दादी मां की दिनचर्या ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। जब तक दादी मां थी तब तक बेफिक्र था हर कोई। सुबह उठकर स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देना दादी मां का पहला कार्य होता था। इसके बाद रसोई घर में झाडू लगाना, सब के लिए नाश्ते का प्रबंध करना इन कार्यों को करते हुए भी राम राम का स्वर मेरे कानों तक पहुंच जाता।यह मेरे समय का अलार्म था। इसके बाद आंगन में बैठ कर चिड़ियों को दाना डालना, चिड़ियों से गुफ्तगू करना ये सब मुझे बहुत ही आकर्षित करता था।
आज दादी मां को गुज़रे कई साल हो गए। मैं आंगन के दलान पर चिड़ियों को दाना डालने जाता हूं मगर मेरे समीप आज तक कोई चिड़िया नहीं आती।मुझे आज पहली बार ये एहसास हुआ कि चिड़ियां दानों की नहीं दादी के प्रेम की ही भूखी थी।
✍️ सतीश शर्मा
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