फ्रांसीसी वैज्ञानिक फ्रोसेसे का कहना है कि यद्यपि मनुष्य में 150 वर्ष जीवित रहने की क्षमता रहती है, परंतु प्रकृति के नियमों और उचित आहार-विहार को नहीं जानने के कारण वह आधी जिंदगी जी पाता है। विज्ञान कहता है कि एक लाख से ज्यादा प्रकार के प्रोटीन हमारे शरीर में बनते हैं । रसायनों से भरा हुआ एक बड़ा कारखाना हमारे शरीर के अंदर है। हमें इस कारखाने को सुचारू रूप से चलाने की कला सीख लेनी चाहिए।
योग-विद्या में नैपुण्य रखने वाले बतलाते हैं कि हमारे शरीर में बहत्तर करोड़, बहत्तर लाख, दस हजार, दो सौ छह नाड़ियां होती हैं। प्रतिदिन इन्ही नाड़ियों में आम, कफ,मेद,मल, कीटाणु, विष इत्यादि टाक्सिन पैदा होते रहते हैं।
विश्व के प्राचीनतम चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद के महर्षियों को यह बखूबी ज्ञान था, कि इन नाड़ियों का प्रतिदिन शोधन कैसे किया जाए?
प्रसंगवश यह कथन बहुत महत्वपूर्ण है कि पुराने लोग शरीर में प्रतिदिन पैदा होने वाले विष जातीय तत्त्वों को शरीर से बाहर निकालने की विद्या में माहिर थे।
एक पुराने वैद्य लिखते हैं
हर साले मसल, हर माह में कै।
हर हफ्ते फांका, हर दिन मैं।
अर्थात साल में एक बार जुलाब लेकर कोष्ठ शुद्धि कर लेनी चाहिए।
महीने में एक बार वमन (गजकरणी, कुंजल) अवश्य ही करना चाहिए।
हफ्ते में एक बार व्रत अवश्य ही करना चाहिए।
हर दिन आसव-अरिष्टो का सेवन करना चाहिए।
एक अन्य वैद्य लिखते हैं-
हरड़ बहेड़ा आंवला, चौथी डाल गिलोय।
पंचम जीरा डालकर, निर्मल काया होय।
अर्थ सुस्पष्ट है।
प्रात: काल खाट से उठकर, पिएं तुरंतहि पानी।
ता घर बैद कबहुं नहिं जावे, बात घाघ ने जानी।
आज नाड़ियों को विशुद्ध करने की विद्या विलुप्त-सी हो गई है।
आज सब लोग इस बात पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं-रुको मत, खाओ😊
अंधाधुंध समय बेसमय पिज़ा, होटडोग, बर्गर, मोमोज, चाऊमीन, स्प्रिग रोल, मंचूरियन इत्यादि खूब चटकारे लेकर खाए जा रहे हैं। Eat drink and be merry का सर्वत्र बोलबाला है।🌿
आयुर्वेद महर्षियों ने कहा है
हित भुक, मित भुक, ऋत भुक।
इन नियमों की अवहेलना का ही परिणाम है- कैंसर।
शरीर को डीटोक्सिफाई करने के लिए आयुर्वेद में बताएं गए ये तरीके बेहतरीन एवं अद्भुत हैं।
डीटोक्सीफिकेशन के प्राचीन आयुर्वेद में बतलाए गए तरीकों के बारे में अधिक प्रामाणिक जानकारी के लिए यह पुस्तक पढ़ें-
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