Saturday, 1 February 2020

धूप बहुत तेज़ है

तुम्हारे बगैर यह सफर
रेगिस्तानी लगता है
न कोई पेड़ न कोई सराय
उस पर बढ़ी मुश्किलों की
धूप बहुत तेज़ है/
धरती और आसमान सब धूँआ है 
गहन अन्धकार काली बदली है 
तुम्हारे आँचल की नर्म छाँव में 
जब तक भी पलता रहा मन
बर्फ सी ठण्डक और 
कंपकंपी रही बदन पर/
ज़िन्दगी के नये सफर में
दर्द दवा है मरहम कुछ नहीं 
कोई भी साया नहीं बस
धूप बहुत तेज़ है................./
रिश्तों में जो गर्माहट थी
तेरे आने पर
अब सिर्फ ठण्डा लोहा
दौड़ता है रगों में
भीड़ में कोई भी अब 
अपना नहीं दिखता/
चेहरों को पढ़ता हूँ हर रोज
कई घण्टों किताबों की तरह
झूठ,फरेब ओर नफरत मिली अक्सर
खूबसूरत चेहरों में  
वफ़ादारी कहीं दूर तक नहीं
ज़िन्दगी के लम्हें 
गुजारें कैसे इस सफर में
भीड़ में सिर्फ दिल तन्हा है और 
धूप बहुत तेज़ है....................।
           
✍️ डॉ० जय चन्द ’उराड़ुवा’

            

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