पंडित फ़ुला राम बड़े कठोर और निर्दयी स्वभाव के थे! जात-पात, उन्च-नीच का बच्चपन से ही बड़ा सर्वाधिक परहेज़ रखते थे! किसी नीच जाति के व्यक्ति को छुना तो दूर उसकी परछाई पड़ने पर भी दुबारा स्नान करते थे और फ़िर अपने शरीर पर गंगाजल छीड्कते थे ! पूरे ग्राम में कोई भी ऐसा घर नहीं था जिस घर से उन्हें दान-दक्षिणा न मिली हो!
फ़ुला राम के तीन बच्चे थे एक लड़का व दो लड़कियाँ ! बड़ी मुश्किलों के बाद अपनी लड़कियों का विवाह उच्च कोटि के ब्राह्मणो के साथ राजी खुशी करवा दिया !अब बारी थी अपने लाड्ले बेटे के विवाह की, जिसके लिए वह, सुन्दर, सुशील, धनी व गुणवान बहू ढूढ रहे थे! अब भला कौन संतान माँ-बाप की इच्छा से विवाह करता है! वह धनी बहू तो न ला सका किंतु गुणवान व अपनी ही बिरादरी की थी तो वह भी बच्चों की खुशी के साथ खुश थे!
दो वर्ष पश्चात पंडित फ़ुला राम के घर दो जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया एक लड़का व एक लड़की ! फ़ुला राम तो जैसा नाम वैसा स्वभाव फ़ुले हुए से रहते थे अर्थात अकड़ू व घमंडी स्वभाव के थे! घर-आंगन में पोता-पोती के आने से और सीना चौड़ा कर ग्राम में चलते थे!
फ़ुला राम की पोती नटखट व चंचल स्वभाव की थी ! उसकी एक प्रिय सखी थी "गीता" जो उसके दादा को बिल्कुल नहीं भाती थी!बेचारी छोटी जात की जो थी!अपनी पोती को समझाते कि "तुम एक ब्र्हामण कूल में पैदा हूई हो नीची जात के लोगों के साथ खेलना-कूदना, उठना-बैठना तुम्हें शोभा नहीं देता है! "
वह अपनी पोती को उसके साथ बिल्कुल नहीं खेलने देते थे अगर उनके आंगन में भी आती तो "गीता " को फ़ट्कारकर अपने घर से भगा देते थे! अपनी पोती और गाँव वालों के समक्ष बहुत बार उन्होंने "गीता" व उसके परिवार का अपमान किया था ! अपनी ऐसी बेईजज्ती को सहन न कर गीता व उसका परिवार गाँव छोड़ शहर में रहने चले गए!
20-25 सालों बाद ,फ़ुला राम अपनी किसी भयानक बिमारी के कारण शहर के अस्पताल में दाखिल थे ! फ़ुला राम जी के ईलाज के लिए वहां एक नर्स थी जो दिन-रात उनकी देखभाल करती थी ! दवाई देना, इनजेक्शन लगाना, चारों पहर समय-समय पर उन्हें आकर देखना आदि सब काम वह नर्स ही करती थी! कभी -2 तो सेहत का ध्यान न रखते तो जमकर डान्ट लगाती तो फ़ुला राम मुस्कुरा कर कहते कि तुम मेरी पोती जैसी हो "बेटा भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे! " यह सुनकर नर्स थोड़ी भावुक हों उठी मगर कुछ बोली नहीं...! तब उन्होंने पुछा तुम्हारा नाम क्या है बेटा...? नर्स ने कहा "गीता" पंडित जी ..! आपके गाँव की ही रहने वाली हूँ ! फ़ुला राम यह सुन जो सोच रहे थे यह तो वही जाने!
शाम के समय अचानक फ़ुला राम की तबीयत ख़राब सी होने लगी उनका दम सा घुट रहा था ! फ़ुला राम की एसी स्थिति देख नर्स ने उनके घरवालो को बुलवाया किंतु उस पल उनका बेटा अपने पिता को दवाई लाने बाज़ार गया हुआ था तथा पोता घर से भोजन लाने गया था! फ़ुला राम जीवन की अंतिम साँसे ले रहा था उसका गला सुख रहा था ! उस समय उनके पास बस नर्स(गीता) बैठी थी ! फ़ुला राम की तबीयत बिगड़ती ही जा रही थी उन्हें सांस लेने में कठिनाई हो रही थी! गीता से उनकी यह स्तिथि देखी न जा रही थी तो उसने पानी ग्लास उठाते हुए अपने हाथों से उन्हें पानी पीला दिया! पानी पीते समय फ़ुला राम की आंखों में पश्चाताप और गीता के प्रति दिख रहा था! फ़ुला राम के गले से पानी उतरते हुए सुकुन से उन्होंने अपना दम तोड़ दिया! अब यह तो फ़ुला राम ही जाने की उन्हें मुक्ति मिली की नहीं......?
✍ रविता चौहान
जिला सिरमौर
फ़ुला राम के तीन बच्चे थे एक लड़का व दो लड़कियाँ ! बड़ी मुश्किलों के बाद अपनी लड़कियों का विवाह उच्च कोटि के ब्राह्मणो के साथ राजी खुशी करवा दिया !अब बारी थी अपने लाड्ले बेटे के विवाह की, जिसके लिए वह, सुन्दर, सुशील, धनी व गुणवान बहू ढूढ रहे थे! अब भला कौन संतान माँ-बाप की इच्छा से विवाह करता है! वह धनी बहू तो न ला सका किंतु गुणवान व अपनी ही बिरादरी की थी तो वह भी बच्चों की खुशी के साथ खुश थे!
दो वर्ष पश्चात पंडित फ़ुला राम के घर दो जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया एक लड़का व एक लड़की ! फ़ुला राम तो जैसा नाम वैसा स्वभाव फ़ुले हुए से रहते थे अर्थात अकड़ू व घमंडी स्वभाव के थे! घर-आंगन में पोता-पोती के आने से और सीना चौड़ा कर ग्राम में चलते थे!
फ़ुला राम की पोती नटखट व चंचल स्वभाव की थी ! उसकी एक प्रिय सखी थी "गीता" जो उसके दादा को बिल्कुल नहीं भाती थी!बेचारी छोटी जात की जो थी!अपनी पोती को समझाते कि "तुम एक ब्र्हामण कूल में पैदा हूई हो नीची जात के लोगों के साथ खेलना-कूदना, उठना-बैठना तुम्हें शोभा नहीं देता है! "
वह अपनी पोती को उसके साथ बिल्कुल नहीं खेलने देते थे अगर उनके आंगन में भी आती तो "गीता " को फ़ट्कारकर अपने घर से भगा देते थे! अपनी पोती और गाँव वालों के समक्ष बहुत बार उन्होंने "गीता" व उसके परिवार का अपमान किया था ! अपनी ऐसी बेईजज्ती को सहन न कर गीता व उसका परिवार गाँव छोड़ शहर में रहने चले गए!
20-25 सालों बाद ,फ़ुला राम अपनी किसी भयानक बिमारी के कारण शहर के अस्पताल में दाखिल थे ! फ़ुला राम जी के ईलाज के लिए वहां एक नर्स थी जो दिन-रात उनकी देखभाल करती थी ! दवाई देना, इनजेक्शन लगाना, चारों पहर समय-समय पर उन्हें आकर देखना आदि सब काम वह नर्स ही करती थी! कभी -2 तो सेहत का ध्यान न रखते तो जमकर डान्ट लगाती तो फ़ुला राम मुस्कुरा कर कहते कि तुम मेरी पोती जैसी हो "बेटा भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे! " यह सुनकर नर्स थोड़ी भावुक हों उठी मगर कुछ बोली नहीं...! तब उन्होंने पुछा तुम्हारा नाम क्या है बेटा...? नर्स ने कहा "गीता" पंडित जी ..! आपके गाँव की ही रहने वाली हूँ ! फ़ुला राम यह सुन जो सोच रहे थे यह तो वही जाने!
शाम के समय अचानक फ़ुला राम की तबीयत ख़राब सी होने लगी उनका दम सा घुट रहा था ! फ़ुला राम की एसी स्थिति देख नर्स ने उनके घरवालो को बुलवाया किंतु उस पल उनका बेटा अपने पिता को दवाई लाने बाज़ार गया हुआ था तथा पोता घर से भोजन लाने गया था! फ़ुला राम जीवन की अंतिम साँसे ले रहा था उसका गला सुख रहा था ! उस समय उनके पास बस नर्स(गीता) बैठी थी ! फ़ुला राम की तबीयत बिगड़ती ही जा रही थी उन्हें सांस लेने में कठिनाई हो रही थी! गीता से उनकी यह स्तिथि देखी न जा रही थी तो उसने पानी ग्लास उठाते हुए अपने हाथों से उन्हें पानी पीला दिया! पानी पीते समय फ़ुला राम की आंखों में पश्चाताप और गीता के प्रति दिख रहा था! फ़ुला राम के गले से पानी उतरते हुए सुकुन से उन्होंने अपना दम तोड़ दिया! अब यह तो फ़ुला राम ही जाने की उन्हें मुक्ति मिली की नहीं......?
✍ रविता चौहान
जिला सिरमौर
Excellent story
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