Wednesday, 18 March 2020

म्हाचली कहानी हिंदी अनुवाद सहित

 दुहाजुए दा बिआह् - दूसरा विवाह
              

पछणोके युगे दी गल्ल ऐ।

पिछले युग की बात है।

पंजले दे हलके च पांजलू नां दा बाह्मण रैंहदा हा।

पंजल इलाका में पांजलू नाम का ब्राह्मण रहता था।

 जदूं तिद्दा बिआह् होया तदूं-ई तिद्दी लाड़ी मरी गेई कनैं सैह् तिसा दे मरने दे गमें च सुक्कदा - सुक्कदा सनैड्डू होई गेआ।

जब उसका विवाह हुआ तभी से उसकी पत्नी मृत्यु को प्राप्त हो गई और वह उसकी मृत्यु के शोक में सूखता हुआ तिनके जैसा पतला हो गया।

लोक्कां दे मींह्णेयां कनैं घरे ब्हाल़ेयां तिसजो दूआ बिआह् करने तांईं मजबूर करी दित्ता।

लोगों के उलाहनों और घर वालों ने उसे दूसरा विवाह करने को मजबूर कर दिया।

अपर सुआल तां एह् हा भई!दुहाजुए जो कुड़ी कुण दै?

पर प्रश्न तो यही था भाई! दूसरे विवाह वाले को लड़की कौन दे?

सैह् जमान्नां-ईं तदेआ हा।

वह समय ही वैसा था।

कुड़िया ब्हाल़े तां अकड़देई हे।

लड़की वाले तो अकड़ते ही थे।

             खैर नेड़े-तेड़े ब्हाल़ेयां दौड़-धुप्प कित्ती कनैं इक्कसी लम्बरदारे ब्हाल गे।

अच्छे नजदीकी लोगों ने कोशिश की और एक नम्बरदार के पास गये।

पैह्लां तां लम्बरदार बी लड़ नीं फड़ाये अपर जाल्हू तिसजो पंज सौ रुपेइया गुज्झा दा मिली गेआ तां तिन्नी बोल्लेया भई तुहाड़ा कम्म जरूर करी दिंगा।

पहले तो नम्बरदार भी लड़ न फड़ाये पर जब उसे पांच सौ रुपए काम के बदले में अग्रिम मिल गया तब वह बोला भाई ! आपका काम जरूर कर दूंगा।

लम्बरदारैं अपणे हलके च घुम्मियैं इक्क साम्मी लब्भी लेई।

नम्बरदार ने अपने इलाके में घूमकर एक जरूरत वाला ढूंढ लिया।

तिन्नी कुड़िया दे बब्बे जो दुहाजुए नैं अपणी कुड़िया बिआह्णे तांईं दो ज्हार रुपैइए दुआइयै राजी करी लेआ कनैं कुड़माई कराई दित्ती।

उसने लड़की के बाप को दूसरे विवाह वाले लड़के के साथ अपनी लड़की के विवाह हेतु दो हज़ार रुपए देकर राजी कर लिया और कुड़माई करवा दी।

अपर कुड़िया दे बब्बैं पैह्लैं-ईं दस्सीत्ता---भई ! कुसी जो बी दो ज्हार रुपैइए देणे तांईं दस्सणा मत,जे दस्सगे तां मेरी तुहाड़ी गल्ल कच्ची ?

पर लड़की के बाप ने पहले ही बता दिया --- भाई! किसी को भी दो हज़ार रुपए देने की बात बताना मत, यदि बताओगे तो मेरी तुम्हारी बात कच्ची?

        पांजलू तां मजबूर हा, अपर तिसजो एह् गल्ल अन्दरो-ई अन्दर खांदी रैंह्दी।

              पांजलू तो मजबूर था, परंतु उसे यही बात भीतर ही भीतर खाती रहती थी।

तिसदे सब्बो पैसे कुड़माईया च मुकी गे।

उसके सभी पैसे कुड़माई में ही समाप्त हो गये।

हुण तिसजो बिआह् दी सोच पेई गेई।
अब उसे विवाह की सोच पड़ गई।

तिन्नी घरे दे सब्बो थाल़ू-लोड़कू बिआह् कराणे तांईं ग्रांएं दे सहुकारे ब्हाल गैह्णे रखी दित्ते कनैं पैसे दुहार लेई ले।

उसने घरके सभी थाल-लोटे (बर्तन) विवाह हेतु गांव के साहुकार के पास गहने रख दिये और पैसे उधार ले लिए।

बिआह्-ए दा लीड़ा-लत्ता खरीदणे परंत जाल्हू तिन्नी पैसे मुकदे दिक्खे तां तिसजो जनेत्ता जो नदिया पार पुजाणे दी समस्या घेरी लेआ।

विवाह हेतु कपड़ा खरीदने के पश्चात जब उसे पैसे समाप्त होते दिखाई दिये तो उसे जनेत को नदी के पार पहुंचानें की समस्या नें घेर लिया।

तिन्नी इसा कमियां जो दूर करने तांईं कनैं किस्तीया दे मलाहे जो पार उतराई देणे तांईं अपणा इक्क झोट्टा कनैं होर डंग्गर बी बेची
 दित्ते।

उसने इस कमी को दूर करने हेतु और नाव के नाविक को पार उतराई देने के लिए अपना एक भैंसा तथा बाकी पशु भी बेच दिये।

 हुण सैह् लाड़ा बणियैं जनेत्ता सौग्गी सौह्रेयां दे ग्रांएं च पुजी गेआ।

            अब वह दुल्हा बनकर जनेत के साथ ससुराल के गांव में पहुंच गया।

तिसदा दूआ बिआह् होण लगी पेआ।

उसका दूसरा विवाह होने लग पड़ा।

लग्न-वेद होई गे।

लग्न-वेद हो गये।

सिरगुंदी बी होणा लग्गी।

सिर को सजाने का काम भी होने लगा।

उस ग्रांएं दीयां जणास्सां पांजलुए नैं छेड़-छाड़ करना लग्गियां।

उस गांव की औरतें पांजलू के साथ ‌शरारतें करने लगीं।

तिन्हां तिसजो गलाया-----जीजा!जीजा!छन्द सुणा।

पैह्लां तां पांजलू मुकरी गेआ।

पहले तो पांजलू इनकार कर गया।

अपर सैह् होर बी तंग करना लगी पेइयां।

परंतु वह अत्यधिक तंग करने लग पड़ीं।

पांजलुए जो बी मौक्का हत्थ आई गेआ कनैं तिन्नी अप्पू नैं बीत्तियां गल्लां जो ई छन्द बणाइयै झटपट सुणाणा सुरु करी दित्ता।

पांजलू को भी मौका हाथ लग गया और उसने अपने साथ घटी हुई बातों को ही छन्द बनाकर झटपट सुनाना शुरू कर दिया।

तिन्नी बोल्लेया -----
      "छंद  सुणो  जी  नेड़ैं  आई,
       छन्नी अग्गैं बूट्टा काइया दा।
        पंज सौ दित्ता गुज्झैं-गप्फैं,
        दो  ज्हार  कुड़माइया  दा।
       थाल़ू-गड़बू  गैह्णे  रक्खेया ,
       ते झोट्टा दित्ता लंघाइया दा।
  कुड़िया-बब्ब खिड़-खिड़ हस्सै,
    ते  रोऐ  बब्ब  जुआइए  दा।।"

उसने बोला-----
   "छंद  सुनो  जी  समीप  आई,
    घर  के  आगे  पौधा  काई  का।
    पांच   सौ   दिया   रिश्वत   में,
    दो    हज़ार    कुड़माई    का।
    लोटा-थाली  गहने  रख  दिये,
   भैंसा   दिया  है   उतराई  का।
    कुड़ी का बापू खुलकर हंसता,
   रोता     बाप    जबाई    का।।"

         छन्द सुणियैं केई जणास्सां हस्सणा लगी पेइयां कनैं केई डूह्गे सोच वचारां च पेई गेइयां।

          छंद सुन कर कई औरतें हंसने लग पड़ी और कई गहरी सोच-विचार में पड़ गईं ।

भेत खुल्ही गेआ कनैं ग्रांएं च घर-घर इसा गल्ला दा मैंझर पौंणा लगी पेआ।

भेद खुल गया और गांव में घर-घर इस बात की चर्चा होने लग पड़ी।

कुड़िया दा बब्ब लोक्कां दीया नज़रा ते गिरी गेआ।

लड़की का बाप लोगों की नज़रों से गिर गया।

अपर हुण तिक्कर पांजलू दूआ बिआह् कराइयै जनेत्ता सौग्गी लाड़िया लेई अपणे ग्रांएं जो चली गेआ हा।

परंतु अब तक पांजलू दूसरा विवाह करवा कर जनेत के साथ दुल्हन लेकर अपने गांव को चला गया था।

         ✍️ नवीन हलदूणवी

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