Wednesday, 22 January 2020

वर्णमाला

अब किसी फ़साने में   नहीं कुछ
आ इधर कि ज़माने में नहीं कुछ

इस नाराज़गी का     सबब क्या?
ईमान के ख़ज़ाने में     नहीं कुछ!

उनके तलवों का ज़िक्र!   यानि
ऊपर के ख़ाने में        नहीं कुछ

एक कोशिश है गो नाकाम रहूँ
ऐतबार जताने में       नहीं कुछ

ओ लूटने वाले,   अब चला जा
और इस दीवाने में     नहीं कुछ

अंदर भी प्यारे      कुछ दर्द हो
अ: अाह चिल्लाने में    नहीं कुछ

कब का छोड़ दिया है घर फिर
ख़बर पहुँचाने में       नहीं कुछ

गर बात       ज़मीर पे आयी है
घरबार गंवाने में       नहीं कुछ

चल, बारिश में उसे आजमाते हैं
छतरी पकड़ाने में     नहीं कुछ

जब आ ही गयी लार जुबां पर
झमाझम गिराने में    नहीं कुछ

टक्कर का मिला है    मसखरा
ठहाके लगाने में      नहीं कुछ

डर है मगर    इस डर को एक
ढकोसला बताने में   नहीं कुछ

तमंचा भले ही हो        सामने
थप्पड़ जमाने में      नहीं कुछ

दवा का तो ज़िक्र ही  मत कर
धक्के खाने में         नहीं कुछ

पत्थर भी बेहतर शै है दोस्त
फल- फूल चबाने में नहीं कुछ

बड़ी देर में जागेगी लौ, तब तक
भगदड़ मचाने में      नहीं कुछ

मय का परस्तार         कौन है?
यह निगल जाने में   नहीं कुछ

रती भर भी क्या       इल्म नहीं
लहू के बह जाने में     नहीं कुछ

वजूद को           यूँ न ढूंढ़ा कर
शहर के पैमाने में      नहीं कुछ

षडदर्शन हो    या हो त्रिपिटक
सबकुछ भूलाने में     नहीं कुछ

हम अपने नहीं हो पाये     पर
अपनापा जताने में     नहीं कुछ

✍️ Rahul Boyal

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