लाख रंगों में बंटी
दुनिया में,
बिखर जाता है
कुदरत का जब, एक रंग
तो
झूम उठता है
होरी किसान!
नाच उठते हैं बच्चे,
झूमने लग जाते हैं
आभासी दुनिया के लोग।
पेड़ जो जानते हैं झुकना
आलिंगन करते हैं
अपनी जन्मदायिनी से
और जो नहीं चाहते,
झुकाना पीठ अपनी
धराशायी हो जाते हैं,
जड़ों समेत।
"संजीवनी" नाम मिला है
बर्फ को,पहाड़ों में
ऐसी बूटी
जो कुछ रोग
ऐसे ही खत्म कर देती है
होरी के!
और बढ़ जाती है छ:महीने
उम्र उसकी
किसानों की चांदी ही चांदी
की खबरों से।
सिक्के को पलट कर देखूं
तो अमृत छुपाए रखता है
ज़हर भी खुद में
ठीक ऐसे ही जैसे
ये फाहे, जब
गिरते होंगे सरहद पर
गिरते होंगे, जब
सड़क के किनारे खड़े
हांके गए पशुओं पर
और
गिरते होंगे जब उस इलाके में
जहाँ इस ठंडी आग
को पिघलाकर बनता होगा
फिर से पानी।
✍️ दीपक भारद्वाज
कुमारसैन, शिमला, हि. प्र.
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