Thursday, 19 March 2020

मुझ में भी

मुझ में भी औकात नहीं है,
कविता की सौगात नहीं है।

नाच रहे हैं चोर - उचक्के ,
भावों  की  बारात  नहीं  है।

धूमिल है पगडंडी जग में ,
शब्दों की बरसात नहीं है ।

बन्द पड़ीं चन्द्रौली - भगतें,
सुंदर दिन औ' रात नहीं है ।

कड़वाहट का जोर बहुत है ,
अब तो मीठी  बात  नहीं  है।

विंव 'नवीन' लगे हैं झड़ने ,
फूल बसंती पात  नहीं  है ।।

          ✍️ नवीन हलदूणवी
दूरभाष - 8219484701
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

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