गुरु की नगरी पांवटा साहिब में यमुना नदी के तट पर प्राचीन श्री देई जी साहिबा रघुनाथ मंदिर है। यह ऐतिहासिक व प्राचीन मंदिर लगभग 125 वर्षों का अपना इतिहास संजोए हुए है। कहा जाता है कि श्री देई जी साहिबा मंदिर का निर्माण 21 फरवरी 1889 ई0 को सिरमौर रियासत काल में रानी साहिबा कांगडा श्री देई जी साहिबा ने अपने भाई महाराजा शमशेर प्रकाश बहादुर जीसीएसआई की मदद से अपने पति व लम्बागांव (कांगडा) के राजा प्रताप चन्द बहादुर की याद में बनवाया था। यह रघुनाथ मंदिर महाराजा सिरमौर श्री शमशेर प्रकाश बहादुर द्वारा उनकी बहन के अनुरोध पर बनवाया था। राजकुमारी सिरमौर जिसे प्यार व आदर से देई जी साहिबा पुकारा जाता था की शादी लम्बागांव (कांगडा) के राजा प्रताप चन्द बहादुर से हुई थी। परन्तु दुर्भाग्यवश देई जी साहिबा छोटी आयु में ही विधवा हो गई। वापिस सिरमौर आ गई थी।
महाराजा सिरमौर ने इस मंदिर के साथ सराय का निर्माण भी करवाया था। मंदिर की व्यवस्था चलाने हेतू इसके साथ लगते तीन गांव जिनकी कुल भूमि 2400 बिघा थी। जो मंदिर को दान स्वरुप दे दी थी। हालांकि, अब ये भूमि अतिक्रमण से काफी कम रह गई है। कुछ हाई कोर्ट के आदेश के बाद कब्जे हटाये भी गए हैं। मंदिर की दिवारों पर कांगड़ा की पेंटिग भी रही है । रघुनाथ मंदिर के साथ ही बजरंगबली श्री हनुमान जी तथा शिवजी के छोटे मंदिर भी स्थापित किए गए हैं।
यह मंदिर ख़ुद में ही इतिहास समेटे हुए हैं प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर श्री देई जी साहिबा मंदिर पांवटा साहिब। मंदिर की दिवारों पर कांगड़ा शैली पेंटिग का अधिकतर हिस्सा अब तक का इतिहास बन चुका है। रियासत काल में बने इस मंदिर में भगवान श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण जी की मूर्तियां स्थापित है। पवित्र यमुना नदी व उत्तराखंड राज्य प्रवेश द्वार पर बना है यह मंदिर । गुरु की नगरी पांवटा साहिब में यह मंदिर भी धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से अपना विशेष स्थान रखता है। प्राचीन मन्दिर हिमाचल व उतराखण्ड को जोड़ने वाले यमुना पुल के साथ ही बना हुआ है। इस मंदिर के प्रांगण से यमुना नदी व आसपास का विहंगम दृष्य नज़र आता है। यहां आकर शहर की भागदौड़ भरी जिन्दगी से एक शान्ति का अनुभव भी होता है। इस मंदिर में पूजा पाठ के अलावा समय-2 पर धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ व भण्डारे आदि का आयोजन भी होते रहते है। इस मंदिर की भूमि पर बेहतर पार्क बनाने की योजना भी प्रस्तावित है।
इस श्री देई जी साहिबा मंदिर की दिवारों पर कांगड़ा पेंटिग भी बनाई गई । जो अब काफी पुरानी हो चुकी है। कुछ तो खराब भी हो गई थी। जो मरम्मत कार्य के दौरान ये कह कर की रि-स्टोर होगी,कह कर पुराना इतिहास हो बन गई। केवल कुछ कही भाग अब शेष बच पाया है। इस मंदिर के साथ ही एक यज्ञशाला भी बनवाई गई । जहां समय-समय पर यज्ञ भी किए जाते रहे हैं। साथ ही यमुना नदी के तट पर पुजारीघाट भी बना था। इस पुजारीघाट में एक प्राकृतिक जल स्त्रोत भी रहा।। जहां पर मंदिर के पुजारी रियासत काल से ही पूजा अर्चना से पहले स्नान करते रहे हैं।सन 1989-90 में मंदिर रखरखाव सरकार ने अपने अधीन लिया था । वर्ष 1989-90 में मंदिर रखरखाव सरकार ने अपने अधीन ले लिया था। जिसमें एक न्यास गठित किया गया है। इस न्यास के आयुक्त, उपायुक्त सिरमौर, सह आयुक्त, एसडीएम पांवटा व मंदिर अधिकारी तहसीलदार पांवटा साहिब स्थाई नियुक्त किए गए हैं। इस न्यास में कुछ सरकारी व गैर सरकारी सदस्य भी 5-5 साल के लिए नियुक्त किए जाते रहे हैं।
✍ सुरेश तोमर
तहसील-कमरउ, जिला-सिरमौर, हि.प्र.
मोबाइल न.- +91 85809 15238
ईमेल आईडी - stsuresh322@gmail.com
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