तस्वीर में मेरी, कुछ भी ख़ास नहीं है,
तकदीर में मेरी, कुछ भी तो नहीं है।
इतनी नहीं हसीन, कि कोई हमें चाहे,
अल्फ़ाज़ में मेरे, मिलावट तो नहीं है।
जो कहते हैं, कहते हैं बेबाकी से हम,
अदा में मेरे कोई, शोखी भी नहीं है।
दिल ,दिमाग में है, पाक़ीज़गी अपने,
फ़रेब के लिए जगह, दिल में नहीं है।
जो बोलते हैं,बोलते, साफ़गोई से हम,
झूठ कह बरगलाने की आदत नहीं है।
बेमुरव्वत दुनिया में कैसे रहें महफ़ूज़,
धोखेबाज़ की हमें तो पहचान नहीं है।
अब सीखने की मेरी, कोई उम्र तो नहीं,
नसीहत देना लेकिन, बुरा भी नहीं है।
✍️ प्रतिभा पाल मेहता
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