Sunday, 19 January 2020

कुकडी

एक त बान्द्रो द झगेवणी मुश्कल,
गोडणी चोडनी पचळेवणी मुश्कल,

तरेई र शकोई र पशाई र ल्याओ, 
नवी बहुओ द पकवाणा बी मुश्क्ल। 

लोके छाडी ऐबे बीजणी तक पोरी, 
कडाटा ठोळी र ल्यावणा मुश्किल।

मशीनो रे पीशे दी ल्हास न आओ, 
घराटो के छाडणा ल्यावणा मुश्कल।

बुडुदी बारी मुँह दे दाँद बी न रोए, 
चपाती म्हारे चबावनी बी मुश्क्ल।

सातू के कुकडी तक भुजदा न कोई, 
रे पचोळे रा स्वाद ल्यावणा मुश्क्ल। 

बाजारो दे दीशुओ कुकडी बुजणी वाले,
तेते के बीओ रा नोट ल्यावना मुश्क्ल।

✍️ ओम प्रकाश शर्मा (जुनगा) शिमला। 

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