दो दिन की जिंदगी है, विश्राम मत लीजिए।
मानवता का हो भला,सदकाम सदा कीजिए।
सुख सुविधा छोड़ दे तू जन परमार्थ के लिए,
तन मन धन अपना निष्काम अर्पण कीजिए।
हो भला स्वदेश का प्राणों का फिर भय क्यों,
सुकरात बन के हंस कर बिष प्याला पीजिए।
बैर भाव मन में ना हो अपना पराया एक हो,
श्रृद्धा सुमन नित प्रेम के हर दिल में बीजिए।
रोगीवियोगीभोगी ना आधिव्याधि जग में रहे,
परोपकारी कर्म से विपद सब हर लीजिए।
चुगली निंदा कभी भी हम किसी की ना करें,
हरहाल देखें हर्ष से अपनी मुसकान दीजिए।
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