Sunday, 9 February 2020

स्हाड़ी सोच

स्हाड़ी सोच गुलामी दी,
लस्सी पीणी बाम्मी दी।

अप्पू कम्म कमाणा नीं,
रोट्टी खाणी माम्मी दी।

स्हाकी स्हूलत थ्होई जा,
सस्स मरी जा काम्मी दी।

देस सिओआ करनीं नीं,
सुक्कमसुक्की भाम्मी दी।

रज्जी   ढोल   बजाईत्ते,
लोड़ कुथू वदनाम्मी दी।

मौज़ 'नवीन' मनाणी ऐं,
तोप्प चढ़ी ऐ साम्मी दी।
             
✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

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