पूछने पर एक दिन तुम्हारे
कि--
क्या है मेरे प्रेम की परिभाषा तुम्हारे प्रति?
खड़ी थी मैं निरुत्तर-सी
शब्दों को संजोती, सोच में डूबी कि--,
प्रेम की भी कोई परिभाषा हो सकती है ?
क्या बांधा जा सकता है , प्रेम को भी शब्द-पाश में....?
प्रिय, यदि कभी कर सको महसूस , तो करना
बर्फ़ की- सी ठंड में धूप की गर्माहट
बस तो वही गर्माहट ही
मेरा प्रेम है ।
दिन भर की थकान से जब बोझिल हो तन-मन ....उस समय पुरसुकूं नींद का आगोश ही
मेरा प्रेम है ।
अश्रुओ की अविरल धारा के मध्य, बस यूं ही तुम्हारे अधरों पर खींची मुस्कान की एक लकीर ही
मेरा प्रेम है !
हृदय को बेंधते, मस्तिष्क को झकझोरते,इस जग के कटाक्षो के मध्य,देता जो तुम्हें अडिग खड़े होने का साहस, बस वही मेरा प्रेम है ।
बस इतनी-सी तुम्हें समर्पित
मेरे प्रेम की परिभाषा
✍️ मोनिका सिंह
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