Thursday, 23 January 2020

साहित्य ज्ञान का संचित कोश और भाषा ज्ञान संचयन का माध्यम

शब्द और अर्थ के सहभाव को साहित्य कहते हैं। साहित्य में शब्द और अर्थ दोनों की अन्यूनानतिरिक्त परस्पर स्पर्द्धापूर्वक मनोहारिणी एवं श्लाघनीय अनुभूति होती है। शब्द और अर्थ की और भाषा और कथ्य की परस्पर अनुकूलता और उनका परस्पर सांमजस्य ही उनका सहित होना है। इसे ही संस्कृत में हितेन सह सहितम् तस्य भावः साहित्यम् कहा गया है। साहित्य सृजनात्मक एवं रचनात्मक प्रक्रिया है जबकि भाषा सृजनशील एवं रचनात्मक प्रक्रिया की अभिव्यक्ति का साधन । आचार्य भर्तहरि का कथन है कि भाषा ज्ञान को प्रकाशित करती है :-

      वाग्रूपता चेन्निष्क्रामेदवबोधस्य शाश्वती।
      न प्रकाशः प्रकाशेत साहि प्रत्यवमर्शीनी।।

साहित्य ज्ञान का संचित कोश होता है और भाषा ज्ञान संचयन का माध्यम।

ईश्वर द्वारा सृष्ट यह जगत् अत्यंत विचित्र एवं विशिष्ट है। कहीं पर भी एक रूपता नहीं दीखती। सर्वत्र सूक्ष्म से सूक्ष्म भेद और अनेकरूपता के दर्शन होते हैं। इसी वैविध्य से प्रत्येक सृजन में अपार सौंदर्य और अनंत अर्थच्छताएँ विकीर्ण हो रही हैं।रचनाकार निरन्तर विचित्रता से लदे संसार में अपने कृती मन को सौंदर्य संभार से समृद्ध एवं पुष्ट करता रहता है। तभी कहीं मानस-कल्प में रचना पक-पककर सम्प्रेषणीय बनती है। भीतरी संवेदन को सुन्दर रूपाकार देने का दायित्व शब्द-शिल्पी का है। उचित शब्द-सन्धान ही सर्जक की सतत् तपश्चर्या का प्रतिफल है। अज्ञेय के अनुसार -" शब्द चाहे कितने ही सृजनात्मक हों,तब भी वे अपनी काँति एवं स्फूर्ति को एक निश्चित कालावधि के पश्चात खो देते है, इसीलिए शब्दों में नवजीवन संचरित करने के लिए बदलते संवेदनों के अनुरूप  स्पन्दित करते रहने का उद्योग करते रहना चाहिए। तभी कहीं ये शब्द हमारी चेतना के उचित संवाहक बनेंगे।"

साहित्य सृजन अपने और दूसरों के उत्सर्ग के लिए होना चाहिए। सृजन कर्म कोई व्यवसाय नहीं है जिसमें रोज़ी रोटी कमाई जाए। सृजन तो साधना है,तपस्या है। इसमें तो लोक कल्याण के बीज ही अंकुरित होने चाहिए। इसीलिए रचना का पहला और आखिरी लक्ष्य मानव हित ही है। रचना में विषय की बू नहीं जीवन की ललित प्रखर ज्योति विकीर्ण होनी चाहिए । एक ऊँची मनुष्यता और निश्छल सौंदर्य से अनुप्राणित व्यक्तित्व ही समाज के साथ सही जुड़ाव रख सकता है। वस्तुतः साहित्य व्यष्टि के माध्यम से अभिव्यक्त समाज की ही वाणी है। 

✍️ डॉ. सुरेन्द्र शर्मा

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