Sunday, 19 January 2020

जौ बाग, चूहा बाग

एक समय की है यह कहानी
वर्षा हुई न मिला न पानी
खड्डें सूखीं झरने सूखे
बावड़ी रीति पोखर रूखे।
पहाड़ पर ऊपर से नीचे
हो गये सब बेहाल।
खेत न उपजे क्यारी सूनी
पड़ गया यहां अकाल।

शिखर विराजी हाटू माता
‌तरह तरह से मनावें
लोग आकाश से आस लिये
याचक बन हाथ उठावें।
देव देवियां पूछीं सब
कुदरत देवी नाराज़
एक ही हल - करो हाटू में 
जौ बोने का काज।
जौ बोये जो उग आये
जय करते जन नाद
पूरा समतल हरा हो गया
नाम पड़ा जौ बाग।

वर्षा उमड़ी मिट्टी सुलझी
धरा हुई खुशहाल
किसान सुरीला हो गया, भर ली
खान्दें ओर कुठार।
हाटू से सतलुज तक तब से
बंपर पैदावार
रामपुर के लालों नें
भरे वृहद भण्डार।

बिल से निकले भूखे चूहे 
चखने लगे अनाज
कुतुर कुतुर कानों में आती 
रात रात आवाज़।
लालों नें अपने गोदाम को
अलग लिया भू भाग
धीरे-धीरे चूहे बढ़ गये
बन गया चूहा बाग।

✍️ धर्म पाल भारद्वाज

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