जल रहा है दिन रात अब ये अमनों शहर।
बुझाते चले लोगों के दिलों का खौफे कहर।।
अजीब सी उलझन जनों के मनों में समायी।
अब के मिलें है फिर मिले ना मिले हम भाई।।
रहें घर में हम सब इस जारी ताकीद को मानों।
जग भलाई संग अपनी भलाई इस को जानों।।
चल पड़े जो मानवता की नयी डगर पे कदम।
यूंही चलते रहे ना रुके मानव का कोई कदम।।
✍️ हीरा सिंह कौशल
सुंदरनगर, मंडी।
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