अब सपना लगता है बचपने का वो भोलापन.
नहीं था दोगलापन हर तरफ सिर्फ अपनापन..
पलम खीरे चुरा के खाना वो था सपना सुहाना.
छुट्टियों में ग्वाले का दोपहर का वोअच्छा खाना.
बरसाती खड्ड में अच्छा लगता उसे पार कराना.
पार कराते उसका मुस्कराना लगता अब सपना
गुल्ली डंडा चोट तंगे का खेल है बड़ा मस्ताना.
मौज के इस खेल का अपना ही अंदाज सुहाना
सब स्वच्छंद था ना पड़ता था जिम्मेदारी निभाना.
✍️ हीरा सिंह कौशल
महादेव, सुंदरनगर
मंडी, हिमाचल प्रदेश।
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