Monday, 27 April 2020

मूरख रोज परेल़ां पाए

माह्णू  करदा  हाए-हाए,
मूरख  रोज  परेल़ां  पाए।

छंदे - छूह्नीं-तरले - मिनतां,
गल्ला परती सगुण मनाए।

दो   नंबर   दे   धंधे   अंदर,
कुद्दी गलती कुण समझाए?

फरज़ी फंडे फरज़ी झगड़े,
टौरी  जो  बींडू  कुण  लाए?

भारत मां दा छैल़ लखारी,
सुच्चे छंदां अज्ज सुणाए।

तांईं होंग "नवीन" तरक्की,
दुनियां  जै-जैकार  गलाए।

      ✍️ नवीन हलदूणवी
मोबाइल - 8219484701
काव्य - कुंज जसूर_176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

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