Thursday, 23 April 2020

महामारी या संदेश

कोविड-19 एक ऐसा नाम जिसने पूरे विश्व में डर का माहौल बना दिया है। ऐसी महामारी जो थमने का नाम ही नहीं ले रही, लाखों की संख्या में लोग इसकी चपेट में आ चुके है और ना जाने आगे यह संख्या कितनी बढ़ेगी? हैरानी तो तब होती है जब अमेरिका, फ्रांस,  ब्रिटेन, इटली जैसे विकसित राष्ट्रों के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। अपने आप को शक्तिशाली कहने वाले यह राष्ट्र भी “कोविड-19” को बस में नहीं कर पा रहे उद्योग धंधे,  पाठशालाएं, लोगों की आवाजाही सब कुछ बंद हो गया  है। पूरा विश्व ठहर सा गया है। 

लेकिन अगर दूसरे पहलू पर बात करें तो लगता है कि यह और कुछ नहीं प्रकृति का एक संदेश है मनुष्य के नाम मानो  प्रकृति  कह रही हो  कि “ए मानव संभल जा मुझे भी तो सांस लेने का मौका दे दे, वरना ! मेरा कहर ऐसा  बरसेगा  किं मुझे सोचने समझने का मौका भी नहीं मिलेगा।" धरती पर जन्म लेने वाला हर प्राणी धरती माता की संतान है,  चाहे वह मनुष्य हो या कोई जीव जंतु | सभी का धरती के  संसाधनों पर बराबर का अधिकार है ,  फिर मनुष्य इस अधिकार को किसी और से कैसे छीन सकता है?

वर्तमान स्थिति में मनुष्य को छोड़कर सभी जीव जंतु खुले में घूमने का आनंद ले रहे हैं | कभी गजराज को “हरकी पौड़ी” में नहाते देखा गया तो कभी बाघ को सड़कों पर घूमते हवा साफ हो गई है, उत्तर से लेकर दक्षिण तक की नदियों का जल स्वच्छ होकर पीने योग्य हो गया, शहर में जहां प्रदूषण के बादल छाए रहते थे वहां शीशे जैसे साफ बादल हो गए हैं,  लोग रात में आसमान में तारों को देख पा रहे हैं। प्रकृति आनंद विभोर होकर नाच रही है क्योंकि प्रकृति का दोहन करने वाला मानव आज अपनी ही कैद में बंद हो गया है। मनुष्य यह भूल चुका है कि प्रकृति का सौंदर्य भी एक अद्भुत उपहार है, इस को संजो कर रखना भी मनुष्य का ही कर्तव्य है। प्रकृति की शक्ति को पहचानना आवश्यक है वरना प्रलय हो सकता है। 

क्या आपको नहीं लगता यह महामारी के रूप में एक संदेश है जो हमारे जीने के तरीकों को बदलने के लिए कह रहा है? हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य कायम करने को कह रहा है। आज इंसान केवल दिखावे और पैसे के लिए भाग रहा है और अपने लालच और भूख को मिटाने के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है। हमें अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए हर पहलू पर पुनर्विचार करना होगा जैसे वस्तुओं का दोबारा उपयोग यानी रीसाइक्लिंग, शादियों और अन्य आयोजनों में सादगी लाना,  स्वदेशी उत्पादन पर जोर, सामूहिक दूरी बनाए रखना, शिक्षा देने के नए तरीके तलाशना जिससे कक्षा में भीड़ कम हो और समाजवाद को बढ़ावा देना इत्यादि। आज पूरे विश्व में  महात्मा गांधी के विचारों को प्रासंगिक करने का समय आ गया है। उनके आदर्श प्रकृति के साथ सामंजस्य को लेकर बहुत प्रबल थे। उस भारतीय चेतना को जगाने का समय आ गया है जो विश्व के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकती है।  इस महामारी को संदेश के रूप में लेकर कि आगे के जीवन को सफल करना ही मनुष्य का लक्ष्य होना चाहिए। 

✍️ कल्पना शर्मा

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