मेरे सह्रदय मित्र व हिंदी साहित्य के साधक, गहन पाठक, चिंतक, लेखक, समीक्षक, वर्तमान में एन.जे.एच. पी.एस. झाकड़ी (रामपुर,जिला शिमला) में राजभाषा अधिकारी पद पर सेवारत डॉ. प्रवीण कुमार ठाकुर द्वारा लिखित समीक्षात्मक पुस्तक डॉ. विद्यानिवास मिश्र के निबंधों में संस्कृति के विविध रूप निखिल प्रकाशन आगरा से प्रकाशित होकर हिन्दी साहित्यविदों, साधकों एवं पाठकों के कर कमलों में समर्पित हुई है। इस सृजनात्मक उपलब्धि के लिए डॉ. प्रवीण कुमार ठाकुर को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...💐
भारतीय साहित्य और संस्कृति की सुंगन्ध भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व पटल पर फैलाने वाले साहित्य शिरोमणि विद्यानिवास मिश्र जी मेरे सर्वप्रिय साहित्यकारों में से एक रहे हैं। उनके कृतित्व में सर्वाधिक सफलता सांस्कृतिक एवं ललित निबंध के क्षेत्र में प्राप्त हुई है। इसीलिए डॉ. प्रवीण जी द्वारा उनके निबंधों में संस्कृति के विविध रूप शीर्षक से किए गए समीक्षात्मक विवेचन को पढ़ने की जिज्ञासा प्रबल रही जो पुस्तक की प्राप्ति के पश्चात उसे पढ़कर ही शांत हो पाई। डॉ. प्रवीण जी ने अपनी पुस्तक में डॉ. विद्यानिवास मिश्र के निबंधों में संस्कृति के विविध रूपों का सूक्ष्मता से विवेचन व उदघाटन किया है।
आठ अध्याय एवं उपसंहार में प्रसृत यह समीक्षात्मक विवेचन, जिसमें ललित निबंधकार : डॉ. विद्यानिवास मिश्र, हिन्दी साहित्य की निबंध विधा : एक विकास यात्रा, संस्कृति का सैद्धान्तिक आधार, डॉ विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में संस्कृति का सामाजिक एवं राजनीतिक रूप, डॉ. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में संस्कृति का धार्मिक रूप, डॉ. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में संस्कृति का राष्ट्रीय रूप, डॉ. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में संस्कृति का सौंदर्यात्मक रूप, डॉ. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में संस्कृति का भाषात्मक रूप आदि संस्कृति के विविध रूपों को वेहद सरलता व सूक्ष्मता से विवेचित और विश्लेषित करने का उपक्रम किया है। उनकी समीक्षा व विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि हिन्दी साहित्य को अपने ललित निबन्धों और लोक जीवन की सुगंध से सुवासित करने वाले संस्कृत मर्मज्ञ डॉ. विद्यानिवास मिश्र जी ने सम्पूर्ण संस्कृति का रंग इंद्रधनुष की छटा की तरह अपने सांस्कृतिक निबंधों में उजागर किया है। भारतीय संस्कृति के अध्येता,मर्मज्ञ,धार्मिक आस्था में विश्वास से पुष्ट गहरी आसक्ति रखने वाले, लोक एवं शास्त्र के बीच सेतु बने विद्यानिवास मिश्र अपने निबन्धों में सर्वत्र दिखाई देते हैं। उनकी लोक जीवन को लेकर गहरी आस्था दृष्टिगत होती है। एक तरफ तो वह परम्परा के मूल्यों पर बल देते है वहीं दूसरी ओर वह लोक जगत के सौंदर्य के भी पक्षधर है। आँगन का पक्षी, कौन तू फुलवा बीननहारी, गाँव का मन आदि उनके ऐसे तमाम निबंध हैं जिनमें लोक जीवन के माध्यम से भारतीयता और परंपरा के मूल्यों को पकड़ने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा उनकी रचनाओं में टिकुआ, अमिया, निम्बौरी ,नीम का फल, जैसी शब्द छवियों के साथ लोक जीवन का सौन्दर्य बड़े प्रभावशाली ढंग से उभरकर सामने आता है।
डॉ. विद्यानिवास मिश्र जी का लेखन आधुनिकता की मार देशकाल की विसंगतियों और मानव की यंत्र का चरम आख्यान है जिसमें वे पुरातन से अद्यतन और अद्यतन से पुरातन की बौद्धिक यात्रा करते हैं। मिश्र जी के निबन्धों का संसार इतना बहुआयामी है कि प्रकृति, लोकतत्व, बौद्धिकता, सर्जनात्मकता, कल्पनाशीलता, काव्यात्मकता, रम्य रचनात्मकता, भाषा की उर्वर सृजनात्मकता, सम्प्रेषणीयता इन निबन्धों में एक साथ अन्तग्रंर्थित मिलती है।
डॉ. प्रवीण कुमार ठाकुर जी द्वारा "डॉ. विद्यानिवास मिश्र के निबंधों में संस्कृति के विविध रूप" शीर्षक से प्रकाशित यह समीक्षात्मक पुस्तक न केवल सराहनीय है बल्कि हिन्दी पाठकों का एक बहुत बड़ा वर्ग इससे कृत कृत्य होगा और विद्यानिवास मिश्र जी के निबंध साहित्यिक विषयक चिंतन पर शोध के रहे शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक राम बाण सिद्ध होगी ये कहना अतिश्योक्ति न होगी।
इस सफलतम प्रयास के लिए डॉ. प्रवीण कुमार ठाकुर जी को हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएं । आपकी साहित्य सृजन की यह धारा अनवरत यूं ही बहती रहे, मेरी यही कामना हैं। पुस्तक के सफल प्रकाशन के लिए प्रकाशक की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण रहती है। उनके अथक प्रयासों से ही पुस्तक अपना मूर्त प्राप्त कर पाती है। इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए निखिल प्रकाशन आगरा व उनकी पूरी टीम को भी साधुवाद....।
पुस्तक समीक्षा ✍️ डॉ. सुरेन्द्र शर्मा
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