Monday, 16 March 2020

मन-मरजी की ज्योति


कविता से भी प्यास भली है,
लगता  जैसे  धूप  पली  है ।

अपने  घर  के  अन्दर  जैसे,
वृंदावन  की  कुंज  गली  है ।

भावों   नें   उत्पात   मचाया ,
उल्टे पथ पर आज चली है ।

शब्द-कोश के तीर अनोखे,
टाटगजूली  रोज  मली  है ।

मानवता  का  रोना  रोकर ,
भूखी जनता खूब छली है ।

भारत - भू  है सबसे न्यारी ,
 नारंगी  नव - रंग  डली  है ।

छन्द   "नवीन"  पुरानी  बातें ,
मन-मरजी की ज्योति जली है।

           ✍️ नवीन हलदूणवी

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