कबूतरों का शोर आने पर मैं छत पर गई। मैंने पाया कबूतर आपस में पूछ रहे थे क्या किसी को पता है मानव कहाँ चले गए हैं? एक कबूतर बोला,भाई इक्का-दुक्का ही दिख रहे हैं।लगता है घोर बिपत्ति आ गई है।
मैं चुपचाप सुनती रही।
कबूतरों की सभा में चिडि़याँ, मैना और तोते भी आ गए।
सबको यही चिन्ता सता रही थी। आखिर मानव नज़र क्यूं नहीं आ रहा। मैंने रसोईघर से चावल लिए और उन्हें डालकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई।
पक्षी पँख फैलाकर झूमने लगे मानो मनुष्य को देख मन से खुश हुए। गौरेया धीमे स्वर में बोली ईश्वर इन्सानों की रक्षा करना। इन्हें सदैव खुश रखना क्योंकि ये आपकी सर्वश्रेष्ठ रचना है।
मुझे एहसास हुआ प्रकृति भी मानव से प्रेम करती है फिर मानव क्यूं निर्दयता दिखाता है?
अँधेरा होनें लगा, मैं अपने घर में परिवार के साथ व्यस्त हो गई। आधी रात को बाहर भयंकर शोर सुनाई पडा़।मैंने चुपके से देखा तो उल्लू चिल्ला रहे थे ,चमगादड़ खुश हो रहे थे। गौरेया,कबूतरों और अन्य पक्षियों को जो मानव के साथ दिन में सहानुभूति दिखा रहे थे उन्हें ये बुरी तरह डाँट रहे थे।
एक चमगादड़ बोला हे ईश्वर! तूनें तो रचना कुछ और ही की थी परन्तु तेरी कृति दम्भी निकली और विकृत हो गई। परीक्षण करता-करता मानव भी उसका शिकार हो गया। अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे। आपातकाल घोषित कर रखा है। जब जंगलों को गंजा करता था।हम मासूमों को अपने घर बनाने के लिए भी जगह नहीं देता था।हमें कच्चा तो कभी पकाकर खाने में ही उसे तृप्ति होती थी। मानव जाति नें भयंकर उत्पात मचाया था आज इनके प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाएगा।इन मानवों को अपने किए की सजा़ मिलनी ही चाहिए।
अति कहीं भी अच्छी नहीं होती।
सारे चमगादड़ जो़र से हँसने लगे।
उल्लू बोला मानव तो अपने स्वार्थ के लिए दूसरे मानवों को भी मार डालना चाहते हैं। जादू -टोने करते हैं तो कभी सामने से वार। हम मासूमों को अपने गलत कार्यों में शामिल करते हैं। इतने स्वार्थी मनुष्य कैसे हो गए ईश्वर भी पछताता होगा।पर अब अक्ल ठिकाने आएगी मनुष्यों की।
पृथ्वी माँ पर भारी हैं ये मनुष्य।
सभी चाहते हैं पाला हमें ही पहले छू ले। हमारी सन्तानें हीं खाएं दूसरों को देख जब कोई सन्तुष्ट नहीं तो ऐसे लोगों से पृथ्वी को भारमुक्त करना ही विधाता का सही निर्णय है।
सभी चमगादड़ पँख जो़र से फड़फडा़ने लगे और अपनी सहमति जताई।
उल्लुओं की चीख से सारा बातावरण आतंकित हो गया।
मैंने कान बन्द कर लिए।
हे ईश्वर! त्राहिमाम्........
यदि धरा पर बुराई है तो प्रभु तेरे प्यारे भी हैं जो जीवों पर दया दिखाते हैं। अपने उन बच्चों की तो रक्षा करना तेरा ही कर्त्तव्य है क्योंकि हम सब तेरी संतानें हैं।
मेरा रुदन सुन चारों ओर शाँति हो गई। जो पक्षी दिन में मनुष्यों का सुख माँग रहे थे चुपचाप सब सुन रहे थे वे भी उल्लुओं और चमगादडो़ं से कहने लगे सभी बुरे नहीं होते। हर एक को एक तराजू में नहीं तौला जा सकता।सुथरी सोच वाले मानवों के लिए आओ हम सब ईश्वर से प्रार्थना करें।
हे रात्रि में जागने वाले पक्षिराज भारत भू पर देवतुल्य मानव भी हैं जो प्रकृति को अपनी माँ समझते हैं। हम पक्षियों को भोजन देते हैं। यदि कोई भूल हो भी गई हो तो ये ज़रूर सुधरेंगे। इन्हें एक मौका अवश्य मिलना चाहिए।
आओ ईश्वर से सब प्रार्थना करें।
उल्लुओं का परिवार और चमगादड़ परिवार अन्य पक्षियों की बात से सहमत हो गया।
मुझे उनकी बातें सुन आशा की किरण जगती प्रतीत हुई।
✍️ प्रतिभा शर्मा
प्रवक्ता हिन्दी, रा.व.मा.पाठशाला
कल्चर, बिलासपुर, हि.प्र.
No comments:
Post a Comment