Monday, 24 February 2020

सिरीरंगे दा बिआह् (श्रीरंग का विवाह) ✍️ नवीन हलदूणवी


             इक्कसी ग्रांएं च इक्क लम्बरदार रैंह्दा हा।

                     एक गांव में एक नम्बरदार रहता था।

तिद्दे घर लुआद नीं ही हुंदी।

उसके घर में संतान नहीं होती थी।

तिन्नी लुआदा तांईं केई पुट्ट-निट्ट कित्ते।

उसने सन्तान के लिए कई उपाय किए।

अखीरे च तिद्दे घर इक्क पुत्तर जम्मेआं।

आखिर में उसके घर एक पुत्र ने जन्म लिया।

पुत्तर दिक्खणे जो बड़ा सुरैक्खा अपर अक्खीं ते नफिट्ट अन्हां हा।

पुत्र देखने में अति सुन्दर परंतु आंखों से पूर्णतया अन्धा था।

लम्बरे जो तिद्दा ज़ल़ब तां मता होया अपर बिधात्ते दीयां लिक्खियां सिर-मत्थैं मन्नियैं तिद्दी पाल़ना चांएं-चांएं करना लगी पेआ।

नम्बरदार को उसका अत्यंत दु:ख हुआ परंतु बिधाता के लेख को सत्य मान कर उसका पालन -  पोषण बड़े चाव से करने लग पड़ा।

घरे च परोह्त सदाइयै,सब्बो चज्ज-चार करियै तिन्नी तिद्दा नां "सिरीरंग"रक्खेआ।

घर में पंडित जी को बुलवा कर,सभी रीति-रिवाज करके उसने उसका नाम "श्रीरंग" रखा।

जुआनियां च आइयै सिरीरंग तगड़ा गभरु निकल़ेया।

            जवानी में आकर श्रीरंग शक्तिशाली  जवान निकला।

हुण लम्बरैं तिद्दी टैह्ल - सिओआ तांईं नौकर बी रक्खी दित्तियो हे।

अब नम्बरदार ने उसकी देखभाल के लिए नौकर भी रख दिये थे।

लम्बरे दी घरे ब्हाल़ी मुन्नुएं दे बिआह् तांईं हर रोज़ रीणी पाणा लगी पेई।

नम्बरदार की पत्नी दिन प्रतिदिन बेटे के विवाह की बात दोहराने लगी।

तंग आइयै लम्बरैं दूरे-दूरे तिक्कर मुन्नुएं जो बिआह्णे दा ढंढोरा पिटुआई दित्ता।

तंग आकर नम्बरदार ने दूर-दूर तक बेटे के विवाह का ढिंढोरा पिटवा दिया।


         ढंढोरा सुणियैं दूरे दे ग्रांएं ते इक्कसी काणिया कुड़िया दा बब्ब लम्बरे ब्हाल पुज्जेआ।

ढिंढोरा सुनकर दूर गांव से एक कानी कन्या का बाप नम्बरदार के पास पहुंचा।

सैह् बी तंग आया हा।

वह भी तंग आया था।

तिद्दिया कुड़िया दा बिआह् बी  होरसी थां नीं हुआ हा करदा।

उसकी कन्या का विवाह और जगह नहीं हो रहा था।

तिन्नी कुसी ते बी पुच्छ-गिच्छ नीं कित्ती?

उसने किसी से भी पूछताछ नहीं की।

दूर खड़ोइयै मुंड्डू दिक्खेआ कनैं लम्बरे नैं बिआह् दी गल्ल पक्की करी लेई।

दूर खड़े होकर लड़का देखा और नम्बरदार से विवाह की बात पक्की कर ली।

तिसजो अन्दरली मरज़ा दा पता नीं चल्लेया।

उसको भीतरी बीमारी का पता न चला।

लम्बर बी अन्दरो-अन्दर खुश हा।

नम्बरदार भी अन्दर ही अन्दर खुश था।

तिन्नी बी कुड़िया दे बब्बे ते होर कोई छाण-बीण नीं कित्ती।

उसने भी लड़की के बाप से और कोई छानबीन नहीं की।

कुड़िया दा बब्ब नात्ता पक्का करियै अपणे घरे जो परतोई गेआ।

लड़की का बाप रिश्ता पक्का करके अपने घर को लौट गया।

     समां औणे पर लम्बर पग्ग बन्हियैं सिरीरंगे जो सजाई बणाइयै खास्से च बिठयाल़ी जनेत्ता सौग्गी पुत्तरे जो बिआह्णे चली पेआ।

समय आने पर नम्बरदार पगड़ी बांध श्रीरंग को पालकी में बैठा कर बारात के साथ बेटे का विवाह करने चल पड़ा।

कुड़मां दे ग्रांएं च पुज्जणे परंत मिलणी होई।

समधियों के गांव में पहुंचने के पश्चात दोनों पक्षों का मिलन हुआ।

फ़ी लग्न-वेदीं बी होणा लगी पेइयां।

फिर लग्न-वेदीं भी होने लग पड़ीं।

तित्थू दी जनानियां लाड़े दिक्खी खुश होई गेइयां।

वहां की औरतें लाड़े को देखकर प्रसन्न हो गईं।

सब्बो जणियां खुशी-खुशी गाणा लगी पेइयां।

सभी औरतें प्रसन्नतापूर्वक गाने लग पड़ीं।

गीत्ते दे बोल हे--- "स्हाड़िया काणियां जग मोह्-ई लेआ।
वो इन्ना काणियां जग मोह्-ई लेआ।।"

गीत के बोल थे---"हमारी कानी ने संसार को मोह लिया।
                        वो इस कानी ने संसार को मोह लिया।।"

 फ़ी सब्बो जणियां थिड़-थिड़ हस्सणा लगी पेइयां।

                फिर सभी औरतें खिलखिला कर हंसने लग पड़ीं।

जनेत्ता जो कुड़िया दे काणीं होणे दा पता चली गेआ।

बारात को लड़की के कानी होने का पता चल गया।

अपर तिन्हां उप्पर इसा गल्ला दा कोई असर नीं होया।

परंतु उन पर इस बात का कोई प्रभाव नहीं हुआ।

कैंह्जे सिरीरंग बी तां नफिट्ट अन्हां हा?

क्योंकि श्रीरंग भी तो पूर्णतया अन्धा था?


 इत्तणे च जनेत्ता सौग्गी आइयो डूमणेयां बी नगारा कनैं पीपणियां बजाणा सुरु करीत्तियां।

     इतने में बारात के साथ आए बाजेवालों ने नगारा और शहनाई बजाना शुरू कर दिया।

तिन्हां दे बोल हे-----
  "तुहाडड़ी कानणी सैह् स्हाडड़ैं लेक्खैं। 
स्हाडड़ा सिरीरंग दूंईं अक्खीं नीं देक्खै।।"

उनके बोल थे-----
    "आपकी कानी हमारे है हिस्से।
 हमारा श्रीरंग दो आंखों न देखे।।"

         एह् सुणदेयां-ई जणास्सां सुन्नमसुन्न होई गेइयां।

इसे सुनते ही औरतों में चुप्पी छा गई।

कुड़िया ब्हाल़ेयां दे मुखड़े पील़े पेई गे अपर हुण सैह् के करी सक्कदे हे?

लड़की वालों के चेहरे पीले पड़ गये परंतु अब वह क्या कर सकते थे?

कुड़िया दीयां लौंआं सिरीरंगे नैं होई गेइयां हियां।

लड़की के फेरे श्रीरंग के साथ हो गये थे।

कुड़िया ब्हाल़ेआं कुड़िया जो सिरीरंगे सौग्गी विदा करीत्ता।

लड़की वालों ने लड़की को श्रीरंग के साथ विदा कर दिया।

जनेत्ती खुशी-खुशी अपणे ग्रांएं जो परतोई आए।

बारात प्रसन्नतापूर्वक अपने गांव को लौट आई।

        ✍️ नवीन हलदूणवी

काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला  कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।


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