Friday, 31 January 2020

भूल गई

भूल गई कविताई मुझको,
जब से तुम से मेल हुआ।

दुनिया में हैं बहुत झमेले,
हर पथ पर मैं फेल हुआ।

गद्दारों   ने   शोर   मचाया,
जीवन - यापन जेल हुआ।

भारत के इस भू-मंडल पर,
जब  भी  ठेल्लमठेल  हुआ।

होता  रहता  धूम -धड़ाका,
घाटी  अन्दर   खेल  हुआ।

खूब 'नवीन' धरा पर पिटता,
संस्कारों   का  तेल   हुआ।

✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

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