Friday 28 February 2020

मेरा सपना

कविता एक बहाना है ,
सुच्चा ठौर-ठिकाना है ।

अपनी प्यारी धरती को ,
फिर से स्वर्ग बनाना है ।

देश बड़ा है हम सबसे,
लोगों को समझाना है ।

केसर-क्यारी सूख रही,
उसको आज बचाना है ।

पत्थरबाज उछलते हैं,
उनको राह दिखाना है।

भारत माता  बोल  रही ,
खोया  है  सो  पाना  है ।

'नवीन' कुचले लोगों को,
मिलकर गले लगाना  है ।

 ✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

Thursday 27 February 2020

कुमार संदीप द्वारा पुस्तक समीक्षा

प्रसिद्ध साहित्यकार आदरणीय आशुतोष कुमार सर ने काव्य संग्रह जागो यार दुनिया तुम्हारी है उपहार स्वरुप मुझे भेंट की। इस पुस्तक में कुल पच्चास रचनाएँ शामिल हैं। जिनमें से पच्चीस रचना आदरणीय आशुतोष सर द्वारा लिखित हैं एवं पच्चीस रचना आदरणीय ओट्टेरी सेल्वा कुमार सर द्वारा लिखित हैं। इस काव्य संग्रह की जितनी सराहना व प्रशंसा की जाए कम है।एक से बढकर एक सुंदर रचनाओं का संग्रह है इस पुस्तक में।सभी रचनाएँ जीने की नई राह दिखाती हैं और समाज को सार्थक संदेश प्रदान करती हैं।


पुस्तक के प्रारंभ में आदरणीय आशुतोष सर जी का परिचय शामिल हैं। जिनसे हमें उनके विषय में जानकारी प्राप्त हुई।उसके पश्चात उनकी पच्चीस रचनाओं को पढ़ने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ।उनकी सभी रचनाएँ मुझे बेहद पसंद आईं।उन रचनाओं में से कुछ रचनाओं का जिक्र मैं करना चाहूंगा।-----

◆जागो इन्सा प्यारे-इस रचना द्वारा आदरणीय आशुतोष कुमार सर ने सभी को सार्थक संदेश देने का प्रयत्न किया है।रचना के माध्यम से इन्होंने बताने का प्रयास किया है कि आज हर कोई यह कह रहा है कि जाति मजहब से दूर सर्वप्रथम हम इंसान हैं।परंतु सभी के दिलों में कहीं न कहीं नफरत है आक्रोश की भावना है।ऐसी स्थिति में भला सबकुछ बेहतर कैसा होगा।महापुरुषों ने अपने प्राण की आहुति दी है हमें आजादी दिलाने के लिए।हमें यह नहीं भूलना चाहिए।यह काव्य रचना वाकई में बेहतरीन है।

◆उबलता लहू-इस काव्य रचना के माध्यम से आदरणीय आशुतोष कुमार सर ने आज की सच्चाई हमारे समक्ष प्रस्तुत की है।हम एक ऐसे देश में रह रहें हैं जहाँ नारी की पूजा की जाती है।और एक सच्चाई यह भी है कि यहाँ दुराचारियों की भी कमी नहीं है।नारी को अपमानित और प्रताडित करने वाले दुराचारियों को सबक सिखलाना नितांत आवश्यक है।रचना के माध्यम से नारी का हौसला बढ़ाते हुए लिखा गया है कि जागो तुम भी जननी अपनी अबला की पहचान छोडो।

◆ऐ मन-मन के ऊपर लिखित यह रचना वास्तव में बेहद उत्कृष्ट रचना है।एक मन है और इसके अंदर अनगिनत इच्छाएँ अंकुरित होती रहती हैं।मन सचमुच बेहद चंचल है।इस कविता की ये पंक्तियाँ मुझे बेहद अच्छी लगी--
ऐ मन,तू मधुर एहसास मेरी
कड़वी से कड़वी सच्चाई
एक मन,लाखों इच्छाएँ तेरी
इसलिए जीवन की दवाई मेरी।

◆प्रदुषण का कहर-इस कविता द्वारा वातावरण में बढ़ते प्रदूषण पर गहरी चिंता जाहिर की है रचनाकार जी ने।आज प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ चूका है कि इंसान का जीना मुश्किल है।जल प्रदूषण,वायु प्रदूषण अत्यधिक बढ़ रहें हैं जिनसे आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है।बढ़ते प्रदूषण की वजह से सभी को अनगिनत कठिनाई झेलनी पड़ रही है। रचना के माध्यम से सार्थक संदेश दी गई है।

◆गरीबी-गरीबी इस काव्य रचना द्वारा गरीब और बेसहारों की दशा व्यक्त की गई है।सचमुच गरीबों को असहनीय दर्द सहन करना पड़ता है।हम भले ही उनके दर्द का कुछ हिस्सा रचनाओं के माध्यम से लिख दें पर उनका दर्द कम हो उसके लिए हम सभी कार्य नहीं करते हैं।हमें बेसहारों के लिए कुछ करना चाहिए।यथासंभव उनकी मदद करनी चाहिए।बारिश के दिनों में कंपकपाती ठंड के दिनों में बहुत कष्ट सहन करनी पड़ती है गरीबों को इस रचना के माध्यम से यह बखूबी दर्शाया गया है।

◆बचपन की शरारत-बचपन की शरारत रचना बचपन की याद दिलाती है।बचपन के दृश्यों को प्रदर्शित किया है इस रचना के माध्यम से।बचपन कभी नहीं लौटता है दुबारा।बचपन में किए गए शरारतें सदैव स्मरण रहती है।

◆करची की कलम-करची की कलम कविता मुझे अत्यंत प्रिय लगी।करची की महत्ता पर विशेष प्रकाश डाला गया रचना के अंतर्गत।करची की व्यथा का बखूबी वर्णन किया गया है।

◆सुन्दर झारखंड-इस रचना के माध्यम से झारखंड की खूबसूरती का वर्णन किया गया है।झारंखड की प्राकृतिक छटा का खूब वर्णन किया गया है रचना के अंतर्गत।

आदरणीय ओटेरी सेल्वा सर जी द्वारा लिखित रचनाएँ भी बेहद उत्कृष्ट हैं।मुझे इनकी पच्चीस रचनाओं में जो अत्यंत प्रिय लगी उन रचनाओं का जिक्र मैं करना चाहूंगा---

◆नया साल-नया साल रचना बेहद उत्कृष्ट रचना है।नया साल में भला क्या होता है।केवल तिथि और माह ही बदलते हैं।रचना के माध्यम से सार्थक संदेश प्रस्तुत किया गया है।

◆यह सच है-एक झूठ को छीपाने के लिए सौ झूठ बोलनी पड़ती है यह बिल्कुल सच है।जीवन कठिन है क्योंकि हम इसे जरुरत से ज्यादा गंभीरता से लेते हैं।रचना वाकई में सुंदर संदेश प्रदान करती है।

✍️ कुमार संदीप
ग्राम-सिमरा, पोस्ट-श्री कान्त
जिला-मुजफ्फरपुर, बिहार। 

घरा री छाह


असांरे करें हुंदियां थी मैंसीं तिन
दूधा दहिएँ रा नी था कोई काटा
देसी कयुवा रे परिरे हुंदे
थे टिन
अम्मा करदी थी सारा दिन
तिन्हारी  टहल कने सेवा
ताहिं तां मिलदा था
सारे टबरा जो मेवा
दूधा रा परिरा हुँदा था धधोनु
छाई ने परिरि हुन्दी थी मेंटलीयां
दिवालिया जो दूधा च मरोली ने
खाईं दियाँ थी एंकलीयां
खेतां जो मैल हुँदा था बहुत
नाज़ा रे परदे थे पेड़ू
माह,कुल्थ,रौंग कने तिल
बहुत पजदे थे
खूब खाइन्दें थे पुजड़ी कने पतेड़ू
छाई री थी बड़ी कदर 
लोग बहुत थे खांदे
भयागा कने संजा
छाई जो थे चक्कर लगान्दे
हुण सै मैसी नी रहीयां
दूधा री हुई गई तंगी
मैंटली कने मधाणी बचारी बड़ी दुखी
ओबरे रे शतीरा ने मेखा ने टंगी
गावां री छाह तां 
हुण हुईगी बन्द
मेसी गाईं बेची तियाँ
लोग करया कराएं नंद
दूध दहीं बी हुण  
आई गया पैकेट बंद
अजकल पैकेटा रिया छाई जो ही
करदे लोग पसंद
अजकला री बहु
मैसी रे नेड़े नी जांदी
गोये कने गुइन्ता ते बॉस बड़ी औंदी
घरा री छाह बड़े मुले पौंदी
माहण बेचारी भयागा ते संजा तक
सिरा ते पैरा तक पसीने ने नौन्दी
जे खाणी कुनिये घरा री छाह
तां पहले जेबा ते मैसी जो सत्तर हजार ला
गोये कने गुइन्ता ने लपोने पौणा
कने भयागा ते संजा तक बडने पौना घाह
ताईं मिलणी मित्रो 
घरा री छाह

✍️ रविंदर कुमार शर्मा

भारत का जयघोष

गुज़र गया अब दौर कठिन है,
अपना  तो  सिरमौर  वतन  है।

सत्य - अहिंसा  में  ही  बसता,
सचमुच चिन्तन और मनन है।

जाति - धर्म  की  दीवारों  में,
खिलता  जैसे  एक  चमन  है।

सिमट गई नफ़रत की दुनिया,
गगन-धरा  से  किया  गमन है।

गूंज   रही   देवों  की   वाणी,
घर-घर  देखो  खूब  अमन  है।

रोज   "नवीन"   सुनाई   देता,
भारत  का  जयघोष  नमन  है।
              
 ✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

Wednesday 26 February 2020

कविता तो कस्तूरी है



कविता तो कस्तूरी है,
मानव-गंध जरूरी है।

धारा बहती भावों की. 
पाने  को  घी-चूरी  है।

शब्दों का तो मेल हुआ,
अर्थों  की  मज़बूरी  है।

जब हालात बिगड़ते हैं,
दिल में कितनी दूरी है?

जोर बढ़ा है  दंगों का,
चौराहे   पर   नूरी   है।

मान बढ़ेगा  भारत का,
आस "नवीन" अधूरी है।

 ✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

Tuesday 25 February 2020

भाईचारा

भाईचारा सिर्फ इतना रह गया है जितना
भूखे पेट मज़दूर की थाली में 
शेष रहते हैं जूठे चावल,
सिर्फ इतना जितना
एक वर्ष पूर्व परिणय सूत्र में बंधी परिणिता 
अपने हाथों में छुपा कर रखती है
मेंहदी का रंग
भाईचारा सन्नाटे में पसरी 
पड़ोसन की व्यंग्यात्मक हँसी है
युद्ध की विनाशकारी ध्वनियों के मध्य
शेष जीवन जैसा है
भाईचारा विश्वास की आड़ में 
कत्‍ल की कहानी सा है
रेगिस्तानी सरहदों की प्यास में छिपी
आशा भर जैसा है
भाईचारा डिजिटल युग में
फाल्गुनी धूप-छाँव सा है
भार्इचारा सिर्फ चारा है।
                                  
✍️ डॉ० जय चन्द ‘उराडुवा
                                

साहित्य समाज का दर्पण

साहित्य समाज का दर्पण होता है। समाज मे जो भी अच्छा व बुरा होता है साहित्य उसे सच के साथ दिखाता है। लेखक जो भी  सोचता है वैसा ही साहित्य में  उसकी कलम चलेगी । लेखक की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वो निष्पक्ष लिखे।


     जब कभी हम दर्पण के सम्मुख जिस मनोदशा से  खड़े होते हैं वैसा ही हमारा मुख दर्पण में प्रतिबिम्बित होता है ,यदि अंदर से दुःखी तो चेहरा उदास, प्रफुल्लित तो चेहरा खिला, यदि आक्रोश है तो वैसी ही भाव भंगिमा वाला प्रतिबिम्ब बनता है, ठीक उसी प्रकार से साहित्य भी दर्पण की भांति है,समाज की दशा को प्रतिबिम्बित करता है, साहित्य किस प्रकार का है या समाज पर किस तरह का प्रभाव डालता है यह साहित्यकार की कलम की सोच पर निर्भर करता है ।

      कलमकार की सोच जैसी होगी वैसा ही साहित्य उसकी कलम लिखेगी, सौन्दर्य प्रेमी साहित्यकार श्रृंगार से साहित्य सजाता है जो समाज में स्वस्थ साहित्य जन्मेगा, कुरीतियों पर कड़े प्रहार करनें वाली कलम हमेशा समाज को आईना दिखाती, देशप्रेमी कलम समाज में देश के प्रति अनुराग उत्पन्न करेगी, हमारे समाज की उन्नति कुछ हद तक साहित्य पर निर्भर है,  सभ्य साहित्य स्वस्थ समाज को जन्म देता है और यह कलमकार की मानसिकता पर निर्भर करता है ।  हम आजाद भारत में रहते हैं जहां सबको अपनी सोच को रखनें की पूरी स्वतंत्रता है, आधुनिकता की दौड़ से आज का साहित्य भी अछूता नहीं है, कविता,लेख कहानियां सभी पर आजकल आधुनिकता की छाप पूरी तरह दिखायी देती है, रैप के रूप में कवितायें ,साहित्य गढ़े जा रहे, जिसका मूल केवल लिखकर वाहवाही लूटना या तुकबंदी कर कुछ भी लिख देना, जिसमें कुछ समाज के लिये कुछ भी आदर्श स्थापित कर पानें में असमर्थ रहता है, चार लाइनें लिखकर आज हर कोई साहित्यकार बनने का ख्वाब देखने लगता है, परन्तु सच्चा साहित्य तो वह है जिससे समाज में बदलाव लाया जा सके कुछ उद्देश्यात्मक हो, समाज की उन्नति में सहायक हो, साहित्यकारिता की आड़ में आजकल लोग बड़े बड़े ऐजेन्डे चला रहे, कृतियों के माध्यम से साजिशें गढ़ रहे, साहित्य उद्देश्यात्मक, प्रेरणात्मक व तथ्य की सजीवता वाला होना चाहिये ताकि हमारी भावी पीढ़ियां कुछ ग्रहण कर सकें । 

                            कलम की ताकत  से ही बहुत कुछ किया जा सकता है और ऐसा करना एक स्वस्थ विचारक ही कलम की गति से समाज को दिशा दे सकता है। प्राचीन काल हमारे ग्रंथ,वेद पुराण, समाज को आदिकाल से ही दिशानिर्देश देते रहे हैं पर आज की हावी होती आधुनिकता कहीं कहीं समाज के दिशा भटकाव में मदद कर रही है, कुछ हद तक हमारे ढोंगी बाबाओं का भी हाथ है जो अपने प्रवचनों से  लोगों में भ्रमात्मक स्थिति पैदा कर भटकाते हैं, ऐसे में कलमकार ही समाज को सही दिशा दे सकता है ।

            स्वस्थ साहित्य उस उजले दर्पण सदृश होता है जिसमें समाज का प्रतिबिम्बित साफ साफ प्रतिबिम्बित होता है, और इस साहित्य दर्पण को जब हम साफसुथरा रखेंगे तभी हमें प्रतिरूप साफ दिखेगा, यदि दर्पण ही धुंधला होगा तो कुछ दिखेगा कैसे इसलिए कह सकते है कि कलम में बहुत बड़ी ताकत होती है इसके माध्यम से सामाजिक और सकारात्मक बदलाव किए जा सकते हैं और अच्छे राष्ट्र निर्माण की  कल्पना कलम के माध्यम से कर सकते हैं।
     अंत में,  हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवि, प्रयोगवाद के प्रवर्तक सच्चिदानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय'  की पंक्तियां द्रष्टव्य है :-

कहा सागर ने : चुप रहो!
मैं अपनी अबाधता जैसे सहता हूँ,
अपनी मर्यादा तुम सहो।
जिसे बाँध तुम नहीं सकते
उस में अखिन्न मन बहो।
मौन भी अभिव्यंजना है 
जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो।

 ✍️ डॉ. सुरेन्द्र शर्मा


                       

दुनियां तोप्पै


स्हाड़े पल्लैं  रोट कुथू ऐ,
दुनियां तोप्पै वोट कुथू ऐ?

धरतू-गास्सैं बाज्जा बज्जै,
छैल़  नगारैं  चोट  कुथू  ऐ?

खिंद-खदोल्लू  लीरां-लीरां,
परुआरां  दी  टोट  कुथू  ऐ?

चौंईं  कूंट्टां  होन  घुटाल़े,
दो  नंबर  दा  नोट  कुथू  ऐ?

घोल़ घुल़ाट्टी पौआ करदी,
खुन्नीं खुट्टी खोट कुथू ऐ?

देस 'नवीन' सिओआ सुच्ची,
बड़बोल्ला हुण भोट कुथू ऐ?
            


✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य-कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा,   हिमाचल।

Monday 24 February 2020

ड्राइवरे री नौकरी

राती सोणा  10 बजे
भयागा 4 बजे रा लार्म दिता लगाई
10 बजे पूजणा
सवारियां लई शिमले  जाई
5 बजे भयागा बस चली
नेहरे नेहरे चलना थी मजबूरी
लोकां जो टैमा रा
पूजाणा था ज़रूरी
तदुआं जे लोक सुतिरे उठदे
असें तां शिमले जाई पूजदे
असें भी सुतिरे रहन्दे
जे नी लगिरा हुँदा पेट
लोकां री बहुत सुणने पौइं
जे हुई जाइये थोड़ा भी लेट
जे स्पीडा च नी चलिए
तां टैमा री कमी बड़ी भारी
जे सवारियां जो जगह जगह नी उतारिये
तां भी आई जांदी फेरी ड्राइवरा री ही बारी
तनखाह भी घट
सै बी टैमा री नी मिलदी
बाल बच्चेयाँ खातर
मुश्कलां च पाई ती ए जिन्दड़ी
मँगाइया रा ज़माना
कियाँ करिये गुज़ारा
बगतें मुकी जाइँ तनखा
सब कुछ लयोने पवाँ तवारा
सर्दी हो या हो गर्मी
असां पर नी बरतदा कोई भी नरमी
किसी जो नी असाने कोई हमदर्दी
24 घंटे रहना पोन्दा अलर्ट
सारी दुनिया री  
असें सवारियां ढोन्दे
कोई बड़ा खुश हुँदा
कई बचारे रौंदे
जालूँ जे चलदे तालूँ सबी री
सलामती री अरदास करदे
परमात्मे ते असें बड़े भारी डरदे
सबनी रा तुही पालनहार
ठीक ठाक घरें पूजवायां
रखेयाँ मेहरवानी
बेड़ा करी दियाँ पार ।

✍️ रविंदर कुमार शर्मा

अमर, मर रहा है


ठंड का मौसम था। अम्बर घने बादलों को ओढ़े मानो बर्फ की चेतावनी दे रहा था। स्कूल की वर्दी पहने अखबार बेचता हुआ वो लड़का पींठ पर एक और थैला लादे हुए था , मैंने भी पूछ लिया पींठ पर क्या उठाए हो दोस्त। 

उसने कहा,साहब इसमें पुस्तक है। 

मैंने पूछा पढ़ाई करते हो तो ये अखबार क्यों बेचते हो? 

बालक का उत्तर था कि अगर मैं अखबार पढ़ूंगा तभी वो अपनी किताब पढ़ सकता है। मैं समझ गया कि बात क्या है, मैंने उसका नाम पूछा । नाम था अमर लेकिन वक्त को उसका नाम पसंद नहीं था। अमर प्रतिदिन ठंड में मर रहा था। 

✍️ राजेश सारस्वत

लेखन सम्मान फरवरी 2020

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सिरीरंगे दा बिआह् (श्रीरंग का विवाह) ✍️ नवीन हलदूणवी


             इक्कसी ग्रांएं च इक्क लम्बरदार रैंह्दा हा।

                     एक गांव में एक नम्बरदार रहता था।

तिद्दे घर लुआद नीं ही हुंदी।

उसके घर में संतान नहीं होती थी।

तिन्नी लुआदा तांईं केई पुट्ट-निट्ट कित्ते।

उसने सन्तान के लिए कई उपाय किए।

अखीरे च तिद्दे घर इक्क पुत्तर जम्मेआं।

आखिर में उसके घर एक पुत्र ने जन्म लिया।

पुत्तर दिक्खणे जो बड़ा सुरैक्खा अपर अक्खीं ते नफिट्ट अन्हां हा।

पुत्र देखने में अति सुन्दर परंतु आंखों से पूर्णतया अन्धा था।

लम्बरे जो तिद्दा ज़ल़ब तां मता होया अपर बिधात्ते दीयां लिक्खियां सिर-मत्थैं मन्नियैं तिद्दी पाल़ना चांएं-चांएं करना लगी पेआ।

नम्बरदार को उसका अत्यंत दु:ख हुआ परंतु बिधाता के लेख को सत्य मान कर उसका पालन -  पोषण बड़े चाव से करने लग पड़ा।

घरे च परोह्त सदाइयै,सब्बो चज्ज-चार करियै तिन्नी तिद्दा नां "सिरीरंग"रक्खेआ।

घर में पंडित जी को बुलवा कर,सभी रीति-रिवाज करके उसने उसका नाम "श्रीरंग" रखा।

जुआनियां च आइयै सिरीरंग तगड़ा गभरु निकल़ेया।

            जवानी में आकर श्रीरंग शक्तिशाली  जवान निकला।

हुण लम्बरैं तिद्दी टैह्ल - सिओआ तांईं नौकर बी रक्खी दित्तियो हे।

अब नम्बरदार ने उसकी देखभाल के लिए नौकर भी रख दिये थे।

लम्बरे दी घरे ब्हाल़ी मुन्नुएं दे बिआह् तांईं हर रोज़ रीणी पाणा लगी पेई।

नम्बरदार की पत्नी दिन प्रतिदिन बेटे के विवाह की बात दोहराने लगी।

तंग आइयै लम्बरैं दूरे-दूरे तिक्कर मुन्नुएं जो बिआह्णे दा ढंढोरा पिटुआई दित्ता।

तंग आकर नम्बरदार ने दूर-दूर तक बेटे के विवाह का ढिंढोरा पिटवा दिया।


         ढंढोरा सुणियैं दूरे दे ग्रांएं ते इक्कसी काणिया कुड़िया दा बब्ब लम्बरे ब्हाल पुज्जेआ।

ढिंढोरा सुनकर दूर गांव से एक कानी कन्या का बाप नम्बरदार के पास पहुंचा।

सैह् बी तंग आया हा।

वह भी तंग आया था।

तिद्दिया कुड़िया दा बिआह् बी  होरसी थां नीं हुआ हा करदा।

उसकी कन्या का विवाह और जगह नहीं हो रहा था।

तिन्नी कुसी ते बी पुच्छ-गिच्छ नीं कित्ती?

उसने किसी से भी पूछताछ नहीं की।

दूर खड़ोइयै मुंड्डू दिक्खेआ कनैं लम्बरे नैं बिआह् दी गल्ल पक्की करी लेई।

दूर खड़े होकर लड़का देखा और नम्बरदार से विवाह की बात पक्की कर ली।

तिसजो अन्दरली मरज़ा दा पता नीं चल्लेया।

उसको भीतरी बीमारी का पता न चला।

लम्बर बी अन्दरो-अन्दर खुश हा।

नम्बरदार भी अन्दर ही अन्दर खुश था।

तिन्नी बी कुड़िया दे बब्बे ते होर कोई छाण-बीण नीं कित्ती।

उसने भी लड़की के बाप से और कोई छानबीन नहीं की।

कुड़िया दा बब्ब नात्ता पक्का करियै अपणे घरे जो परतोई गेआ।

लड़की का बाप रिश्ता पक्का करके अपने घर को लौट गया।

     समां औणे पर लम्बर पग्ग बन्हियैं सिरीरंगे जो सजाई बणाइयै खास्से च बिठयाल़ी जनेत्ता सौग्गी पुत्तरे जो बिआह्णे चली पेआ।

समय आने पर नम्बरदार पगड़ी बांध श्रीरंग को पालकी में बैठा कर बारात के साथ बेटे का विवाह करने चल पड़ा।

कुड़मां दे ग्रांएं च पुज्जणे परंत मिलणी होई।

समधियों के गांव में पहुंचने के पश्चात दोनों पक्षों का मिलन हुआ।

फ़ी लग्न-वेदीं बी होणा लगी पेइयां।

फिर लग्न-वेदीं भी होने लग पड़ीं।

तित्थू दी जनानियां लाड़े दिक्खी खुश होई गेइयां।

वहां की औरतें लाड़े को देखकर प्रसन्न हो गईं।

सब्बो जणियां खुशी-खुशी गाणा लगी पेइयां।

सभी औरतें प्रसन्नतापूर्वक गाने लग पड़ीं।

गीत्ते दे बोल हे--- "स्हाड़िया काणियां जग मोह्-ई लेआ।
वो इन्ना काणियां जग मोह्-ई लेआ।।"

गीत के बोल थे---"हमारी कानी ने संसार को मोह लिया।
                        वो इस कानी ने संसार को मोह लिया।।"

 फ़ी सब्बो जणियां थिड़-थिड़ हस्सणा लगी पेइयां।

                फिर सभी औरतें खिलखिला कर हंसने लग पड़ीं।

जनेत्ता जो कुड़िया दे काणीं होणे दा पता चली गेआ।

बारात को लड़की के कानी होने का पता चल गया।

अपर तिन्हां उप्पर इसा गल्ला दा कोई असर नीं होया।

परंतु उन पर इस बात का कोई प्रभाव नहीं हुआ।

कैंह्जे सिरीरंग बी तां नफिट्ट अन्हां हा?

क्योंकि श्रीरंग भी तो पूर्णतया अन्धा था?


 इत्तणे च जनेत्ता सौग्गी आइयो डूमणेयां बी नगारा कनैं पीपणियां बजाणा सुरु करीत्तियां।

     इतने में बारात के साथ आए बाजेवालों ने नगारा और शहनाई बजाना शुरू कर दिया।

तिन्हां दे बोल हे-----
  "तुहाडड़ी कानणी सैह् स्हाडड़ैं लेक्खैं। 
स्हाडड़ा सिरीरंग दूंईं अक्खीं नीं देक्खै।।"

उनके बोल थे-----
    "आपकी कानी हमारे है हिस्से।
 हमारा श्रीरंग दो आंखों न देखे।।"

         एह् सुणदेयां-ई जणास्सां सुन्नमसुन्न होई गेइयां।

इसे सुनते ही औरतों में चुप्पी छा गई।

कुड़िया ब्हाल़ेयां दे मुखड़े पील़े पेई गे अपर हुण सैह् के करी सक्कदे हे?

लड़की वालों के चेहरे पीले पड़ गये परंतु अब वह क्या कर सकते थे?

कुड़िया दीयां लौंआं सिरीरंगे नैं होई गेइयां हियां।

लड़की के फेरे श्रीरंग के साथ हो गये थे।

कुड़िया ब्हाल़ेआं कुड़िया जो सिरीरंगे सौग्गी विदा करीत्ता।

लड़की वालों ने लड़की को श्रीरंग के साथ विदा कर दिया।

जनेत्ती खुशी-खुशी अपणे ग्रांएं जो परतोई आए।

बारात प्रसन्नतापूर्वक अपने गांव को लौट आई।

        ✍️ नवीन हलदूणवी

काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला  कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।


Sunday 23 February 2020

निर्भया तेरे हत्यारे

निर्भया तेरे हत्यारे 
आज भी सरेआम घूम रहे ।
सात वर्षों से दफ़न तेरी रूह का मजाक उड़ा रहे ।।
फांसी , उम्रकैद , के इंतजाम हो रहे 
जा जाकर वापिस लौट आ रहे ।।

एक बात पूछना उस वकील से जाके 
खुदा ना खास्ता ,
अगर उसकी लाडली से ऐसा हुआ होता ,
तब भी वो ऐसे ही बचाता उसे ।।
सारी इंसायनित तो इन्होंने बेच कर खा ली थी ,
शर्म कर तू इनके लिए क्यों न्यालयों में गुहार है ला रहा ।।

वो 16 दिसंबर की कैसी रात थी 
सुनसान पड़ी सड़क पर आज भी गवाही देती है वो बस 
निर्भया के चीखों की ।।
दोस्तो जूठी लगे बात जाके देखना कभी वहां 
जहा दरिंदो ने दरिंदगी की सारी हदें पार की थी ।।
क्या मुंह लिए बैठा था वो वकील 
की जो उनकी गवाही पर गवाही की दलीलें दे रहा ।।

बनने तो आयी थी डॉक्टर वो 
चूर-२ कर सपने उनके मां बाप का घर तोड़ दिया ।।
रो रो कर गुहार लाती उसकी मां बेचारी 
तो बाप बेचारा कोणा देख रो रहा है ।।

हैवानियत को शर्मसार किया था 
फिर भी वक़्त क्यों लग रहा इनकी मौत मुक्रार्र करने में 
बकायदा कुछ तो लंबे अधसे से गोल हुआ चल रहा था ।
या तो उनकी सिफारिशें ज्यादा तवज्जो दे रही है 
या  7 वरशो से दफन उसकी रूह  ।।
उम्र के जिस पड़ाव में वो सपने पूरे कर रही थी 
उस सपने को ठोकर मार सपने सारे चकनाचूर कर दिए 
फिर भी इनकी दलीलें ज्यादा तवजजो दे रही अवतार ।।

✍️ Avtar Koundal
Bilaspur H.P.

वीरां दा उच्चा ऐ मत्था













प्हौंचा ब्हाल़े दा ऐ सत्ता ,
दौड़ी  पे  दे   बत्ता-बत्ता ।

जिद्दैं  पल्लैं  लम्मी  डोई,
हिल्ला दा नीं कोई पत्ता ।

भुक्खे-भाणे मोये लोक्की,
लैणा  किंह्यां  बाधू  भत्ता ?

बोल्ली पे दे अम्मा--बाप्पू,
दाद्दू   ते   पोत्तू   ऐ   तत्ता ।

सुच्ची गल्ल'नवीन'गलांदा,
 वीरां  दा  उच्चा  ऐ  मत्था ।।

      ✍️ नवीन हलदूणवी

काव्य-कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा,.  हिमाचल।

Saturday 22 February 2020

टुट्टा दी डोर (गीत)













टुट्टा  दी  डोर  पतंगां  दी,
लग्गी ऐ मौज़ मलंगां दी।

झूठे  दे  गाह्की  घुम्मा  दे,
हुण कदर कुथू ऐ बंगां दी?

चिट्टे दी  हौआ झुल्ला दी,
हुण लोड़ कुथू ऐ भंगां दी?

फुल्ला दी चोर-बज़ारी ऐ,
चांदी   ऐ  नंगमनंगा  दी।

पुच्छै नीं कोई भगतां जो,
गद्दारी  ऐ   खदरंगां  दी।

हुण देस 'नवीन' भुलाईत्ता,
तूत्ती  ऐ   छैल़  दवंगां  दी।

         ✍️ नवीन हलदूणवी

काव्य -कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।

Friday 21 February 2020

मेरा भोला भंडारी



















मेरा भोला सबका दाता
कई रूप में जाना जाता
कभी है शिवजी महा भयंकर
कभी है यह करुणा का शंकर
भोला कभी है विष पी जाता
तभी तो यह नीलकंठ कहलाता
जब शिव है गुस्से में आता
गणेश का सिर काट जाता
शांत जब है हो जाता
हाथी का फिर सिर है लगाता
तांडव करके सारे जगत को
है अपना रौद्र रूप दिखाता
राक्षशों का यह नाश है करता
भक्तों को है गले लगाता
जो इसकी शरण में है आता
उसका बेड़ा पार लगाता
कभी तो भोला बन कर के यह
भोला भाला नज़र है आता
गंगा इसकी जटा में बसती
सांपों को है गले लगाता
भोला मेरा भंडारी है
सबके है भरता भंडार
इसकी महिमा बड़ी निराली
इनकी माया अपरम्पार


✍️ रविंदर कुमार शर्मा
पूर्व निदेशक (यूको आर्सेटी)
नजदीक डी ए वी पब्लिक स्कूल 
गाँव व डाकघर घुमार्वीन
जिला बिलासपुर(हिमाचल प्रदेश)
पिन 174021
मोबाइल – 9418093882, 7018853800

आई शभातर

आई शभातर खुले घर 2 काम 
लागे सब झोनड़े महादेव तैयारी दी। 
घर और बाहर खुले काम ठराह बाजारा का हामा सौदों अणओ करने घर के काम केई।
बनाडा हामा सेई महादेव 
ऐउ बढ़ाना ले करने कई काम।
पाई हेरडो हामा नाट 
आज लाई हैरनी हामा जांच
गाई हैरनी हामा जोती।
गांव-गांव दी सभी सब लोग मनावाडी शिवरात्रि।
लोगुवा बड़ाउई हैरनी हमें
 मालपुए ,शकूए, बढे, पोलडु।
डानओ हामा सभी व्रत 
करने महादेव पूजा।
कोरणो हामा  महादेवा खुश 
ते रोहा हामा महादेव खुश 
 बनड़ी रोहा ऐउओ हामा गयै आशीर्वाद।

   ✍️ रवि शर्मा 
निरमंड, ज़िला कुल्लू हि0प्र0   
सम्पर्क सूत्र 9418160944

पीणा पौणा सुढ़का जी

मन-मरजी  नैं  उड़का  जी,
कम्मे  ते  बी  छुड़का  जी।

ठेक्के अणमुक खोल्लीत्ते,
अपणे खीस्से झुड़का जी।

खंब्बल़ - खच्चा  पाई  नैं,
रात्ती तिक्कर भुड़का जी।

छोल्ले   भुन्नी   खाई   लै,
जिन्नी मरज़ी तुड़का जी।

घर-घर लोक्की तोप्पा दे,
छैल़  सलूणा  दुड़का  जी।

खेल  'नवीन'  दमाग्गे  दी,
पीणा  पौणा  सुढ़का  जी।

            ✍️ नवीन हलदूणवी

काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश।

Thursday 20 February 2020

देवादिदेव महादेव का पर्व : महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि पर्व भगवान् शिव की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध है। शिव का अर्थ है- शुभ, शङ्कर का अर्थ है कल्याण करने वाला। शुभ और कल्याणकारी चिन्तन, चरित्र एवं आकांक्षाएँ बनाना ही शिव आराधना की तैयारी अथवा शिवा सान्निध्य का लाभ है।

महाशिवरात्रि क्या और क्यों?


   रात्रि नित्य- प्रलय और दिन नित्य- सृष्टि है। एक से अनेक की ओर कारण से कार्य की ओर जाना ही सृष्टि है| इसके विपरीत अनेक से एक और कार्य से कारण की ओर जाना प्रलय है।

दिन में हमारा मन, प्राण और इंद्रियाँ हमारे भीतर से बाहर निकल बाहरी प्रपंच की ओर दौड़ती है। रात्रि में फिर बाहर से भीतर की ओर वापस आकर शिव की ओर प्रवृत्ति होती है। इसी से दिन सृष्टि का और रात्रि प्रलय की द्योतक है।

इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जो आत्मानंद प्रदान करने वाली है और जिसका शिव से विशेष संबंध है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में यह विशेषता सर्वाधिक पाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उस दिन चंद्रमा सूर्य के निकट होता है।

इस कारण उसी समय जीव रूपी चंद्रमा का परमात्मा रूपी सूर्य के साथ भी योग होता है। अतएव फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को की गई साधना से जीवात्मा का शीघ्र विकास होता है।

शिवरात्रि पर साधक व्रत- उपवास करके यही प्रयास करते हैं। शिव अपने लिए कठोर दूसरों के लिए उदार हैं। यह अध्यात्म साधकों के लिए आदर्श सूत्र है। स्वयं न्यूनतम साधनों से काम चलाते हुए, दूसरों को बहुमूल्य उपहार देना, स्वयं न्यूनतम में भी मस्त रहना, शिवत्व का प्रामाणिक सूत्र है।

भगवान शिव-शंकर का तत्व दर्शन

शिवलिङ्ग का अर्थ होता है- शुभ प्रतीक चिह्न- बीज। वह विश्व- ब्रह्माण्ड का प्रतीक है।
त्रिनेत्र - विवेक से कामदहन
मस्तक पर चन्द्रमा - मानसिक सन्तुलन
गङ्गा - ज्ञान प्रवाह
भूत आदि पिछड़े वर्गों को स्नेह देना 
नशीली वस्तुएँ आदि शिव को चढ़ाने की परिपाटी है। मादक पदार्थ सेवन अकल्याणकारी हैं, किन्तु उनमें औषधीय गुण भी हैं। शिव को चढ़ाने का अर्थ हुआ- उनके शिव- शुभ उपयोग को ही स्वीकार करना, अशुभ व्यसन रूप का त्याग करना।

शिवरात्रि से आशय

शिवरात्रि वह रात्रि है जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ: ॥

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार-

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का महत्त्व है। 

महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परमसुख, शान्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।

शिवरात्रि का महात्म्य

शिवरात्रि का महात्म्य सर्वमान्य है। फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को यह पर्व हर वर्ष मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान भोलेनाथ कालेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे। महाकालेश्वर भगवान शिव की वह शक्ति है जो सृष्टि का समापन करती है। महादेव शिव जब तांडव नृत्य करते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड विखडिंत होने लगता है। इसलिए इसे महाशिवरात्रि की कालरात्रि भी कहा गया है।

भगवान शिव की वेशभूषा विचित्र मानी जाती है। महादेव अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं, गले में रुद्राक्ष धारण करते हैं और नन्दी बैल की सवारी करते हैं। भूत-प्रेत-निशाचर उनके अनुचर माने जाते हैं। ऐसा वीभत्स रूप धारण करने के उपरांत भी उन्हें मंगलकारी माना जाता है जो अपने भक्त की पल भर की उपासना से ही प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी मदद करने के लिए दौड़े चले आते हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष भी कहा गया है। भगवान शंकर अपने भक्तों के न सिर्फ़ कष्ट दूर करते हैं बल्कि उन्हें श्री और संपत्ति भी प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि की कथा में उनके इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का वर्णन किया गया है।

महाशिवरात्रि पर्व को और भी कई रूपों में जाना जाता है। कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन से ही होली पर्व की शुरुआत हो जाती है। महादेव को रंग चढ़ाने के बाद ही होलिका का रंग चढ़ना शुरू होता है। बहुत से लोग ईख या बेर भी तब तक नहीं खाते जब तक महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को अर्पित न कर दें। प्रत्येक राज्य में शिव पूजा उत्सव को मनाने के भिन्न-भिन्न तरीक़े हैं लेकिन सामान्य रूप से शिव पूजा में भांग-धतूरा-गांजा और बेल ही चढ़ाया जाता है। जहाँ भी ज्योर्तिलिंग हैं, वहाँ पर भस्म आरती, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक कर भगवान शिव का पूजन किया जाता है।

सागर-मंथन के दौरान जब समुद्र से विष उत्पन्न हुआ था तो मानव जाति के कल्याण के लिए महादेव ने विषपान कर लिया था। विष उनके कंठ में आज भी ठहरा हुआ है, इसीलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा गया है। कुछ लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शंकर जी का विवाह पार्वती जी से हुआ था, उनकी बरात निकली थी। वास्तव में महाशिवरात्रि का पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद दिलाता है। महाशिवरात्रि के दिन व्रत धारण करने से सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति भी नियंत्रित होती है। निरीह लोगों के प्रति दयाभाव उपजता है। ईशान संहिता में इसकी महत्ता का उल्लेख इस प्रकार है-

शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनत् ।
चाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं ।।

कृष्ण चतुर्दशी के दिन इस पर्व का महत्व इसलिए अधिक फलदाई हो जाता है क्योंकि चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने आती है परंतु फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्यदेव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा इसी दिन से ॠतु परिवर्तन की भी शुरुआत हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चन्द्रमा अपनी सबसे कमज़ोर अवस्था में पहुँच जाता है जिससे मानसिक संताप उत्पन्न हो जाता है। चूँकि चन्द्रमा शिवजी के मस्तक पर सुशोभित है इसलिए चन्द्रमा की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवजी की आराधना की जाती है। इससे मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
हिन्दुओं के दो सम्प्रदाय माने गए हैं। एक शैव और दूसरा वैष्णव। अन्य सारे सम्प्रदाय इन्हीं के अन्तर्गत माने जाते हैं। नामपंथी, शांतपंथी या आदिगुरु शंकाराचार्य के दशनामी सम्प्रदाय, सभी शैव सम्प्रदाय के अन्तर्गत आते हैं। भारत में शैव सम्प्रदाय की सैकड़ों शाखाएँ हैं। यह विशाल वट वृक्ष की तरह संपूर्ण भारत में फैला हुआ है। वर्ष में 365 दिन होते हैं और लगभग इतनी ही रात्रियाँ भी। इनमें से कुछ चुनिंदा रात्रियाँ ही होती हैं जिनका कुछ महत्व होता है। उन चुनिंदा रात्रियों में से महाशिवरात्रि ऐसी रात्रि है जिसका महत्व सबसे अधिक है। यह भी माना जाता है कि इसी रात्रि में भगवान शंकर का रुद्र के रूप में अवतार हुआ था।

महाशिवरात्रि पर उपवास का भी अपना विशेष महत्व है। उपवास का अर्थ होता है भगवान का वास। उपवास का अर्थ भूखा रहना या निराहार रहना नहीं है। आराध्य देव को मन में बसा कर किसी उद्देश्य को लेकर इनकी पूजा करना भी उपवास रहना है। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन पवित्र होकर शिव को मन में बसाना भी उपवास है। कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए भगवान शंकर का आशीर्वाद ग्रहण करने का भक्तों के समक्ष शानदार अवसर होता है।

महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण की भी महत्ता है। कुछ संतों का कहना है कि रात भर जागना जागरण नहीं है बल्कि पाँचों इंद्रियों की वजह से आत्मा पर जो बेहोशी या विकार छा गया है, उसके प्रति जागृत होना ही जागरण है। यंत्रवत जीने को छोड़कर अर्थात् तन्द्रा को तोड़कर चेतना को शिव के एक तंत्र में लाना ही महाशिवरात्रि का संदेश है।

शास्त्रोक्त मान्यता है कि शिव समस्त जगत् में विचरण करते रहते हैं। अगर वे कैलाश पर्वत पर विचरण करते हैं, तो श्मशान में भी धूनी रमाते हैं। 

हिमालय पर उनके विचरण करने की मान्यता के कारण ही उत्तराखंड के नगरों और गाँवों में शिव के हज़ारों मंदिर हैं। धार्मिक मान्यता है कि शिवरात्रि को शिव जगत् में विचरण करते हैं।

शिवरात्रि के दिन शिव का दर्शन करने से हज़ारों जन्मों का पाप मिट जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह महाशिवरात्रि के पर्व का महत्व ही है कि सभी आयु वर्ग के लोग इस पर्व में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इस दिन शिवभक्त काँवड़ में गंगाजी का जल भरकर शिवजी को जल चढ़ाते हैं। और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। शिव मंदिरों पर पूजा-अर्चना के लिए काँवड़ियों का क़ाफ़िला गेरुए वस्त्र पहनकर निकलता है। इस दिन कुँवारी कन्याएँ अच्छे वर के लिए शिव की पूजा करती हैं। शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है। वे ऐसे देवता हैं जो विष स्वयं ग्रहण कर लेते हैं और अमृत दूसरों के लिए छोड़ देते हैं। इसलिए शिव जगत् के उध्दारक हैं।

महापर्व महाशिवरात्रि की मंगलमय शुभकामनाएं

                  ✍️ डॉ.सुरेन्द्र शर्मा

पवित्र तीर्थस्थल चूड़धार-वचन के भूखे हैं भगवान भोलेनाथ

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।  

सुन्दर प्रकृति की गोद में विराजमान देवभूमि हिमाचल प्रदेश में अनेकों पावन तीर्थस्‍थल हैं। जिनके दर्शनों के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। इन्‍हीं में से एक बेहद खूबसूरत  तीर्थ स्‍थान जो कि सुंदर ,पावन व मनमोहक चूड़धार पर्वत है । यह पर्वत हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है। सिरमौर भ्रमण की शुरूआत धार्मिक स्थलों से करना उचित है । 

चूड़धार पर्वत समुद्र तल से लगभग 11965 फीट(3647 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है । यह पर्वत सिरमौर जिले की सबसे ऊंची चोटी है।
चुडधार, आमतौर पर चूड़ीचांदनी (बर्फ की चूड़ी) के रूप में जाना जाता है। 

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में सबसे ऊंची चोटी चूड़धार को ही शिरगुल महाराज के नाम से जाना जाता है। बर्फ से ढकी चोटियों में स्थित केवल शिवलिंग की प्रतिमा स्तिथ है जो कि अत्यंत मनमोहक है ।
चोटी पर ‘शिरगुल महाराज’ मंदिर की स्‍थापना की गई है। इन्‍हें सिरमौर और चौपाल का देवता माना जाता है।यह मंदिर प्राचीन शैली में बना है, जिससे इसके स्‍थापना काल का पता चलता है। 

शिखर के नीचे, शिव (चैरोचेस्वर महादेव) को समर्पित एक लिंगम के साथ देविर-छत, एक मंजिला, शिरगुल का चौकोर मंदिर है। जहां श्रावण माह में भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है । इस प्राचीन मंदिर में भक्त रात्रि जागरण व नृत्य करते हैं ।

चूड़धार मंदिर से संबंधित एक पौराणिक कथाएं प्रचलित है जिनसे भगवान भोलेनाथ के चमत्कारों का पता चलता है । उनमें से एक है कि एक बार चूरू नाम का शिव भक्त, अपने पुत्र के साथ इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आया था । पिता-पुत्र दोनों भ्रमण कर ही रहे थे कि अचानक बड़े-बड़े पत्थरो के बीच से एक विशाल व भयानक सर्प बाहर आ गया । वह भयानक सर्प चूरु और उसके पुत्र को मारने के लिए आ ही रहा था कि चूरु और उसके पुत्र ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करते हुए  भगवान शिव से विनती करते हुए  कहा कि हे प्रभु ! हमारे प्राणों की रक्षा कीजिए हम आपके आधीन है हमारी रक्षा कीजिये महादेव । तभी भगवान शिव  के चमत्कार से विशालकाय पत्थरो का एक हिस्सा उस सर्प पर जा गिरा,जिससे वह सर्प मूर्छित हो थो़डे क्षण में वहीं पर मर गया तथा चूरु तथा उसके पुत्र के प्राण बच गए। 

कहा जाता है कि इस घटना के  बाद से ही यहां का नाम चूड़धार पड़ा । तथा लोगों की श्रद्धा इस मंदिर में और अधिक बढ़ गई और यहां के लिए धार्मिक यात्राएं शुरू हो गई । 

एक बहुत बड़ी चट्टान को चूरु का पत्थर भी कहा जाता है जिससे धार्मिक आस्था जुड़ी हूई है‌।
चूड़धार एक पवित्र स्थान है जो भगवान शिव के सबसे खास तीर्थों में से एक माना जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि चूड़धार पर्वत के साथ लगते क्षेत्र मे यानि चूड़धार के पहाड़ी स्थल से भगवान हनुमान जी मूर्क्षित लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी लेकर आए थे।

जड़ी-बूटियों और वनस्पतियां यहां की हिमालय ढलानों की पहचान है । यह पर्वतीय पवित्र स्थल धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है । सदियों से यह हिमालयी स्थल जड़ी-बूटी विशेषताओं के लिए प्रमुख माना जाता है ।
चूड़धार के पर्वत पर अनेकों रंग-बिरंगे फ़ूल हैं जिसमें भोलेनाथ की  कृपा की अनोखी छटा देखने को मिलती है।  

शिरगुल महाराज , शिव के रूप में पूजे जाते हैं। 
उनकी आराधना के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से सावन की बारिश और खड़ी चढ़ाई के बावजूद यहां पहुंचकर मन्नतें मांगते हैं।

चूड़धार में जहां पर विशालकाय शिव प्रतिमा स्थापित हैं,वहां पर पहले प्राकृतिक शिव लिंग हुआ करता था। ऐसा भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने अपने हिमाचल प्रवास के दौरान यहां शिव की आराधना के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी। इसी स्‍थान पर एक चट्टान भी मिलती है। जिसे लेकर मान्‍यता है कि यहां पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे। कहा जाता है कि भक्तजन जब यहां पर सिक्का डालते थे, तो लंबे समय तक सिक्के की ध्वनि  सुनाई देती थी। कोई हादसा न हो इसलिए बाद में यहां पर शिवजी की विशाल मूर्ति बनाई गई । भक्तगण श्रध्दापूर्वक  शिवलिंग की पूजा अर्चना करते हैं । 

मंदिर के पास ही दो बावड़ियां हैं। मंदिर जाने वाले सभी श्रद्धालु पहले बावड़ी में स्‍नान करते हैं। उसके बाद मंदिर में प्रवेश करते हैं। एक मान्‍यता यह भी है कि मंदिर के बाहर बनीं दोनों बावड़‍ियों का जल अत्‍यंत पवित्र है। कहा जाता है कि इनमें से किसी भी बावड़ी से दो लोटा जल लेकर सिर पर डालने से सभी मन्‍नतें पूरी हो जाती हैं। यहां का जल बहुत ही शीतल व पवित्र होता है । चूड़धार की इस बावड़ी में भक्‍त ही नहीं बल्कि देवी-देवता भी आस्‍था की डुबकी लगाते हैं। 

इस क्षेत्र में जब भी किसी नए मंदिर की स्‍थापना होती है तब देवी-देवताओं की प्रतिमा को इस बावड़ी के पवित्र जल से स्‍नान कराया जाता है तथा स्नान के  बाद ही उनकी स्‍थापना की जाती है। चूड़धार की बावड़ी में किये गए स्‍नान को गंगाजल की भांति   पवित्र माना जाता है । 
इस पवित्र स्थान के बारे में शास्त्रों में भी यह कहा गया है कि श्रावण महीने में जो भी भक्त शिवालय में जाकर भगवान शिव के दर्शन, पूजा और शिव के महात्म्य का पाठ करता है, वह संसार के सभी सुखों को भोगता है। श्रावण महीने के सोमवार को कांवर में जल भरकर जो भक्त भगवान शिव पर चढ़ाता है और शिव महात्म्य का पाठ करता है या श्रवण करता है, उसकी मन की हर इच्छा पूरी होती है।सिरमौर जिले के सभी दूर दराज के स्थानों से श्रध्दालु भोलेनाथ का दर्शन करने आते हैं व अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु भोलेनाथ से प्रार्थना करने आते हैं । भक्तों का कहना है कि भगवान भोलेनाथ वचन के भूखे होते हैं यदि भक्तों की इच्छा पूरी है तो वे दोबारा प्रभु के दर्शन करने मात्र आ सकते हैं । भोलेनाथ भक्तगण सहित उनके पूरे परिवार पर आजीवन अपनी कृपा बनाए रखते हैं । 

सिरमौर ,चौपाल ,शिमला, सोलन उत्तराखंड के कुछ सीमावर्ती इलाकों के लोग इस पर्वत में असीम धार्मिक आस्था रखते हैं।   

दीपावली की अमावस्या तक चूड़धार श्रीगुल मंदिर के लिए भक्तों का तांता लगा होता है। चूड़धार नाम से इस चोटी पर स्थित भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए हर साल हजारों सैलानी यहां पहुंचते हैं।

चूड़धार में चूड़ेश्वर सेवा समिति की ओर से भंडारे की उचित व्यवस्था की जाती है । यहां कि रसोई में सात्विक भोजन मिलता है जो कि मन की शांति, संयम, और पवित्रता का प्रतीक होता है । भोजन में लहसुन व प्याज नहीं पड़ता है क्योंकि  इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हैं व वैज्ञानिक कारण भी बताते हैं। चूड़ेश्वर सेवा समिति द्वारा रहने के लिए भी सराय की उचित व्यवस्था हैै।

मंदिर के पूजारी व चूड़ेश्वर सेवा समिति की तरफ़ से अत्यंत बर्फ़बारी होने के कारण मई माह तक चूड़धार नहीं आने की सभी पर्यटकों व भक्तों को सलाह दी गई  है ।सर्दियों और बरसात के मौसम में यहां जमकर बर्फबारी होती है। यह चोटी वर्ष के ज्यादातर समय बर्फ से ढकी रहती है। हालांकि अगर बर्फबारी न हो तो दिसंबर माह तक मंदिर जाते हैैैं। लेकिन नवंबर माह में बर्फबारी व अत्यधिक ठंड होने के कारण मुश्किल हो जाती है।

इसलिए प्रत्येक वर्ष गर्मियों के दिनों में चूड़धार की यात्रा शुरू हो जाती है। यहां दर्शन के लिए देश ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु आते हैं।इस देवस्‍थान को ट्रैकिंग के लिए भी जाना जाता है।

चूड़धार पर्वत तक पहुंचने के दो प्रमुख रास्ते हैं।मुख्य रास्ता नौराधार से होकर जाता है तथा यहां से चूड़धार 14 किलोमीटर है। दूसरा रास्ता सराहन चौपाल से होकर गुजरता है। यहां से चूड़धार 6 किलोमीटर है।
खूबसूरत वादियों से होकर गुजरने वाली यह यात्रा सदियों से चली आ रही है। यदि कभी सिरमौर भ्रमण करने का अवसर प्राप्त हो तो सिरमौर जिले के इस पावन स्थल चूड़धार में भोलेनाथ के दर्शन करने अवश्य जाएं ।

✍️ रविता चौहान 
ग्राम-कांडों,डाकघर-दुगाना,तहसील-कमरउ 
जिला-सिरमौर(हिमाचल प्रदेश)

हिमाचली कहानी हिंदी अनुवाद सहित

"भला तुसां-ईं दस्सा"
                नवीन हलदूणवी

"भला आप ही बतायें"
                  नवीन हलदूणवी

असां दा ग्रां पंजराल हलदूण घाटिया च अन्ने दा घर हा।

हलदूण घाटी में हमारा गांव पंजराल अन्न का घर माना जाता था।

इसदे चौबक्खैं सत्तां-अट्ठां मीलां दीया दूरियां पर प्हाड़ सुज्झदे हे।

इसके चारों ओर सात-आठ मील की दूरी पर पहाड़ दिखाई देते थे।

उत्तर-पूर्व बक्खैं कांगड़े दी धौल़ाधार बरफू नैं ढकोइयो बड़ी छैल़ लग्गदी ही कनैं भ्यागा तिसा उप्पर सीरदा सूरज असां दे मने जो मोह्-ई लैंदा हा।

उत्तर-पूर्व की ओर सुदूर कांगड़ा की धौलाधार वर्फ़ से लदी हुई दुल्हन सी लगती और उस पर उगता हुआ सुबह का सूर्य मन को मोह लेता था।

मन इंह्यां झूमदा जिंह्यां सुरगे दे हुलारे हुंदा लेआ करदा।

मन ऐसे झूमता जैसे स्वर्ग हिलोरें ले रहा हो।

इसा धारा टप्पी करी हर साल सिआल़े दे दिनां च चंबा घाटी च रैह्णे ब्हाल़ा नाथो गद्दी अपणें परुआरे कनैं भेड्डां लेइयै असां दे ग्रांएं च पुजी जांदा हा।

इसी धार के साथ चंबा की वादियों में रहने वाला नाथो गद्दी सर्द मौसम में अपने परिवार और पशुधन के साथ हमारे गांव में हर साल पहुंच जाता था।

तिद्दे परुआर च चार माह्णु हे,सैह् कनैं तिद्दी लाड़ी,तिसदा मुन्नू कनैं मुन्नी।

उसके परिवार में चार जीव वह,पत्नी, लड़की और लड़का थे।

नाथो दा टब्बर तिद्दे इशारे ते चलदा हा।

नाथो का परिवार उसके इशारे पर चलता था।

सैह् सब्बोई भेड्डां चारी करी अपणियां जिंदगिया कट्टा हे करदे।

भेड़ें चरा कर जीवन जीना ही उन सबकी जिंदगी थी ।

 असां सब्बो ग्रां दे छोह्रू हर रोज संझा-भ्यागा नाथो ब्हाल पुजी जांदे हे।

हम सभी गांव के बच्चे सुबह-शाम नाथो के पास पहुंच जाते थे।

असां तिसजो गद्दी मित्तर गलांदे हे कनैं तिसदे मुकाबले च सैह् स्हांजो मता प्यार हा करदा।

हम उसे गद्दी मित्र कह कर पुकारते और बदले में वह हमें बहुत प्यार करता था।

भौंएं सैह् अनपढ़ हा अपर तिद्दा दमाग स्हांजो ते खरा हा।

चाहे वह अनपढ़ था पर उसका दिमाग बड़ा तेज था।

सैह् स्हांजो कदी-कदी कवित्तां जोड़ियै सुणांदा हा कनैं भिरी आक्खदा भई! तुसां बी कोई टोटका सुणा$।

कभी-कभी वह हमें कविताएं जोड़ कर सुनाता और हमें भी कविताएं सुनानें को कहता था।

         इक्क दिन स्हाड़े इक्कसी साथियैं बी एह् टोटका तिसजो सुणाया-
          "गद्दी आया,गद्दी आया,
           भोल़ा-भाल़ा गद्दी आया।
          बांक्का चोल़ू-टोप्पू पाया,
           अप्पू  कन्नैं  भेड्डां  लाया।
          सौह्णा-बांक्का  नूर  पाया,
          प्हाड़े दा एह् राजा आया।"

एक दिन हमारे एक साथी ने भी उसे कविता का एक टोटका सुनाया-.....
           "गद्दी आया , गद्दी आया,
            भोला-भाला गद्दी आया।
             सुंदर चोला-टोपी पाया,
            अपने साथ भेड़ें लाया।
             बढ़िया-बांका नूर पाया,
            पहाड़ों का राजा आया।"

    टोटका सुणियैं सैह् मता भारी खुस होया कनैं तिन्नी असां दे साथिये जो अग्गैं लिक्खणे तांईं बोल्लेया।

      टोटका सुन कर वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और हमारे उस साथी को और भी आगे लिखने को कहा।

उस दिने तेई स्हाड़े तिन्नी साथियैं बी प्हाड़ी भास्सा च -ई टोटके लिक्खणा सुरू करी दित्तेयो हन।

उसी दिन से हमारे उस साथी ने भी अपनी भाषा में टोटके लिखना शुरू कर दिये हैं।

             भौंएं नाथो हुण जबरा होई गेआ हा अपर जाल्हू सैह् गल्लां करदा तां तिसदा मुखड़ा फुल्लां सांईं खिली पौंदा हा।

           नाथो चाहे बूढ़ा हो चुका था पर बात करते हुए उसका चेहरा फूल की भांति खिल उठता था।

सैह् स्हाड़े बगै़र कनैं असां तिसदे बग़ैर इक्क दिन बी नीं गुज़ारी सक्कदे हे।

वह हमारे बिना और हम उसके बिना एक भी दिन अकेले नहीं गुज़ार सकते थे।

अपर सैह् तां कुदरत दा पुजारी कनैं पुराणे ख्यालां च रम्मेयां लकीरा दा फ़कीर हा।

पर वह कुदरत का पुजारी और पुराने विचारों मेंं रमा हुआ लकीर का फ़कीर था।

 अज्ज तौं दस साल पैह्लां जाल्हू सैह् सिआल़े दीया रुत्ता कट्टियै अपणे घरे जो जाणा लग्गा तां असां तिसजो बोलणा लग्गे कि भई!तू पलैं-पलैं जाणे-औणे छड़ी दे कनैं इत्थू-ई रैह्णा लगी पौ।

आज से दस साल पहले जब वह सर्द ऋतु काट कर अपने घर को लौटने लगा तो हम सबने उसे आने-जाने से छुटकारा पाकर यहीं रहने को कहा।

अपर स्हाड़ियां गल्लां सुणियैं तिद्दा मुखड़ा सिओउए सांईं लालोलाल होई गेआ कनैं तिन्नी गलाया--"भई!तुसां मूरख हन।दस्सा!अपणी जिंमीमाता जो कुण छड्डदा ऐ?जींदैं जी धरत नीं छडोई सक्कदी ऐ।मिंजो तां जिंमीमाता सुरगे ते बी बध प्यारी ऐ।"

परंतु हमारी बात सुनकर उसका चेहरा गुस्से में सेव की भांति लाल हो गया और उसने कहा--"आप मूर्ख हैं।भला कोई अपनी जन्मभूमि जीते जी छोड़ता है।मुझे मेरी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर प्यारी है।"

           एह् गल्ल गलाइयै सैह् अप्पू अपणे परुआरे कनैं भेड्डां लेइयै अपणे घरे जो चली गेआ।

यही बात कहकर वह अपने पशुधन और परिवार सहित घर को लौट गया।

 अज्ज सैह् सिआल़ा ठण्डू जो लेइयै इत्थू आई गेआ ऐ कनैं स्हाड़ा ग्रां पंग्गे डैम्मे दीया झीला दी छात्तिया हेठ दबोई गेआ ऐ।

आज फिर से सर्द ऋतु लौट आई है और हमारा गांव पौंग बांध के जलाशय में समा चुका है।

अपर सैह् गद्दी मित्तर स्हांजो हुण नीं मिलदा।

परंतु अब वह गद्दी मित्र हमें नहीं मिलता।

पता नीं हुण सैह् कुथू रैंह्दा ऐ?

पता नहीं अब वह कहां रहता है?

अपर स्हांजो तिद्दी याद भुल्ली नीं सक्कदी।

परंतु हमें उसकी याद सताती रहती है।

सैह् गलांदा हा--"भई! जिंमीमाता जो छड्डणा मूरखां दा कम्म ऐ।"

वह कहा करता था कि जन्मभूमि को छोड़ना मूर्खों का काम है।


 अज्ज असां अपणी जन्म भू: छड्डी दित्तीयो कनैं डंडा-डेरा चुक्कियै होरथी बस्सी गेओ हन।

आज हम अपनी जन्मभूमि छोड़ डंडा-डेरा उठा कर कहीं और बस गये हैं।

अपर असां सारे भारते जो अपणी जन्म भू: मन्नदे हां कनैं इत्थू दे माह्णुआं जो सुक्ख देणा अपणा धर्म समझदे हां।

परंतु हम सारे भारत को अपनी जन्मभूमि और यहां के लोगों को सुख देना अपना धर्म समझते हैं।

                            जे असां दे घर-घराट,नेड़-पड़ेस,खूह्-भणैंद,डल़-भाटियां,नात्ते - रिस्ते छड्डणे ते स्हाड़े देस्से दा भला होई सक्कदा ऐ तां असां अपणेआप्पे जो नाथो गद्दी मित्तर सांईं मूरख कैंह् मन्नियें?

यदि हमारे घर-घराट,नेड़-पड़ेस, खूह्-भणैंद, रिश्ते-नाते छोड़ कर कहीं दूर बसने से हमारे देश का भला हो सकता है तो हम अपने आप को नाथो गद्दी की तरह मूर्ख क्यों मानें?

भला तुसां-ईं दस्सा-भई! मूरख कुण कनैं इस च सच के ऐ ?

भला आप ही बतायें - भाई!मूर्ख कौन और इसमें सत्य क्या है?
           

✍️ नवीन हलदूणवी

काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।

Wednesday 19 February 2020

किसके पास

सुंदर   राग   अलापा   जी,
किसने किसको छापा जी?

भारत  मां  की  ताकत  को,
असली  किसने  नापा  जी?

झुठी  बातें  सुनकर  भैया,
किसने  खोया  आपा  जी?

ऊंची   पदवी   पाने   को,
कितना कौन कलापा जी?

सोच-समझ कर बात करो,
किसके  पास  बुढ़ापा  जी?

जीत 'नवीन' उसी की होगी,
जिसने  हरि  को  जापा जी।
            
✍️ नवीन हलदूणवी

काव्य-कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।

शराब से सस्ती हो गई ज़िन्दगी

हिमाचल में भी देखो अब 
लोगों का हुआ हाल खराब
महंगा हो गया सीमेंट और
सस्ती हो गई शराब
कहते हैं अब खुलेंगे
रात 2 बजे तक होटल व बार
पहले क्या नशा कम था
जो अब सस्ती कर दी शराब
युवाओं की ज़िंदगी तो
पहले ही हो रही थी बर्बाद
बस एक ही कमी रह गई है अब
उसे भी पूरा कर दो
सरकारी डिपुओं में भी अब
सस्ते राशन के साथ
सस्ती शराब की सप्लाई शुरू कर दो
एक तरफ कहते हो नशे
को खतम करना है
पर नए नए ठेके खोल कर
सरकारी खज़ाना भरना है
लोगों की ज़िंदगी से 
हो रहा खिलवाड़
भगवान ही मालिक है अब
जब खेत को खाने लगी है बाड़
दुनिया में कैसे हो गई 
इतनी मतलब परस्ती 
आदमी की ज़िंदगी हो गई
शराब से भी सस्ती

✍️ रविन्दर कुमार शर्मा

Tuesday 18 February 2020

नवीन हलदूणवी

लुतरा--पुतरा दे खड़कन्नू,
लीक्कां उकरा दे खड़कन्नू।

फसलां देस्सैं देन जुआड़ी ,
लुंगां  कुतरा  दे  खड़कन्नू ।

न्हस्सी  पौंदे  छेड़ा  सुणियैं ,
जाड़ां  उतरा  दे  खड़कन्नू।

हौल़ै   छात्ती  ठोरै   काच्छू,
 दौड़ी  उदरा  दे  खड़कन्नू ।

आस्सैं---पास्सैं डैंजकडींजा,
काल्हू  सुधरा  दे  खड़कन्नू ?

लाई  रोज  'नवीन'  भलेक्खा,
अप्पू  मुकरा  दे  खड़कन्नू ।।
           
✍️ नवीन हलदूणवी

काव्य-कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा,   हिमाचल।

Monday 17 February 2020

मरने री करो हुण त्यारी

तीजा डेथ वारंट 
हुई गया जारी
हुण नी बचणा
मरने री करो त्यारी
बतेरा जोर लाई लया
मज़ाक दित्या क़ानूना रा बनाई 
आखिर निर्भया कने न्याय
हुई कने रहणा
तुहें जितना मर्जी जोर
लवा लगाई
तीन मार्च जो हुई जांगी फांसी
आले बी नी आ परोसा
क़ानूना रियाँ कमियां रा
मिल्या करदा फायदा
देया कराएं अपु जो ही धोखा
क़ानून अया वाकया ही अंधा
बड़ी लगाया करदा देर
पर ऊंट पहाड़ा रे थले औणा ही औणा
आवे पावें देर सवेर

✍️ रविन्दर कुमार शर्मा

नवीन हलदूणवी

नेड़--पड़ेस्सी खूब छल़ी गे,
हिक्का उप्पर मुंग दल़ी गे ।

पाण  लगी  पे  डैंजकडींजा ,
मौक्का दिक्खी लोक छल़ी गे।

देस्से  लुट्टण  रोज  भढंडी,
उल़च-उचक्के अज्ज रल़ी गे।

धीड़ा    दे    गद्दार---गणैड्डे ,
वेवसुआस्सी  खूब  फल़ी  गे ।

के   फैदा  ऐ  पुतल़ा  फूक्की ,
बोट्टां पिच्छैं लोक टल़ी गे ।

माणुसता   बी  खड़ी  पटोऐ ,
'नवीन' प्ल़ोप्पे - प्यार अल़ी गे।।
.  
✍️ नवीन हलदूणवी

नाम-मिलन

अंबर भी  खादान नहीं है,
धरती तो  नादान नहीं है।

जान गई है  सारी दुनिया,
दिल अपना दूकान नहीं है।

जीवन पर अधिकार करेगा,
मालिक क्या भगवान नहीं है?

किसने झूठ सुझाया तुझको,
समय भला बलवान नहीं है?

मन का मोल चुकाना कैसे,
प्रेम बिना धनवान नहीं है?

राम 'नवीन' मिलेगी मंजिल,
नाम-मिलन आसान नहीं है।
                
✍️ नवीन हलदूणवी

महर्षि मार्कन्डेय

हमने कई ऋषियों और महर्षियों के बारे में सुना है तथा उनके जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है ! उन लोगों ने जीवन में इतना संघर्ष किया होता है कि वो एक महान व्यक्तित्व बन जाते हैं ! ऐसे ही एक महर्षि थे मार्कन्डेय ऋषि ! ऐसा माना जाता है कि मार्कन्डेय ऋषि केवल बारह वर्ष कि आयु लेकर आए थे लेकिन अपनी भक्ति और तपस्या के बल पर वह चिरंजीवी हो गए ! ऐसा माना जाता है की ब्यासपुर(अब बिलासपुर)की तपोस्थली पर दो महान हस्तियों ने जन्म लिया था जिनमे से एक महर्षि वेद ब्यास व दूसरे महर्षि मार्कन्डेय हैं ! बिलासपुर से लगभग 18 किलोमीटर दूर शिमला धर्मशाला वाया जुखाला राष्ट्रीय राज मार्ग पर जुखाला से लगभग तीन किलोमीटर अंदर की ओर मार्कन्ड नामक स्थान को महर्षि मार्कन्डेय का जन्म स्थान माना जाता है ! मार्कन्डेय ऋषि के जन्म के कारण ही पहाड़ी की तलहटी में स्थित इस रमणीक स्थल का नाम मार्कन्डेय पड़ा जिसे आजकल मार्कण्ड भी कहा जाता है ! ऐसा माना जाता है कि मृगश्रंग नाम के एक ब्रहंचारी यहाँ रहते थे ! उनका विवाह सुवृता से हुआ था ! उनके घर में एक पुत्र पैदा हुआ जो हमेशा अपना शरीर खुजलाता रेहता था  इसलिए मृगश्रंग ने उसका नाम मृकंडु रख दिया ! वह बहुत गुणी था तथा समस्त श्रेष्ठ गुण उसमें विद्यामान थे ! पिता के पास रहकर उसने वेदों का अध्ययन किया ! उसकी विवाह मृदगुल मुनि की कन्या मरुद्वती से हुआ ! मृकंडु जी का वैवाहिक जीवन शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा था लेकिन उनके घर कोई संतान नहीं थी ! इन दोनों ने कठोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया ! भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुये तथा वरदान मांगने के लिए कहा ! मुनि मृकंडु ने कहा कि यदि आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो मुझे संतान के रूप में एक पुत्र प्रदान करें ! भगवान शंकर ने तब  मुनि से कहा कि हे मुनि आपके भाग्य में संतान नहीं है लेकिन क्यूंकी आपने मेरी तपस्या की है और में प्रसन्न हूँ इसलिए में आपकी इच्छा पूरी करूंगा ! आपको पुत्र प्राप्ति का बरदान देता हूँ ! आपका यह पुत्र बहुत गुणवान होगा तथा मेरा ही अंश होगा लेकिन यह केवल बारह वर्ष तक जीएगा ! भगवान शिव ने उनको पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए ! समय आने पर मृकंडु के घर एक पुत्र ने जन्म लिया  जो बाद  में मार्कन्डेय ऋषि के नाम से प्रशीध हुये ! मृकंडु ने उन्हें हर प्रकार की शिक्षा दी !माता पिता के साथ रहते ग्यारह वर्ष बीत गए बाहरवां वर्ष आते ही माता पिता उदास रहने लगे ! पुत्र ने कई बार उदासी का कारण जानने का प्रयास किया ! एक दिन जब उन्होने बहुत जिद की तो मृकंडु ने उन्हें बताया की भगवान शंकर ने तुम्हें मात्र बारह वर्ष की आयु दी है और यह पूर्ण होने वाली है !यह सब सुन कर उन्होने कहा की आप चिंता ना करें मैं गुरु वेद ब्यास जी के मार्गदर्शन में ब्यास गुफा के पास शतद्रु(सतलुज) के किनारे महाकाल की आराधना करूंगा ! इसके बाद वह पत्थर पर बने शिवलिंग के सामने तपस्या में लीन हो गए ! उन्होने भगवान शंकर को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया तथा भगवान शिव ने उन्हें चिरंजीवी होने व चिरयुवा होने का वरदान दिया ! ऐसा माना जाता है कि आज भी महर्षि मार्कन्डेय ब्यास गुफा के भीतर ध्यान में हैं ! भक्तों के दुख निवारण के लिए वह आज सम्पूर्ण ब्रह्मांड में विचरण करते हैं ! उन्हीं के ऊपर महर्षि वेद ब्यास ने मार्कन्डेय पुराण की रचना की थी ! मार्कन्डेय पुराण का स्थान अठारह पुरानों में कहीं दूसरा,कहीं सातवाँ तथा कहीं बारहवाँ है ! इसका पौराणिक साहित्य में विशेष महत्व है ! इस तीर्थ स्थल पर बारह महीने पानी निकलता है जिससे निचली ओर के गावों की ज़मीनों की सिंचाई  भी की जाती है ! पहले यहाँ पर पुराना मंदिर था तथा यात्रियों के लिए भी कोई खास व्यवस्था नहीं थी लेकिन कुछ समय पहले एशियन विकास बैंक के सहयोग से हिमाचल पर्यटन विभाग द्वारा इस धार्मिक स्थल का जीर्णोद्धार किया गया है ! इस मंदिर के कायाकल्प पर दस करोड़ रुपए खर्च किया जा रहे हैं !जो नया भवन बनाया गया है उसमें एक प्रबचन हाल बनाया जा रहा है जिसमें लगभग एक हज़ार लोगों के बैठने की व्यवस्था होगी ! इसके साथ गाड़ियों के लिए पार्किंग की व्यवस्था की गई है जिसमें 70 गाडियाँ खड़ी हो सकती हैं ! लंगर भवन,रसोई घर ,दो छोटे हाल,छ: कमरे जिनके साथ अटेच्ड बाथ रूम,एक वी वी आई पी कमरा जिसके साथ किचन,बाथ रूम अटेच है बनाए गए हैं ! दुर्गा माता,राधा कृशन व शिवजी के मंदिरों में एकादश रुद्र व द्वादश ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया गया है !पुरानी सराय के 20 कमरों का भी जीर्णोद्धार किया गया है ! इन सब के ऊपर नई छतें डाली गई हैं ! बच्चों के लिए एक छोटा पार्क भी बनाया गया है ! पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए फब्बारे भी लगाए गए हैं ! बैशाखी मेले में कुश्ती के लिए अलग से स्टेडियम का निर्माण किया गया है ! नए बनाए गए भवन में 15 दुकानों बनाई गई हैं जिनको किराए पर दिया गया है ! विवाह शादियों में धाम बनाने के लिए पक्की “चर” की व्यवस्था की गई है जिसमें फायर ब्रीक्स लगाई गई हैं ! 
इस मंदिर में आम दिनों में लगभग एक सौ श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं ! पुर्णिमा,शनिबार, रविवार, सक्रांति, ग्रहण व त्योहारों पर ज़्यादा लोग आते हैं ! यहाँ हर वर्ष 12 से 15 अप्रैल तक बैसाखी पर मेला लगता है ! ऐसी मान्यता है कि यहाँ स्नान करने से लोगों को चर्म रोगों व बच्चों के रोगों से मुक्ति मिलती है ! मेले में कुश्तियों का आयोजन होता है जिसमें पूरे भारत वर्ष के नामी गिरामी पहलवान भाग लेते हैं ! ज्येष्ठ तीर्थ होने के कारण चार धाम यात्रा के बाद मार्कन्डेय तीर्थ में स्नान आवश्यक माना गया है ! यहाँ पर महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग अलग स्नानागार की व्यवस्था की गई है ! स्नानागार में महिलाओं के लिए अंदर ही कपड़े बदलने की व्यवस्था है ! पित्र पैसाची पर यहाँ बहुत लोग दर्शन करते हैं ! यहाँ साफ सफाई की व्यवस्था स्थानीय स्तर पर ही की जाती है !सरकार द्वारा ट्रस्ट की स्थापना की गई है लेकिन अभी तक पूरी तरह से काम नहीं कर रही है ! लगभग 40 विद्युत व सोलर लाइटें लगाई गई हैं जिनका बिल विभाग अदा करता है ! मंदिर का पूरा प्रांगण टाइलें लगा कर पक्का कर दिया गया है ! हालांकि इस मंदिर के जीर्णोद्वार पर 10 करोड़ खर्च किए गए हैं लेकिन जो असली पुराना मंदिर है उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया है ! दीवारों से प्लास्टर झाड़ रहा है तथा उसमें बारिश होने पर पानी अंदर आ जाता है जिससे श्रद्धालुओं को खड़ा होने में परेशानी होती है ! पूरे मंदिर परिसर का कायाकल्प कर दिया गया है लेकिन पुराने मंदिर की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया है । मेलों के दौरान यहाँ कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस की व्यवस्था होती है ! मार्कन्डेय से शिमला व बिलासपुर के लिए एक सरकारी बस चलती है ! यहाँ श्रद्धालुओं के लिए ठहरने व खाने की निशुल्क व्यवस्था की जाती है ! मंदिर के पीछे पहाड़ी पर एक गुफा है जिसे ब्य्यस गुफा के नाम से जाना जाता है ! इसे अब बंद कर दिया गया है ! बताया जाता है कि इसी गुफा के रास्ते से ऋषि मार्कन्डेय के गुरु वेद ब्यास जी प्रतिदिन मार्कण्ड में स्नान करने आते थे ! जब भी मार्कन्डेय को किसी मार्गदर्शन की आवश्यकता होती थी तब वेद ब्यास जी तुरंत इसी मार्ग से यहाँ आते थे ! इस गुफा के अंदर आज तक कोई नहीं जा सका है केवल किवदंतियाँ ही हैं जो प्रचलित हैं ! यहाँ पहुँचने के लिए बिलासपुर जिला मुख्यालय से जुखाला तक सीधी बस सेवा व उसके आगे टैक्सी से जा सकते हैं तथा टैक्सी से जाने वाले सीधा मार्कण्ड मंदिर तक टैक्सी से जा सकते हैं !

✍️ रविन्दर कुमार शर्मा