Saturday, 8 February 2020

विकास के सहायक अवयव

किसी भी देश व समाज के विकास के लिए जाति, धर्म, भाषा और राजनीति बहुत मायने रखती है। जहाँ पर समाज बहुत सारी जातियों में बंटा हुआ हो वह देश कभी उन्नति नहीं कर सकता। 

उल्टे वहाँ पर समाज कई भागों में बंट जाता है और द्वेष से युक्त होकर एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगा रहता है।हमारा समाज भी ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र इनमें भी ब्राह्मण भट, पजैरा, महा ब्राह्मण, पांडा वैसे ही क्षत्रीय ठाकुर, कंवर, राजपूत न जाने कितनी उपजातियों में बंटा है।

वैश्य और शूद्रों में भी ये उपजातियों की समस्या आड़े आती रहती है जो किसी भी समाज के लिए अच्छी साबित नहीं हुई, और न ही कभी होगी। दूसरा कारण धर्म है। आप सब देखते हैं कि हमारा समाज भी धर्मों के आडम्बरों से भरा पड़ा है। यहाँ पर भी सभी धर्मों के लोग रहते है और एक दूसरे धर्म को घृणाभाव से देखते हैं। रातनीति की रोटियाँ भी इन्हीं जाती और धर्म के नाम पर सेकी जाती हैं ।धर्म का मुख्य उद्देश्य तो सबको संस्कारी और प्रेम युक्त बनाना होता है।

परंतु जहाँ पर भिन्न भिन्न धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं वहाँ पर कुछ अपवाद भी उत्पन्न होते हैं जो एक दूसरे के प्रति प्रेम नहीं अपितु नफरत का ज़हर उगलते रहते हैं। धर्म कभी भी किसी अन्य धर्म के प्रति घृणा का भाव नहीं रखता परंतु फिर भी धर्म के ठेकेदार इस तरह दूसरे धर्म के प्रति नफरत फैला देते हैं

जिससे आस्थावान व्यक्ति इस तरह तटस्थ होते हैं कि वो मानवता को भूल कर केवल मात्र धर्म के ठेकेदार के प्रति अंध भक्ति से सराबोर हो जाते हैं। भाषा की उपयोगिता भी इस संदर्भ में अपनी महता रखती है।देश की प्रगति के लिए भाषा का योगदान भी बहुत मायने रखता है।अनेक भाषाओं का ज्ञान होना बहुत अच्छा लेकिन एक देश में सिर्फ एक ही भाषा को होनी चाहिये। उसी भाषा में सभी राजकीय कामकाज होना चाहिए। इसका भी सकारात्मक परिणाम सकते हैं ।विश्व के कई देशों में देखते हैं कि वहां पर पूरे देश में एक ही भाषा पर अधिकतर ध्यान दिया जाता है, जो देश की राष्ट्रीय भाषा होती है जिसकी लोकतांत्रिक प्रणाली में अहम भूमिका होती है। उपरोक्त तीनों बातें ऐसी हैं जो राजनीति का शिकार हो गयी है।

राजनेता जाति, धर्म और भाषा को अपनी राजनीति का आधार बनाकर लोगों में नफरत फैला कर व फूट डाल कर सता को कब्जाने का काम करते रहते हैं, जो देश और समाज के लिए एक बहुत बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं। आज जरुरत है कि इन सभी बातों से ऊपर उठकर देश और समाज के हित के लिए, विकसित देशों नाम दर्ज करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाए। ये तभी संभव है जब प्रत्येक व्यक्ति समाज के कल्याण, सुखद जीवन की सोच बनाकर जाती और धर्म को पीछे छोड़ कर मानवता को कायम रखने का प्रयास करें।

✍️ राजेश सारस्वत

1 comment:

  1. बहुत सुंदर। यतः अभ्युदयस्य निस्श्रेयस सिद्धिःस धर्मः।धर्म नहीं सिखाता आपस में वैर रखना।

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