मुझ में भी औकात नहीं है,
कविता की सौगात नहीं है।
नाच रहे हैं चोर - उचक्के ,
भावों की बारात नहीं है।
धूमिल है पगडंडी जग में ,
शब्दों की बरसात नहीं है ।
बन्द पड़ीं चन्द्रौली - भगतें,
सुंदर दिन औ' रात नहीं है ।
कड़वाहट का जोर बहुत है ,
अब तो मीठी बात नहीं है।
विंव 'नवीन' लगे हैं झड़ने ,
फूल बसंती पात नहीं है ।।
✍️ नवीन हलदूणवी
दूरभाष - 8219484701
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।
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