मदहोश हो जाता है आदमी
जब शब्दों का नशा हो जाता है
जब शब्दों का नशा हो जाता है
देख लिए जाम पी कर
मयखाने में बहुत
शब्दों से नशा हो जाता है
उठ जाते हैं उठाए जाते हैं
फलक तक आदमी यहाँ
अज़ब खेल ये शब्दों का हो जाता है
मुख से जो निकलते ही
पहचान करा देता है
किसी का बन जाए तो
किसी का बजूद खो देता है
पहचाने जाते हैं सभासद
इन शब्दों से
कोई पा जाता है
सिंहासन कोई मिट्टी में मिल कर
रो देता है
शब्दों के बिना चलता नहीं
चक्र जीवन का
शब्द ब्रह्म है ब्रह्माण्ड है
एक नशा है शब्द
चेहरे के रंग बदल देता है
लाल पीला कर देता है शब्द
आंखें बंद और आंखें
खोल देता है शब्द
शब्दों में नहीं सिमट सकता है शब्द
राजेश सारस्वत
शिमला, हिमाचल प्रदेश
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