Friday, 21 February 2020

पीणा पौणा सुढ़का जी

मन-मरजी  नैं  उड़का  जी,
कम्मे  ते  बी  छुड़का  जी।

ठेक्के अणमुक खोल्लीत्ते,
अपणे खीस्से झुड़का जी।

खंब्बल़ - खच्चा  पाई  नैं,
रात्ती तिक्कर भुड़का जी।

छोल्ले   भुन्नी   खाई   लै,
जिन्नी मरज़ी तुड़का जी।

घर-घर लोक्की तोप्पा दे,
छैल़  सलूणा  दुड़का  जी।

खेल  'नवीन'  दमाग्गे  दी,
पीणा  पौणा  सुढ़का  जी।

            ✍️ नवीन हलदूणवी

काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश।

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