Tuesday, 25 February 2020

भाईचारा

भाईचारा सिर्फ इतना रह गया है जितना
भूखे पेट मज़दूर की थाली में 
शेष रहते हैं जूठे चावल,
सिर्फ इतना जितना
एक वर्ष पूर्व परिणय सूत्र में बंधी परिणिता 
अपने हाथों में छुपा कर रखती है
मेंहदी का रंग
भाईचारा सन्नाटे में पसरी 
पड़ोसन की व्यंग्यात्मक हँसी है
युद्ध की विनाशकारी ध्वनियों के मध्य
शेष जीवन जैसा है
भाईचारा विश्वास की आड़ में 
कत्‍ल की कहानी सा है
रेगिस्तानी सरहदों की प्यास में छिपी
आशा भर जैसा है
भाईचारा डिजिटल युग में
फाल्गुनी धूप-छाँव सा है
भार्इचारा सिर्फ चारा है।
                                  
✍️ डॉ० जय चन्द ‘उराडुवा
                                

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