मेरे सहृदय मित्र व हिंदी साहित्य के साधक,गहन पाठक, चिंतक, लेखक, कवि,समीक्षक आदि बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. प्रभात कुमार 'प्रभाकर' द्वारा लिखित समीक्षात्मक पुस्तक "अज्ञेय की अलंकारधर्मिता के नव्य आयाम" अनंग प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित होकर हिन्दी साहित्यविदों, साधकों एवं पाठकों के कल कमलों में समर्पित हुई है। इस सृजनात्मक उपलब्धि के लिए सर्वप्रथम डॉ. प्रभात कुमार प्रभाकर जी को हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएं।
पुस्तक के शीर्षक से ही उसे पढ़ने की इच्छा बलबती रही जो पुस्तक की प्राप्ति के पश्चात उसे पढ़कर ही शांत हो पाई। अज्ञेय के काव्य में निहित अलंकारधर्मिता के विविध आयामों को जितनी सरलता से विश्लेषित किया गया है उससे हर पाठकों का उनके काव्य पर गहनता से चिंतन करने व उसे पढ़ने,समझने की जिज्ञासा बढ़ना स्वभाविक ही है। डॉ. प्रभात जी ने अपनी पुस्तक में अज्ञेय की काव्य-कला में अलंकारधर्मिता के नव्य आयाम को सूक्ष्मता से विवेचित व उदघाटित किया है। उनकी समीक्षा व विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि अज्ञेय परम्परा के पोषक एवं पक्षधर न होकर भी अलंकारों से पराङ्मुख नहीं थे बल्कि अलंकार्य के अनुरूप अलंकारों की उपयोगिता एवं उसका औचित्य उन्हें अभीष्ट था।
पांच अध्यायों एवं उपसंहार में प्रसृत यह समीक्षात्मक विवेचन, जिसमें अज्ञेय की अलंकारधर्मिता की पृष्ठभूमि, अज्ञेय का अलंकार-विषयक दृष्टिकोण, अज्ञेय के काव्य में शब्दालंकार, अज्ञेय के काव्य में अर्थालंकार, अलंकारधर्मिता के नव्य आयाम आदि अज्ञेय काव्य विषयक चिंतन को वेहद सरलता व सूक्ष्मता से विवेचित और विश्लेषित करने का उपक्रम किया है जो सिद्ध करता है कि अज्ञेय ने अपने काव्य में संवेदनात्मक भावभूमि पर ही अलंकारों का समुचित एवं संतुलित प्रयोग कर उसे संस्कारित किया है। उनके अलंकारिक उन्मेष से आधुनिक हिंदी कविता नए प्रतिमानों के साथ प्रफुल्लित व आलोकित हुई है।
अज्ञेय की साहित्य-सर्जना बहुमुखी एवं विविध आयामी हैं। इनकी प्रतिभा सृष्टि -विधायिनी है। इनकी काव्य- दृष्टि जितनी सूक्ष्म,पैनी,गहरी और अर्थवान है,उनका गद्य उससे भी कहीं अधिक सशक्त,संश्लिष्ट, चिंतनपरक और अर्थवान है। उन्होंने जिस भी विधा में अपनी लेखनी चलाई,उसी में अपना प्रतिमान स्थापित कर दिया। उनका लोकव्यापी अनुभव ,समाजपेक्ष चिंतन,वृहद ज्ञान, कलात्मक नैपुण्य,क्रांतिधर्मी आचरण,समर्थ नेतृत्व और बहुआयामी व्यक्तित्व उन्हें नई कविता का प्रवर्तक, पुरोधा,संयोजक एवं समीक्षक सिद्ध करता है। इतिहास चक्र में अज्ञेय जैसा अप्रतिम व्यक्तित्व कभी- कभार आविर्भूत होता है।
अज्ञेय के काव्य पर आधारित डॉ. प्रभात प्रभाकर जी का यह गवेषणात्मक प्रयास न केवल सराहनीय है बल्कि हिन्दी पाठकों का एक बहुत बड़ा वर्ग इससे कृत कृत्य होगा और अज्ञेय काव्य विषयक चिंतन पर शोध के रहे शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक राम बाण सिद्ध होगी ये कहना अतिश्योक्ति न होगी।
इस सफलतम प्रयास के लिए डॉ. प्रभात कुमार 'प्रभाकर' जी को पुनः बधाई एवं मंगलकामनाएं । आपकी साहित्य सर्जन धारा निरन्तर यूं ही बहती रहे जिससे हिंदी साहित्य जगत आलोकित होता रहे, मेरी यही कामना हैं। पुस्तक के सफल प्रकाशन के लिए प्रकाशक की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण रहती है। उनके अथक प्रयासों से ही पुस्तक अपना मूर्त रूप प्राप्त कर पाती है। इस पुस्तक के सफल प्रकाशन के लिए अनंग प्रकाशन व उनकी पूरी टीम को भी साधुवाद....।
अंत में, अज्ञेय जी की जीवन मूल्य को उजागर करती एक कविता "जितना तुम्हारा सच है" की पंक्तियाँ द्रष्टव्य है :-
कहा सागर ने : चुप रहो!
मैं अपनी अबाधता जैसे सहता हूँ,
अपनी मर्यादा तुम सहो।
जिसे बाँध तुम नहीं सकते
उस में अखिन्न मन बहो।
मौन भी अभिव्यंजना है
जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो।
✍️ डॉ. सुरेन्द्र शर्मा
ग्राम नमाणा, पत्रालय घूण्ड,
तहसील ठियोग, जिला शिमला
हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र : 9817101092
9418001092
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