लेखक एक शाम को घर पर अपनी खटिया पर बैठा था अचानक उसके मन में ख्याल आया कि जो कुछ भी मैं लिखता हूँ मेरे लिखने से क्या भला? मैं क्यों लिखता हूँ? क्या इस लिखे हुए पन्ने को कोई पढ़ेगा? उसके मन में बहुत से सवाल उठ रहे थे। मैं शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर वर्तमान और भविष्य में आने वाली समस्याओं की चिंता करते हुए लिखता हूँ अपनी खोपड़ी को सोचने के लिए मजबूर करता हूँ लेकिन मेरे आसपास के ही लोग उस बात पर कोई चिंता नहीं करते। मैं प्रेम और दया की बात करता हूँ क्या कभी कोई प्रेम को तहरीज देता है ?यहाँ के समाज में तो प्रेम को गुनाह माना जाता है कोई प्रेम को विवाह, कोई तो उसे मात्र शारीरिक संबंध तक सीमित रखता है। सब बातों को लेकर लेखक परेशान था और निर्णय कर लिया कि अब से कुछ नहीं लिखना। वैसे भी बहुत से लेखक हैं जो निरंतर लिखते रहते हैं लेकिन समस्या वही कि पढ़ने वाले कम समझने वाले उससे भी कम। लेखक लिखते-लिखते थक चुका था । कुछ दिन आराम करने के बाद एक दिन उसे बस में सफर करते हुए एक अजनबी मिल गया और एकाएक दोनों में बातचीत आरम्भ हो गई। लेखक का मन पहले की तरह अशांत था जो समाज हित की बात सोचता रहता था। अचानक ही अजनबी ने उनसे कहा कि आपकी तरह ही कुछ दिन पहले किसी लेखक ने यही बात अपने लेख में लिखी थी और उसे पढ़कर मैंने भी प्रण लिया कि देश हित में मैं भी अपना सहयोग दूंगा। लेखक ने भी अजनबी से लिखने वाले का नाम पूछ डाला। अजनबी ने कहा कि जिस लेखक की बात को मानकर मैंने प्रण लिया है मैं उसका नाम कैसे भूल जाऊँ। अजनबी ने लेखक का नाम बताया जिसे सुनकर वह मन ही मन बहुत खुश हो रहा था क्योंकि वह नाम उसी का था। उस दिन लेखक की खुशी का कोई अन्त न था। लेखक सोचता था कि लिखने से क्या भला लेकिन आज अजनबी से मिलकर उसे ऐसा लगा कि उसका जीवन सफल हो गया क्योंकि अजनबी ने उसे पढ़कर अपने आप को बदल दिया था। वह पल लेखक के मन में लिखने का वही जोश वही जुनून भर गया और उसने फिर से लिखना शुरु कर दिया ।
✍️ राजेश सारस्वत
ठियोग, जिला शिमला
No comments:
Post a Comment