एक त बान्द्रो द झगेवणी मुश्कल,
गोडणी चोडनी पचळेवणी मुश्कल,
तरेई र शकोई र पशाई र ल्याओ,
नवी बहुओ द पकवाणा बी मुश्क्ल।
लोके छाडी ऐबे बीजणी तक पोरी,
कडाटा ठोळी र ल्यावणा मुश्किल।
मशीनो रे पीशे दी ल्हास न आओ,
घराटो के छाडणा ल्यावणा मुश्कल।
बुडुदी बारी मुँह दे दाँद बी न रोए,
चपाती म्हारे चबावनी बी मुश्क्ल।
सातू के कुकडी तक भुजदा न कोई,
रे पचोळे रा स्वाद ल्यावणा मुश्क्ल।
बाजारो दे दीशुओ कुकडी बुजणी वाले,
तेते के बीओ रा नोट ल्यावना मुश्क्ल।
✍️ ओम प्रकाश शर्मा (जुनगा) शिमला।
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