वतन परस्त थे, वतन पे जो फ़िदा हुए।
बस चल दिए यूँ चल दिए, बिन अलविदा कहे।।
इक लौ जो दिल में थी, धधक रही है आज भी।
है अक्स उन्ही का, जो घुल रहा फ़िजा में भी।।
इन वीरो की खुश्बू से, महकता चमन मेरा।
वो थे वो है, तभी है ये, वतन वतन मेरा।।
आओ करे सलाम, झुक के शान में उनकी।
ये जान भी कुर्बान, राहे-आन में उनकी।।
क्या लोग थे वो लोग, जो वतन पे मिट गए।
माँ की गोद से लिपट के, कफ़न में सिमट गए।।
रोया था देश, ऐसी शहादत को देखकर।
पत्थर भी पिघले, ऐसी इब्बादत को देखकर।।
हो रहे कुरबा, कई जवान आज भी।
पर है कहाँ परवाह, किसी को उनकी जान की।।
हमने किया ही क्या, अभी तक शान में उनकी।
कीमत लगाई पांच लाख, जान की उनकी।।
ये मोल क्या चुकाएंगे, धरती के लाल का।
मान जो रखते हैं, भारती के भाल का।।
इक माँ के दिल का हाल, ना पूछो सवाल से।
के कितना प्यार करती है, वो अपने लाल से।।
इक माँ ही की तो देन है, ये वीर वतन को।
करते है विफल, दुश्मनो के सारे जतन जो।।
नही फ़िक्र जो करते कभी, दिन की ना रात की।
बस आस वो रखते है, तेरे मेरे साथ की।।
करो प्रतिज्ञा आस को, मिटने न देंगे हम।
पग जो बढ़ाये देश तक, रुकने ना देंगे हम।।
शम्मा जलाये रखना, दिल में त्याग के उनकी।
विफल न हो बलिदान,धयान रखना तुम सभी।।
इस देश की आभा को, कम ना होने देंगे हम।
जो खेले माँ की आबरू से, करदे उसका हम दमन।।
करू बखान देश का, जितना भी होगा काम।
इस देश को शत-शत नमन, हृदय से वन्दनम।।
✍ पारस चौहान
ज़िला सिरमौर
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