✍️ जगदीश शर्मा
सुकेत की ऐतिहासिक नगरी पांगणा के लोकगीतों और लोक गाथाओं की गौरवशाली परंपरा रही है।अलग-अलग मांगलिक अवसरों पर अलग-अलग गीत गाए जाते हैं।इसी कड़ी में लोहड़ी से आठ दिन पूर्व से बच्चों द्वारा गाए जाने वाले गीत भी समाज के हर वर्ग को आकर्षित करते हैं।लड़कों और लड़कियों की अलग-अलग टोलियों द्वारा गायी जाने वाली लोहड़ी गायन की यह धारा अब संकुचित हो गयी है।बच्चे लोहड़ी वाले दिन बच्चे खीचड़ी मांगने तो आते हैं लेकिन लोहड़ी से पूर्व आठ दिनों तक घर-घर जाकर लोहड़ी गाने बहुत कम आते हैं।युगों से चली आ रही लोहड़ी गायन की इस परंपरा को जीवित रखने के लिए समाज के हर वर्ग को लोहड़ी गाने वाली बच्चों की टोलियों को हर रोज सामर्थ्य अनुसार धन राशि प्रदान कर प्रेरित करना चाहिए,न कि नाक सिकोड़कर यह कहकर नजरअंदाज न करें कि "लोहड़ी वाले दिन ही पैसे मिलेंगे।"श्रोताओं को प्रभावित करने वाली लोहड़ी गायन की यह समृद्ध परंपरा युगों युगों तक जन जागरण का प्रतीक बनी रहे इसके लिए लोकगायन की परंपरा को जीवित रखने के लिए हम सभी को योगदान करना होगा
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