इन दिनो नवभारत का राष्ट्रवाद चरम पर है | राष्ट्रवाद का पोधा जो स्वतन्त्रता सेनानियो ने , ओर उस से पूर्व मे विदेशी आक्रांताओ से लड़ते हुए इस भारतवर्ष की पुण्य भूमि पर जन्मे अनेक वीर सपूतो ने रोपा था ,अब खूब फल फूल रहा है | वह अब एक छोटा पोधा न रह कर विकराल बरगद स्वरूप काया धारण कर चुका है |
विकरालता भी ऐसी की पेड़ की असंख्य शाखा अपने आप मे एक पेड़ है | और उन शाखाओ पर तरह -तरह के उल्लू अपने घोसले बनाए बेठे है , उन घोसलों मे बेठ कर नित्ये प्रति राष्ट्रवाद -राष्ट्रवाद की चहचाहट से लोगो को आतंकित करते रहते है | कुछ राहगीरो से तो आते जाते वो पूछ ही लेते हे की तुम राष्ट्रवादी हो या नहीं ? , अन्यथा तुम पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया जा सकता है | आम आदमी बेचारा सहमा- सहमा हामी भरता है | परंतु बाद मे वह सोंचता हे कि, आखिर ये राष्ट्रवाद बला क्या है ? , अब आम आदमी को रोजी रोटी कमाने से फुर्सत मिले तो जान पाये कि राष्ट्रवाद क्या है , फिर भी जब सुना सुनाया राष्ट्रवाद उसे थोड़ा समझ आया तो समस्या ओर विकट होती गई , उसने पाया कि विभिन्न शाख पर बेठे राष्ट्रवादी उल्लू अलग- अलग राष्ट्रवाद अलापते है | आम आदमी बेचारा कोन सा राष्ट्रवाद चुने ,कोन सा अच्छा है, कोन सा सच्चा है ,आखिर कोन से राष्ट्रवाद को वह स्वयम मे आत्मसात करे | ये सब प्रश्न उसके लिए बने रहते है |
दिन भर कि दोड़ धूप से थोड़ा समय शाम को जब निकलता हे तो TV के सामने बेठ कर देश दुनिया कि खबरों को जानने कि जिज्ञासा होती है , परंतु चेनलों पर भी वही राष्ट्रवाद का ज्ञान पेला जाता है |
अब आम आदमी जाये तो जाये कहा ? क्योंकि इन दिनो राष्ट्रवाद की स्थिति ओर भी विकराल रूप धारण कर चुकी है | दरअसल सतापक्ष का राष्ट्रवाद विपक्ष को हजम नहीं हो रहा | विपक्ष कि शाखा पर बेठे सभी दलो का माननना हे कि सतापक्ष का राष्ट्रवाद हमारे राष्ट्रवाद की जड़ो को खोकला कर रहा | इसलिए हम इसका विरोध करते है | और विरोध भी ऐसा की हम आमजन का जीना हराम कर देंगे ,फिर हमे हक हे कि हम सार्वजनिक संपति को जला कर राख़ कर सकते हे, सविधान हमे लोगो की गाड़िया, बसे, रिक्शा आदि तोड़ने की इजाजत देता है, और सरकारी संस्थानो मे भी तोड़ फोड़ कर सकते है , इन सब प्रयासो से ही राष्ट्रवाद जीवित रह सकता है| और राष्ट्रवाद बचाने के लिए उन लोगो की जान ही क्यू न चली जाये जिन्हे मालूम हि न हो की राष्ट्रवाद क्या है , तो जाये उन्हे फर्क नहीं पड़ता , पर राष्ट्रवाद जीवित रहना अति आवश्यक है | आम आदमी बेचारा करे तो क्या करे , उसके लिए राष्ट्रवाद गले की फास बन कर रह गया है | कभी गंभीरता से विचार करता है, तो पाता है, ये राष्ट्रवाद शब्द आया कहा से है और इसकी क्या आवश्यकता आन पड़ी ? यहाँ पहले से ही एक शब्द देशभक्ति मोजूद था, अब इन सब विचारो मे आम आदमी फिर चक्कर खाता है |फिर विचार करता है कि, देशभक्ति ओर राष्ट्रवाद एक ही खेत मे उगाई फसल है , परंतु लोग इसे अपनी -अपनी जरूरत अनुसार काटते है | इस तरह तथाकथित राष्ट्रवादी नेता आम जन के कंधो पर पाँव धर कर ऊंचाई नापने के लिए आमलोगों को बहलाते है , गुमराह करते है | फिर चाहे वह हिन्दू मुस्लिम करे, भारत तेरे टुकड़े हो करे, राष्ट्र्गान गाने मे शर्म महसूस करे , चाहे कोई भी देश विरोधी गतिविधि करनी पड़े | अंत मे थोड़ा शास्त्रो मे जो पड़ा लिखा ओर सुना था ध्यान आया, तभी जाकर कहीं थोड़ा राष्टवाद समझ आया , आम आदमी के लिए राष्ट्रवाद नित्य कर्म समाज के प्रति कर्तव्य निर्वाहन ओर लंका विजय पर श्री राम द्वारा लक्षमन को समझाया ही उचित राष्ट्रवाद है , जिसमे उन्होने कहा था की लंका विजय किसी भू भाग पर अधिपत्य के लिए नहीं बल्कि अधर्म का नाश धर्म के मार्ग पर चल कर करना है , इसलिए हमे सोने की लंका का लोभ नहीं है , क्योंकि जननी जन्मभूमि च: स्वर्गाद्पि गरियसी , अर्थात जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है इसलिए जन्मभूमि के प्रति पूर्ण समर्पण सच्चा राष्ट्रवाद है | जय हिन्द | जय माँ भारती |
✍️ गोविंद ठाकुर
अति सुन्दर
ReplyDeleteबड़े भाई .....क्या खूबसूरत ब्याक्या कि है आपनें .....बहुत हि लाजवाब भाई ...।
ReplyDeleteराष्ट्रवाद का स्वरूप बरगद का पेड़ ...। अति उत्तम भाई ।
"देशभक्ति और राष्ट्रवाद" इन दोनो शब्दो का आज बटवारा कर हि दीजिये ताकि ...देशभक्ति मे फिर कोई राष्ट्रवाद बीच मे आ कर certificate देता ना फिरे।
बड़े भाई .....क्या खूबसूरत ब्याक्या कि है आपनें .....बहुत हि लाजवाब भाई ...।
ReplyDeleteराष्ट्रवाद का स्वरूप बरगद का पेड़ ...। अति उत्तम भाई ।
"देशभक्ति और राष्ट्रवाद" इन दोनो शब्दो का आज बटवारा कर हि दीजिये ताकि ...देशभक्ति मे फिर कोई राष्ट्रवाद बीच मे आ कर certificate देता ना फिरे।
बड़े भाई .....क्या खूबसूरत ब्याक्या कि है आपनें .....बहुत हि लाजवाब भाई ...।
ReplyDeleteराष्ट्रवाद का स्वरूप बरगद का पेड़ ...। अति उत्तम भाई ।
"देशभक्ति और राष्ट्रवाद" इन दोनो शब्दो का आज बटवारा कर हि दीजिये ताकि ...देशभक्ति मे फिर कोई राष्ट्रवाद बीच मे आ कर certificate देता ना फिरे।