औकात जरूरी है दरकार ज़रूरी है।
मझधार जरूरी है पतवार ज़रूरी है।
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रिश्ते न बिखर पाए तब प्यार ज़रूरी है।
अपनो से यहाँ पर यारो हार जरूरी है।
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एहसास ख़ुदा का हमको जिसने दिलाया है।
उस जिंदगी का दिल से आभार ज़रूरी है।
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है जुल्म अगर करना तो जुल्म है सहना भी।
गांड़ीव सी हिम्मत की टंकार ज़रूरी है ।
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यूं बात बनेगी क्या बहता है नदी सा रोज।
खामोश समन्दर की ललकार ज़रूरी है।
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दौलत है ख़ुदा जिनकी वो बेचने निकले है।
ईमान का यारो फिर बाजार ज़रूरी है ।
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ईनाम मिलेगा तेरे होने का तुझको भी।
इन्सान 'तरुण' गर हो किरदार ज़रूरी है।
✍️ कुलदीप गर्ग 'तरुण'
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