Wednesday, 4 March 2020

स्हाव 'नवीन' लखोआ दा


भूत्तड़   मुन्नू   लाड़ी  दा,
सक्का कुण ऐं प्हाड़ी दा?

बूट्टा   लाई   भास्सा   दा,
हुण नीं खेल बगाड़ी दा।

बब्ब  सलूणा  तोप्पा  दा,
चाढ़ो   रोट   भनाड़ी   दा।

ठौकर   जेकर   मन्नैं   नीं,
धूफ  धुखाओ  माड़ी  दा।

दुनियां  सारी  बोल्ला  दी,
मुल्ल  पवा  दा  जाड़ी  दा।

स्हाव "नवीन" लखोआ दा,
प्ल़ोप्पा - प्यार तुहाड़ी दा।
         
✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

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