Thursday, 27 February 2020

भारत का जयघोष

गुज़र गया अब दौर कठिन है,
अपना  तो  सिरमौर  वतन  है।

सत्य - अहिंसा  में  ही  बसता,
सचमुच चिन्तन और मनन है।

जाति - धर्म  की  दीवारों  में,
खिलता  जैसे  एक  चमन  है।

सिमट गई नफ़रत की दुनिया,
गगन-धरा  से  किया  गमन है।

गूंज   रही   देवों  की   वाणी,
घर-घर  देखो  खूब  अमन  है।

रोज   "नवीन"   सुनाई   देता,
भारत  का  जयघोष  नमन  है।
              
 ✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

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