के साथ ज्यादती है ! इस पर भी अंकुश लगाने की आवश्यकता है तथा पुलिस को अपनी जिम्मेवारी निभाते हुये जहां पर नियमों का उलंघन करके क्षमता से अधिक बच्चों को गाड़ियों में ठुँसा जा रहा हो,तुरंत आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए ! 

स्कूल के कमरों व ग्राउंड के लिए बनाए गए नियमों का कड़ाई से पालन होना चाहिए तथा नियमों की अनुपलना ना करने वाले स्कूलों की मान्यता रद्द कर दी जानी चाहिए ! जिस तरह से सरकारी स्कूलों में गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा का प्राब्धान किया गया है उसी तरह इन स्कूलों को भी मान्यता देते समय कुल दाखिले का कुछ प्रतिशत गरीब बच्चों के आरक्षित रखने पर ही मान्यता देनी चाहिए ! सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राइवेट स्कूलों में केवल अमीर या अच्छे नंबरों में पास हुये बच्चों को ही दाखिला ना मिले बल्कि सभी बच्चों को दाखिला मिल सके ! लोगों का मानना है कि यदि सरकार बजाए नए स्कूल खोलने के ,वर्तमान सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता व अच्छे इनफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे तो सरकारी स्कूल निजी स्कूलों से कहीं बेहतर कार्य कर सकते हैं। 

✍️ रविंदर कुमार शर्मा
पूर्व निदेशक (यूको आर्सेटी बिलासपुर)
नजदीक डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल 
गाँव व डाकघर घुमारवीं,
जिला बिलासपुर (हि.प्र) 174021
मोबाइल 9418093882, 7018853800



दो पुष्प

वसंत आगमन पर 
कुसुम पल्लवित पुष्प खिले 
पावन दिन में 
धरा पर दो पुष्प खिले 

वो पुष्प सुवासित 
ज्ञान सुगंधित महके
एक नभ का प्रकाश जयशंकर 
तो दूजा धरा का मान निराला हुए

अनामिका, परिमल, गीतिका और  अणिमा 
निरालाजी की अविरल रचना हुई 
कानन कुसुम, झरना, आंसू और कामायनी 
जयशंकरजी ने अवर्णिय धाराएँ बहाई

✍️ किशोर कुमार कर्ण 
पटना, बिहार। 

भूल गई

भूल गई कविताई मुझको,
जब से तुम से मेल हुआ।

दुनिया में हैं बहुत झमेले,
हर पथ पर मैं फेल हुआ।

गद्दारों   ने   शोर   मचाया,
जीवन - यापन जेल हुआ।

भारत के इस भू-मंडल पर,
जब  भी  ठेल्लमठेल  हुआ।

होता  रहता  धूम -धड़ाका,
घाटी  अन्दर   खेल  हुआ।

खूब 'नवीन' धरा पर पिटता,
संस्कारों   का  तेल   हुआ।

✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

प्याज़ कने टमाटर थे दो भाई

प्याज़ कने टमाटर थे दो भाई

  
✍️ रविन्द्र कुमार शर्मा

सर्वश्रेष्ठ लेखन पुरस्कार - जनवरी 2020

जनवरी 2020 में सर्वश्रेष्ठ लेखन के लिए डाॅ. सुरेंद्र शर्मा को सर्वश्रेष्ठ लेखक - जनवरी 2020 का सम्मान प्रदान करते हुए हम गौरवान्वित है। हम आपके स्वस्थ जीवन और उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं। 


Hills Talks
प्रतिमाह उत्कृष्ट सृजन एंव रचनात्मक योगदान के लिए सर्वश्रेष्ठ लेखक को सम्मान प्रदान करेगा। सर्वश्रेष्ठ लेखक की घोषणा प्रत्येक माह की आखिरी तारीख को होगी। 

सभी लेखकों से विनम्र निवेदन है कि फरवरी-2020 के लिए आपके लेख, कविता, लघुकथा, समाचार की प्रतिक्षा रहेगी। सम्पर्क करें :-




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खुद में इतिहास समेटे हुए हैं प्राचीन श्री देई जी साहिबा मंदिर पांवटा साहिब

गुरु की नगरी पांवटा साहिब में यमुना नदी के तट पर प्राचीन श्री देई जी साहिबा रघुनाथ मंदिर है। यह ऐतिहासिक व प्राचीन मंदिर लगभग 125 वर्षों का अपना इतिहास संजोए हुए है। कहा जाता है कि श्री देई जी साहिबा  मंदिर का निर्माण 21 फरवरी 1889 ई0 को सिरमौर रियासत काल में रानी साहिबा कांगडा श्री देई जी साहिबा ने अपने भाई महाराजा शमशेर प्रकाश बहादुर जीसीएसआई की मदद से अपने पति व लम्बागांव (कांगडा) के राजा प्रताप चन्द बहादुर की याद में बनवाया था। यह रघुनाथ मंदिर महाराजा सिरमौर श्री शमशेर प्रकाश बहादुर द्वारा उनकी बहन के अनुरोध पर बनवाया था। राजकुमारी सिरमौर  जिसे प्यार व आदर से देई जी साहिबा पुकारा जाता था की शादी लम्बागांव (कांगडा) के राजा प्रताप चन्द बहादुर से हुई थी। परन्तु दुर्भाग्यवश देई जी साहिबा छोटी आयु में ही विधवा हो गई। वापिस सिरमौर आ गई थी।

महाराजा सिरमौर ने इस मंदिर के साथ सराय का निर्माण भी करवाया था। मंदिर की व्यवस्था चलाने हेतू इसके साथ लगते तीन गांव जिनकी कुल भूमि 2400 बिघा थी। जो मंदिर को दान स्वरुप दे दी थी। हालांकि, अब ये भूमि अतिक्रमण से काफी कम रह गई है। कुछ हाई कोर्ट के आदेश के बाद कब्जे हटाये भी गए हैं। मंदिर की दिवारों पर कांगड़ा की पेंटिग भी रही है । रघुनाथ मंदिर के साथ ही बजरंगबली श्री हनुमान जी तथा शिवजी के छोटे मंदिर भी स्थापित किए गए हैं। 

यह मंदिर ख़ुद में ही इतिहास समेटे हुए हैं प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर श्री देई जी साहिबा मंदिर पांवटा साहिब। मंदिर की दिवारों पर कांगड़ा शैली पेंटिग का अधिकतर हिस्सा अब तक का इतिहास बन चुका है। रियासत काल में बने इस मंदिर में भगवान श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण जी की मूर्तियां स्थापित है। पवित्र यमुना नदी व उत्तराखंड राज्य प्रवेश द्वार पर बना है यह मंदिर । गुरु की नगरी पांवटा साहिब में यह मंदिर भी धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से अपना विशेष स्थान रखता है।  प्राचीन मन्दिर हिमाचल व उतराखण्ड को जोड़ने वाले यमुना पुल के साथ ही बना हुआ है। इस मंदिर के प्रांगण से यमुना नदी व आसपास का विहंगम दृष्य नज़र आता है। यहां आकर शहर की भागदौड़ भरी जिन्दगी से एक शान्ति का अनुभव भी होता है। इस मंदिर में पूजा पाठ के अलावा समय-2 पर धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ व भण्डारे आदि का आयोजन भी होते रहते है। इस मंदिर की भूमि पर बेहतर पार्क बनाने की योजना भी प्रस्तावित है। 

इस श्री देई जी साहिबा मंदिर की दिवारों पर कांगड़ा पेंटिग भी बनाई गई । जो अब काफी पुरानी हो चुकी है। कुछ तो खराब भी हो गई थी। जो मरम्मत कार्य के दौरान ये कह कर की रि-स्टोर होगी,कह कर पुराना इतिहास हो बन गई। केवल कुछ कही भाग अब शेष बच पाया है। इस मंदिर के साथ ही एक यज्ञशाला भी बनवाई गई । जहां समय-समय पर यज्ञ भी किए जाते रहे हैं। साथ ही यमुना नदी के तट पर पुजारीघाट भी बना था। इस पुजारीघाट में एक प्राकृतिक जल स्त्रोत भी रहा।। जहां पर मंदिर के पुजारी रियासत काल से ही पूजा अर्चना से पहले स्नान करते रहे हैं।सन 1989-90 में  मंदिर रखरखाव सरकार ने अपने अधीन लिया था । वर्ष 1989-90 में  मंदिर रखरखाव सरकार ने अपने अधीन ले लिया था। जिसमें एक न्यास गठित किया गया है। इस न्यास के आयुक्त, उपायुक्त सिरमौर, सह आयुक्त, एसडीएम पांवटा व मंदिर अधिकारी तहसीलदार पांवटा साहिब स्थाई नियुक्त किए गए हैं। इस न्यास में कुछ सरकारी व गैर सरकारी सदस्य भी 5-5 साल के लिए  नियुक्त किए जाते रहे हैं।

✍ सुरेश तोमर 
तहसील-कमरउ, जिला-सिरमौर, हि.प्र.
मोबाइल न.- +91 85809 15238
ईमेल आईडी - stsuresh322@gmail.com


अपना-अपना राष्ट्रवाद

इन दिनो नवभारत का राष्ट्रवाद चरम पर है  | राष्ट्रवाद का पोधा जो  स्वतन्त्रता सेनानियो ने , ओर उस से पूर्व मे विदेशी आक्रांताओ से लड़ते हुए इस भारतवर्ष की पुण्य भूमि पर जन्मे अनेक वीर सपूतो ने रोपा था ,अब खूब फल फूल रहा है | वह अब एक छोटा पोधा न रह कर विकराल बरगद स्वरूप काया धारण कर  चुका है |
विकरालता भी ऐसी की पेड़ की असंख्य शाखा अपने आप मे एक पेड़ है | और  उन शाखाओ  पर तरह -तरह के उल्लू  अपने घोसले बनाए बेठे है , उन घोसलों मे बेठ कर  नित्ये प्रति राष्ट्रवाद -राष्ट्रवाद की चहचाहट से लोगो को आतंकित करते  रहते  है | कुछ राहगीरो से तो आते जाते वो  पूछ ही लेते हे की तुम राष्ट्रवादी हो या नहीं ? , अन्यथा तुम पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया  जा सकता है  | आम आदमी बेचारा सहमा- सहमा हामी भरता है | परंतु बाद मे वह  सोंचता हे कि,  आखिर  ये राष्ट्रवाद  बला क्या है ? , अब आम आदमी को रोजी रोटी कमाने से फुर्सत मिले तो जान पाये कि राष्ट्रवाद क्या है  , फिर भी जब  सुना सुनाया राष्ट्रवाद उसे थोड़ा समझ आया  तो समस्या ओर विकट होती गई , उसने पाया कि विभिन्न शाख पर बेठे राष्ट्रवादी उल्लू अलग- अलग  राष्ट्रवाद अलापते है | आम आदमी बेचारा  कोन सा राष्ट्रवाद चुने ,कोन सा अच्छा  है, कोन सा सच्चा  है ,आखिर कोन से राष्ट्रवाद को वह स्वयम मे आत्मसात करे | ये सब प्रश्न उसके लिए बने रहते है |
दिन भर कि दोड़ धूप से थोड़ा समय शाम को जब  निकलता हे तो TV के सामने बेठ  कर देश दुनिया कि खबरों को जानने कि जिज्ञासा होती है , परंतु चेनलों पर भी वही राष्ट्रवाद का ज्ञान पेला जाता है |
अब आम आदमी जाये तो जाये कहा ? क्योंकि इन दिनो  राष्ट्रवाद की  स्थिति ओर भी विकराल रूप धारण कर चुकी है | दरअसल सतापक्ष का राष्ट्रवाद विपक्ष को हजम नहीं हो रहा | विपक्ष कि शाखा पर बेठे सभी दलो  का माननना हे कि सतापक्ष का राष्ट्रवाद हमारे राष्ट्रवाद की जड़ो को खोकला कर रहा | इसलिए हम इसका विरोध करते है | और  विरोध भी ऐसा की हम आमजन का जीना हराम कर देंगे ,फिर हमे हक हे कि हम सार्वजनिक संपति को जला कर राख़ कर सकते हे, सविधान हमे लोगो की गाड़िया, बसे, रिक्शा आदि तोड़ने की इजाजत देता है,  और  सरकारी संस्थानो मे भी तोड़ फोड़ कर सकते है ,  इन सब प्रयासो से ही राष्ट्रवाद  जीवित रह सकता है| और  राष्ट्रवाद बचाने के लिए उन लोगो की जान ही क्यू न चली जाये जिन्हे मालूम हि  न हो की राष्ट्रवाद क्या है , तो जाये उन्हे फर्क नहीं पड़ता , पर राष्ट्रवाद जीवित रहना अति आवश्यक है | आम आदमी बेचारा करे तो क्या करे , उसके लिए राष्ट्रवाद गले की फास बन कर रह गया है | कभी गंभीरता से विचार करता है, तो पाता है, ये राष्ट्रवाद शब्द  आया कहा से  है और  इसकी क्या आवश्यकता आन पड़ी ?  यहाँ  पहले से ही एक शब्द देशभक्ति मोजूद था, अब इन सब विचारो मे आम आदमी फिर चक्कर खाता है |फिर विचार करता  है कि, देशभक्ति ओर राष्ट्रवाद एक ही खेत मे उगाई फसल  है , परंतु लोग इसे अपनी -अपनी जरूरत अनुसार काटते है | इस तरह  तथाकथित राष्ट्रवादी नेता आम जन के कंधो पर पाँव  धर कर ऊंचाई नापने के लिए आमलोगों को बहलाते है , गुमराह करते है | फिर चाहे वह हिन्दू मुस्लिम करे, भारत तेरे टुकड़े हो  करे, राष्ट्र्गान गाने मे शर्म महसूस करे , चाहे कोई भी देश विरोधी गतिविधि करनी पड़े |  अंत मे थोड़ा शास्त्रो मे  जो पड़ा लिखा ओर सुना था ध्यान आया, तभी  जाकर कहीं  थोड़ा राष्टवाद समझ आया , आम आदमी के लिए राष्ट्रवाद नित्य कर्म समाज के प्रति कर्तव्य निर्वाहन ओर लंका विजय पर श्री राम द्वारा लक्षमन को समझाया ही उचित राष्ट्रवाद है , जिसमे उन्होने कहा था की लंका विजय किसी भू भाग पर अधिपत्य के लिए नहीं बल्कि अधर्म का नाश धर्म  के मार्ग पर चल कर करना है  , इसलिए हमे सोने की लंका का लोभ नहीं है , क्योंकि                     जननी जन्मभूमि च: स्वर्गाद्पि गरियसी ,                                                                                                                         अर्थात जननी और  जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है  इसलिए जन्मभूमि के प्रति पूर्ण समर्पण सच्चा राष्ट्रवाद है | जय हिन्द | जय माँ भारती |

✍️ गोविंद ठाकुर 




तेरे मेरे बीच

तेरे मेरे बीच जो है, 
छिपा कर रखा है।
अब की बार अपने इश्क़ को,
सब से बचा कर रखा है। 

तेरी हर याद को सम्भाल कर रख दिया 
संदूक में,
बिन इजाज़त ना खोले कोई,
ये बता कर रखा है।

तेरे आने पर तुझको, मेरा गले लगाना,
वाजिद है,
ना देना कोई ताना, 
ये समझा कर रखा है।

तेरा ज़िक्र जब होगा, मेरे जज़्बात बन जाएँगे 
शायरी,
वाह वाह से महफ़िल को 
सजा कर रखा है।

यूँही कोई ना तुझे बना ले अपना,
मेरा जो तुझ पर हक़ है,
जता कर रखा है।

तेरे मेरे बीच जो है, 
छिपा कर रखा है।
अब की बार अपने इश्क़ को 
बचा कर रखा है । 

✍ सिलकिना मनकोटिया
जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश


भारती के लाल

वतन परस्त थे, वतन पे जो फ़िदा हुए।
बस चल दिए यूँ चल दिए, बिन अलविदा कहे।।
इक लौ जो दिल में थी, धधक रही है आज भी।
है अक्स उन्ही का, जो घुल रहा फ़िजा में भी।।

इन वीरो की खुश्बू से, महकता चमन मेरा।
वो थे वो है, तभी है ये, वतन वतन मेरा।।
आओ करे सलाम, झुक के शान में उनकी।
ये जान भी कुर्बान, राहे-आन में उनकी।।

क्या लोग थे वो लोग, जो वतन पे मिट गए।
माँ की गोद से लिपट के, कफ़न में सिमट गए।।
रोया था देश, ऐसी शहादत को देखकर।
पत्थर भी पिघले, ऐसी इब्बादत को देखकर।।

हो रहे कुरबा, कई जवान आज भी।
पर है कहाँ परवाह, किसी को उनकी जान की।।
हमने किया ही क्या, अभी तक शान में उनकी।
कीमत लगाई पांच लाख, जान की उनकी।।
ये मोल क्या चुकाएंगे, धरती के लाल का।
मान जो रखते हैं, भारती के भाल का।।
इक माँ के दिल का हाल, ना पूछो सवाल से।
के कितना प्यार करती है, वो अपने लाल से।।

इक माँ ही की तो देन है, ये वीर वतन को।
करते है विफल, दुश्मनो के सारे जतन जो।।
नही फ़िक्र जो करते कभी, दिन की ना रात की।
बस आस वो रखते है, तेरे मेरे साथ की।।

करो प्रतिज्ञा आस को, मिटने न देंगे हम।
पग जो बढ़ाये देश तक, रुकने ना देंगे हम।।
शम्मा जलाये रखना, दिल में त्याग के उनकी।
विफल न हो बलिदान,धयान रखना तुम सभी।।

इस देश की आभा को, कम ना होने देंगे हम।
जो खेले माँ की आबरू से, करदे उसका हम दमन।।
करू बखान देश का, जितना भी होगा काम।
इस देश को शत-शत नमन, हृदय से वन्दनम।। 

✍ पारस चौहान 
ज़िला सिरमौर 


पंडित फ़ुला राम जी के जीवन की एक छोटी सी झलक

पंडित फ़ुला राम बड़े कठोर और निर्दयी स्वभाव के थे!  जात-पात, उन्च-नीच का बच्चपन से ही बड़ा सर्वाधिक परहेज़ रखते थे! किसी नीच जाति के व्यक्ति को छुना तो दूर उसकी परछाई पड़ने पर भी दुबारा स्नान करते थे और फ़िर अपने शरीर पर गंगाजल छीड्कते थे ! पूरे ग्राम में कोई भी ऐसा घर नहीं था जिस घर से उन्हें दान-दक्षिणा न मिली हो!

फ़ुला राम के तीन बच्चे थे एक लड़का व दो लड़कियाँ ! बड़ी मुश्किलों  के बाद अपनी लड़कियों का विवाह उच्च कोटि के ब्राह्मणो के साथ राजी खुशी करवा दिया !अब बारी थी अपने लाड्ले बेटे के विवाह की, जिसके लिए वह, सुन्दर, सुशील, धनी व गुणवान बहू ढूढ रहे थे! अब भला कौन संतान माँ-बाप की इच्छा से विवाह करता है! वह धनी बहू तो न ला सका किंतु गुणवान व अपनी ही बिरादरी की थी तो वह भी बच्चों की खुशी के साथ खुश थे!

दो वर्ष पश्चात पंडित फ़ुला राम के घर दो जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया एक लड़का व एक लड़की ! फ़ुला राम तो जैसा नाम वैसा स्वभाव फ़ुले हुए से रहते थे अर्थात अकड़ू व घमंडी स्वभाव के थे! घर-आंगन में पोता-पोती के आने से और सीना चौड़ा कर ग्राम में चलते थे!

फ़ुला राम की पोती नटखट व चंचल स्वभाव की थी ! उसकी एक प्रिय सखी थी "गीता" जो उसके दादा को बिल्कुल नहीं भाती थी!बेचारी छोटी जात की जो थी!अपनी पोती को समझाते कि "तुम एक ब्र्हामण कूल में पैदा हूई हो नीची जात के लोगों के साथ खेलना-कूदना, उठना-बैठना तुम्हें शोभा नहीं देता है! "

वह अपनी पोती को उसके साथ बिल्कुल नहीं खेलने देते थे अगर उनके आंगन में भी आती तो "गीता " को फ़ट्कारकर अपने घर  से भगा देते थे! अपनी पोती और गाँव वालों के समक्ष बहुत बार उन्होंने "गीता" व उसके परिवार  का अपमान किया था ! अपनी ऐसी बेईजज्ती को सहन न कर गीता व उसका परिवार गाँव छोड़ शहर में रहने चले गए!

20-25 सालों बाद ,फ़ुला राम अपनी किसी भयानक बिमारी के कारण शहर के अस्पताल में दाखिल थे ! फ़ुला राम जी के ईलाज के लिए वहां एक नर्स थी जो दिन-रात उनकी देखभाल करती थी  ! दवाई देना, इनजेक्शन लगाना, चारों पहर समय-समय पर उन्हें आकर देखना आदि सब काम वह नर्स ही करती थी! कभी -2 तो सेहत का ध्यान न रखते तो जमकर डान्ट लगाती तो फ़ुला राम मुस्कुरा कर कहते कि तुम मेरी पोती जैसी हो "बेटा भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे! " यह सुनकर नर्स थोड़ी भावुक हों उठी मगर कुछ बोली नहीं...! तब उन्होंने पुछा तुम्हारा नाम क्या है बेटा...?  नर्स ने कहा "गीता" पंडित जी ..! आपके गाँव की ही रहने वाली हूँ ! फ़ुला राम यह सुन जो सोच रहे थे यह तो वही जाने!

शाम के समय अचानक फ़ुला राम की तबीयत ख़राब सी होने लगी उनका दम सा घुट रहा था ! फ़ुला राम की एसी स्थिति देख नर्स ने उनके घरवालो को बुलवाया किंतु उस पल उनका बेटा अपने पिता को दवाई लाने बाज़ार गया हुआ था तथा पोता घर से भोजन लाने गया था! फ़ुला राम जीवन की अंतिम साँसे ले रहा था उसका गला सुख रहा था  ! उस समय उनके पास बस नर्स(गीता) बैठी थी ! फ़ुला राम की तबीयत बिगड़ती ही जा रही थी उन्हें सांस लेने में कठिनाई हो रही थी! गीता से उनकी यह स्तिथि देखी न जा रही थी तो उसने पानी ग्लास उठाते हुए अपने हाथों से उन्हें पानी पीला दिया! पानी पीते समय फ़ुला राम की आंखों में  पश्चाताप और गीता के प्रति दिख रहा था! फ़ुला राम के गले से पानी उतरते हुए सुकुन से उन्होंने अपना दम तोड़ दिया! अब यह तो फ़ुला राम ही जाने की उन्हें मुक्ति मिली की नहीं......?

✍ रविता चौहान 
जिला सिरमौर




पराविद्या शास्त्र एंव पाशा

पराविद्या शास्त्र मे सांचा पद्धति अपने आप मे विशेष स्थान रखती है। इस विद्धा मे सच जानने के लिए पाशे का प्रयोग किया जाता है। पाशे मे अंक गणित का सहारा लेकर सत्य तक पहुँचा जा सकता है।

पहले ये पाशा ऊल्लू पक्षी की हड्डी का बनता था। जैसे आप जानते ही है ऊल्लू रात को ही देख सकता है। जिसकी जिंदगी मे दुख ,क्लेश रुपि अंधकार आता था अंधकार विशेषयज्ञ ऊल्लू जी महाराज का सहारा लेकर पाशे से जांच पडताल करके देव, पित्री दोष, क्लेश कलह, दुख दारिद्रय, शत्रु बाधा या प्रारब्ध आदि का समाधान सहज ही मिलता था। 

आधुनिक पाशे का निर्माण किसी विशेष लकडी के टुकडे ने ले ली है। अब ये पाशे पंसारी की दुकानो मे भी उपलब्ध है। पुरातन पाशों की तरह इन पाशों मे सत्य को परखने की कला इतनी प्रबल नहीं है। ये विद्दा धीरे धीरे लुप्त होने के कगार पर है। इसके जानकार बहुत ही कम रह गये है। 

हमारे प्राचीन मंदिरों मे देव परम्परानुसार एक डाऊ होता था जिसको देव शक्तियों द्वारा ये पाशा दिया जाता था और उसको देव कृपा से सिद्ध किया जाता था उसके नियम बहुत ही कठिन होते थे। विरासत मे ये पाशा देवनीति द्वारा किसी सुपात्र को दिया जाता था। आज दिक्षा का अभाव होने से ये पाशा पद्धति लुप्त होने के कगार पर है।
जय देव नीति, जय सनातन धर्म 
जय देव भूमि हिमाचल।

✍️ आचार्य संजीत शर्मा
श्री स्वामी जी ज्योतिष व पराविद्धा अंनुसंधान केन्द्र
कुमारसैन (पाऊची), जिला शिमला,  हि.प्र. 

एक छोटा सा प्रयास समाज के लिए प्रेरणास्रोत

भारत वर्ष में विभिन्न प्रकार के बुद्धिजीवी रहते हैं। इनमें से कई दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं तो कई दूसरों की अन्तर्भावना को समझते हुए उत्थान के कार्य भी करते हैं और उनके नई राह नई दिशा मार्ग को प्रशस्त करते हैं । परंतु ऐसे भी बहुत इंसान हैं तो क्षेत्रवाद के चलते दूसरों की अन्तर्भावना को नजरअंदाज करके उन्हें नीचा दिखाने की सोचते हैं । परंतु वह ये नहीं देखते , न सोचते कि हो सकता है उस इंसान में कोई हुनर हो । जो समाज में आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत हो । 

जाने कहां जा रहा है समाज

एक बार मैं एक सज्जन के साथ दिल्ली की यात्रा पर गया हुआ था । वहाँ पर मेरी भेंट नारायण दत्त जी से हुई कुछ समय में हम दोनों एक दूसरे के लिए अपरिचित से परिचित हो गए थे । बातों ही बातों में उन्होंने जिक्र किया कि समाज में ऐसे वर्ग के लोग भी रहते हैं जो स्वयं तो किसी कार्य में निपुण नहीं होते हैं और दूसरों को भी खरा उतरने नहीं देते । मैंने बीच में टोकते हुए कहा कि आप कहना क्या चाहते हो ? तब उन्होंने कहा कि मैं भी एक साहित्यकार हूँ परन्तु विडम्बना यह है कि मेरा सहयोग कोई भी नहीं कर रहा है । मैं इतिहास के गर्भ में छिपे हुए अनसुलझे रहस्यों पर बेबाक शोध में लगा हूँ । मैंने कहा कि ये तो अच्छी बात है आप भारत देश की संस्कृति व ऐतिहासिक धरोहरों पर विस्तृत शोध कर रहे हैं । तब उन्होंने आगे जो कहा उससे में अवाक रह गया । 

नारायण दत्त जी ने कहा कि मैं अपने द्वारा स्वलिखित खण्डहरों व पुरातन मठ-मन्दिरों की अनकही कहानियों को समस्त समाज के सामने लाना चाहता था परन्तु मेरे इस कार्य में कोई मेरा सहयोग नहीं कर रहा । मीडिया में और विभाग के लिए कई बार पत्र लिखे परन्तु उनका कभी कोई जबाब नहीं आया । किसी बन्धु ने कहा कि आप जिस स्थान में आजकल अन्वेषण कर रहे हैं । आप वहां के स्थानीय अखबारों के माध्यम से अपने किए गए शोध के विषय में लिखो । क्योंकि आप जिस स्थान पर हो आपका विषयी समन्धित शोध भी उस स्थान से प्रकाशित होना चाहिए। 

मैंने कहा कि ये तो क्षेत्रवाद हुआ। भारत देश की छोटी सी जानकारी भी समस्त भारतवर्ष के लिए एक अहम स्थान रखती है । क्योंकि इसमें समस्त राष्ट्र का इतिहास बनता है । बस इसी बीच हमारी चर्चा बन्द हो गयी ।

देश की अखंडता को बनाए रखने के लिए छोटी सोच का त्याग व सबको साथ मे रखना आवश्यक
● जरा सोचो हमने इतिहास से आज तक क्या शिक्षा ली

महाभारत कालीन इतिहास में सबसे अहम पात्र एकलव्य जिसे गुरुद्रोण ने शिक्षा न देकर शायद अपना गौरव समझा । क्योंकि एकलव्य निषादकुल में पले बढ़े हुए थे इसकारण गुरुद्रोण ने   एकलव्य को अपना शिष्य नहीं बनाया । परन्तु गुरुभक्त एकलव्य ने मन-कर्म और वाणी से गुरुद्रोण को अपना गुरु मान लिया था और वन में जाकर किसी एकांत स्थान पर गुरुद्रोण की मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास करते रहे । आगे का वृतांत तो सबको मालूम है कि क्या हुआ था । कहने का भाव है कि जो हुनर और प्रतिभा एकलव्य में थी वह उस समय किसी में दृष्टिगोचर नहीं होती थी । उसी प्रतिभा के ईर्ष्या वश गुरुद्रोण ने दक्षिणा स्वरूप एकलव्य का वह अंगूंठा मांग लिया जिससे बाण अनुसंधान किए जाते थे । यहाँ प्रश्न उत्पन्न होता है कि जब एकलव्य को शिष्य ही स्वीकार नही किया गया था तो किस अधिकार से गुरुद्रोण ने गुरु दक्षिणा ली । सब स्वार्थ के विषय है अंत में मिला क्या कुछ भी तो नहीं । जिस शिष्य को महान बनाने के लिए गुरुद्रोण प्रतिबद्ध थे युद्ध में वही शिष्य (अर्जुन ) उनके सामने खड़े थे । 

मेरा कहने का अर्थ है अगर किसी व्यक्तिविशेष में कोई हुनर है तो उसे समाज के सामने लाने का हर सम्भव प्रयास करना चाहिए न कि उसे दबाना की कोशिश करनी चाहिए । क्योंकि प्रत्येक व्यक्तिविशेष में कोई न कोई हुनर (प्रतिभा) होता है । अतः सबका सम्मान करना चाहिए ।

✍️ राज शर्मा 
आनी, जिला कुल्लू
हिमाचल प्रदेश

शोभला आउटर सिराज मेरा

सभी का अच्छओ,
सभी का बांका आउटर सिराज मेरा ।
ऊंची 2 धारा रा नज़ारा
बीच शोभले बाग बग़ीचे ।
शोभले 2 मांडू इंडे
करा सभीए खातिरदारी ।
हेरना ले इंदि सैकड़ो मंदिरा 
खूबआ लोगु दी इंदी अस्ता ।
बड़े महेनती मेरे आउटर सिरजी
ना डा लोग गलत काम का बस्ता
मेरे सिरजे लोग करा मीठी गोले 
देश प्रदेश का अपण्डो ही नाम
लागा मुखा हमेशा 
प्यारा अपना सिराज ।
शोभले 2 लोगुए घर बनाय
खूब होआ इंदि भाजी सब्जी 
खूब होआ सेउ ।
सभी का अच्छओ,
सभी का बांका आउटर सिराज मेरा ।
खूब निखवी सड़कें इनदी
खूब आनडी लोगउये गाड़ी मोटरें 
खुश रहा इनदे लोग हमेशा 
खूब मनावा मेडे ठेडए
खूब पा लोग ईनदी नाटी ।
सभी का अच्छओ,
सभी का बांका आउटर सिराज मेरा ।

✍️ रवि शर्मा
निरमंड, ज़िला कुल्लू, हि.प्र. 
9418160944

हिंउद आओ लोगुओ हिंउद

सभी लोगु तो हमें हिउदो बड़ो इंतज़ार,
छः महीने पहले हमें कोठो डाओ करी सब ठार ।
कुटी डाओ पिशी डाओ कठो डाओ करी सब ठआर ।
छिड़ियो डाओ लायी ढेर ।
पहले रोये बोल्दै अबे ना होया तेनो हिंउद ,
जैभी आ सो हिंउद टेउय की कसर पूरी ।
सब जोड़े घरा दी हुये बन्द ।
डोगे ढोंन सब हुडवे खुड्डा दी ।
हिंउदा दी सारी धारै टेरहे हुई सपेड़ ।
हिउडा दी त आगियो सहारो
हिउडा दी काढ़े गरम जुडकै ,
जतरै लाय थेतरै थोड़े ।
एंडऐ हाल दी सब बोला 
कबी मुका जो हिंउद ।
तेथका अच्छा तो सो बराड़ ।

✍️ रवि शर्मा 


निरमंड, ज़िला कुल्लू हि.प्र. 
सम्पर्क सूत्र - 9418160944

देश में रोज दीवाली हो

हर बेटी रानी झाँसी हो
हर बेटा बाबा काँशी हो
राम सिंह भी हर-घर हों
प्रेरित जिनसे होते जन हों
मेरे देश में रोज दीवाली हो
न जेब किसी की खाली हो
सब ही अफ़सर सरकारी हों
पर भरी नहीं गद्दारी हो
वीर सुभाष तुझसे विचार हों
सर्वस्व लुटाने सब तैयार हों
विवेकानन्द हर बच्चा हो
हर साधु यहाँ का सच्चा हो
नेता भी लाल बहादुर हो
राजनीति न साजिश हो
नहीं तरक्की कागजी हो
दिखे वही जो धरातल हो
कपट भरे न रिश्ते हों
छोटे न बड़ों से पिसते हों
नशा मुक्त परिवेश यहाँ हो
चिट्टा मिले तो जेल यहाँ हो 
बचपन के सब खेल यहाँ हों
गुल्ली डंडा रेल यहाँ हों
भाषा में न भेद यहाँ हो
गलती तो झट खेद यहाँ हो
प्रभु भारत पुनः चिरैया हो
स्वर्ण पँख गौरेया हो
सारी दुनिया में जय-जय हो
आतंकवाद का न भय हो
कवियों से सज्जित महफिल हो
सरिता कविता की बहती हो
प्रतिभा की आन तिरंगा हो
स्वच्छ भाव मन गंगा हो


✍️ प्रतिभा शर्मा
प्रवक्ता हिन्दी
रा०व०मा०विद्यालय, धनत्थर
जिला बिलासपुर, हि.प्र. 174034

अज्ञेय की अलंकारधर्मिता के नव्य आयाम

मेरे सहृदय मित्र व हिंदी साहित्य के साधक,गहन पाठक, चिंतक, लेखक, कवि,समीक्षक आदि बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. प्रभात कुमार 'प्रभाकर' द्वारा लिखित समीक्षात्मक पुस्तक "अज्ञेय की अलंकारधर्मिता के नव्य आयाम" अनंग प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित होकर हिन्दी साहित्यविदों, साधकों एवं पाठकों के कल कमलों में समर्पित हुई है। इस सृजनात्मक उपलब्धि के लिए सर्वप्रथम डॉ. प्रभात कुमार प्रभाकर जी को हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएं। 


पुस्तक के शीर्षक से ही उसे पढ़ने की इच्छा बलबती रही जो पुस्तक की प्राप्ति के पश्चात उसे पढ़कर ही शांत हो पाई। अज्ञेय के काव्य में निहित अलंकारधर्मिता के विविध आयामों को जितनी सरलता से विश्लेषित किया गया है उससे हर पाठकों का उनके काव्य पर गहनता से चिंतन करने व उसे पढ़ने,समझने की जिज्ञासा बढ़ना स्वभाविक ही है।  डॉ. प्रभात जी ने अपनी पुस्तक में अज्ञेय की काव्य-कला में अलंकारधर्मिता के नव्य आयाम को सूक्ष्मता से विवेचित व उदघाटित किया है। उनकी समीक्षा व विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि अज्ञेय परम्परा के पोषक एवं पक्षधर न होकर भी अलंकारों से पराङ्मुख नहीं थे बल्कि अलंकार्य के अनुरूप अलंकारों की उपयोगिता एवं उसका औचित्य उन्हें अभीष्ट था।

पांच अध्यायों एवं उपसंहार में प्रसृत यह समीक्षात्मक विवेचन, जिसमें अज्ञेय की अलंकारधर्मिता की पृष्ठभूमि, अज्ञेय का अलंकार-विषयक दृष्टिकोण, अज्ञेय के काव्य में शब्दालंकार, अज्ञेय के काव्य में अर्थालंकार, अलंकारधर्मिता के नव्य आयाम आदि अज्ञेय काव्य विषयक चिंतन को वेहद सरलता व सूक्ष्मता से विवेचित और विश्लेषित करने का उपक्रम किया है जो सिद्ध करता है कि अज्ञेय ने अपने काव्य में संवेदनात्मक भावभूमि पर ही अलंकारों का समुचित एवं संतुलित प्रयोग कर उसे संस्कारित किया है। उनके अलंकारिक उन्मेष से आधुनिक हिंदी कविता नए प्रतिमानों के साथ प्रफुल्लित व आलोकित हुई है।

अज्ञेय की साहित्य-सर्जना बहुमुखी एवं विविध आयामी हैं। इनकी प्रतिभा सृष्टि -विधायिनी है। इनकी काव्य- दृष्टि जितनी सूक्ष्म,पैनी,गहरी और अर्थवान है,उनका गद्य उससे भी कहीं  अधिक सशक्त,संश्लिष्ट, चिंतनपरक और अर्थवान है। उन्होंने जिस भी विधा में अपनी लेखनी चलाई,उसी में अपना प्रतिमान स्थापित कर दिया। उनका लोकव्यापी अनुभव ,समाजपेक्ष चिंतन,वृहद ज्ञान, कलात्मक नैपुण्य,क्रांतिधर्मी आचरण,समर्थ नेतृत्व और बहुआयामी व्यक्तित्व उन्हें नई कविता का प्रवर्तक, पुरोधा,संयोजक एवं समीक्षक सिद्ध करता है।  इतिहास चक्र में अज्ञेय जैसा अप्रतिम व्यक्तित्व कभी- कभार आविर्भूत होता है।

अज्ञेय के काव्य पर आधारित डॉ. प्रभात प्रभाकर जी का यह गवेषणात्मक प्रयास न केवल सराहनीय है बल्कि हिन्दी पाठकों का एक बहुत बड़ा वर्ग इससे कृत कृत्य होगा और अज्ञेय काव्य विषयक चिंतन पर शोध के रहे शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक राम बाण सिद्ध होगी ये कहना अतिश्योक्ति न होगी।

इस सफलतम प्रयास के लिए  डॉ. प्रभात कुमार 'प्रभाकर' जी को पुनः  बधाई एवं मंगलकामनाएं । आपकी साहित्य सर्जन धारा निरन्तर यूं ही बहती रहे जिससे हिंदी साहित्य जगत  आलोकित होता रहे, मेरी यही कामना हैं। पुस्तक के सफल प्रकाशन के लिए प्रकाशक की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण रहती है। उनके अथक प्रयासों से ही पुस्तक अपना मूर्त रूप प्राप्त कर पाती है। इस पुस्तक के सफल प्रकाशन के लिए अनंग  प्रकाशन व उनकी पूरी टीम को भी साधुवाद....।

अंत में, अज्ञेय जी  की जीवन मूल्य को उजागर करती एक कविता  "जितना तुम्हारा सच है" की पंक्तियाँ द्रष्टव्य है :-

कहा सागर ने : चुप रहो!
मैं अपनी अबाधता जैसे सहता हूँ,
अपनी मर्यादा तुम सहो।
जिसे बाँध तुम नहीं सकते
उस में अखिन्न मन बहो।
मौन भी अभिव्यंजना है 
जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो।

✍️ डॉ. सुरेन्द्र शर्मा
ग्राम नमाणा, पत्रालय घूण्ड, 
तहसील ठियोग, जिला शिमला 
हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र : 9817101092
                  9418001092

रचनात्मक योगदान के लिए प्रशंसा पत्र

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उत्कृष्ट सृजन एंव रचनात्मक योगदान के लिए सम्मान

Hills Talks में उत्कृष्ट सृजन एंव रचनात्मक योगदान के लिए हिमाचल प्रदेश के साहित्यकारों/लेखकों को प्रशंसा पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया है। 


Hills Talks में उत्कृष्ट सृजन एंव रचनात्मक योगदान के लिए हिमाचल प्रदेश के लेखकों को प्रशंसा पत्र प्रदान करते हुए, हम स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे है। जनवरी 2020 में सम्मानित रचनाकारों/लेखकों में शामिल क़लमकार :-

1. डाॅ सुरेंद्र शर्मा 
2. श्री रोशन जसवाल 
3. श्री नवीन हलदूणवी 
4. श्री ओम प्रकाश शर्मा 
5. श्री धर्म पाल भारद्वाज
6. श्री कुलदीप गर्ग तरुण 
7. श्री दिनेश शर्मा 
8. श्री राहुल 
9. श्रीमती प्रतिभा मैहता 
10. श्रीमती उमा ठाकुर (नधैक) 
11. श्रीमती कल्पना गांगटा 
12. कुo रविता चौहान 
13. कुo अक्षिता
14. श्री सतीश शर्मा 
15. श्री राजेश सारस्वत 
16. श्री दीपक भारद्वाज 
17. श्री सुरेश तोमर
18. श्री पारस चौहान 
19. श्री किरनेश पुंडिर
20. श्रीमती कांता चौहान 
21. श्री मस्त राम शर्मा 
22. श्रीमती प्रतिभा शर्मा 
23. श्री राजीव डोगरा 
24. श्री रवि शर्मा 
25. श्री राज शर्मा 
26. आचार्य संजीत शर्मा 
27. श्री रविन्द्र कुमार शर्मा 
28. श्री किशोर कुमार कर्ण 

Thursday 30 January 2020

झाकड़ी में 09 फरवरी को जनमंच कार्यक्रम

रामपुर बुशैहर के अंतर्गत झाकड़ी में 09 फरवरी, 2020 को जनमंच कार्यक्रम प्रातः 10 बजे आयोजित किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता सामाजिक न्याय व अधिकारिता एवं सहकारिता मंत्री डाॅ. राजीव सैजल करेंगे। 


जनमंच कार्यक्रम में ग्राम पंचायत झाकड़ी, गौरा, सरपारा, दोफदा, रचोली, फांचा, बधाल, लबाना सदाना, ज्यूरी एवं गोपालपुर की आम जनता लाभान्वित होगी। 

किसी भी व्यक्ति विशेष या सामुदायिक समस्या के समाधान एवं अन्य किसी शिकायत के निपटारे के लिए अपना आवेदन उपमंडलाधिकारी (नागरिक) रामपुर व खंड विकास अधिकारी रामपुर के अतिरिक्त संबंधित पंचायत सचिवों के कार्यलय में भी जमा करवाया जा सकता है।

हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी

क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता

जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर

हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब तक बन्दूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी

और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे ! 

✍️ पाश

नौंआं साल

पिछला  छैल़  ठुआल़ीत्ता,
नौंआं  साल  बिहाल़ीत्ता।

धरत उआज्जां कड्ढा दी,
बैह्मी    भूत्त    नकाल़ीत्ता।

होणी   रोज   तरक्की   ऐ ,
फोकट  -  कीड़ू  ताल़ीत्ता।

कदर  बधी  ऐ  गुणियें  दी,
औगुणियें   जो   टाल़ीत्ता।

बोझ  घटी  जा  टैक्सां दा,
नोक्खा   दिय्या   वाल़ीत्ता।

मिलियै  अज्ज  गरीबी दा,
थोबड़   खूब   गुआल़ीत्ता।

झंडा   चुक्की   भारत   दा,
 रूप   'नवीन'   सुआरीत्ता।

✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य-कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा, हिमाचल। 

मैं हूँ पवन बसंत

✍️ कल्पना गांगटा 
ढली, शिमला, हि.प्र.