Wednesday, 26 February 2020

कविता तो कस्तूरी है



कविता तो कस्तूरी है,
मानव-गंध जरूरी है।

धारा बहती भावों की. 
पाने  को  घी-चूरी  है।

शब्दों का तो मेल हुआ,
अर्थों  की  मज़बूरी  है।

जब हालात बिगड़ते हैं,
दिल में कितनी दूरी है?

जोर बढ़ा है  दंगों का,
चौराहे   पर   नूरी   है।

मान बढ़ेगा  भारत का,
आस "नवीन" अधूरी है।

 ✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

No comments:

Post a Comment