पराविद्या शास्त्र मे सांचा पद्धति अपने आप मे विशेष स्थान रखती है। इस विद्धा मे सच जानने के लिए पाशे का प्रयोग किया जाता है। पाशे मे अंक गणित का सहारा लेकर सत्य तक पहुँचा जा सकता है।
पहले ये पाशा ऊल्लू पक्षी की हड्डी का बनता था। जैसे आप जानते ही है ऊल्लू रात को ही देख सकता है। जिसकी जिंदगी मे दुख ,क्लेश रुपि अंधकार आता था अंधकार विशेषयज्ञ ऊल्लू जी महाराज का सहारा लेकर पाशे से जांच पडताल करके देव, पित्री दोष, क्लेश कलह, दुख दारिद्रय, शत्रु बाधा या प्रारब्ध आदि का समाधान सहज ही मिलता था।
आधुनिक पाशे का निर्माण किसी विशेष लकडी के टुकडे ने ले ली है। अब ये पाशे पंसारी की दुकानो मे भी उपलब्ध है। पुरातन पाशों की तरह इन पाशों मे सत्य को परखने की कला इतनी प्रबल नहीं है। ये विद्दा धीरे धीरे लुप्त होने के कगार पर है। इसके जानकार बहुत ही कम रह गये है।
हमारे प्राचीन मंदिरों मे देव परम्परानुसार एक डाऊ होता था जिसको देव शक्तियों द्वारा ये पाशा दिया जाता था और उसको देव कृपा से सिद्ध किया जाता था उसके नियम बहुत ही कठिन होते थे। विरासत मे ये पाशा देवनीति द्वारा किसी सुपात्र को दिया जाता था। आज दिक्षा का अभाव होने से ये पाशा पद्धति लुप्त होने के कगार पर है।
जय देव नीति, जय सनातन धर्म
जय देव भूमि हिमाचल।
✍️ आचार्य संजीत शर्मा
श्री स्वामी जी ज्योतिष व पराविद्धा अंनुसंधान केन्द्र
कुमारसैन (पाऊची), जिला शिमला, हि.प्र.
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